Tuesday, 4 September 2018

कहिनी : भूत के राहपट

बात एक गांव के आय। समारू के घर के पीछोद म लीम के नीचे सौचालय हे, फेर ओकर कपाट ह टूट गेहे। एकर सेती दिनमान ए सौचालय के उपयोग करत नइ बनय। तब ए घर के मन संझाकुन सौचालय म जाथे।  लगती सावन म टिपिर-टिपिर पानी गिरत रिहिस। तब समारू के गोसइन मनटोरा ह दिन बुड़े के बाद घर के पीछोद म बने सौचालय म जाथे। सौचालय म खुसरते साथ मनटोरा ल  हकन-हकन के दू राहपट पड़थे। जब एती-ओती ल देखथे त ओला कोनाे नइ दिखय। तब मनटोरा ह मंड़माड़े चिचयावत भागथे। अउ भूत-भूत कही के गोहार पारत घर भीतर चल देथे।
जब समारू ह संझा कुन किंजर के आथे, त मनटोरा ह ओला बताथे कि हमर बियारा के सौचालय म भूत रइथे। अतका बात ल सुनके समारू कइथे- कइसे गोठियाथस पगली। रोज-दिन ओ सौचालय म जावत हन फेर एको दिन अइसन बात नइ होहे। दिनमान मे ह उही मेर बइला बांधे बर गे हंव, तब तो भूत-परेत ह मोला नइ दिखीस। मनटोरा- नहीं मैं ह सिरतोन काहत हंव। मोला भूत ह जोरदार दू राहपट मारे हे, ऐ देख ले रोल उपट गे हे। समारू देखथे त सही म ओकर गाल म मारे के चिन्हा ह रहाय। तब ए बात ल सोच-सोच के रातभर दुनों परानी के नींद नइ परिस।
होवत बिहिनिया दूनो झन जाके सौचालय ल देखथे। त काही नइ रहाय। समारू अउ मनटोरा ल अब डर लागे ल धर लिस। काबर लगती सावन के महिना रहाय। ए दिन गांव म भूत-परेत, टोनही-टमानी, मरी-मसान, जादू-टोना, फूंक-झार अउ ठूआ-ठाेटका के बात ह सुने बर मिलथे। गांव वालामन कइथे कि ए दिन जम्मो सैतानी ताकत मन जाग जइथे। तेकर सेती गांव ल बइगामन ले बंधाय जाथे। कई झन बताय रहाय कि सावन के महिना म टोनही-भूत ह मनखे ल जियादा  सताथे। ए बात ल दुनो परानी दिनभर गुनत रहाय। रही-रही के सौचालय म जाके देखय भूत आगे का। मनटोरा कइथे- भूत ह दिनमान नइ आवय। अंधियार म आथे। जब सांझ हो जही तब जाके देखबे।
समारू ह डरराय ल धर लेथे। नहीं मैं नइ जावंव मोला अबड़ डर लागथे। मनटोरा कइथे कइसन डरपोकना आव। एक घांव जाके देखतेव जी का हरे ते। तब मनटोरा के घेरी-बेरी बरजे म समारू ह दिन बुड़े के बाद अंधियार होते साथ सौचालय के भीतरी म जइसे जाथे, वहू ल तीन राहपट पड़ जथे। कंझाय समारू ह ए दाई-नई बाचव ओ महूं ल भूत ह मार दिस। सिरतोन म इहां भूत रहिथे। जब दिनमान होइस त समारू अउ ओकर बाइ ह ए बात ल जम्मो पारा-परोस के मनखे मन कर गोठिया डरिस। ए गोठ ह पूरा गांवभर म फइल गे। समारू के बियारा म सौचालय कर नीम तरी भूत निकलथे। तब समारू ल कइ झन कइथे। बइगा-गुनिया ल दिखा लेतेस जी। समारू ह मनेमन सोचे ल धर लेथे। मनटोरा कइथे बइगा कर जाय ले पहली हमर गांव के मास्टरजी ल पूछ लेतेस।
गांव के मास्टरजी कर बड़ बहिनिया ले समारू ह गिस। समारू कइथे मास्टरजी हमर घर के पिछोद म नीम तरी सौचालय के भीतरी म अंधियार होथे त भूत निकलथे। मास्टर जी कइथे बिहिनिया-बिहिनिया ले अइसने मजाक करे बर आय हस जी समारू। तोला अउ काही नइ सुझीस। समारू- नहीं मास्टर जी मैं मजाक नइ करत हंव सिरतोन बात आय। भूत ह गोसइन मनटोरा अउ मोला राहपट-राहपट मारे हे। कोई लबारी बात नोहे। तभो ले मास्टर जी ह ओकर बात ल नइ पतियावत रहिस। काबर ओ ह पढ़े-लिखे मनखे आय। अइसन भूत-परेत अउ टोनही-टमानी म बिलकुल बिसवास नइ करय। समारू कइथे का गुनत हस मास्टरजी कोनो बइगा-बाबा बतातेस जउन ह ए भूत ल भगा सकय। मास्टरजी कइथे। मोला भइया तोर बात म काही बिसवास नइ हे। जबरन गांव-गोहार पारत हस। मैं ह खुद चल के देखहू। कतका बेर निकलथे भूत ह ओला बता। समारू- नहीं मास्टरजी हमन ल हकन-हकन के भूत ह मारे हे तैं झन जा तहूं ल मार दिही। अरे मैं तो देखे बिना नइ पतियावंव रे भाई। समारू ठीक हे मास्टरजी संझा जुआर आ जबे हमर घर।
मुंधियार होइस ताहन मास्टरजी ह पहुंचगे। मास्टरजी के संग सरपंच अउ गांव के मन घलो चार-पांच झन आगे। मास्टर जी कइथे तोर घर के भूत-परेत के बात ह हमर गांव अउ दूसर गांव म घलो फइल गे हे। लइकामन अब अंधियारकुन घर ले निकले बर डरराथे। अब ए बात ह तो आज पता चल जही का सिरतोन तोर घर के बारी के सौचालय म भूत हाबय कि नहीं। सिटिर- सिटिर पानी ह गिरत रहाय। मास्टरजी ह सौचालय म खुसरिस अतका म दू राहपट उहू ल परगे। मास्टरजी टार्च धरे रहाय। बंग ले बार दिस। देखथे त बेंदरा ह खुसरे रहाय। मास्टरजी सबो झन ल किहिस देखंव भइया तुहर भूत ल। ए बेंदरा ह बरसात के पानी ले बाचे बर इहां रोज खुसर जथे अउ होवत बहिनिया भाग जथे। जउन ल भूत के राहपट काहत रहेव, ओ ह बेंदरा के राहपट आय। जबरन भूत-परेत के गोहार पारत हव। इही ल कइथे भय नाम भूत। पहली कोनो चीज ल ठीक ढंग ले जांच परख लेना चाही। तेकर बाद कोनो बात ल पतियाना चाही। सरपंच अउ गांव के जम्मो मनखे कइथे सिरतोन म समारू अउ मनटोरा फोकट के गांव भर ल भूत के  डर देखावत रहिस। भूत-परेत, टोनही-टमानी अउ जादू-टोना बिलकुल नइ होवय। मनखे के भरम अउ अगियानता ले भूत के डर ह उपजथे।

गौतम गणपत

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