Sunday, 3 December 2017

शिक्षाकर्मी, शिक्षा और स्कूल को मिटाना चाहती है सरकार

शिक्षाकर्मी अपनी मांगों को लेकर अब आर-पार की लड़ाई में उतर आए हैं। उनके आंदोलन को रोकने के लिए सरकार पूरी तरह से बर्बरता और दमनात्मक कार्रवाई कर रही है। इसके बाद भी शिक्षाकर्मी संविलियन, सातवें वेतनमान, शासकीकरण समेत 9 सूत्रीय मांगों को लेकर पूरे परिवार के साथ डटे हुए हैं। भाजपा सरकार शिक्षाकर्मियों के साथ अब अंग्रेस सरकार से भी घटिया और अमानवीय व्यवहार कर रही है। राजधानी के धरना स्थल और ईदगाह भाठा पर धारा 144 लगाना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पाबंदी है। इस प्रकार संविधान और कानून की धज्जियां उड़ा रही है। लगातार पुलिस शिक्षाकर्मियों को अपराधाी की भांति पकड़-पकड़ कर जेल में डाल रही है। तो शिक्षाकर्मियों के साथ आए उनके बच्चे को पकड़ कर घसीट रही है। इस प्रकार अमानवीय कार्रवाई सरकार की असली चेहरा को सामने लाती है।
शिक्षाकर्मियों का आंदोलन को खत्म करने के लिए सरकार पुलिस और मिल्ट्री की ताकत लगा दी है। फिर भी शिक्षाकर्मी पूरे मनोबल के साथ आंदोलनरत है। पिछले दिनों कई शिक्षाकर्मियों को बर्खास्तगी का आदेश देना सरकार की बहुत तानाशाही कार्रवाई थी। साथ ही शिक्षाकर्मी नेताओं को उनके घर से उठा ले जाना भी लोकतंत्र की हत्या है। प्रदेश के मुख्या डा. रमन सिंह बार-बार शिक्षाकर्मियों को लताड़ते हुए उनकी एक भी मांगे पूरी नहीं होने की बात कह रहे है। वह शिक्षाकर्मी, शिक्षा और स्कूल के प्रति उदासिनता को दिखाती है।
शिक्षाकर्मी की मांगों पर गौर करे तो सभी मांगे जायज है। क्या इतनी महंगाई में भी कम वेतन और ज्यादा काम कोई करेगा। आज पूरी तरह से शिक्षाकर्मियों का शोषण हो रहा है। उन्हें शिक्षाकर्मी भले कहा जाता है, लेकिन न जाने वह क्या-क्या कर्मी है। कभी गांव में मतदाता सूची का काम दे दिया जाता है, तो कभी शौचालय अन्य सर्वे का, कभी चुनाव ड्युटी और शासन-प्रशासन के कामों में भीड़ा दिया जाता है। तो शिक्षाकर्मी स्वतंत्र होकर बच्चों को पढ़ाएगा क्या। वही बात शासकीकरण की है अभी तक लगातार 15 सालों से शिक्षकों की नियुक्ति कही भी नहीं हो रही है। जिस प्रकार कम पैसे और ठेकेदारी में शिक्षा का काम हो रहा है, यह शिक्षा के प्रति सरकार की उदासिनता है।
आज प्रदेश में शिक्षा की स्थिति बद से बददतर होती जा रही है, फिर भी भाजपा सरकार वाहवाही बटोरने में पीछे नहीं हट रही है। सरकार आज पूरी तरह से सरकारी स्कूलों को बंद कर शिक्षा को निजी स्कूलों के हाथों में बेचने का काम कर रही है। मंत्री, विधायक और सांसद अपने बच्चे को सरकारी स्कूल में नहीं पढ़ाते इसलिए उन्हें आम जनता के बच्चों और शिक्षाकर्मियों की कोई चिंता नहीं है। क्योंकि उनके बच्चों की पढ़ाई प्रभावित नहीं हो रही है। क्यों न सरकारी कर्मचारी, अधिकारी, मंत्री, विधायक और सांसद के बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ना अनिवार्य  कर दिया जाए और निजी स्कूलाें को पूरी तरह बंद किया जाए। स्कूलों और यहां कार्यरत शिक्षक-शिक्षाकर्मी की स्थिति में सुधार किया जाए। जब तक जनता को एक समान शिक्षा नहीं मिलेगी तब तक शिक्षा की गुणवत्ता में कोई सुधार नहीं होगी। सरकार को चाहिए कि मंत्री, विधायक और सांसद की मोटी सैलरी में कटौती कर वह राशि शिक्षा, शिक्षक और स्कूल में लगानी चाहिए। साथ ही मंत्री, विधायक और सांसद को भारी-भरकम पेंशन न देकर देश और प्रदेश के विकास कार्यों में यह पैसा खर्च करना चाहिए। देश में नेताआें की कमी नहीं है, इसके लिए बहुत भारी राशि खर्च करना कितना जायज है। शिक्षाकर्मियों का आंदोलन तब तक नहीं रूकना चाहिए जब तक उन्हें सम्मानजनक वेतन और सम्मानजनक कार्य न मिल जाए। वहीं शिक्षाकर्मियों की भी जिम्मेदारी हो कि वे अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में ही भर्ती कराए। साथ ही सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को पूरी इम्मानदारी के साथ शिक्षा दें। जिससे देश के उज्जवल भविष्य को गढ़ा जा सके।

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