काली संझा जुआर मे ह डगनिया बाजार होतव मोर घर जावत रहेंव। तब रद्दा म पीछू डाहर ले एक ठन फटफटी ह हकन के मोर फटफटी ल ठोक दिस। तब मोर दिमाग के पारा ह चढ़गे। अउ जोर से गारी देंव- कोन आय रे अंधरामन ह सोझे गाड़ी ल ठोकत हे। आंखी नइ दिखत होही त इलाज करा लय। तब पीछू डाहर ल देखथंव त एक झन जवान टूरी ह एक हाथ म बड़े मोबाइल धरे गोठियावत रहाय अउ दूसर हाथ म फटफटी के हेंडिल ल धरे रहाय। तब मोर गारी ल सुनके कहिथे- सारी सर गलती हो गई। तब मे ह ओला पियार ले समझावत कहेंव- देख वो तोर सारी कहे ले मोर गाड़ी के टूटे एंटीगेटर लाइट ह ठिक नइ हो जाए। मोबाइल म गोठियाना हे त कोनो मेर बइठ ले अउ ससन भर गोठिया। फेर बड़े जान मोबाइल म गोठियावत फटफटी ल मड़माड़े चलावत हस। तहू जाबे अउ जजमानो जाही। तब ओ छोकरी ह थोकन गुस्सा म कहिथे- जरा सी बात के लिए भासन सुना रहे हो। मैं अपने मम्मी-पापा की बात नहीं सुनती। गलती हो गई तो कह रही हूं। तब अतके बेरा म सड़क म चाय दुकान लगइया कचरू कका ह आगे। अउ ओ टूरी के गोठ ल सुन के कचरू कका ह कथे- सही तो काहत हे नाेनी महूं ह तो ठेला ले बइठे-बइठे देखत हंव। कइसे मोबाइल म गोठियावत फटफटी ल अलकरहा चलावत हस। थोकन बाचगे नाली म फेका जतेस अउ दांत ल निपोर देतेस। अउ ए बाबू ह बने ल तो काहत हे एक तो फटफटी चला नहीं तो नहीं तो मोबाइल म गोठिया। कचरू कका के डांट ल सुन के टूरी ह अपन गाड़ी ल चालू करके कले चूप फूर होगे। कचरू कका ह मोला कइथे- आजकल बेटा जउन मेर देखबे तउन मेर कतको भीड़ म घलो टूरा-टूरी मन बड़े-बड़े मोबाइल ल एक हाथ म धरके अउ दूसर हाथ म एक्सीलेटर अइठे गोठियावत मड़माड़े फटफटी चलावत रइथे। कोनो ह कान म इयरफोन ल खुसेर के गाना सुनत नही ते गोठियावत अंधाधून फटफटी ल चलाथे। अइसन फटफटी चलइ ह बने नोहे बेटा कभू बड़े जान अलहन हो जही रे। कचरू कका के गोठ ह सही मे गुने के आय। सही म आज मोबाइल ह जीव के काल होगे हे। मनखे ह थोकन लापरवाही करके बड़े जान दुरघटना ल नेवता देवत हे। अउ आजकल कंपनीमन ह फोकट म बात करे वाला आफर देवत हे तेकर सेती घलो मनखे दिन-रात काही काम बुता रहाय मोबाइल ल थोरकुन नइ छोड़न काहत हे। त कोनो मनखे ह रातभर जागके मोबाइल म चैटिंग करके अपन स्वास्थ ल बिगाड़त हे। त लइका मन ह मोबाइल म गेम अउ इंटरनेट म अपन पढ़ई ल बरबाद करत हे। सियान मन ह कथे ते ह सही बात आय कोनो जिनिस के उपयोग जरूरत के हिसाब ले करना चाही। अति ह दुरगति आय।
Sunday, 24 December 2017
मोबाइल के चक्कर
काली संझा जुआर मे ह डगनिया बाजार होतव मोर घर जावत रहेंव। तब रद्दा म पीछू डाहर ले एक ठन फटफटी ह हकन के मोर फटफटी ल ठोक दिस। तब मोर दिमाग के पारा ह चढ़गे। अउ जोर से गारी देंव- कोन आय रे अंधरामन ह सोझे गाड़ी ल ठोकत हे। आंखी नइ दिखत होही त इलाज करा लय। तब पीछू डाहर ल देखथंव त एक झन जवान टूरी ह एक हाथ म बड़े मोबाइल धरे गोठियावत रहाय अउ दूसर हाथ म फटफटी के हेंडिल ल धरे रहाय। तब मोर गारी ल सुनके कहिथे- सारी सर गलती हो गई। तब मे ह ओला पियार ले समझावत कहेंव- देख वो तोर सारी कहे ले मोर गाड़ी के टूटे एंटीगेटर लाइट ह ठिक नइ हो जाए। मोबाइल म गोठियाना हे त कोनो मेर बइठ ले अउ ससन भर गोठिया। फेर बड़े जान मोबाइल म गोठियावत फटफटी ल मड़माड़े चलावत हस। तहू जाबे अउ जजमानो जाही। तब ओ छोकरी ह थोकन गुस्सा म कहिथे- जरा सी बात के लिए भासन सुना रहे हो। मैं अपने मम्मी-पापा की बात नहीं सुनती। गलती हो गई तो कह रही हूं। तब अतके बेरा म सड़क म चाय दुकान लगइया कचरू कका ह आगे। अउ ओ टूरी के गोठ ल सुन के कचरू कका ह कथे- सही तो काहत हे नाेनी महूं ह तो ठेला ले बइठे-बइठे देखत हंव। कइसे मोबाइल म गोठियावत फटफटी ल अलकरहा चलावत हस। थोकन बाचगे नाली म फेका जतेस अउ दांत ल निपोर देतेस। अउ ए बाबू ह बने ल तो काहत हे एक तो फटफटी चला नहीं तो नहीं तो मोबाइल म गोठिया। कचरू कका के डांट ल सुन के टूरी ह अपन गाड़ी ल चालू करके कले चूप फूर होगे। कचरू कका ह मोला कइथे- आजकल बेटा जउन मेर देखबे तउन मेर कतको भीड़ म घलो टूरा-टूरी मन बड़े-बड़े मोबाइल ल एक हाथ म धरके अउ दूसर हाथ म एक्सीलेटर अइठे गोठियावत मड़माड़े फटफटी चलावत रइथे। कोनो ह कान म इयरफोन ल खुसेर के गाना सुनत नही ते गोठियावत अंधाधून फटफटी ल चलाथे। अइसन फटफटी चलइ ह बने नोहे बेटा कभू बड़े जान अलहन हो जही रे। कचरू कका के गोठ ह सही मे गुने के आय। सही म आज मोबाइल ह जीव के काल होगे हे। मनखे ह थोकन लापरवाही करके बड़े जान दुरघटना ल नेवता देवत हे। अउ आजकल कंपनीमन ह फोकट म बात करे वाला आफर देवत हे तेकर सेती घलो मनखे दिन-रात काही काम बुता रहाय मोबाइल ल थोरकुन नइ छोड़न काहत हे। त कोनो मनखे ह रातभर जागके मोबाइल म चैटिंग करके अपन स्वास्थ ल बिगाड़त हे। त लइका मन ह मोबाइल म गेम अउ इंटरनेट म अपन पढ़ई ल बरबाद करत हे। सियान मन ह कथे ते ह सही बात आय कोनो जिनिस के उपयोग जरूरत के हिसाब ले करना चाही। अति ह दुरगति आय।
Tuesday, 5 December 2017
आडंबर के मिटइया गुरु घासीदास
मंदिरवा म का करे ल जइबो, अपन घट के देव ल मनइबो, पथरा के देवता ह हालत ए न डोलत, अपन मन ल काबर भरमइबो... ए बात ल घासीदास जी ह तब कहिस हे जब ओ ह जगन्नाथ पुरी के यातरा म जावत रहिस ताहन आधा बीच म सारंगगढ़, रायगढ़ ले लहुट के आगे। अउ कहिस कि मंदर म का करे बर जाबो। जेन ह अपन खुद के रकछा नइ कर सकय वो ह काय मनखे के सुनही। हमन कतेक बड़ मूरख आन पखरा के पूजा करथन जे ह न बोल सकय, न चल सकय, न खा सकय, न पी सकय अउ न उठ-बइठ सकय। तेकर तीर जाके हमन हमर समय अउ धन के नास करत हन। ए परकार के अंधबिसवास, रूढ़ीवाद अउ परंपरावाद के खिलाफ जोरदार बिरोध करिस। घासीदास जी ह मूरति पूजा कभू मत करव कहिन। अउ लोगन मन ल अपन मनोबल ल बढ़ाय के अपील करिस। एकर बर कहिस कि अपन घट के देव ल मनइबो। मन ले बढ़ के देवता कुछू नोहे। हमन ह पखरा के पूजा करथन। ए ह हमर मानसिक बीमारी आय। मन ल पूजा पाठ अउ पाखंड ले दूर रखके करम अउ मेहनत म बिसवास करव।
घासीदासजी ह समानता के बात घलो कहे हे। वोकर कहना हे कि मनखे-मनखे एक समान। अरे भइया सबे मनखे ह बराबर आय जाति-धरम के भेद ल बना के काबर लड़त-मरत हन। घासीदास ह ए सब एकर सेती कहिस कि ओ ह खुद अइसन पीड़ा ल भोग चुके रहिस। काबर घासीदास जी के जनम 18 दिसंबर 1756 म रइपुर जिला के गिरोधपुरी गांव म एक गरीब किसान परिवार म होय रहिस। ओ समय म गरीब कमजोरहा रहाय ओकर उपर बड़ सोसन अउ अत्याचार होय। अपन आप ल उच जात कहइया पाखंडी मन ह कमजोरहा मनखे मन ल सिकछा अउ सारवजनिक जगह ले दूरीहा रखके अपमानित करे बर नीच जात कहाय। ए पीरा ल देखके घासीदास जी ह सतनामी पंथ बनइस। दबे कुचले मनखे ल सेेेकेलिस। अउ कहिस कि ए सब अपन आप ल उच जाति समझइया जात-धरम के धंधा करइया मन के चाल आय। जउन ह आडंबर म फंसा के सोसन अउ अत्याचार करत हे। तेकर सेती तुमन ह पोथी-पुरान अउ पखना पूजा म मत अरझव। अउ सत ल जानव-मानव। जउन दिखत हाबय ओकर उपर भरोसा करव। कालपनिक बात के खुल के बिरोध करव। जउन ह यथारत ल मानही उही ह सतनामी कहलाही। ए परकार के दलित सोसित वर्ग ल एकट्ठा करके समाज म बड़ बदलाव करिस। तब जाके सोसित-पीड़ित मन ल सम्मान मिल पइस। पिछड़ा वर्ग के मनखे बर घासीदास जी ह मसीहा आय। जउन ह वैज्ञानिक सोच अउ प्रगतिसील बिचार ल फैला के आंडबर के पेड़ म टंगिया चलइस। घासीदास जी ह अंधबिसवास अउ रूढ़ीवाद के कुलूप अंधियारी म गियान के परकास करके नवा बिहान लइस।
Sunday, 3 December 2017
शिक्षाकर्मी, शिक्षा और स्कूल को मिटाना चाहती है सरकार
शिक्षाकर्मी
अपनी मांगों को लेकर अब आर-पार की लड़ाई में उतर आए हैं। उनके आंदोलन को
रोकने के लिए सरकार पूरी तरह से बर्बरता और दमनात्मक कार्रवाई कर रही है।
इसके बाद भी शिक्षाकर्मी संविलियन, सातवें वेतनमान, शासकीकरण समेत 9
सूत्रीय मांगों को लेकर पूरे परिवार के साथ डटे हुए हैं। भाजपा सरकार
शिक्षाकर्मियों के साथ अब अंग्रेस सरकार से भी घटिया और अमानवीय व्यवहार कर
रही है। राजधानी के धरना स्थल और ईदगाह भाठा पर धारा 144 लगाना अभिव्यक्ति
की स्वतंत्रता पर पाबंदी है। इस प्रकार संविधान और कानून की धज्जियां उड़ा
रही है। लगातार पुलिस शिक्षाकर्मियों को अपराधाी की भांति पकड़-पकड़ कर
जेल में डाल रही है। तो शिक्षाकर्मियों के साथ आए उनके बच्चे को पकड़ कर
घसीट रही है। इस प्रकार अमानवीय कार्रवाई सरकार की असली चेहरा को सामने
लाती है।
शिक्षाकर्मियों का आंदोलन को खत्म करने के लिए सरकार पुलिस और मिल्ट्री की ताकत लगा दी है। फिर भी शिक्षाकर्मी पूरे मनोबल के साथ आंदोलनरत है। पिछले दिनों कई शिक्षाकर्मियों को बर्खास्तगी का आदेश देना सरकार की बहुत तानाशाही कार्रवाई थी। साथ ही शिक्षाकर्मी नेताओं को उनके घर से उठा ले जाना भी लोकतंत्र की हत्या है। प्रदेश के मुख्या डा. रमन सिंह बार-बार शिक्षाकर्मियों को लताड़ते हुए उनकी एक भी मांगे पूरी नहीं होने की बात कह रहे है। वह शिक्षाकर्मी, शिक्षा और स्कूल के प्रति उदासिनता को दिखाती है।
शिक्षाकर्मी की मांगों पर गौर करे तो सभी मांगे जायज है। क्या इतनी महंगाई में भी कम वेतन और ज्यादा काम कोई करेगा। आज पूरी तरह से शिक्षाकर्मियों का शोषण हो रहा है। उन्हें शिक्षाकर्मी भले कहा जाता है, लेकिन न जाने वह क्या-क्या कर्मी है। कभी गांव में मतदाता सूची का काम दे दिया जाता है, तो कभी शौचालय अन्य सर्वे का, कभी चुनाव ड्युटी और शासन-प्रशासन के कामों में भीड़ा दिया जाता है। तो शिक्षाकर्मी स्वतंत्र होकर बच्चों को पढ़ाएगा क्या। वही बात शासकीकरण की है अभी तक लगातार 15 सालों से शिक्षकों की नियुक्ति कही भी नहीं हो रही है। जिस प्रकार कम पैसे और ठेकेदारी में शिक्षा का काम हो रहा है, यह शिक्षा के प्रति सरकार की उदासिनता है।
आज प्रदेश में शिक्षा की स्थिति बद से बददतर होती जा रही है, फिर भी भाजपा सरकार वाहवाही बटोरने में पीछे नहीं हट रही है। सरकार आज पूरी तरह से सरकारी स्कूलों को बंद कर शिक्षा को निजी स्कूलों के हाथों में बेचने का काम कर रही है। मंत्री, विधायक और सांसद अपने बच्चे को सरकारी स्कूल में नहीं पढ़ाते इसलिए उन्हें आम जनता के बच्चों और शिक्षाकर्मियों की कोई चिंता नहीं है। क्योंकि उनके बच्चों की पढ़ाई प्रभावित नहीं हो रही है।
क्यों न सरकारी कर्मचारी, अधिकारी, मंत् री, विधायक और सांसद के बच्चों को
सरकारी स्कूल में पढ़ना अनिवार् य कर दिया जाए और निजी स्कूलाें को पूरी तरह बंद किया जाए। स्कूलों और यहां कार्यरत
शिक्षक-शिक्षाकर्मी की स्थिति में सुधार किया जाए। जब तक जनता को एक समान
शिक्षा नहीं मिलेगी तब तक शिक्षा की गुणवत्ता में कोई सुधार नहीं होगी।
सरकार को चाहिए कि मंत्री, विधायक और सांसद की मोटी सैलरी में कटौती कर वह राशि
शिक्षा, शिक्षक और स्कूल में लगानी चाहिए। साथ ही मंत्री, विधायक और सांसद
को भारी-भरकम पेंशन न देकर देश और प्रदेश के विकास कार्यों में यह पैसा
खर्च करना चाहिए। देश में नेताआें की कमी नहीं है, इसके लिए बहुत भारी राशि
खर्च करना कितना जायज है। शिक्षाकर्मियों का आंदोलन तब तक नहीं रूकना
चाहिए जब तक उन्हें सम्मानजनक वेतन और सम्मानजनक कार्य न मिल जाए। वहीं
शिक्षाकर्मियों की भी जिम्मेदारी हो कि वे अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में
ही भर्ती कराए। साथ ही सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को पूरी
इम्मानदारी के साथ शिक्षा दें। जिससे देश के उज्जवल भविष्य को गढ़ा जा सके।
शिक्षाकर्मियों का आंदोलन को खत्म करने के लिए सरकार पुलिस और मिल्ट्री की ताकत लगा दी है। फिर भी शिक्षाकर्मी पूरे मनोबल के साथ आंदोलनरत है। पिछले दिनों कई शिक्षाकर्मियों को बर्खास्तगी का आदेश देना सरकार की बहुत तानाशाही कार्रवाई थी। साथ ही शिक्षाकर्मी नेताओं को उनके घर से उठा ले जाना भी लोकतंत्र की हत्या है। प्रदेश के मुख्या डा. रमन सिंह बार-बार शिक्षाकर्मियों को लताड़ते हुए उनकी एक भी मांगे पूरी नहीं होने की बात कह रहे है। वह शिक्षाकर्मी, शिक्षा और स्कूल के प्रति उदासिनता को दिखाती है।
शिक्षाकर्मी की मांगों पर गौर करे तो सभी मांगे जायज है। क्या इतनी महंगाई में भी कम वेतन और ज्यादा काम कोई करेगा। आज पूरी तरह से शिक्षाकर्मियों का शोषण हो रहा है। उन्हें शिक्षाकर्मी भले कहा जाता है, लेकिन न जाने वह क्या-क्या कर्मी है। कभी गांव में मतदाता सूची का काम दे दिया जाता है, तो कभी शौचालय अन्य सर्वे का, कभी चुनाव ड्युटी और शासन-प्रशासन के कामों में भीड़ा दिया जाता है। तो शिक्षाकर्मी स्वतंत्र होकर बच्चों को पढ़ाएगा क्या। वही बात शासकीकरण की है अभी तक लगातार 15 सालों से शिक्षकों की नियुक्ति कही भी नहीं हो रही है। जिस प्रकार कम पैसे और ठेकेदारी में शिक्षा का काम हो रहा है, यह शिक्षा के प्रति सरकार की उदासिनता है।
आज प्रदेश में शिक्षा की स्थिति बद से बददतर होती जा रही है, फिर भी भाजपा सरकार वाहवाही बटोरने में पीछे नहीं हट रही है। सरकार आज पूरी तरह से सरकारी स्कूलों को बंद कर शिक्षा को निजी स्कूलों के हाथों में बेचने का काम कर रही है। मंत्री, विधायक और सांसद अपने बच्चे को सरकारी स्कूल में नहीं पढ़ाते इसलिए उन्हें आम जनता के बच्चों और शिक्षाकर्मियों की कोई चिंता नहीं है। क्योंकि उनके बच्चों की पढ़ाई प्रभावित
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