Wednesday, 1 February 2023

अंधविश्वास पर प्रहार करती किताब 'अंधविश्वास : रोग और इलाज'

अशोक भाटिया की किताब 'अंधविश्वास : रोग और इलाज' अंधविश्वास पर जबर्दस्त प्रहार करती है। यह किताब पाठकों को अंधविश्वास की अंधेरी रात से एक नई सुबह की ओर ले जाती है। इसमें ओझा-तांत्रिक किस प्रकार के कथित चमत्कारों की मदद से लोगों को ठगता है, उसका पर्दाफाश भी किया गया है। अंधविश्वास का जाल कैसे और किन कारणों से फैलता है, इसको बहुत ही सरल भाषा में बताया गया है। शुभ-अशुभ की बीमारी किस प्रकार लोगों के मन में घर बना लेता है और स्वार्थी लोगों ने अपना धंधा चलाने के लिए अशुभ का डर कैसे दिखता है यह बेहतर ढंग से बताया गया है। 

लेखक कहते हैं- अनपढ़ों की अपेक्षा पढ़े-लिखे लोग 'शुभ-अशुभ' नामक रोग से ज्यादा बीमार हैं। लेखन ने इस बीमारी का इलाज भी इसमें बताया है। शुभ मुहूर्त देखने के कारण व्यक्ति को किस प्रकार की हानि का सामना करना पड़ता है, शुभ-अशुभ व मुहर्त के नाम पर पंडित अपना पेट कैसे भरते हैं, लोग उसकी बातों में आसानी से कैसे फंस जाते हैं। अशुभ का डर और उसे शुभ में बदलने के उपाय क्यों होता है। बाबागीरी का सच क्या है, लोग बाबाओं के पास क्यों जाते हैं। चूर्ण-भभूत को तांत्रिक बाबा इतनी आसानी से कैसे बेच लेता है, चूर्ण का गोरखधंधा हमारे देश कैसे चल पड़ता है। स्वार्थी तत्वों ने सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण को राहु-केतु नामक काल्पनिक राक्षस से जोड़कर समाज में अंधविश्वास कैसे फैलाए हैं। ये तमाम बातें लेखक ने अपनी लेखनी में स्पष्ट की है।

किताब में कहा गया है कि ज्योतिष भविष्य बताने का दावा करता है, लेकिन कोरोना जैसे रोग फैलेगा उसे कभी नहीं बताया। इससे हम कैसे कहे कि ज्योतिष ठीक बताता है, ग्रहों और उनकी दशाओं मनुष्य पर कैसे प्रभाव डाल सकते हैं। इस पर भी लेखक ने सवाल उठाए हैं और ज्योतिष को सपने बेचने की कला कहा है। फलित ज्योतिष विवाह के लिए लड़के-लड़की के 36 गुणों का मिलान किया जाता है। इसके बावजूद भी कई घरों में तलाक होते हैं, महिला को प्रताड़ित किया जाता या पति-पत्नी में किसी एक की मृत्यु हो जाती है, कुंडली मिलाने के बाद भी ऐसा क्यों होता है? ज्योतिष लगन-मुहर्त निकालने का धंधा है।

मानसिक बीमारी का इलाज कराने ओझा-तांत्रिक के पास जाने का कारण अवैज्ञानिक सोच का नतीजा बताया गया है, जो मेरे खयाल से ठीक है। भूत-प्रेत को लेकर कैसा अंधविश्वास फैला है, आज जो धर्म है उसे सम्प्रदाय बताते हुए धर्म में अंधविश्वास, पाखण्ड व्याप्त है, जो समाज के लिए हानिकारक है, इसे हम सब जानते भी हैं। किताब में असल धर्म मानवता है, जो सभी पर लागू हो, ऐसा बताया गया है। हमारे समाज में अलग-अलग सम्प्रदाय है, जिसे हम धर्म मानते हैं। सभी को इंसानियत, मानवता को मानना चाहिए जिससे समाज के सभी लोग एकजुट होकर उन्नति कर सके। वैज्ञानिक दृष्टिकोण क्या है और हमें क्यों जरूरी है? विज्ञान ने हमें क्या-क्या दिया है, विज्ञान हमेशा कुछ न कुछ खोजता रहता है और हमारे सामने उस सत्य को लाता है, जिससे अंधविश्वास का पर्दा उठ जाता है।

लेखक ने 68 पेज की छोटी किताब में अपने लेख के साथ मुंशी प्रेमचंद के अंधविश्वास, डॉ. नरेन्द्र दाभोलकर, डॉ. अब्राहम टी. कोवूर, हरिशंकर परसाई जैसे प्रगतिशील लेखकों के लेख का संग्रह किए है, जिसमें अंधविश्वास पर कड़ा प्रहार किए हैं। इसके अलावा अंधविश्वास विरोधी लघुकथाएं का संग्रह है, जिसमें पाखंड और पाखण्डियों का पर्दा उठता है।


इस किताब में कम शब्दों में अंधविश्वास पर बहुत बड़ा प्रहार किया गया है, जो बहुत ही सराहनीय है, लेकिन मेरा मानना है इस प्रकार की किताब को बड़ा रूप देने की जरूरत है। आज समाज में जिस प्रकार के अंधविश्वास, पाखण्ड को बढ़ावा देने वाली अनेक साहित्य उपलब्ध है या कहूं पाखण्डियों की बाढ़ सी आ गई है। टेलीविजन, अखबार, आस-पास सभी जगह पर अंधविश्वास पैर फैलाएं बैठे हैं, ऐसी कठीन परिस्थिति में हमें "अंधविश्वास : रोग और इलाज" जैसी अनेक किताब, फ़िल्म, साहित्य की जरूरत है।

हरियाणा के अशोक भाटिया सर ने मुझे किताब भेजकर अध्ययन करने का मौका दिया और पढ़कर सुझाव के लायक समझे, इसके लिए पूरा मन से उन्हें शुक्रिया। भाटिया सर को इस किताब में बेहतरीन लेख लिखने और लेख संकलित करने के लिए बहुत-बहुत बधाई।

- मनोविज्ञानिक टिकेश कुमार, अध्यक्ष, एंटी सुपरस्टीशन ऑर्गेनाइजेशन (ASO)

ब्राह्मणों के ग्रंथों में तेली और सभी पिछड़ा वर्ग की जातियां शूद्र


तेली और सभी पिछड़ा वर्ग की जातियां शूद्र है, वैश्य नहीं, लेकिन कुछ लोगों को वैश्य होने का गर्व है, वे ब्राम्हण से पूछे या अपने धार्मिक ग्रंथों में खोजे, असलियत पता चल जाएगा।

तुलसीदास दुबे द्वारा लिखित रामचरितमानस में कहा गया है कि "जे बरनाधम तेलि कुम्हारा। स्वपच किरात कोल कलवारा।" अर्थात तेली, कुम्हार, चाण्डाल, भील, कोल और कलवार आदि वर्ण में सबसे नीचे हैं। हिंदू धर्म के अनुसार अपने ही भाई बंधू को चार वर्णों में बांटे गए हैं, इसमें सबसे पहला नंबर पर ब्राम्हण (सबसे उच्च, जिनको ज्ञान अर्जन और ज्ञान देने का अधिकार है), दूसरे नंबर पर क्षत्रिय (ये ब्राम्हणों की रक्षा करेगा), तीसरे नंबर पर वैश्य या बनिया (इनका का काम व्यापार करना) और चौथे नंबर में शूद्र या नीच (जो मेहनत कश है, इसमें तेली और सभी पिछड़ा वर्ग, दलित और आदिवासी शामिल है, इन लोगों का काम ब्राम्हण और ऊपर के तीनों वर्णों की सेवा करना है) ऐसा धार्मिक ग्रंथ में कहा गया है। रामचरितमानस में यह भी लिखा है कि "पूजहि विप्र (ब्राम्हण) सकल गुण हीना । शुद्र न पूजहु वेद प्रवीणा ।।" अर्थात ब्राह्मण चाहे कितना भी ज्ञान गुण से रहित हो, उसकी पूजा करनी ही चाहिए, और शूद्र चाहे कितना भी गुणी ज्ञानी हो, वो कभी पूजनीय नही हो सकता।" रामचरितमानस में यह भी कहा गया है कि "ढोल गंवार सूद्र पसु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी॥" अर्थात ढोल, गंवार, शूद्र, पशु और स्त्री ये सब प्रताड़ना के ही अधिकारी हैं। अब आप ही बताए यह न्याय है कि अन्याय? 

वैश्य बड़े व्यापारी को कहते हैं। कोई भी साहू (तेली) और सभी पिछड़ी जातियां वैश्य नहीं है। ओबीसी शूद्र है और obc की आबादी ज्यादा होने से भी कोई भी जगह बड़े अधिकारी नहीं है। चाहे तो यूनिवर्सिटी, मीडिया, न्यायालय, मेडिकल विभाग, सभी जगह उच्च वर्ग ही है, जो 5% है। obc खेती, मजदूरी, सफाई जैसे छोटे छोटे काम में जुटे हुए हैं और अपने आप को वैश्य समझ रहे हैं। 

एक बार फिर दोहरा देना चाहता हूं- ग्रन्थ के अनुसार कथा करने का अधिकार ब्राम्हण को ही है, क्योंकि एक मात्र ब्राम्हण ही उच्च है और भगवान है, बाकी सब गुलाम है, ऐसे धार्मिक ग्रंथ में कहा गया है। आज भी देख सकते हैं, कही भी कथा, प्रवचन और धार्मिक कार्यक्रम होते हैं, तो ब्राम्हण ही करता है और करोड़ों रूपए ले जाता है और हम obc उसको खुले मन से बिना कुछ सोचे समझे दान कर देते हैं। चाहे कथा के नाम पर अंधविश्वास ही क्यों न हो। obc कथा करना चालू कर देंगे तो इन पाखण्डियों का धंधा बंद हो जाएगा, लेकिन पाखण्ड बढ़ता जाएगा। छत्तीसगढ़ की यामिनी साहू को कथावाचन करने पर ब्रम्हानों द्वारा धमकी दी गई और कहां गया कि तुम शूद्र हो, कथा नहीं मुजरा करो।

ओबीसी, आदिवासी और दलित लोगों को बेहतर शिक्षा के लिए ध्यान देना चाहिए। हम सभी को अंधविश्वास, पाखण्ड और समाज में फैले सभी कुरीतियों से दूर रहना चाहिए, जिसमें नशा भी है। नशे चाहे शराब के हो या अंधविश्वास पाखण्ड के, दोनों ही बहुत खतरनाक होते हैं।

- टिकेश कुमार