Saturday, 23 September 2023

मेहनत करे कोई, जेब भरे कोई


खेत में दिन-रात मेहनत करने के बाद भी किसान के हाथ में कुछ पैसे नहीं बचता, सब बराबर हो जाता है। कई बार खराब मौसम के कारण फसल बर्बाद हो जाती है, जिससे किसान के पास खाने के लिए भी नहीं रहता और अलग से कर्ज में डूब जाते हैं।

मौसम सही-सही रहा तो फसल बढ़िया पैदा हो जाती है, लेकिन फिर संकट आ खड़ा होता है। फसल का वास्तविक मूल्य नहीं मिल पाता। जिससे फसल को पानी से भी कम मूल्य में बेमन बेचना पड़ता है। फिर वही फसल पूंजीपति स्टोर कर के रख लेता है, जब किसान के पास वह फसल नहीं होता। किसान पूरी फसल को बेच चुके होते हैं तब उस फसल का बाजार में अधिक मूल्य हो जाता है, इससे आम जनता को मंहगाई का सामना करना पड़ता है। शहरी लोगों को लगता है दाल-चावल, गेंहू, सब्जी जो किसान उतपन्न करते हैं उसका मूल्य बढ़ा है तो किसान को फायदा हो रहा है। कुछ लोगों को ऐसा भी लगता है किसान ही ये सब का दाम बढ़ा दिया है, जिससे महंगाई बढ़ गई है। और सब्जी बेचने वालों से मोलभाव करने लगते हैं।

जिसने कभी मेहनत नहीं की और खेती नहीं की उन सभी लोग आज देश में ऐशोआराम कर रहे हैं, मुफ्त में खा रहे हैं। मेहनत करने वालों के खून-पसीने की कमाई खा रहे हैं। जिसमें हमारे राजनेता पहला स्थान पर है। एक विधायक की सैलरी और पेंशन पूरा देश कंगाल हो गया है। मेहनत करने वालों से कहता है कि गरीब जनता को मुक्त में चावल दे रहे हैं। उस नेताओं से पूछना चाहिए कि कौन से खेत में फसल लगाया था? कहां मेहनत किया था या कौन से अपने बाप- दादाओं के घर से लाए। नेताओं के चुनाव जीतने के कुछ ही दिनों के बाद इतने पैसे आ जाते हैं जिससे उसके कई पीढ़ी बैठकर खा सकती है। इतने पैसे कौन सी मिट्टी में पैदा किया उसका जवाब जनता को मांगना चाहिए। सब सुविधा नेताओं और अधिकारियों के पास है।

मेहनत करने वाली जनता से मूलभूत आवश्यकताओं को भी छीन लिया है। और जनता आज अंधविश्वास की अफीम के नशे में चुर होकर जी रही है। जिस देश और समाज में अंधविश्वास और नशे की तल हो वहां के लोगों को सही गलत कुछ नहीं दिखता और मूर्ख को भी सत्ता का ताज पहना देता है। इसलिए सरकार कभी नहीं चाहती कि जनता होशियार बने और अंधविश्वास व नशे से दूर रहे। सरकार लोगों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण कभी नहीं चाहती।

- मनोवैज्ञानिक टिकेश कुमार, अध्यक्ष, एंटी सुपरस्टीशन ऑर्गेनाइजेशन (ASO)

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