आज अंधविश्वास के चलते लोग अपने ही घरवाले का खून कर रहे हैं। वही कई लोग डर-डर के जी रहे हैं। गांव हो या शहर बैगा और टोनही के खेल में अंधविश्वासी लोग मर और मार रहे हैं। हाल ही में पलारी के अमेरा गांव के एक ऐसा मामला प्रकाश में आया है, जिसमें एक अंधविश्वासी पिता ने बैगा के कहने पर भूत भगाने के लिए अपने ही 12 वर्षीय बेटे की बलि चढ़ा दी। वहीं पिछले महीनों रायपुर के पुरानी बस्ती में एक युवक ने अपनी ही मां को टोनही होने के संदेह में तावा से पीट-पीट कर हत्या कर दी।
यह घटनाएं हमारे समाज काे आइना दिखाती है कि हम आज कितनों भी आधुनिक होने का ढोंग करे फिर भी बहुत ज्यादा आडंबर, अंधविश्वास, अवैज्ञानिक सोच और रूढ़ीवादी की चादर ओढ़े हुए हैं। देश में जब तक अंधविश्वास और अंधविश्वास फैलाने वाले बैगा, ओझा और ढाेंगी बाबाओं पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई नहीं होगी तब तक यह समस्याएं जस के तस बनी रहेगी। वही लोगों में जब तक वैज्ञानिक सोच नहीं होगी तब तक बदलाव की कोई कल्पणा नहीं की जा सकती।
आज तो स्थिति ऐसी है कि आदमी अपनी मोटरसाइकिल, कार, घर और अन्य चीजों को भूत और टोनही की नजर लगने से बचाने के लिए कई तरह के उपाय
इस देश में अंधविश्वास की बीमारी से ग्रसित लोग भले जान दे दें या अपने ही घरवालों को मौत के घाट उतार दे, लेकिन इस बीमारी से लड़ने के लिए कोई कोशिश नहीं करेगा। हमें चाहिए कि इस बीमारी को जड़ से खत्म करने के लिए छोटे-छोटे बच्चों को उनके मनोबल से परिचित कराए और काल्पनिक भूत-प्रेत, देवी-देवताओं, ताबीज-कंडे, बैगा-बाबा और अंधविश्वास के ठेकेदारों से दूर रखे। तभी परिर्वतन संभव है।
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