Sunday, 21 November 2021

नींबू-मिर्च लटकाना अंधविश्वास का प्रतीक

एक नींबू के साथ ऊपर और नीचे पांच या सात मिर्च धागे से बंधे बहुत से घर, दुकान व दफ्तर का चौखट पर लटके आपको देखने को मिल ही जाएगा।

नींबू-मिर्च लटकाने वालों का मानना होता है कि नींबू-मिर्च बुरी आत्मा व किसी की बुरी नजर से बचाते हैं। अब आप थोड़ा से तर्क लगाइए क्या कोई बुरी आत्मा या बुरी नजर  है? कोई बुरी आत्मा नहीं होता। बुरी आत्मा होता तो आज तक किसी वैज्ञानिक ने उस आत्मा को खोज निकाल चुके होते।

न कोई बुरी नजर होती है। किसी की भी नजर बुरी नहीं होती हैं। अगर किसी व्यक्ति की नियत चोरी या डाका करना है, तो उसे नींबू-मिर्च से बंधे ठुवे रोक नहीं पाएगा और न ही रोका हैं। आए दिन सुने मकान में चोरी या दुकान से नगदी चोरी के मामले उसी घर और दुकान से सुनने में मिलती है।

इस अंधविश्वास के कारण नींबू-मिर्च की कीमत बढ़ गई हैं। हर रोज नींबू-मिर्च खरीदकर पुराना की जगह पर नया लटकाना। रोज सुबह-सुबह रोड, गली और रास्ते पर सुखा नींबू-मिर्च फेंके देखने को मिल ही जाएंगे। अंधविश्वासी राहगीर इससे बचने के चक्कर में आए दिन दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं। इस महंगाई से लोग खाने के लिए नींबू-मिर्च नहीं खरीद पा रहे, लेकिन अंधविश्वास के लिए अपनी जेब  ढ़ीली कर रहे हैं। साथ ही अंधविश्वासी होने का परिचय दे रहे हैं। 
नींबू लटकाने की शुरुआत एक अंधविश्वासी से हुई थी। अक्सर बिना विवेक के लोग भेड़ धसान चलते हैं। एक कुछ करें तो बिना सोचे-समझे उसके पीछे चलते हैं। 

एक बार एक व्यक्ति बहुत बीमार पड़ता था। तब वह आयुर्वेदिक डॉक्टर के पास गए। तब चिकित्सक ने उसे रोज नींबू-मिर्च खाने की सलाह दी। वह व्यक्ति रोज नींबू-मिर्च खरीदकर खाता और जो बच जाता उसे घर के चौखट पर लटका देता। नींबू से विटामिन सी और मिर्च से विटामिन ए मिलने लगा और वह स्वस्थ हो गया। यह देखकर उसके पड़ोसी भी इसकी नकल करने लगा। वह भी रोज नींबू-मिर्च खरीदकर चौखट से लटकाता। इस प्रकार यह अंधविश्वास का दौर शुरू हुआ। इसलिए किसी भी चीज को अपनी बुद्धि की कसौटी में कसिए फिर वह काम करिए।

- टिकेश कुमार

Wednesday, 3 November 2021

हम पटाखे जरूर फोड़ेंगे

कोई कुछ भी कर ले 
हम पटाखे जरूर फोड़ेंगे
कौन होता है हमें रोकने वाला
कौन होता है हमें टोकने वाला 
हमको क्या करना है कोई मरे चाहे जिए 
हम पटाखे जरूर फोड़ेंगे

हमको महंगाई से क्या लेना-देना
हमारे पास जितने पैसे है 
सब पैसे से खरीदकर फोड़ेंगे
कौन रोकेगा, हम अपने पैसे जलाए या फेंके 
भले हमारे पास खाने के लिए पैसे न हो
हम कंगाल होते तक पटाखे फोड़ेंगे
हम पटाखे जरूर फोड़ेंगे

हमको क्या करना है पर्यावरण से 
हमको क्या करना है वायु प्रदूषण से 
हमको क्या करना है जनता से 
हम घरभर के मिलकर पटाखे फोड़ेंगे 
चाहे हमारे बच्चे की आंख जल जाए 
चाहे हमारे बच्चे के कान जल जाए
चाहे किसी के घर में आग लग जाए 
चाहे कोई तड़प-तड़प कर मर जाए 
हम पटाखे जरूर फोड़ेंगे 
कोई हमें मना किया तो उनका सिर फोड़ेंगे
लेकिन एक नहीं पटाखे हजार फोड़ेंगे
हम पटाखे जरूर फोड़ेंगे 

कौन है सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट
जो प्रदूषण होने की बात कहकर 
पटाखे पर रोक लगाती है
हम किसी कानून को नहीं मानेंगे 
हम किसी नैतिकता को नहीं जानेंगे 
हमको क्या करना है किसी के कान फटे
हमको क्या करना है किसी को सांस लेने में तकलीफ हो 
हमको क्या करना है किसी के दम घुटे
हमको क्या करना है किसी के फेफड़े खराब हो
हमको किसी की तकलीफ में 
बिलकुल तकलीफ नहीं होती 
हम पटाखे जरूर फोड़ेंगे

हम सार्वजनिक जगहों पर निकलकर पटाखे फोड़ेंगे 
चौक-चौराहों और सड़कों पर पटाखे फोड़ेंगे
कोई आने-जाने वाले गाड़ी सवार गिरे या मरे हमको क्या करना 
हमको तो पटाखे की कानफोड़ू आवाज में खूब मजा आता है
हमको तो कोई गिरता और मरता है तो बहुत आनंद आता है
हम फोड़ेंगे पटाखे, मरते दम तक फोड़ेंगे
हम पटाखे जरूर फोड़ेंगे

- गनपत लाल

Monday, 1 November 2021

फोकट के जान हथेली म काबर

हर साल अखबार अउ टीवी म देखे-सुने बर मिलथे कि 'पटाखे के कारखाने में आग लगने से मजदूरों की मौत, पटाखे की चिंगारी से घरों में लगी आग, पटाखे ने दो बच्चों की ली जान' अउ काय-काय खबर पढ़े बर मिलथे। एकर बाद भी मनखेमन न तो जागरूक होय अउ न ही अपन लइकामन ल ये घातक-मारक फटाका ले दूर रखे। भले ही लइका फटाका फोड़त-फोड़त हाथ-पांव अउ कान-नाक ल जला डरे। फटाका के नुकसान हजार हे, लेकिन फायदा कुछ नइ हे। एकर बाद भी लोगन के मोह नइ छूटत हे। वातावरण ह घलो बरबाद होवत हे। मनखे ह ठीक से सांस घलो नइ ले पावत हे। अब लोगन ल खुद अउ पर्यावरण के खातिर जागरूक होय ल परही। तभे बात ह बनही।

महंगाई बाढ़त हे अउ मनखे के पास खाय बर पइसा नइ हे। फटाका फोड़े ले अच्छा हे कोनो गरीब मनखे ल पेटभर खाना खवा देवन। एकर ले मनखे के पेट घलो भर जाही अउ मन ल घलो संतुष्टि मिलही। ज्यादातर देखे जाथे तिहार म कई मनखे ह दारू पीके अबड़ गारी गलौज करथे। घर अउ गांव के माहौल ल खराब करथे। अइसन बिलकुल नइ करना चाही। दरुआमन ल घलो समझना चाही कि घर में खाय बर दाना नइ हे अउ पूरा पइसा ल फिजूल खरचा करत हे। अइसन नइ करके घर के साफ-सफाई, लइकामन के कपड़ा-लत्ता अउ जरुरी जिनिस बर पइसा ल लगाना चाही। अपन परिवार के साथ बने एक जगह बइठ के तिहार मानना चाही अउ सुख-दुख के गोठ ल गोठियाना चाही। एकर ले परिवार के सदस्य के साथ मया बाढ़थे।

देवारी तिहार म तास-जुआ घलो गांव-गांव म होथे। लइका अउ सियान सबो झन रुपया के बाजी लगाथे। ये ह घलो बेकार आदत आय। तिहार म पइसा ल जुआ म नइ उड़ा के जतन के रखना चाही, ताकि समय म काम आवय। सियानमन ल चाही कि वोमन ये बेकार काम ले दुरिया राहय संगे-संग अपन लोग-लइका ल घलो ये गिनहा काम ले दूर रखय। लइका मन ह कोनो चीज ल अपन ले बड़े मनखे ले देख के सीखथे। एकरे सेती छोटे लइकामन ल बने-बने बात बताना चाही अउ खुद बने कारज करना चाही। तभे घर अउ समाज के भलई होही।

एक ठोक बात अउ हर तिहार म देखे ल मिलथे कि मनखे पोंगा (लाउडस्पीकर) बजा-बजा के दिन अउ रात पूरा मोहल्ला के लोगन के कान ल फाड़ डरथे। आजकल डीजे आ गे हे। डीजे म सड़क ल जाम करके भारी भीड़ ह नाचत रहिथे। एकर ले घलो दुर्घटना होय के डर रथे। हर साल मूर्ति विसर्जन के समय गाड़ी ह रउंदत निकल जथे अउ फोकट म मनखे के जान ह चले जाथे। त कहूं उन्मादी भीड़ ह मनखे ल पीट-पीट के मार डारथे।

कभू डीजे के धुन म सड़क म नाचत भीड़ के सेती एम्बुलेंस के गाड़ी ह नइ जा पाय अउ मरीज ह रद्दा म ही दम तोड़ देथे। मूर्ति विसर्जन करत-करत कई झन ह डूब के मर जथे। अइसन घटना हर साल देखे-सुने ल मिलथे फेर हमन कभू नइ चेतन। हर बखत मूर्ति विसर्जन कर-करके पूरा तरिया-नदिया ल पाट डारेन। पानी घलो दूषित होगे। मनखे अउ जीव-जंतु बर अब पीए के पानी के अबड़ समस्या होवत हे।अब हमन ल चाही कि हमर समय, ताकत, दिमाग अउ धन ल घर अउ समाज के विकास के काम म लगावन। अउ कोई भी उछाह ल सादगी पूर्वक मनावन ताकि रंग म भंग मत होय। सब तिहार ल बिना सोरगुल अउ शांतिपूर्वक मनावन अउ पर्यावरण के संगवारी बनन।

- गनपत लाल