देशभर में गणेशोत्सव की धूम है, लेकिन आप अपने विवेक के साथ सोचिए क्या गणेश की कहानी सत्य हो सकती है। मुझे तो यह पूरी तरह काल्पनिक लगती है, क्योंकि कोई भी व्यक्ति मैल से कैसे पैदा हो सकता है। इस कहानी में एक महिला (पार्वती) अपने शरीर की गंदगी से बच्चा बना देता है और वह कुछ समय में इतना बड़ा हाे जाता है कि महिला के पति (शंकर) भी नहीं पहचान पाता है। जब वह बच्चा (गणेश) शंकर को घर के अंदर प्रवेश करने पर रोकता है तो शिव शंकर गुस्से से गणेश का सिर काट कर धड़ से अलग कर देता है। जब गणेश की मां पार्वती देखती है तब शंकर पर क्राधित होकर कहती है- ये क्या अनर्थ किया तुमने अपना ही पुत्र को मार दिया। इसे जिन्दा करना होगा, नहीं तो हम सभी देवी मिलकर पूरी सृष्टि को नष्ट कर देंगे।
तब सभी देवता चिंतित होकर शिव से इस समस्या का समाधान करने को कहते हैं। फिर शंकर देवों को आज्ञा देता है कि दूसरे नवजात शिशु का सिर काट कर लाए। कोई नवजात शिशु नहीं मिलता तो हाथी का बच्चा का सिर काटकर ले आते हैं और उसे गणेश के मृत शरीर में जोड़ देता है और गणेश पुनः जीवित हो जाता है। इस प्रकार की काल्पनिक कहानी पाखंडी लोग गढ़ दी है और भोली-भाली जनता इस कहानी को सत्य मानकर नकली भगवान की पूजा कर रहे हैं।
पूरी तरह से अवैज्ञानिक और काल्पनिक
वैज्ञानिक दृष्टि से देखे तो कोई भी व्यक्ति के शरीर पर किसी भी जानवर का सिर नहीं जोड़ा जा सकता है। यहां तक जानवर के खून को मनुष्य के शरीर में नहीं डाला जा सकता है। मनुष्य के खून को दूसरे व्यक्ति के शरीर में डालने से पहले कौन सा ब्लड ग्रुप है उसकी सावधानी से जांच की जाती है, जब संभव हो तब खून को निकालकर बीमार व्यक्ति के शरीर में डाला जाता है।
हाथी का सिर और मनुष्य का धड़ को जोड़ना असंभव
चलो मान लेते हैं उस समय अज्ञानता के कारण बिना सोचे समझे हाथी का सिर गणेश के शरीर में जोड़ने का प्रयास किया होगा। लेकिन हाथी का सिर मनुष्य का सिर से बहुत बड़ा होता है, अगर तुरंत जन्म लिया हुआ हाथी का सिर भी एक मनुष्य का बच्चा में फिट किया जाए तो आकार में हाथी का सिर बड़ा होने के कारण सर्जरी करना असंभव है।
सभी देवी-देवता मनगढ़त कहानी
इसके अलावा और भी कई सवाल है। जैसे कोई भी व्यक्ति के चार हाथ कैसे हो सकते हैं? बहुत से देवी-देवताओं की तस्वीरों और मूर्तियों में आपने देखा होगा चार हाथ वाला दिख ही जाएगा। जिसमें एक गणेश की मूर्ति भी शामिल है। दुनिया में आज तक किसी मनुष्य को चार हाथ के नहीं देखा या पाया गया। सभी मनुष्य दो हाथ के ही है। इस प्रकार के चार हाथ और चार मुंह के भगवान काल्पनिक नहीं तो और क्या?
अब ये मत कहना कि भगवान के लिए कोई असंभव नहीं। भगवान पर प्रश्न नहीं उठाना चाहिए। ठीक है, मान लेते हैं भगवान बहुत शक्तिशाली है उसके लिए कोई कार्य असंभव नहीं है, तो आप बताएंगे कि शक्तिशाली, सर्वज्ञानी ईश्वर अपने ही पुत्र को क्यों नहीं नहीं पहचान सके। एक बच्चा गणेश जब शंकर को रोकता है, जिससे शिव क्रोध में आकर बच्चा को मार देता है, इतना क्रोधी है भगवान। उस समय उसकी बुद्धि कहां चली गई थी।
क्रोधित व्यक्ति को कैसे कह सकते हैं भगवान
इतना क्रोधित थे शिव कि गणेश को इतना बेरहमी से मारा जिससे उसका सिर पूरा नष्ट हो गया। जब भगवान है तो गणेश का नष्ट सिर को वापस भी ला सकता था, उसके लिए नामुमकिन नहीं होना चाहिए था। क्या जरूरत थी बेजुबान हाथी का बच्चा का सिर काटकर हत्या करने की? और वह भी तो किसी का बच्चा है। अपना स्वार्थ के लिए दूसरे का बच्चा (चाहे कोई जानवर ही क्यों न हो) उसकी बलि देना गलत है। इसे कैसे भगवान कह सकते हैं?
गणेशोत्सव की शुरूआत कैसे हुई
गणेशोत्सव या गणेश पूजा की शुरूआत महाराष्ट्र से हुई है। कहा जाता है कि गणेशोत्सव की नींव आजादी की लड़ाई के दौरान बाल गंगाधर तिलक ने रखी थी। 1894 में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान तिलक पुणे में गणेश की मूर्ति स्थापित की। 10 दिन तक खूब पूजा-पाठ हुआ। बताया जाता है कि 11वें दिन जब गणेश की मूर्ति की यात्रा निकाली गई तो एक दलित व्यक्ति ने उसे प्रणाम करने के लिए छू दिया। इतने में ब्राम्हणों ने कहा कि गणपति अपवित्र हो गया। सभी पुजारियों ने गंगाधर तिलक को गरियाते हुए कहने लगे कि देखा, गणपति को सार्वजनिक किया, तो धर्म डूब गया। अब कौन ब्राह्मण इस मूर्ति को अपने घर में रखेगा ? तभी तिलक ने कहा, अरे चिल्लाते क्यों हो ? शांत रहो मैं धर्म को डूबने कैसे दूंगा ? धर्म को डुबोने की अपेक्षा हम इस अपवित्र मूर्ति को ही डुबो देते हैं और इस प्रकार गणपति की मूर्ति को डुबो दिया गया। इसी दिन से यह गणेश विसर्जन का रिवाज चल पड़ा। यह पूरी तरह से शूद्रों का अपमान है, लेकिन यहीं शूद्र (SC, ST, OBC) बड़े हर्षोउल्लास के साथ अपना अपमान का त्योहार मनाते हैं।
मेहनत, समय, धन और प्रकृति की बर्बादी
गणेश की मूर्तियों को बनाने में बहुत ही ज्यादा समय, धन और मेहनत लगते हैं। बड़ी-बड़ी मूर्तियों को खरीदकर नदी में बहाने से समाज का कोई कल्यान नहीं होता, बल्की देश और लोगों की आर्थिक स्थिति बद से बदतर हो जाती है। अगर इसी पैसों से लोग अपने घर और समाज के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मूलभूत चीजों पर खर्च करते तो उनका बेहतर विकास होता। बड़ी-बड़ी मर्तियों से तालाब, नहर, नदियां और अन्य जल स्त्रोत पूरी तरह से बर्बाद होते जा रहे है। भगवान और धर्म की आड़ पर प्रकृति के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। गणेशोत्सव के दौरान पूरे 11 से 15 दिनों तक सड़कों पर धर्म की आड़ पर पूरी तरह से कब्जा कर लिया जाता है।
जागरूक लोगों को लेनी होगी जिम्मेदारी
भगवान के नाम पर जोर-जोर से कानफोड़ू डीजे बजाया जाता है। यह आवाज सुनकर अगर भगवान होता तो आत्महत्या कर लेता। डीजे पर अश्लील गाने बजाते हुए भक्त गांजा, भांग और शराब के नशे में झूमते नजर आते है। सड़क पर कोई लड़की मिल जाए तो ये छेड़छाड़ करने में उतारू हो जाते हैं। इस प्रकार धर्म के नाम पर सड़क पर नगा नाच जारी है। शासन-प्रशासन पूरी तरह से आंख और कान बंदकर अपाहिज की तरह मौन है। सरकार को वोट बैंक की चिंता है, इसलिए जनता को धर्म की अफीम देकर मस्त है। सभी नेता भोली-भाली जनता को धर्म और भगवान जैसी काल्पनिक बातों पर उलझाकर सत्ता की मलाई खा रहे हैं। अब जागरूक लोगों को अपनी चुप्पी तोड़नी होगी और अपने समाज को विवेकवान बनाना होगा, तभी यह भेड़िया धसान खत्म होगी और हमारी पीढ़ी बेहरत होगी।
- मनोवैज्ञानिक टिकेश कुमार, अध्यक्ष, एंटी सुपरस्टीशन ऑर्गेनाइजेशन (ASO)
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