हर साल अखबार अउ टीवी म देखे-सुने बर मिलथे कि 'पटाखे के कारखाने में आग लगने से मजदूरों की मौत, पटाखे की चिंगारी से घरों में लगी आग, पटाखे ने दो बच्चों की ली जान' अउ काय-काय खबर पढ़े बर मिलथे। एकर बाद भी मनखेमन न तो जागरूक होय अउ न ही अपन लइकामन ल ये घातक-मारक फटाका ले दूर रखे। भले ही लइका फटाका फोड़त-फोड़त हाथ-पांव अउ कान-नाक ल जला डरे। फटाका के नुकसान हजार हे, लेकिन फायदा कुछ नइ हे। एकर बाद भी लोगन के मोह नइ छूटत हे। वातावरण ह घलो बरबाद होवत हे। मनखे ह ठीक से सांस घलो नइ ले पावत हे। अब लोगन ल खुद अउ पर्यावरण के खातिर जागरूक होय ल परही। तभे बात ह बनही।
महंगाई बाढ़त हे अउ मनखे के पास खाय बर पइसा नइ हे। फटाका फोड़े ले अच्छा हे कोनो गरीब मनखे ल पेटभर खाना खवा देवन। एकर ले मनखे के पेट घलो भर जाही अउ मन ल घलो संतुष्टि मिलही। ज्यादातर देखे जाथे तिहार म कई मनखे ह दारू पीके अबड़ गारी गलौज करथे। घर अउ गांव के माहौल ल खराब करथे। अइसन बिलकुल नइ करना चाही। दरुआमन ल घलो समझना चाही कि घर में खाय बर दाना नइ हे अउ पूरा पइसा ल फिजूल खरचा करत हे। अइसन नइ करके घर के साफ-सफाई, लइकामन के कपड़ा-लत्ता अउ जरुरी जिनिस बर पइसा ल लगाना चाही। अपन परिवार के साथ बने एक जगह बइठ के तिहार मानना चाही अउ सुख-दुख के गोठ ल गोठियाना चाही। एकर ले परिवार के सदस्य के साथ मया बाढ़थे।
देवारी तिहार म तास-जुआ घलो गांव-गांव म होथे। लइका अउ सियान सबो झन रुपया के बाजी लगाथे। ये ह घलो बेकार आदत आय। तिहार म पइसा ल जुआ म नइ उड़ा के जतन के रखना चाही, ताकि समय म काम आवय। सियानमन ल चाही कि वोमन ये बेकार काम ले दुरिया राहय संगे-संग अपन लोग-लइका ल घलो ये गिनहा काम ले दूर रखय। लइका मन ह कोनो चीज ल अपन ले बड़े मनखे ले देख के सीखथे। एकरे सेती छोटे लइकामन ल बने-बने बात बताना चाही अउ खुद बने कारज करना चाही। तभे घर अउ समाज के भलई होही।
एक ठोक बात अउ हर तिहार म देखे ल मिलथे कि मनखे पोंगा (लाउडस्पीकर) बजा-बजा के दिन अउ रात पूरा मोहल्ला के लोगन के कान ल फाड़ डरथे। आजकल डीजे आ गे हे। डीजे म सड़क ल जाम करके भारी भीड़ ह नाचत रहिथे। एकर ले घलो दुर्घटना होय के डर रथे। हर साल मूर्ति विसर्जन के समय गाड़ी ह रउंदत निकल जथे अउ फोकट म मनखे के जान ह चले जाथे। त कहूं उन्मादी भीड़ ह मनखे ल पीट-पीट के मार डारथे।
कभू डीजे के धुन म सड़क म नाचत भीड़ के सेती एम्बुलेंस के गाड़ी ह नइ जा पाय अउ मरीज ह रद्दा म ही दम तोड़ देथे। मूर्ति विसर्जन करत-करत कई झन ह डूब के मर जथे। अइसन घटना हर साल देखे-सुने ल मिलथे फेर हमन कभू नइ चेतन। हर बखत मूर्ति विसर्जन कर-करके पूरा तरिया-नदिया ल पाट डारेन। पानी घलो दूषित होगे। मनखे अउ जीव-जंतु बर अब पीए के पानी के अबड़ समस्या होवत हे।अब हमन ल चाही कि हमर समय, ताकत, दिमाग अउ धन ल घर अउ समाज के विकास के काम म लगावन। अउ कोई भी उछाह ल सादगी पूर्वक मनावन ताकि रंग म भंग मत होय। सब तिहार ल बिना सोरगुल अउ शांतिपूर्वक मनावन अउ पर्यावरण के संगवारी बनन।
- गनपत लाल
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