बात एक गांव के आय। समारू के घर के पीछोद म लीम के
नीचे सौचालय हे, फेर ओकर कपाट ह टूट गेहे। एकर सेती दिनमान ए सौचालय के
उपयोग करत नइ बनय। तब ए घर के मन संझाकुन सौचालय म जाथे। लगती सावन म
टिपिर-टिपिर पानी गिरत
रिहिस। तब समारू के गोसइन मनटोरा ह दिन बुड़े के बाद घर के पीछोद म बने
सौचालय म जाथे। सौचालय म खुसरते साथ मनटोरा ल हकन-हकन के दू राहपट पड़थे।
जब एती-ओती ल देखथे त ओला कोनाे नइ दिखय। तब मनटोरा ह मंड़माड़े चिचयावत
भागथे। अउ भूत-भूत कही के गोहार पारत घर भीतर चल देथे।
जब
समारू ह संझा कुन किंजर के आथे, त मनटोरा ह ओला बताथे कि हमर बियारा के
सौचालय म भूत रइथे। अतका बात ल सुनके समारू कइथे- कइसे गोठियाथस पगली।
रोज-दिन ओ सौचालय म जावत हन फेर एको दिन अइसन बात नइ होहे। दिनमान मे ह उही
मेर बइला बांधे बर गे हंव, तब तो भूत-परेत ह मोला नइ दिखीस। मनटोरा-
नहीं मैं ह सिरतोन काहत हंव। मोला भूत ह जोरदार दू राहपट मारे हे, ऐ देख
ले रोल उपट गे हे। समारू देखथे त सही म ओकर गाल म मारे के चिन्हा ह रहाय।
तब ए बात ल सोच-सोच के रातभर दुनों परानी के नींद नइ परिस।
होवत
बिहिनिया दूनो झन जाके सौचालय ल देखथे। त काही नइ रहाय। समारू अउ मनटोरा ल
अब डर लागे ल धर लिस। काबर लगती सावन के महिना रहाय। ए दिन गांव म
भूत-परेत, टोनही-टमानी, मरी-मसान, जादू-टोना, फूंक-झार अउ ठूआ-ठाेटका के
बात ह
सुने बर मिलथे। गांव वालामन कइथे कि ए दिन जम्मो सैतानी ताकत मन जाग जइथे।
तेकर सेती गांव ल बइगामन ले बंधाय जाथे।
कई झन बताय रहाय कि
सावन के महिना म टोनही-भूत ह मनखे ल जियादा
सताथे। ए
बात ल दुनो परानी दिनभर गुनत रहाय। रही-रही के सौचालय म जाके देखय भूत आगे
का। मनटोरा कइथे- भूत ह दिनमान नइ आवय। अंधियार म आथे। जब सांझ हो जही तब
जाके देखबे।
समारू ह डरराय ल धर लेथे। नहीं मैं
नइ जावंव मोला अबड़ डर लागथे। मनटोरा कइथे कइसन डरपोकना आव। एक घांव जाके
देखतेव जी का हरे ते। तब मनटोरा के घेरी-बेरी बरजे म समारू ह दिन बुड़े के
बाद अंधियार होते
साथ सौचालय के भीतरी म जइसे जाथे, वहू ल तीन राहपट पड़
जथे। कंझाय समारू ह ए दाई-नई बाचव ओ महूं ल भूत ह मार दिस। सिरतोन म इहां
भूत रहिथे। जब दिनमान होइस त समारू अउ ओकर बाइ ह ए बात ल जम्मो पारा-परोस
के मनखे मन कर गोठिया डरिस। ए गोठ ह पूरा गांवभर म फइल गे। समारू के बियारा
म सौचालय कर नीम तरी भूत निकलथे। तब समारू ल कइ झन कइथे। बइगा-गुनिया ल
दिखा लेतेस जी। समारू ह मनेमन सोचे ल धर लेथे। मनटोरा कइथे बइगा कर जाय
ले पहली हमर गांव के मास्टरजी ल पूछ लेतेस।
गांव
के मास्टरजी कर बड़ बहिनिया ले समारू ह गिस। समारू कइथे मास्टरजी हमर घर
के पिछोद म नीम तरी सौचालय के भीतरी म अंधियार
होथे त
भूत निकलथे। मास्टर जी कइथे बिहिनिया-बिहिनिया ले अइसने मजाक करे बर आय हस
जी समारू। तोला अउ काही नइ सुझीस। समारू- नहीं मास्टर जी मैं मजाक नइ करत
हंव सिरतोन बात आय। भूत ह गोसइन मनटोरा अउ मोला राहपट-राहपट मारे हे। कोई
लबारी बात नोहे। तभो ले मास्टर जी ह ओकर बात ल नइ पतियावत रहिस। काबर ओ ह
पढ़े-लिखे मनखे आय। अइसन भूत-परेत अउ टोनही-टमानी म बिलकुल बिसवास नइ करय।
समारू कइथे का गुनत हस मास्टरजी कोनो बइगा-बाबा बतातेस जउन ह ए भूत ल भगा
सकय। मास्टरजी कइथे। मोला भइया तोर बात म काही बिसवास नइ हे। जबरन
गांव-गोहार पारत हस। मैं ह खुद चल के देखहू।
कतका बेर निकलथे भूत ह ओला
बता। समारू- नहीं मास्टरजी हमन ल हकन-हकन के भूत ह मारे हे तैं झन जा तहूं ल
मार दिही। अरे मैं तो देखे बिना नइ पतियावंव रे भाई। समारू ठीक हे
मास्टरजी संझा जुआर आ जबे हमर घर।
मुंधियार होइस
ताहन मास्टरजी ह पहुंचगे। मास्टरजी के संग सरपंच अउ गांव के मन घलो
चार-पांच झन आगे। मास्टर जी कइथे तोर घर के भूत-परेत के बात ह हमर गांव अउ
दूसर गांव म
घलो
फइल गे हे। लइकामन अब अंधियारकुन घर ले निकले बर डरराथे। अब ए बात ह तो आज
पता चल जही का सिरतोन तोर घर के बारी के सौचालय म भूत हाबय कि नहीं। सिटिर-
सिटिर पानी ह गिरत रहाय। मास्टरजी ह सौचालय म खुसरिस अतका म दू राहपट उहू ल
परगे। मास्टरजी टार्च धरे रहाय। बंग
ले बार दिस। देखथे त बेंदरा ह खुसरे रहाय। मास्टरजी सबो झन ल किहिस देखंव
भइया तुहर भूत ल। ए बेंदरा ह बरसात के पानी ले बाचे बर इहां रोज खुसर जथे
अउ होवत बहिनिया भाग जथे। जउन ल भूत के राहपट काहत रहेव, ओ ह बेंदरा के
राहपट आय। जबरन भूत-परेत के गोहार पारत हव। इही ल कइथे भय नाम भूत। पहली
कोनो चीज ल ठीक ढंग ले जांच परख लेना चाही। तेकर
बाद
कोनो बात ल पतियाना चाही। सरपंच अउ गांव के जम्मो मनखे कइथे सिरतोन म समारू
अउ मनटोरा फोकट के गांव भर ल भूत के
डर देखावत रहिस। भूत-परेत, टोनही-टमानी अउ जादू-टोना बिलकुल नइ होवय। मनखे
के भरम अउ अगियानता ले भूत के डर ह उपजथे।
गौतम गणपत
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