Sunday, 26 August 2018

मनखे ल बिलहोरत हे वाट्सएप-फेसबुक


दारू, बिड़ी-सिगरेट अउ तास-जुआ के नसा ह बिलकुल पुराना होगे हे। आजकल नवा नसा आय हे, फेसबुक अउ वाट्सएप्प के नसा। ए नसा ह दिनरात मनखे ल चघे रइथे।  एकर चपेट म लइका-सियान, टूरा-टूरी, नौकरीवाला अउ घर म फोकटछाप बइठे मनखे सब नसा म मताय बइइा-भुतहा असन घुमत रइथे। होवत बिहिनिया सुतउठ के कोनो काम बुता ह कहूं जाय, फेर फेसबुक अउ वाट्सएप ल देखे बर कोनो ह नइ भुलाय। ए सोसल मीडिया के चक्कर म आजकल के छोकरा-छोकरी मन ल रात के दू बजे घलो नींद नइ आवय। आजकल सबले बड़े बुता काय आय वाट्सएप के स्टेटस ल बदलना। जम्मो कामकाज ल छोड़ के मनखे ह वाट्सएप स्टेटस ल मन लगाके बदलथे।
कोनो वाट्सएप्प म मजाक वाला मैसेज भेजही त कठले-हांसे के सिंबल दू-चार ठोक चिपका देथे। हाथ के ठेंगा दिखाके लाइक कर देथे। एकर बाद भेजइया ह घलो हाथ जोड़े वाला ओ डाहर ले भेजके अंतस के आभार ल मंड़माड़े परगट करथे। जोक-जोक म आजकल के लइका मन जकजका गे हे। पूरा पढ़ई-लिखई के सतइयानास होवत हे। महतारी ह लइका ल खाय बर बलावत हे तब लइका काहत हे राहना ओ अभी फेसबुक म झक्कास फोटू अपलोड करे हंव। ओमा संगवारी मन के अब्बड़ कमेंट आए हे, ओकर जुआब देवत हंव। लइका ह फेसबुक के कंमेंट मन ल लाइक कर-कर के बारी-बारी सबो झन ल थैंक्स काहत हे। ए परकार ओकर दिन ह फेसबुक अउ वाट्सएप के कंमेंट, लाइक अउ सेयर म निकल जथे।
अब इसकूल के गुरुजीमन घलो फेसबुक-वाट्सएप के मायाजाल म फंसे हे। लइका ल पढ़ाय ल छोड़ के कुरसी म बइठे कठलत रहाय। तब लइकामन  पूछथे कइसे गुरुजी का होगे मनेमन अबड़ हांसत हस। तब गुरुजी कइथे- चुपो रे मोर माेबाइल म अइसे जोक्स आय हे, तेला पढ़के हांस-हांस के पेट फुलगे। अब गुरुजी ह लइकामन ल पढ़ाय बर छोड़ के वेरी नाइस, सुपर, झक्कास, बम हे, फाड़ू अउ धमाल कही के वाट्सएप म रिपलाइ देवत हे। अइसने-तइसने पढ़ाय के पूरा बेरा ह सिरागे। ठिन-ठिन-ठिन घंटी बाजगे, छूट्टी होगे। आजकल इसकूल के पढ़ई ह अइसने होवत हे।
आज जम्मो तिहार ह घलो फेसबुक-वाट्सएप म हो जावत हे कोनो ल काकरो पास जाय के जरूरत नइ हे। हरेली तिहार अइस त गेड़ी अउ बइला के फोटू ल वाट्सएप म भेज देवत हे, नहीं त फेसबुक म अपलोड कर देवत हे। राखी तिहार म बहिनी अपन मयारू भाई ल राखी ल वाट्सएप म भेज के आसीरबाद ले लेथे। तब भाई घलो कमती नइ हे वहूं ह इंटरनेट म गिफ्ट के फोटू निकाल के बहिनी ल भेज के मड़माड़े मया-दुलार परदसन करथे। झंडा तिहार आगे तब तो झन पूछ सबे झन के वाट्सएप-फेसबुक म झंडा-झंडा दिखते। फेसबुकिया संगवारी मन देसभक्ति देखाय के चक्कर म झंडा के बीचोबीच अपन फोटू ल लगाके अपलोड  करथे। एमन भुला जथे कि असोक चक्र के जगह काकरो फोटू लगाना या झंडा म कोनो किसम के कांट-छांट करना झंडा अउ देस के अपमान आय। देसभक्ति ह बने बात आय फेर भक्ति के चक्कर म काही उलटा-पुलटा नइ करना चाही। काही तिहार होय मनखे ह अपन घर भीतरी म खुसरे-खुसरे मना लेथे। जब होरी तिहार आथे तब गांव म न जियादा नगाड़ा बाजे अउ न रंग उड़े पूरा सुन्ना असन लागथे। काबर जम्मो संगवारी ह रंग-गुलाल ल फेसबुक-वाट्सएप म एक-दूसर ल भेजे म बियस्त रइथे। देवारी तिहार के दिन कोनो ह फटाका के एनिमेशन वाले फोटू ल घलो भेज देथे। जउन ह सहीच के फुटत तइसे दिखथे। सिरतोन म आज पूरा जमाना ह बदल गे हे। मनखे ह भीड़ म घलो अकेल्ला रइथे। संगवारीमन के बीच घलो डोंगरी म रहे असन रइथे। आजकल ए सोसल मीडिया ह मया-पिरित, संगी-संगवारी, दाई-ददा, घर-परिवार, पढ़ई-लिखई, खेलई-कुदई ले दूरिहा करत जावत हे।
सोसल मीडिया ल बने काम बर उपयोग करना चाही। अउ बेरा-बेरा म उपयोग करना चाही कोनो जिनिस के अति ह दुरगति आय। आजकल के मनखे मन उपयोग कम दुरुपयोग जियादा करत हे। सोसल मीडिया म मया-पिरित के जगह म एक जाति ह दूसर जाति ल अउ एक धरम ह दूसर धरम ल नीचे दिखाय के अउ नफरत फइलाय के काम म लगे हे। कतको जगह ए वाट्सएप-फेसबुक म अफवाह फइला के कोनो ल गाय कटइया, कोनो ल लइका धरइया अउ कोनो ल चोरहा कही के मार डरत हे। संगवारी मन ल सोचना चाही कोनो भी मैसेज ल बिना पढ़े, बिना सोचे-बिचारे अउ बिना जाने-सुने कभू भी फारवड नइ करना चाही।
वाट्सएप-फेसबुक के कारन दोस्ती-यारी अउ रिस्ता-नता ह घलो दूरिहावत हे। पहली जब एक संगवारी ह दूसर संगवारी घर बइठे बर जावय अउ अपन दुख-सुख ल एक-दूसर ले बिसरावय तब कतेक बने लायग। फेर आजकल सोसल मीडिया म जम्मो बात ल कही डरथे, लेकिन ए गोठ म मया गे सुगंध नइ आवय। वाट्सएप-फेसबुक के सेती लइकामन चिड़चिड़ापन के सिकार होवत हे। एकर ले ओकर दाई-ददा मन परेसान रइथे। लइकामन के बात-बात म गुस्सा करना अउ चिल्लई ह अब साहज होगे हे। घर के सियानमन ल घलो चाही की नान-नान लइकामन ल मोबाइल  झन देवय। जब जाने-सुने के लइक हो जही त ओकर जरूरत के हिसाब ले मोबाइल ल देना चाही। पढ़ईया लइकामन ल घलो चाही की मोबाइल अउ इंटरनेट के उपयोग बने कारज बर  करय। जइसे काेनो परकार के जानकारी लेना हे त इंटरनेट ह बड़ सुघ्घर काम आथे। फेर आजकल जानकारी या पढ़ई-लिखई बर कमती अउ फोकट टेमपास बर जियादा होवत हे। पढ़ईया लइकामन पढ़ई म जियादा अउ मोबाइल म कम धियान देवय तभे उकर जिनगी ह सवरही अउ ओमन आगे बढ़ी। पढ़ई के संगेसंग खेलई-कुदई घलो करना चाही। एकर ले सरीर ह बने रइथे। सोसल मीडिया के उपयोग करे, फेर बेरा-बेरा म। अउ बने काम-बुता बर।

- गौतम गणपत

Monday, 13 August 2018

रेडियो म बकबकावत हे

हमर मुखिया ह रेडियो म बकबकावत हे
मंडमाड़े अपन गुन गावत हे
रंग-रंग के गोठ म
लोगन ल भरमावत हे
एती गांव-सहर के मनखे
डेंगू-पीलिया म मरत जावत हे
जउन गांव म
न हास्पिटल के ठिकाना न डाक्टर के
उहां घलो बिकास के गंगा बोहावत हे

किसान मरत हे करजा म
फेर आय ल दुगुना बतावत हे
आनी-बानी के वादा करके
थूक-थूक म बरा चुरोवत हे
न धान के भाव बढ़िस
न किसान के इसथिति सुधरिस
तभो ले छत्तीसगढ़ ह
धान के कटोरा कहलावत हे

चुनाव के बेरा म
लेपटाप, टेबलेट, मोबाइल बटवावत हे
छेरी ल हरियर चारा के
लालच देखाके कटवावत हे
सरकारी इसकूल ल बंद करा के
जगह-जगह पराइवेट इसकूल खोलवावत हे
लइकामन निकलगे भोकवा
तभो ले हुसियार कहलावत हे
हमर मुखिया ह रेडियो म बकबकावत हे।

- गौतम गणपत

Friday, 10 August 2018

किसान के अंतस ल हरियाथे हरेली तिहार

जब किसान मन ह खेत के बियासी के काम-बुता ल पुरा कर लेथे। खेत-खार ह हरियर-हरियर लुगरा पहिन लेथे तब छत्तीसगढ़ के पहली तिहार हरेली ह किसानमन बर खुसी अउ उच्छाह लेके आथे। हरेली तिहार ल सावन महिना के अमावस्या के दिन मनाया जाथे। ए दिन किसानमन अपन नागर-बइला, हंसिया, कुदारी, गैती, रापा अउ किसानी के जम्मो जिनिस ल तरिया ले धोके लानथे अउ अंगना म एक जगह रखके पूजा करथे। सियानमन बर तो ए दिन ह खास तो आय संगे-संग लइकामन बर घलो ए दिन ह बहुत उच्छाह के आय। काबर ए दिन लइकामन ल घलो गेड़ी चढ़े बर मिलथे अउ गुड़हा चिला खाय बर घलो मिलथे। तेकरे सेती लइकामन घलो ए तिहार के सालभर अगोरा करत रइथे। ए दिन बिहिनिया ले गांवभर म चहल-पहल दिखथे। घर के महतारी ह ए दिन घर के साफ-सफाई म लग जथे। घर-द्वार ल लीप-बुहार के अंगना म चउक पूरथे। चउक पुरे ठउर म खेती-किसानी के सबो सामान ल रख के पूजा करे जाथे। हमर छत्तीसगढ़ म हमेसा ले जीव-जंतु, पेड़-पौधा, तरिया-नदिया के पूजा करे के रिवाज हे। इहा के मनखे ह परकिरिति के पुजारी आय। 
किसान के जिनगी म बइला के बड़ महत्ता हे एकरे सेती। एकरे सेती किसानमन बइला ल भगवान असन मानथे। हरेली के दिन घलो किसानमन अपन-अपन बइला ल तरिया म खलखल ले धोके अउ ओकर सींग म वारनिस रचा के पूजा करथे। बारिस के दिन म गाय-गरवा ल बीमारी ले बचाय खातिर हरेली के दिन बरगंडा, नमक अउ आटा ल मिलाके लोंदी बना के खवाय जाथे। ए पौसटिक लोंदी ह बइला-गाय ल बरसात के बीमारी ले लड़े के ताकत देथे। हरेली के दिन म गाय-गरूआ, नागर-बखर के संगे-संग खेत के फसल के घलो पूजा करे जाथे। हरेली के दिन गांव म खेल के घलो मजा ले जाथे। ए दिन गेड़ी उदड़, नारियर फेंक, कबड्डी अउ कई ठोक लोक खेल के आयोजन होथे। गेड़ी दउड़ लइका म लइका ह गेड़ी म चड़के मड़माड़े दउड़थे। तब गेड़ी म लगे नारियर के बूच ले रच-रच के आवाज आथे। जियादा आवाज के आनंद ले बर रस्सी म थोकन माटीतेल डाल दे जाथे। नारियर फेंक परतियोगिता म सियानमन अपन हाथ अजमाथे। बल भर जउन ह जियादा दूर नारियर ल फेंकथे उही ह विजेता बनथे। तब हारे खिलाड़ी ह जीते खिलाड़ी ल नारियर भेंट करके सुवागत करथे। ए दिन खिलाड़ी अउ दरसक ल मरमाड़े खुरहेरी खाय ल मिलथे। गांव म कई जगह कबड्डी के घलो खेल होथे। ए दिन मार माड़ी कोहनी के छोलवत ले कबड्डी खेले जाथे। ए दिन नोनीमन घलो खेले-कुदे म पीछू नइ रहाय। गांव के चउक म नोनीमन जोरिया के फुगड़ी खेलथे अउ फुगड़ी फू होरे फुगड़ी फू गाना ल बड़ मन लगा के गाथे। ए प्रकार के देखे जाय तो सबे झन बर हरेली के तिहार ह खुसी अउ उच्छाह लेके आथे। ओकरे सेती ए दिन ह लइका-सियान ल बड़ भाथे।