दारू,
बिड़ी-सिगरेट अउ तास-जुआ के नसा ह बिलकुल पुराना होगे हे।
आजकल नवा
नसा आय हे, फेसबुक अउ वाट्सएप्प के नसा। ए नसा ह दिनरात मनखे ल चघे रइथे।
एकर
चपेट म लइका-सियान, टूरा-टूरी, नौकरीवाला अउ घर म फोकटछाप बइठे मनखे सब
नसा म मताय बइइा-भुतहा असन घुमत रइथे। होवत बिहिनिया सुतउठ के कोनो काम
बुता ह कहूं जाय, फेर फेसबुक अउ वाट्सएप ल देखे बर कोनो ह नइ भुलाय। ए सोसल
मीडिया के चक्कर म आजकल के छोकरा-छोकरी मन ल रात के दू बजे घलो नींद नइ
आवय।
आजकल सबले बड़े बुता काय आय वाट्सएप के स्टेटस ल बदलना। जम्मो कामकाज ल
छोड़ के मनखे ह वाट्सएप स्टेटस ल मन लगाके बदलथे।
कोनो
वाट्सएप्प म मजाक वाला मैसेज भेजही त कठले-हांसे के सिंबल दू-चार ठोक चिपका
देथे। हाथ के ठेंगा दिखाके लाइक कर देथे। एकर बाद भेजइया ह घलो हाथ जोड़े
वाला ओ डाहर ले भेजके अंतस के आभार ल मंड़माड़े परगट
करथे। जोक-जोक म आजकल के लइका मन जकजका गे हे। पूरा पढ़ई-लिखई के सतइयानास
होवत हे। महतारी ह लइका ल खाय बर बलावत हे तब लइका काहत हे राहना ओ अभी
फेसबुक म झक्कास फोटू अपलोड करे हंव। ओमा संगवारी मन के अब्बड़ कमेंट आए
हे, ओकर जुआब देवत हंव। लइका ह फेसबुक के कंमेंट मन ल लाइक कर-कर के
बारी-बारी सबो झन ल थैंक्स काहत हे। ए परकार ओकर दिन ह फेसबुक अउ वाट्सएप
के कंमेंट, लाइक अउ सेयर म निकल जथे।
अब इसकूल के गुरुजीमन
घलो फेसबुक-वाट्सएप के मायाजाल म फंसे हे। लइका ल पढ़ाय ल छोड़ के कुरसी म
बइठे कठलत रहाय। तब लइकामन
पूछथे
कइसे गुरुजी का होगे मनेमन अबड़ हांसत हस।
तब गुरुजी कइथे- चुपो रे मोर माेबाइल म अइसे जोक्स आय
हे, तेला पढ़के हांस-हांस के पेट फुलगे। अब गुरुजी ह लइकामन ल पढ़ाय बर
छोड़ के वेरी नाइस, सुपर, झक्कास, बम हे, फाड़ू अउ धमाल
कही के वाट्सएप म रिपलाइ देवत हे। अइसने-तइसने पढ़ाय के पूरा बेरा ह
सिरागे। ठिन-ठिन-ठिन घंटी बाजगे, छूट्टी होगे। आजकल इसकूल के पढ़ई ह अइसने
होवत हे।
आज जम्मो तिहार ह घलो फेसबुक-वाट्सएप म हो जावत हे
कोनो ल काकरो पास जाय के जरूरत नइ हे। हरेली तिहार अइस त गेड़ी अउ बइला के
फोटू ल वाट्सएप म भेज देवत हे, नहीं त फेसबुक म अपलोड कर देवत हे। राखी
तिहार म बहिनी अपन मयारू भाई ल राखी ल वाट्सएप म भेज के आसीरबाद ले लेथे।
तब भाई घलो कमती नइ हे वहूं ह इंटरनेट म गिफ्ट के फोटू निकाल के बहिनी ल
भेज के मड़माड़े मया-दुलार परदसन करथे। झंडा तिहार आगे तब तो झन पूछ
सबे झन के वाट्सएप-फेसबुक म झंडा-झंडा दिखते। फेसबुकिया संगवारी मन
देसभक्ति देखाय के चक्कर म झंडा के बीचोबीच अपन फोटू ल लगाके अपलोड
करथे। एमन भुला जथे कि असोक चक्र के जगह काकरो फोटू लगाना या झंडा म कोनो
किसम के कांट-छांट करना झंडा अउ देस के अपमान आय। देसभक्ति ह बने बात आय
फेर भक्ति के चक्कर म काही उलटा-पुलटा नइ करना चाही। काही तिहार होय मनखे ह
अपन घर भीतरी म खुसरे-खुसरे मना लेथे। जब होरी तिहार आथे तब गांव म न
जियादा नगाड़ा बाजे अउ न रंग उड़े पूरा सुन्ना असन लागथे। काबर जम्मो
संगवारी ह रंग-गुलाल ल फेसबुक-वाट्सएप म एक-दूसर ल भेजे म बियस्त रइथे।
देवारी तिहार के दिन कोनो ह फटाका के एनिमेशन वाले फोटू ल घलो भेज देथे।
जउन ह सहीच के फुटत तइसे दिखथे। सिरतोन म आज पूरा जमाना ह बदल गे हे। मनखे ह
भीड़ म घलो अकेल्ला रइथे। संगवारीमन के बीच घलो
डोंगरी
म रहे असन रइथे। आजकल ए सोसल मीडिया ह मया-पिरित, संगी-संगवारी, दाई-ददा,
घर-परिवार, पढ़ई-लिखई, खेलई-कुदई ले
दूरिहा करत जावत हे।
सोसल मीडिया ल बने काम बर उपयोग करना
चाही। अउ बेरा-बेरा म उपयोग करना चाही कोनो जिनिस के अति ह दुरगति आय। आजकल
के मनखे मन उपयोग कम दुरुपयोग जियादा करत हे। सोसल मीडिया म मया-पिरित के
जगह म एक जाति ह दूसर जाति ल अउ एक धरम ह दूसर धरम ल नीचे दिखाय के अउ नफरत
फइलाय के काम म लगे हे। कतको जगह ए वाट्सएप-फेसबुक म अफवाह फइला के कोनो ल
गाय कटइया, कोनो ल लइका धरइया अउ कोनो ल चोरहा कही के मार डरत हे। संगवारी
मन ल सोचना चाही कोनो भी मैसेज ल बिना पढ़े, बिना सोचे-बिचारे अउ बिना
जाने-सुने कभू भी फारवड नइ करना चाही।
वाट्सएप-फेसबुक के
कारन दोस्ती-यारी अउ रिस्ता-नता ह घलो दूरिहावत हे। पहली जब एक संगवारी ह
दूसर संगवारी घर बइठे बर जावय अउ अपन दुख-सुख ल एक-दूसर ले बिसरावय तब कतेक
बने लायग। फेर आजकल सोसल मीडिया म जम्मो बात ल कही डरथे, लेकिन ए गोठ म
मया गे सुगंध नइ आवय। वाट्सएप-फेसबुक के सेती लइकामन चिड़चिड़ापन के सिकार
होवत हे। एकर ले ओकर दाई-ददा मन परेसान रइथे।
लइकामन के
बात-बात म गुस्सा करना अउ चिल्लई ह अब साहज होगे हे। घर के सियानमन ल घलो
चाही की नान-नान लइकामन ल मोबाइल
झन देवय। जब जाने-सुने के लइक हो जही त ओकर जरूरत के हिसाब ले मोबाइल ल
देना चाही। पढ़ईया लइकामन ल घलो चाही की मोबाइल अउ इंटरनेट के उपयोग बने
कारज बर
करय। जइसे काेनो परकार के जानकारी लेना हे त इंटरनेट ह बड़ सुघ्घर काम आथे।
फेर आजकल जानकारी या पढ़ई-लिखई बर कमती अउ फोकट टेमपास बर जियादा होवत हे।
पढ़ईया लइकामन पढ़ई म जियादा अउ मोबाइल म कम धियान देवय तभे उकर जिनगी ह
सवरही अउ ओमन आगे बढ़ी। पढ़ई के संगेसंग खेलई-कुदई घलो करना चाही। एकर ले
सरीर ह बने रइथे। सोसल मीडिया के उपयोग करे,
फेर बेरा-बेरा म। अउ बने काम-बुता बर।
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गौतम गणपत