जिन्हें मैं हमेशा किताबों में पढ़ता हूं,
उनसे साक्षात भेंट करने का मौका पुणे के पत्रकार भवन में एक कार्यक्रम के
दौरान हुआ। वे हिंदी के मशहूर प्रगतिशील कवि राजेश जोशी है। नवनिर्माण
सांस्कृतिक मंच की ओर से 'ए डिस्कशन आन मार्क्सिस्ट परसेप्शन आफ आर्ट एंड
लिटरेचर' का आयोजन हुआ। कार्यक्रम में राजेश जी बतौर मुख्य वक्ता शामिल
हुए। इस दौरान मुझे उन्हें पहली बार सुनने और उनसे बातचीत करने का अवसर
मिला। उनकी 1987 में लिखी कविता 'जो सच-सच बोलेंगे मारे जाएंगे' आज की स्थिति को बयां करती है। वर्तमान में सही को सही और गलत को गलत कहना आसान नहीं है।
बातचीत के दौरान राजेश जी ने कहा कि आज राजनैतिक माहौल बहुत ही खतरनाक है। नेता अपने स्वार्थ के लिए देश का इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश कर रहे हैं। इस प्रकार उल्टे सीधे बयानबाजी करने वाले और देश को जाति-धर्म के नाम पर बांटने वाले नेताओं की आलोचना करने की बड़ी जिम्मेदारी साहित्यकार, पत्रकार और बुद्धिजीवी वर्ग की है। हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए भारी कीमत चुकानी होगी। समाज में जब कभी भी गलत दिखाई दे तो उसकी निंदा करने में बिलकुल भी नहीं घबराना चाहिए। कवि सिर्फ वो नहीं जो कविता लिखते हैं, कवि तो वह है जिनकी लेखनी में जनता की आवाज हो। समाज के अंदर ऐसी दृष्टि हो जो उचित-अनुचित को समझ सके। रचना के लिए दो घटक होते हैं- समय और समाज। इसे देखने के लिए व्यापक और निष्पक्ष निगाहें की जरूरत होती है।
आज पूरी तरह से भेड़ धसान का दौर चल रहा है। विज्ञान की पढ़ाई करने के बाद भी कई लोग विवेकशून्य होकर अंधविश्वास में फंसे हैं। ऐसे डाक्टर बहुत देखने को मिलते है, जो उंगलियों में अंगूठी पहनते हैं और झांड़-फूंक व जादू-टोने पर विश्वास करते हैं। ऐसे व्यक्ति की पूरी पढ़ाई व्यर्थ है। पढ़-लिखकर भी काल्पनिक और अर्नगल बातों पर विश्वास करते हैं। इस प्रकार के मूर्खों का मन को बदलना बहुत ही कठिन काम है। कवि और पत्रकार को चाहिए कि समाज में भ्रम और अंधविश्वास न फैलाकर अपनी पूरी ताकत वैज्ञानिक और प्रगतिशील विचार को जन-जन तक फैलाने में लगाए। चाहे समाज में विकृत्ति हो या सत्ता में खामियां। इसके खिलाफ बेझिझक और खुलकर लिखना होगा। साहित्य का काम गलत चीजों का हमेशा प्रतिरोध करना है। समाज में जब-जब विकट स्थिति आएगी, तब-तब साहित्य रास्ता दिखाने का काम करेगा।
बातचीत के दौरान राजेश जी ने कहा कि आज राजनैतिक माहौल बहुत ही खतरनाक है। नेता अपने स्वार्थ के लिए देश का इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश कर रहे हैं। इस प्रकार उल्टे सीधे बयानबाजी करने वाले और देश को जाति-धर्म के नाम पर बांटने वाले नेताओं की आलोचना करने की बड़ी जिम्मेदारी साहित्यकार, पत्रकार और बुद्धिजीवी वर्ग की है। हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए भारी कीमत चुकानी होगी। समाज में जब कभी भी गलत दिखाई दे तो उसकी निंदा करने में बिलकुल भी नहीं घबराना चाहिए। कवि सिर्फ वो नहीं जो कविता लिखते हैं, कवि तो वह है जिनकी लेखनी में जनता की आवाज हो। समाज के अंदर ऐसी दृष्टि हो जो उचित-अनुचित को समझ सके। रचना के लिए दो घटक होते हैं- समय और समाज। इसे देखने के लिए व्यापक और निष्पक्ष निगाहें की जरूरत होती है।
आज पूरी तरह से भेड़ धसान का दौर चल रहा है। विज्ञान की पढ़ाई करने के बाद भी कई लोग विवेकशून्य होकर अंधविश्वास में फंसे हैं। ऐसे डाक्टर बहुत देखने को मिलते है, जो उंगलियों में अंगूठी पहनते हैं और झांड़-फूंक व जादू-टोने पर विश्वास करते हैं। ऐसे व्यक्ति की पूरी पढ़ाई व्यर्थ है। पढ़-लिखकर भी काल्पनिक और अर्नगल बातों पर विश्वास करते हैं। इस प्रकार के मूर्खों का मन को बदलना बहुत ही कठिन काम है। कवि और पत्रकार को चाहिए कि समाज में भ्रम और अंधविश्वास न फैलाकर अपनी पूरी ताकत वैज्ञानिक और प्रगतिशील विचार को जन-जन तक फैलाने में लगाए। चाहे समाज में विकृत्ति हो या सत्ता में खामियां। इसके खिलाफ बेझिझक और खुलकर लिखना होगा। साहित्य का काम गलत चीजों का हमेशा प्रतिरोध करना है। समाज में जब-जब विकट स्थिति आएगी, तब-तब साहित्य रास्ता दिखाने का काम करेगा।
No comments:
Post a Comment