रोज दिन असन आज घलो सुकालू अउ लछनी दुनो परानी ह रोजी-मजदूरी करे बर नाहर के पुलिया बनत राहय उंहा चल दिस। सुकालू के घर के इसथिति अइसे हाबे कि दुनो परानी कमाथे तब घर के चुल्हा जलथे। लछनी के तबीयत अबड़ दिन के खराब रहाय। तभो ले भूख अउ दुख मिटाय बर रोज हकर-हकर कमाय। तभो ले पुलिया के ठेकादार ह सबे मजदूर संग जानवर असन बेवहार करय। लछनी
ह काम करत-करत पानी पीये बर थोकन बइठ गे। ओतके बेरा म ठेकादार आगे अउ ओकर
हाथ के गिलास ल झटक के
धुतकारीस
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तुमन
बहुत कामचोर हव। इहा पानी पीये बर भर
आथव। काम-बुता काही नई करना हे। फेर बपरी लछनी ह तो मजदूर अउ मजबूर आय करय
ते करय का। कले चुप पियास म घलो गिलास ल छोड़ दिस। ओ
दिन लछनी बुखार के मारे कापत रहाय। रेंगे बर घलो ओकर पांव नई उसलत रिहिस।
तभो ले लइकामन के पेट खातिर पूरा ताकत भर अपन पांव ल आघू डाहर बढ़हइस।
ले-दे के धमेला के गिट्टी ल उठइस अउ रेंगे ल धरिस। ओतके बेरा लछनी ह फिसल
के नाहर ले गिर गे। अब अलहन ह ओकर जिनगी ल ले बर आघू म खड़े
रहाय। सबो मजदूर ह
देखो-देखो कहिके लछनी करा जोरयागे। तभे सुकालू ह
घलो कोन काय होगे कही के भीड़ डहार दउड़िस त देखथे लछनी ह गिरे पड़े हे।
सुकालू के आखी ह मूंदा गे। चारों डाहर अंधियारी छागे। सुकालू अउ मजदूर मन ह
ठेकादार करन गिस अउ हाथ जोड़ के लछनी ल बचाय के गोहार लगइस। फेर ठेकादार ह
न डाक्टर बलइस न एंबुलेंस
अउ
न कोनो बचाय के उदीम करिस। जियादा बेरा होय
के सेती ओकर परान ह छूट गे।

रातभर
सुकालू ह मुख्या के बात ल सोचत रहिस कि ए कइसन जाति समाज आय। जे ह मरत
आदमी ल मारे के काम करथे। अतेक परथा अउ परंपरा के संसो हे, त काबर एमन समाज
के गरीबमन के मदद नई करय। तब फेर मने-मन कहे ल लागथे कि मोर बाई लछनी ह जब
बीमार रहिस, त कोनो जाति समाज के मनखे ह घर म पूछे बर
नइ
अइस। आज मरे के
बाद घर म आके बिपत के समय म मरिया भात खवाय ल कहात हे। वाह रे जाति समाज कहिके जब आंखी ल खोलथे। त बेरा ह ऊग जाय रहाय। सुकालू
ह कइथे अरे आज के रात ह तो इही बात के संसो म पहागे। तब सोचिस गांव के
सरपंच से मदद मांगे जाय।
होवत बिहिनिया सरपंच सुकनंदन के घर गिस। अउ आवाज
लगइस दाऊजी हाबव का। तब अबड़ बेरा म सरपंच ह
घर ले कोन अव रे बिहिनिया-बिहि निया ले परेसान करथंव चिल्लावत बाहिर निकलिस।
तब सुकालू ह सरपंच ल देखके ओकर पांव म गिर गे। अउ जम्मो बात ल बतइस। तब सरपंच सुकनंदन ह कथे- देख भाई तोर जाति समाज जानय अउ ते जान जी। हमला तुहर समाज के परंपरा अउ परथा म आड़ा नई बनना हे। अतना कही के कपाट ल देके सरपंच ह भीतरी म खुसरगे। तब सुकालू
ह रोवत-रोवत गांव के सचिव, तहसीलदार, विधायक,
मंतरी, मुखमंतरी अउ
सरकारी दफ्तर म मुआवजा बर चक्कर लगइस। फेर न तो ओला मुआवजा मिलिस न कोनो
मदद। ओकर हाथ ह
जुच्छा के जुच्छा। ऐती लइकामन ह भूख म मरत रहाय। फेर
कोनो
ह
सुकालू अउ ओकर परिवार के मदद
नइ
करिस। संझा जुआर जब सुकालू ह घर पहुंचिस त
लइकामन ह काही खाय के लाय होही कही के झूमगे। फेर सुकालू ह रो परिस कि आज ओ
ह अपन अउ अपन लइकामन के पेट नई भर सकत हे। तभो ले ओकर जाति समाज के मन
परथा अउ परंपरा के नाम म मरिया भात खवाय बर परेसान करत हे। ये सोचत-सोचत
सुकालू ह बइठे
रहाय। ततके बेरा फेर समाज के मुख्या जगमोहन ह धमक गे। अउ
कहिस सुकालू तैं ह अतेक दिन बिते के बाद भी मरिया भात नइ खवाय हस। दू दिन म
मरिया भात खवा देबे। नहीं तो तोर हुक्का पानी बंद कर दे जाही। कही के ओकर
घर ले निकल गे।
सामाजिक बहिष्कार के बात ल सुनके सुकालू ह अचेत असन हो गे।
अब
ओला लछनी के सुरता अउ समाज के परताड़ना ह
जियाने ल धर लिस। अब
सोचे ल लागिस अइसन समाज म जी के का करहूं कही के। होवत बिहिनिया डोर ल धर
के नवा तरिया डाहर गिस। परसा के पेड़ म फांसी अरोवत रहिस। जब
गला म डोर ल डारिस ओतके बेरा म गांव के गुरुजी ह नाहे बर तरिया जावत रहिस।
ओ ह सुकालू ल देखके दउड़िस अउ डोर ल निकाल के सुकालू ल अलग करिस। तब
सुकालू ह कथे- गुरुजी आज मोला झन रोक मे ह ए समाज म जी के का करहूं। जिंहा के सियान ह मदद के बदला मरे बर मजबूर करथे। सुकालू ह गुरुजी ल जम्मो बात ल बतइस। तब गुरुजी ह कथे हमन तो हाबन जी तोर संग। ते ह काबर संसो करत हस। मैं
ह देख लूहूं। तोर समाज के मुख्या ल। तब गुरुजी ह सुकालू ल घर ले के गिस।
अउ ओला उपाय बतइस। अउ ओ उपाय ल सुकालू ह मान गे। अउ ओकर उपाय ल सुनके मन ह
थोकन हरिया गे।
फेर समाज वालेमन मरिया भात बर बइठक करवइस। बइठक म समाज के मुख्या अउ सदस्य मन कचा-कच सकलाय रहाय। गुरुजी ह घलो सुकालू के पक्छ म बात रखे बर आय रहाय। गुरुजी सरकारी स्कूल म लइका मन ल पढ़ाथे। ओकर सबे झन अबड़ मान सम्मान करथे। फेर
गलत करइया जाति समाज के मनखे मन ओकर ले चिड़थे। समाज के मुख्या जगमोहन ह
कहिस कइसे सुकालू आज-कल आज-कल करत-करत पंदरही ह बीत गे। अभी ले मरिया भात
नई खवाय हस। तब सुकालू ह गुरुजी के बताय गुरु
मंतर
ल वइसने पढ़थे जइसने
बताय रइथे। कहिथे- भइया हो मे ह मरिया भात खवाहूं फेर एक ठोक हमरो पुरखामन ह
नियम अउ परथा बनाय हे। ओ ला मानहू त मे ह खवाय बर तियार हंव। अब आपमन
बताव। तब समाज के मन मरिया भात खवाय के बात ल सुनके खुस होगे। अउ कहिस कइसन
बात ए सुकालू भाई। काबर नइ मानबो जी, बता न। तब
सुकालू ह कथे हमर पुरखा मन ह नियम बनाय हे कि दुख के बेरा म जतेक कुटुंब
अउ समाज के लोगन मन मरिया भात खाय बर
आथे
त उकर सुवागत-सत्कार चार-चार
कोर्रा (कोड़े) मार के करे जाथे। अतका बात ल सुनके समाज के मुख्या जगमोहन ह
आगी
असन
बरगे। अउ कथे कइसे रे सुकालू तोर आज अतका हिम्मत होगे अंटसंट बात
करत हस। ताहन पूरा समाज के सब झन सुकालू बर कांव-कांव करे ल धर लिस।
तब
गुरुजी ह कथे- मुख्याजी सुकालू ह बने काहत हे। ओकर पुरखामन के नियम ल मे
जानत हंव। उकर घर कोर्रावाला देवता हे। जब कोनो ह परलोक सिधार जाथे त मरिया
भात खवइया मन ल कोर्रा मार के देवता ल खुश करे जाथे। अब तुमन ल मरिया भात
खाना हे त कोर्रा घलो खाय ल परही। गुरुजी ह समाज
अउ ओकर सियानमन ल धुतकारत कहिस- तुमन काकरो मदद नइ कर सकव अउ ओकर परान ल
ले बर पीछू पड़े रइथव। आज मे ह एक मिनट भी देरी म तरिया पार म पहुंचतेंव, त
ए सुकालू ह दुनिया ल छोड़ के चल दे रतिस। का कोनो समाज ल अधिकार हे कि
कोनो मनखे ल फांसी के फंदा म झुलाय बर मजबूर करय। आज
मे ह तुहर बर थाना म
रिपोट
करहूं त सीधा तुमन जेल जाहू। आज मे ह तुमन ल
छोड़त हंव। दुबारा अइसन गलती करहू त अनजाम बहुत बुरा होही। अतका डांट ल
सुनके समाज के सब मुख्या अउ सियान मन भरभरा के उठ गे। अउ अपन-अपन घर चल
दिस।