Sunday, 12 March 2017

होलिका दहन या पर्यावरण दोहन

देश भर में परम्परा के नाम पर पर्यावण के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। जागरूक नागरिक भी होलिका दहन के लिए जंगल और अन्य जगहों से लकड़ी इकठ्ठा कर जलाते हैं। आज धीरे-धीरे जंगल का नाश होता जा रहा है। वहीँ कई प्रकार के जीव-जंतु विलुप्त होते जा रहे हैं। पेड़-पौधे और हरियाली का नामो निशान नहीँ है। फिर भी हम क्यों पर्यावरण और खुद का नुकसान करने के लिए अड़े हुए है। गांव हो या शहर सभी गली चौक चौराहों पर होलिका दहन करके हम खुशियां मनाते हैं। जिसके लिए कई पेड़ों की बलि देनी पड़ती है। वही लकड़ी जलने से वायु भी दूषित होती है। जिससे फेफड़ो से सम्बंधित कई बीमारी का खतरा होता है। वही जली हुई राख तालाब और नदी में जाकर पानी को भी खराब करती है।
एक बात और समझ नहीँ आती कि हम कुछ दिन पहले 8 मार्च को महिला दिवस मना कर महिलाओं का सम्मान की बात करते है। लेकिन होलिका (महिला) को जला कर हम ख़ुशी मनाते हैं। ये कैसा समाज है ? इससे आने वाली पीढ़ी को हम महिलाओं के प्रति नफरत का संदेश देते हैं। हमे इस पुरानी रूढ़ि-परम्परा को खत्म कर पर्यावरण और समाज को बचाना होगा। क्यों न हम अब होलिका दहन बन्द करके होलिका चमन के नाम से पेड़ लगाए और महिलाओं के लिए प्रेम का संदेश दे कर हरियाली फैलाए।

Tuesday, 7 March 2017

आवाज

सभी जगह हो रहे हैं महिलाओं पर अत्याचार
कही भी सुरक्षित नहीँ
स्कूल, कालेज, गली, मोहल्ले, बाजार
कही दहेज की मांग
कही शोषण और बलात्कार
अब आ रही है आवाज
मांग रही है महिलाएं अपना अधिकार

महिलाओं ने खाई है कसम
पूरा हक लेकर ही लेगा दम
ये लड़ेगी नहीं रूकेगा कदम
बुराई का दुश्मन, अच्छाई का हमदम
अब आ रही है आवाज
मांग रही है महिलाएं अपना अधिकार।

Friday, 3 March 2017

आजादी

हमको चाहिए आजादी
देश के दलालों से 
मजदूर-किसान के 
खून चूसने वालों से 
अशांति और दंगा से 
जाति-धर्म के पंगा से

भ्रष्ट सरकार से 
महंगाई की मार से 
भक्षक हवलदारों से 
देश के गद्दारों से 
हमको चाहिए आजादी

गरीबों की भूख से 
अशिक्षा के दुःख से 
युवाओं की बेरोजगारी से 
नफरत की बमबारी से 
हमको चाहिए आजादी।

स्कूल बंद, दारू दुकान चालू

सरकार को शर्म आनी चाहिए दो साल पहले 3000 स्कूलों को युक्तियुक्तकरण के तहत बन्द कर दिए। जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में जन आक्रोश देखने को मिला लेकिन सरकार ने इस पर कोई सुध नहीँ ली। अब शराबबन्दी की मांग प्रदेश भर में उठ रही है लेकिन सरकार 700 शराब दुकान को बंद करने के लिए तैयार नहीँ है।
अब राज्य में रमन ब्रांड शराब बिकेगी। इस बात को लेकर रमन और उनके मंत्री अपने आप को गर्वान्वित महसूस कर रहे हैं। जबकि जनता इस बात को लेकर शर्मसार है। लोग चिंतित है कि 'धान के कटोरा' कही 'दारू के बोतल' न बन जाए। सरकार जनता की मौत से राजस्व कमाना चाहती है। इस राजस्व का मोह छोड़ने के लिए तैयार ही नहीँ है। मुख्यमंत्री लोगों को बैकुफ बनाने के लिए बार-बार कह रहे हैं कि सरकार शराबबन्दी की ओर बढ़ रही है। तो मैं पूछता हूं क्या शराब बिकना बन्द हुई ? क्या शराब दुकान बंद हुई ? और न ही शराब की दुकान में कटौती हुई है राजमार्ग की दुकान को आबादी क्षेत्र में लगाने के लिए और सरकार खुद शराब बेचने के लिए अड़ी है।  सरकार कह रही है उचित समय में शराबबन्दी करेंगे तो क्या जनता मौत के मुँह में समा जायेगी तब उचित समय आएगा। जनता को मारकर विकास की बात करना शोभा नहीँ देती। आज सभी पार्टी जनता की भलाई छोड़ कर अपनी राजनीति की रोटी सेकने में लगी हुई है, एक-दूसरे के ऊपर कीचड़ उछालने में पूरी ताकत झोंक दी है। अगर यही ताकत जमीनी स्तर में काम करने शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजी-रोटी और अन्य मूलभूत सुविधा के लिए लगाते तो निश्चित ही छत्तीसगढ़ की तस्वीर बदल जाती। गांव में एक अच्छा नियम है जो शराब बेचता है, तो उसे ग्रामीण बहिष्कृत कर गांव से बाहर निकाल देते हैं। इसी प्रकार अब जनता को सोचना है कि जो सरकार पुरे छत्तीसगढ़ में दारू बेच रही है उसको क्या सजा देनी है ?