Sunday, 29 November 2020

किताबें जोर-जोर से फड़फड़ाती हैं

बंद अलमारी से बार-बार आवाज आती हैं
किताबें जोर-जोर से फड़फड़ाती हैं
वे बहुत कुछ बताना चाहती हैं
दुनिया की तस्वीर दिखाना चाहती हैं

उन्हें इस इस बात का खेद है
वे बहुत दिनों से यहां कैद है
नहीं पढ़े किसी ने उनकी बातें
नहीं पलटे किसी ने उनके पन्नें

वे कुछ नई-पुरानी कहानी सुनाना चाहती हैं
फिर किताबें मुस्कुराना चाहती हैं
बंद अलमारी से बार-बार आवाज आती है
किताबें जोर-जोर से फड़फड़ाती हैं

- गनपत लाल

समाज में कहीं नफरत न होती

समाज में कहीं नफरत न होती 
अगर ये मंदिर न होते, मस्जिद न होती 
देश में कहीं लड़ाई न होती
अगर मूंछ न होती, दाढ़ी न होती 
न तिलक होता, न टोपी होती 
मजहब के नाम पर दुकान न होती

किसी से कोई भेदभाव न होता
अगर हिन्दू का नाम रहीम होता 
मुस्लिम का नाम राम होता 
धर्म के नाम पर दंगे न होते 
अगर लोग नैतिक रूप से नंगे न होते 
भगवान-अल्लाह के नाम पर पंगे न होते 

मोब लिंचिंग के नाम पर पिटाई न होती
किसी मासूम की जान न जाती 
किसी के लिए सुअर घृणा का प्रतीक न होता
किसी के लिए गाय माता न होती 

एक दूसरे को मारने के लिए डंडे न होते 
अगर ये मौलवी न होते, पंडे न होते 
चारों तरफ मोहब्बत की नदियां बहती 
हर जगह प्रेम की इबादत होती 

- गनपत लाल