Wednesday, 28 February 2018

ले मशाले चल पड़े है लोग मेरे गांव के...

झारखंड के खूंटी जिला के कई आदिवासी ग्रामाें में अब ग्रामीण अपनी जमीन को बचाने के लिए एकजुट हो गए है। वहां के जमीन को लूटने के लिए सरकार और पूंजीपति पूरी ताकत लगा दी है। वहीं दूसरी तरफ आदिवासी इस ताकत से टकराने के लिए तैयार है। आदिवासी नेता ग्रामीणों को जागरूक करने के लिए संविधान का मशाल हाथ में लेकर हक की लड़ाई के लिए आदिवासियों को संगठित करने में लगे हुए हैं। खूंटी के कई गांवाें में पत्थलगड़ी कर पत्थरों पर संविधान की पांचवी अनुसूची को लिखा जा रहा है। जिससे आदिवासी अपने अधिकार को जान सके और अपनी जल, जंगल और जमीन को बचा सकेे। खूंटी जिला के सिंजुड़ी, बहम्बा, कोचांग, साके, तुसूंगा और तोतकोरा गांव में 25 फरवरी को आदिवासी महासभा ने सम्मेलन कर गांव की जमीन को पूंजीपतियों से बचाने का आव्हान किया। वक्ताओं ने केन्द्र और राज्य सरकारों की सत्ता को चुनौती देते हुए पत्थलगड़ी की। उन्होंने ललकारते हुए कहा कि देश में केंद्र और राज्य सरकार की एक इंच भी जमीन नहीं है। आदिवासी क्षेत्र में संसद और विधानसभा का कोई भी कानून लागू नहीं होता है। हमारे गांव में हमारा राज है। सम्मेलन में हजारों की संख्या में लोग मौजूद थे। उन्होंने ग्रामसभा जिंदाबाद और आदिवासी एकता जिंदाबाद और बिरसा मुंडा जिंदाबाद के नारे लगाए। सम्मेलन में वक्ताओं ने कहा कि संविधान देश में ग्राम सभाओं को हुकूमत करने का अधिकार देता है।
पत्थलगड़ी के बाद कोचांग में एक महती सभा का आयोजन किया गया। इसमें झारखंड के जमशेदपुर, पश्चिमी सिंहभूम, सरायकेला-खरसवां, खूंटी, रांची जिलों समेत ओड़िसा और छत्तीसगढ़ से भी लोग पहुंचे। आदिवासी महासभा के यूसुफ पुर्ती ने कहा कि सरकार कह रही है कि पत्थलगड़ी गलत है लेकिन ऐसा नहीं है। दरअसल आदिवासी क्षेत्रों में वर्तमान सरकार संघ राज्य क्षेत्र के सामान्य कानून को लाकर अपना हित साध रही है। युसूफ पुर्ती उर्फ प्रोफेसर ने यहां तक कह डाला कि प्रिवी काऊंसिल, बिटेन और ब्रिटेन पार्लियामेंट की सहमति के बगैर देश के संविधान में किये गए संशोधन निरर्थक हैं। उन्होंने कहा कि अनुसूचित भारत के संविधान का अनुच्छेद 13 (2) कहता है कि भारत के संविधान में कोई संशोधन होता है या संसद में या विधि मंत्रालय में कोई नया कानून बनता हो या सीएनटी एक्ट में संशोधन होता हो, तो यह आदिवासियों की इजाजत के बगैर नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि संशोधन करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार को प्रिवी काउंसिल ब्रिटेन से अनुमति लेनी होगी। आज तक सीएनटी एक्ट में जो 46 संशोधन हुए हैं उनके लिए प्रिवी काउंसिल से अनुमति नहीं ली गई है। इसके कारण यह गलत है। अनुच्छेद 13 (2) और अनुच्छेद 368 भी यही कहता है।
युसूफ पुर्ती ने कहा कि ग्रामीणों को जागरूक करने और ग्रामसभा को सशक्त बनाने के लिए पत्थरगड़ी की जा रही है। सरकार को पता होना चाहिए कि यह देश आदिवासियों का है। संविधान में फेरबदल ग्राम सभा की अनुमति के बगैर नहीं होना चाहिए। आदिवासी इस देश के मालिक हैं। मालिक की अनुमति के बगैर बदलाव नहीं हो सकता। हमारी अलिखित व्यवस्था थी, जिसे 1950 में लिपिबद्ध किया गया। संविधान में इस पर टीका टिप्पणी करने का अधिकार भी नहीं है। सरकार कह रही है कि हम संविधान की गलत व्याख्या कर रहे हैं। सरकार को बताना चाहिए कि यह किस तरह गलत व्याख्या है। इसके लिए सरकार को सुप्रीम कोर्ट जाना चाहिए।
आदिवासी बहुल क्षेत्र खूंटी में सम्मेलन, महासभा, महारैली और पत्थलगड़ी जैसे कार्यक्रम कर आदिवासियों को एकजुट किया जा रहा है। ताकि केंद्र और राज्य सरकार पूंजिपतियों के साथ मिलकर जमीन से आदिवासियों को बेदखल न कर सकें। इस प्रकार सभी ग्राम पंचायत अपनी पूरी ताकत गांव और जमीन को बचाने में लगा दी है। हम इस आदिवासियाें की लड़ाई का समर्थन करते हैं। साथ ही उनके साहस को सलाम करते हैं। यह जागरूकता की मशाल अमर रहें।

Tuesday, 27 February 2018

अगर देश का विकास देखना है तो चढ़े जनरल बोगी में



भारत का वास्तविक विकास अगर किसी को देखना है तो एक बार ट्रेन की जनरल बोगी में चढ़कर दिखाए। उनको देश की तरक्की से रूबरू होने का मौका मिलेगा। भारतीय ट्रेन की देर होने की घटना बहुत ही आम हो गई है। कभी भी कोई ट्रेन समय पर नहीं पहुंचती बल्कि कभी 12 घंटे देर तो कभी 24 घंटे देर यह भी कैसी देर है यह तो पूरी तरह से अंधेर है। एक-दो घंटे की देर समझ में आती है, लेकिन 24 घंटे मतलब एक दिन तक यात्री कैसा इंतिजार करेंगे। जब इस प्रकार की देर होती है तो भुगतना यात्री को पड़ता है। कभी कोई परीक्षार्थी को परीक्षा से वंचित होना पड़ता है, तो कभी कर्मचारी आफिस नहीं पहुंच पाते हैं। कभी कोई व्यक्ति अपने परिवार के सदस्य का बीमार होने का संदेश पाकर ट्रेन से घर पहुंचते-पहुंचते सदस्य की मौत हो जाती है। कभी ट्रेन पलटने से यात्रियों को मौत के मुंह में समाना पड़ता है। इस प्रकार ट्रेन की कहानी विकराल और भयानक है। भले ही सरकार हर साल रेल बजट पेश करती है, लेकिन समस्याएं जस के तस बनी हुई है। इस साल भी रेल बजट 1.48 लाख करोड़ रुपए मंजूर किया गया है। जिसमें रेलवे को हाईटेक करने की बात कही गई है। ये कैसा हाईटेक है जिसमें न तो जनरल बोगी बढ़ाने की बात कही गई है और न ही रेल की रफ्तार बढ़ाने की।
जनरल बोगी में देश की आम जनता, गरीब, मजदूर, किसान और छोटे वर्ग ठूसा कर सफर करते हैं। इस प्रकार अगर कोई जनरल बोगी में चढ़ गया तो उसे जिंदगी के लिए प्राथना करनी पड़ती है। हमारे यहां सत्ता में बैठे मंत्री जो विकास का गीत गाते हैं, उसे मात्र एक बार जनरल बोगी में बैठकर सफर करना चाहिए। तब उन्हें देश और ट्रेन का विकास पता चल जाएगा। यहां सरकार बुलेट ट्रेन चलाने की बात करती है, लेकिन आम लोगों की रेल को बेहतर बनाने की बात नहीं। यह तो ऐसी बात हो गई जैसे किसी के पैर में जूते नहीं और महंगी कमीज पहने हुए हो। देश में इस प्रकार हास्यस्पद कार्य चल रहा है। सरकार बुलेट ट्रेन चलाने के लिए जापान से कर्ज लेकर मुंबई-अहमदाबाद हाई स्पीड रेल प्रोजेक्ट शुरू करेगी। बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट को 15 अगस्त 2022 तक करने का लक्ष्य रखा गया है। बुलेट ट्रेन चलाने के लिए कुल लागत 10,8000 करोड़ रुपए आने का अनुमान है। जिसके लिए जापान से कर्ज लिया जाएगा। जिस कर्ज को पचास साल में चुकाना होगा। अब देश की तरक्की का अनुमान लगा सकते है।
जितने पैसे में एक्सप्रेस और सुपर फास्ट ट्रेन की स्थिति बहुत ही बेहतर हो जाती, उससे कई गुणा ज्यादा पैसे बुलेट ट्रेन के लिए खर्च करना कहा तक शोभा देती है। इस कार्य पर 0.1 फीसदी के ब्याज को जोड़ें तो अट्ठासी हजार करोड़ रुपए के कर्ज के बदले भारत को जापान को 90500 करोड़ रुपए चुकाने होंगे। यानी केवल 25 सौ करोड़ रुपए ज्यादा। इस प्रकार देश की आर्थिक स्थिति भी स्पष्ट दिखाई दे रही है। हमारे देश को दूसरे देश से कर्ज लेने की जरूरत पड़ रही है। अब देश को पचास साल तक जापान का कर्ज चुकाना होगा। वहीं बुलेट ट्रेन के निर्माण कब पूरा होगा इसका भी कोई ठिकाना नहीं जब 25 साल में बुलेट ट्रेन शुरू होगी तब तक अन्य देश में इससे ज्यादा सुविधाजनक वाली ट्रेन दौड़ती दिखाई देगी। सरकार को चाहिए कि देश में मूलभूत सुविधा जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन और रोजगार पर गंभीर रूप से ध्यान दे।

Tuesday, 20 February 2018

कब तक होता रहेगा मोहब्बत का कत्ल


इस आधुनिक समाज में आज भी जाति-पांति, धर्म-संप्रदाय और ऊंच-नीच की भावना ठूस-ठूस कर भरी है। प्रेमी जोड़ों की हत्या या आत्महत्या की खबर रोज आती रहती हैं। जब लोग जाति समाज के बंधन में जकड़े होते हैं तो वे पूरी तहर से बुद्धिहिन हो जाते हैं। उसे अपनी संतान भी दिखाई नहीं देती। छत्तीसगढ़ के जांजगीर में एक प्रेमी जोड़े ने सामाजिक दबाव झेल नहीं पाने के कारण मंगलवार को ट्रेन से कटकर आत्महत्या कर ली। सामाजिक और पारिवारिक ताने से तंग आकर इस जोड़े ने नफरत भरी दुनियां से विदा ले ली। इनकी लाशे पटरी पर क्षत-विक्षत हालत में कटी हुई मिली। प्रेमी युवक देवेंद्र कुमार और युवती बुकली जांजगीर के अकलतरा के ग्राम खटोला के निवासी थे। इस प्रकार की घटनाएं लगातर राज्य और देशभर में होती रहती है। इसका कारण जाति समाज से निकालने का भय है। जब तक यह जाति समाज और इसका खौफ रहेगा तब तक इस प्रकार की हत्याएं और आत्महत्याएं होती रहेगी। अगर माेहब्बत को नफरत से बचाना है तो देश में जाति समाज को पूरी तरह से खत्म करना होगा। देशभर में सभी जगहों पर सामाजिक बहिष्कार निषेध अधिनियम लागू करना होगा। साथ ही अंतरजातिय और अंतरधार्मिक विवाह को प्रोत्साहन देना होगा। जिससे लोगों के मन में समानता और भाईचारा की भावना उत्पन्न होगी। साथ ही पढ़े-लिखे और जागरूक लोगाें को इस जाति प्रथा और जाति समाज को तोड़ने के लिए आगे आना चाहिए। तभी इस तरह की घटनाओं पर विराम लगेगा। अन्यथा समाज और देश का विनाश तय है।

Thursday, 8 February 2018

टोनही अउ भूत के डर जीवलेवा




गांव अउ सहर, अनपढ़ अउ पढ़े-लिखे मनखे सबे झन टोनही अउ भूत के भय के मारे थरथर कापत रइथे। जब हमन हमर छत्तीसगढ़ के बात करथन त इहा के मनखे तो टोनही अउ मसान के कहानी सुनाय म भीड़ जथे। अउ डर के मारे बने-बने मनखे के पसीना निकाल देथे। कोनो लबारी बात ल घेरी-बेरी अउ जगह-जगह गोठियाय म ओ बात ह सिरतोन असन लागथे। अभी तक ले मे ह जतेक भी बात सुनेंव ओकर बर मोला पोठलगहा परमान नई मिलिस। सब हवा-हवाई बात ल गोठियाथे। गांव के कई झन बइगा-गुनिया मन ले घलो गोठबात करेंव फेर उहूं मन ह गोल-मटोल अउ उटपूटांग ढंग ले जवाब देथे। हमर पढ़े लिखे समाज म आज भी माइलोगिन मन ल टोनही के नाव लेके लगातार मारे के घटना ह घोर अंधबिसवास ल देखाथे। सोचे के बात तो ए हरे कि आज पढ़े-लिखे मन ह घलो गांव के अनपढ़ मन के मनगढ़त कहानी ल मान के उकरों ले आघू निकल गे हे। जबकि पढ़े-लिखे मनखे ल चाही कि अंधबिसवास के कुंआ म उबुक-चुबुक होवत जनमानस ल निकालय। फेर का करबे एमन ह ए अंधबिसवास अउ लबारी गोठ के तूफान म उड़ावत हे।
नानकून ले सुनत आवत हंव कि टोनही मन कर अइसन सक्ती होथे की ओहर हजारों झन ल एके झन मार सकथे। आगी अउ पानी घलो उकर काही नइ बिगाड़ सके। तब मे ह ए पूछना चाहथंव कि गांव म कोनो माइलोगिन ल टोनही कही के मारथे त ओ ह अपन परान ल कइसे नइ बचा सके। अपने परान ल जे ह नई बचा सकय ओ बपरी ह का दूसर के परान लिही अउ दूसर के अहित करही। एक ठोक अउ बात सुने ल मिलथे कि टोनही ले सिरिफ बइगा ह सामना कर सकथे। कहे जाथे कि बइगा कर घलो आनी-बानी के ताकत होथे। ओ ह कतको बीमारी रही एके घांव म ठीक कर देथे। तब मै ए पूछथंव कि हमर देस अउ हमर छत्तीसगढ़ म अतेक रसपताल अउ डाक्टर मन के बाढ़ कइसे आगे। गांव के बइगा ह सबे बीमारी के इलाज करतिस त ए भीड़ ह रसपताल म नइ दिखतिस। जउन बइगा ह सबे बीमारी अउ समस्या ल निपटाय के बात करथे ओ ह खुदे डाक्टर कर रस्पताल म काबर इलाज कराथे। ओकर कर तो सब बीमारी ले निपटे के सक्ती हे त खुदे इलाज नई करतिस। जादू-टोना, बइगा-गुनिया समाज के अंतस म अइसे समा गेहे जउन ह समाज बर खतरनाक आय। जब तक ले ए बीमारी के नास नइ होही तब तक मनखेमन डर-डर के मरत रही।

गांव म आज भी कोनो मनखे ल बुखार अउ दूसर बीमारी होय म ओ ह डाक्टर ल नइ दिखाके बइगा-गुनिया कर जाथे। भले ओकर परान निकल जाय। एक झन मोर करीबी पढ़े-लिखे मनखे जेकर नोनी लइका के सरीर म खाज-खुजरी होगे रहाय ओ ह बइगा कर फुकवाय-झरवाय बर जावत रहिस। तब बइगा गुनिया के चक्कर म डाक्टरी इलाज नइ होइस त ओकर लइका के खजरी हर सरीर म फइले ल लागिस तब मे ह ओ भाई ल कहेंव कि एकर इलाज कोनो बड़े चर्म रोग बिसेसज्ञ ल दिखा कही के। तब ओ ह मोर बात ल ले दे के मानिस। अउ ओ लइका ह ठिक होइस।
अब जउन ह कालेज अउ यूनिवरसिटी म पढ़े हे अउ जेन ह पढ़त-पढ़ावत हे। उहू ह अइसन झाड़-फूक म बिसवास करथे त गांव के साधारण मनखे ऊपर का आस लगाबे। गांव के अनपढ़ मन तो ए पढ़े लिखे मन ल देख के ओकर पीछू-पीछू जाथे। ए परकार के समाज म अंधबिसवास ल फइलाय म ए पढ़हंता अंधबिसवासी मन के घलो बढ़ हाथ हे। वइसने अगर बइगा के बात करे जाय तो ए मन ह बीमार मनखे ल कसराहा अउ भूत-परेत, टोनही, मसान के भय दिखा के पइसा लूटत हे। अइसन अंधबिसवास फइलइया मन बर पोठलगहा कानूनी कारवाइ करना चाही। जेकर ले हमर समाज ल बचाय जा सके।
जानकार मन कथे कि लइकापन के सुने कहानी ह ओकर केवची मन म खतरनाक परभाव डालथे। जेकर ले ओ मनखे ह जीवन भर नइ उबर पाय। मनखेमन लइका के होथे साथ ओकर गला म ताबिज अउ हाथ म करिया धागा। यहां तक के ओकर गोड़ म घलो करिया धागा बांध देथे। ए अंधबिसवास के धागा ह ताहन उमर भर नइ छूटय। जब लइका ह अपन-दाई ददा ले पूछते कि ए धागा अउ ताबिज-कंडा ल काबर पहिनबो कहि के तब ओ लइका ल धूतकार के चुप करा दे जाथे। नहीं तो आनी-बानी के परेतिन अउ टोनही के कहानी सुनाके लइका के मनोबल ल गिराय जाथे। जउन ह ओ लइका के उमर भर पेरथे। जब ओ लइका ह जाने-सुने के लइक बड़े बाड़ जथे  तभो ले ओ ह वैज्ञानिक सोच ल नइ अपना सके। अउ अंधबिसवास के बेड़ी म बंधाय रइथे।

अब सोचे के बात तो ए हरे कि जउन लइका ह बिज्ञान अउ गनित के पढ़ाई करत हे, वहू ह मंतर-जंतर, भूत-परेत, टोनही-टमानी जइसे चीज म बिसवास करथे। अउ ताबीज-कंडा लटका के घुमथे। त ओ लइका बर मोला तरस आथे कि ओ का बिज्ञान ल जान पाही अउ का मिसाइल अउ बिज्ञान के छेत्र म खोज कर पाही। मरीज ल बचा पाही। अब देस-समाज ल बचाना हे त अपन लइका ल बैज्ञानिक बउ परगतिसील बिचार ल बतावन-सिखावन। मनगढ़त बात अउ अंधबिसवास के खुल के बिरोध करन। तभे हमर अवइया पीढ़ी ह बच पाही।