झारखंड के खूंटी जिला के कई
आदिवासी ग्रामाें में अब ग्रामीण अपनी जमीन को बचाने के लिए एकजुट हो गए
है। वहां के जमीन को लूटने के लिए सरकार और पूंजीपति पूरी ताकत लगा दी है।
वहीं दूसरी तरफ आदिवासी इस ताकत से टकराने के लिए तैयार है। आदिवासी नेता
ग्रामीणों को जागरूक करने के लिए संविधान का मशाल हाथ में लेकर हक की लड़ाई
के लिए आदिवासियों को संगठित करने में लगे हुए हैं। खूंटी के कई गांवाें
में पत्थलगड़ी कर पत्थरों पर संविधान की पांचवी अनुसूची को लिखा जा रहा है।
जिससे आदिवासी अपने अधिकार को जान सके और अपनी जल, जंगल और जमीन को बचा
सकेे। खूंटी जिला के सिंजुड़ी, बहम्बा, कोचांग, साके, तुसूंगा और
तोतकोरा गांव में 25 फरवरी को आदिवासी महासभा ने सम्मेलन कर गांव की जमीन
को पूंजीपतियों से बचाने का आव्हान किया। वक्ताओं ने केन्द्र और राज्य
सरकारों की सत्ता को चुनौती देते हुए पत्थलगड़ी की। उन्होंने ललकारते हुए
कहा कि देश में केंद्र और राज्य सरकार की एक इंच भी जमीन नहीं है। आदिवासी
क्षेत्र में संसद और विधानसभा का कोई भी कानून लागू नहीं होता है। हमारे
गांव में हमारा राज है। सम्मेलन में हजारों की संख्या में लोग मौजूद थे।
उन्होंने ग्रामसभा जिंदाबाद और आदिवासी एकता जिंदाबाद और बिरसा मुंडा
जिंदाबाद के नारे लगाए। सम्मेलन में वक्ताओं ने कहा कि संविधान देश में
ग्राम सभाओं को हुकूमत करने का अधिकार देता है।
पत्थलगड़ी के बाद कोचांग में एक महती सभा का आयोजन किया गया। इसमें झारखंड के जमशेदपुर, पश्चिमी सिंहभूम, सरायकेला-खरसवां, खूंटी, रांची जिलों समेत ओड़िसा और छत्तीसगढ़ से भी लोग पहुंचे। आदिवासी महासभा के यूसुफ पुर्ती ने कहा कि सरकार कह रही है कि पत्थलगड़ी गलत है लेकिन ऐसा नहीं है। दरअसल आदिवासी क्षेत्रों में वर्तमान सरकार संघ राज्य क्षेत्र के सामान्य कानून को लाकर अपना हित साध रही है। युसूफ पुर्ती उर्फ प्रोफेसर ने यहां तक कह डाला कि प्रिवी काऊंसिल, बिटेन और ब्रिटेन पार्लियामेंट की सहमति के बगैर देश के संविधान में किये गए संशोधन निरर्थक हैं। उन्होंने कहा कि अनुसूचित भारत के संविधान का अनुच्छेद 13 (2) कहता है कि भारत के संविधान में कोई संशोधन होता है या संसद में या विधि मंत्रालय में कोई नया कानून बनता हो या सीएनटी एक्ट में संशोधन होता हो, तो यह आदिवासियों की इजाजत के बगैर नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि संशोधन करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार को प्रिवी काउंसिल ब्रिटेन से अनुमति लेनी होगी। आज तक सीएनटी एक्ट में जो 46 संशोधन हुए हैं उनके लिए प्रिवी काउंसिल से अनुमति नहीं ली गई है। इसके कारण यह गलत है। अनुच्छेद 13 (2) और अनुच्छेद 368 भी यही कहता है।
युसूफ पुर्ती ने कहा कि ग्रामीणों को जागरूक करने और ग्रामसभा को सशक्त बनाने के लिए पत्थरगड़ी की जा रही है। सरकार को पता होना चाहिए कि यह देश आदिवासियों का है। संविधान में फेरबदल ग्राम सभा की अनुमति के बगैर नहीं होना चाहिए। आदिवासी इस देश के मालिक हैं। मालिक की अनुमति के बगैर बदलाव नहीं हो सकता। हमारी अलिखित व्यवस्था थी, जिसे 1950 में लिपिबद्ध किया गया। संविधान में इस पर टीका टिप्पणी करने का अधिकार भी नहीं है। सरकार कह रही है कि हम संविधान की गलत व्याख्या कर रहे हैं। सरकार को बताना चाहिए कि यह किस तरह गलत व्याख्या है। इसके लिए सरकार को सुप्रीम कोर्ट जाना चाहिए।
आदिवासी बहुल क्षेत्र खूंटी में सम्मेलन, महासभा, महारैली और पत्थलगड़ी जैसे कार्यक्रम कर आदिवासियों को एकजुट किया जा रहा है। ताकि केंद्र और राज्य सरकार पूंजिपतियों के साथ मिलकर जमीन से आदिवासियों को बेदखल न कर सकें। इस प्रकार सभी ग्राम पंचायत अपनी पूरी ताकत गांव और जमीन को बचाने में लगा दी है। हम इस आदिवासियाें की लड़ाई का समर्थन करते हैं। साथ ही उनके साहस को सलाम करते हैं। यह जागरूकता की मशाल अमर रहें।
पत्थलगड़ी के बाद कोचांग में एक महती सभा का आयोजन किया गया। इसमें झारखंड के जमशेदपुर, पश्चिमी सिंहभूम, सरायकेला-खरसवां, खूंटी, रांची जिलों समेत ओड़िसा और छत्तीसगढ़ से भी लोग पहुंचे। आदिवासी महासभा के यूसुफ पुर्ती ने कहा कि सरकार कह रही है कि पत्थलगड़ी गलत है लेकिन ऐसा नहीं है। दरअसल आदिवासी क्षेत्रों में वर्तमान सरकार संघ राज्य क्षेत्र के सामान्य कानून को लाकर अपना हित साध रही है। युसूफ पुर्ती उर्फ प्रोफेसर ने यहां तक कह डाला कि प्रिवी काऊंसिल, बिटेन और ब्रिटेन पार्लियामेंट की सहमति के बगैर देश के संविधान में किये गए संशोधन निरर्थक हैं। उन्होंने कहा कि अनुसूचित भारत के संविधान का अनुच्छेद 13 (2) कहता है कि भारत के संविधान में कोई संशोधन होता है या संसद में या विधि मंत्रालय में कोई नया कानून बनता हो या सीएनटी एक्ट में संशोधन होता हो, तो यह आदिवासियों की इजाजत के बगैर नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि संशोधन करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार को प्रिवी काउंसिल ब्रिटेन से अनुमति लेनी होगी। आज तक सीएनटी एक्ट में जो 46 संशोधन हुए हैं उनके लिए प्रिवी काउंसिल से अनुमति नहीं ली गई है। इसके कारण यह गलत है। अनुच्छेद 13 (2) और अनुच्छेद 368 भी यही कहता है।
युसूफ पुर्ती ने कहा कि ग्रामीणों को जागरूक करने और ग्रामसभा को सशक्त बनाने के लिए पत्थरगड़ी की जा रही है। सरकार को पता होना चाहिए कि यह देश आदिवासियों का है। संविधान में फेरबदल ग्राम सभा की अनुमति के बगैर नहीं होना चाहिए। आदिवासी इस देश के मालिक हैं। मालिक की अनुमति के बगैर बदलाव नहीं हो सकता। हमारी अलिखित व्यवस्था थी, जिसे 1950 में लिपिबद्ध किया गया। संविधान में इस पर टीका टिप्पणी करने का अधिकार भी नहीं है। सरकार कह रही है कि हम संविधान की गलत व्याख्या कर रहे हैं। सरकार को बताना चाहिए कि यह किस तरह गलत व्याख्या है। इसके लिए सरकार को सुप्रीम कोर्ट जाना चाहिए।
आदिवासी बहुल क्षेत्र खूंटी में सम्मेलन, महासभा, महारैली और पत्थलगड़ी जैसे कार्यक्रम कर आदिवासियों को एकजुट किया जा रहा है। ताकि केंद्र और राज्य सरकार पूंजिपतियों के साथ मिलकर जमीन से आदिवासियों को बेदखल न कर सकें। इस प्रकार सभी ग्राम पंचायत अपनी पूरी ताकत गांव और जमीन को बचाने में लगा दी है। हम इस आदिवासियाें की लड़ाई का समर्थन करते हैं। साथ ही उनके साहस को सलाम करते हैं। यह जागरूकता की मशाल अमर रहें।
No comments:
Post a Comment