आज भीड़ का दौर चल रहा है। जिधर भीड़ जा रही है, उधर लोग भाग रहे हैं। लोग समझते हैं कि बहुत लोग (भीड़) उस दिशा में जा रहे हैं तो यही रास्ता सही है या बहुत से लोग मान रहे हैं तो यही सही है। इस प्रकार लोग भीड़ के साथ चलने लगता है। कभी यह नहीं सोचता कि जिस भीड़ के साथ चल रहा हूं क्या वह सच में सही है? आगे खाई में तो डूबा तो नहीं देगा? ऐसा सवाल कभी नहीं आता बस भीड़ चल रही है तो हम भी चले, बहुत से लोग गलत नहीं हो सकता। ऐसा सोचकर भीड़ के साथ चलने लगता है। संत कबीर ने सही कहा है "कैसी गति संसार की ज्यों गाडर की ठाट, एक परा जो गड्ढे में, सबै गड्ढे में जात।"
व्यक्ति पर भीड़ डातली है दबाव
ऐसा कदापि नहीं है कि भीड़ गलत नहीं हो सकती। भीड़ गलत हो सकती है। इसका प्रमुख कारण सत्ताधारी शोषकों का डर है। क्या पता सही को सही कहे और आपको सत्ता में बैठे लोग दंडित कर दे। इसलिए हर व्यक्ति अपना बचाव चाहता है। मुंह बंद करके भीड़ के साथ ही चला जाता है। इस भीड़ से एक दो व्यक्ति अगर निकलकर सत्य को उजागार करना चाहे तो उसकी मुंह बंदकर दी जाती है, उस व्यक्ति पर भीड़ अपने साथ चलने के लिए दबाव डालती है।
एक उदाहारण
स्कूल की क्लास में बहुत से बच्चे उपस्थित थे। हर गुरुवार की तरह आज भी सरस्वती की पूजा करने के लिए तैयारियां चल रही थी। इसमें एक बच्चा शांतिपूर्ण पढ़ाई कर रहा था। कुछ समय के बाद जब पूजा की सभी तैयारी हो गई तो सभी बच्चे टेबल से उठकर हाथ जोड़कर खड़े हो गए। लेकिन एक छात्र जो शान्तिपूर्ण पढ़ाई कर रहा था वह पढ़ ही रहा था, टेबल से उठने का नाम नहीं लिया। तब सभी बच्चे उस बच्चे को ऐसा देखते रहे जैसे कोई अपराधी क्लास में आ बैठा हो। सभी को देखकर वह छात्र भी टेबल से उठकर खड़ा हो गया। तब जाकर जोर-शोर से पूजा चालू हुई। ऐसे बहुत से उदाहारण हमारे दिनचर्या में रोज घटित होते हैं, जहां भीड़ व्यक्ति को दबा देती है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी होने के नाते भीड़ में दबकर रह जाता है, वहां से निकल नहीं पाता।
भीड़ के पीछे न चले
अपना रास्ता खुद ढूंढें, सत्य क्या है? इसे जानने की कोशिश करें। लोग जा रहे हैं तो क्यों जा रहे हैं, आगे कहां तक जाएगा। उसके साथ हम क्यों चले? अपना विवेक से सोचें। तभी देश और समाज का भला हो सकता है, नहीं तो अंधविश्वास के अंधेरे में डुबकी लगाते रह जाओगे।
- टिकेश कुमार
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