Thursday, 8 February 2018

टोनही अउ भूत के डर जीवलेवा




गांव अउ सहर, अनपढ़ अउ पढ़े-लिखे मनखे सबे झन टोनही अउ भूत के भय के मारे थरथर कापत रइथे। जब हमन हमर छत्तीसगढ़ के बात करथन त इहा के मनखे तो टोनही अउ मसान के कहानी सुनाय म भीड़ जथे। अउ डर के मारे बने-बने मनखे के पसीना निकाल देथे। कोनो लबारी बात ल घेरी-बेरी अउ जगह-जगह गोठियाय म ओ बात ह सिरतोन असन लागथे। अभी तक ले मे ह जतेक भी बात सुनेंव ओकर बर मोला पोठलगहा परमान नई मिलिस। सब हवा-हवाई बात ल गोठियाथे। गांव के कई झन बइगा-गुनिया मन ले घलो गोठबात करेंव फेर उहूं मन ह गोल-मटोल अउ उटपूटांग ढंग ले जवाब देथे। हमर पढ़े लिखे समाज म आज भी माइलोगिन मन ल टोनही के नाव लेके लगातार मारे के घटना ह घोर अंधबिसवास ल देखाथे। सोचे के बात तो ए हरे कि आज पढ़े-लिखे मन ह घलो गांव के अनपढ़ मन के मनगढ़त कहानी ल मान के उकरों ले आघू निकल गे हे। जबकि पढ़े-लिखे मनखे ल चाही कि अंधबिसवास के कुंआ म उबुक-चुबुक होवत जनमानस ल निकालय। फेर का करबे एमन ह ए अंधबिसवास अउ लबारी गोठ के तूफान म उड़ावत हे।
नानकून ले सुनत आवत हंव कि टोनही मन कर अइसन सक्ती होथे की ओहर हजारों झन ल एके झन मार सकथे। आगी अउ पानी घलो उकर काही नइ बिगाड़ सके। तब मे ह ए पूछना चाहथंव कि गांव म कोनो माइलोगिन ल टोनही कही के मारथे त ओ ह अपन परान ल कइसे नइ बचा सके। अपने परान ल जे ह नई बचा सकय ओ बपरी ह का दूसर के परान लिही अउ दूसर के अहित करही। एक ठोक अउ बात सुने ल मिलथे कि टोनही ले सिरिफ बइगा ह सामना कर सकथे। कहे जाथे कि बइगा कर घलो आनी-बानी के ताकत होथे। ओ ह कतको बीमारी रही एके घांव म ठीक कर देथे। तब मै ए पूछथंव कि हमर देस अउ हमर छत्तीसगढ़ म अतेक रसपताल अउ डाक्टर मन के बाढ़ कइसे आगे। गांव के बइगा ह सबे बीमारी के इलाज करतिस त ए भीड़ ह रसपताल म नइ दिखतिस। जउन बइगा ह सबे बीमारी अउ समस्या ल निपटाय के बात करथे ओ ह खुदे डाक्टर कर रस्पताल म काबर इलाज कराथे। ओकर कर तो सब बीमारी ले निपटे के सक्ती हे त खुदे इलाज नई करतिस। जादू-टोना, बइगा-गुनिया समाज के अंतस म अइसे समा गेहे जउन ह समाज बर खतरनाक आय। जब तक ले ए बीमारी के नास नइ होही तब तक मनखेमन डर-डर के मरत रही।

गांव म आज भी कोनो मनखे ल बुखार अउ दूसर बीमारी होय म ओ ह डाक्टर ल नइ दिखाके बइगा-गुनिया कर जाथे। भले ओकर परान निकल जाय। एक झन मोर करीबी पढ़े-लिखे मनखे जेकर नोनी लइका के सरीर म खाज-खुजरी होगे रहाय ओ ह बइगा कर फुकवाय-झरवाय बर जावत रहिस। तब बइगा गुनिया के चक्कर म डाक्टरी इलाज नइ होइस त ओकर लइका के खजरी हर सरीर म फइले ल लागिस तब मे ह ओ भाई ल कहेंव कि एकर इलाज कोनो बड़े चर्म रोग बिसेसज्ञ ल दिखा कही के। तब ओ ह मोर बात ल ले दे के मानिस। अउ ओ लइका ह ठिक होइस।
अब जउन ह कालेज अउ यूनिवरसिटी म पढ़े हे अउ जेन ह पढ़त-पढ़ावत हे। उहू ह अइसन झाड़-फूक म बिसवास करथे त गांव के साधारण मनखे ऊपर का आस लगाबे। गांव के अनपढ़ मन तो ए पढ़े लिखे मन ल देख के ओकर पीछू-पीछू जाथे। ए परकार के समाज म अंधबिसवास ल फइलाय म ए पढ़हंता अंधबिसवासी मन के घलो बढ़ हाथ हे। वइसने अगर बइगा के बात करे जाय तो ए मन ह बीमार मनखे ल कसराहा अउ भूत-परेत, टोनही, मसान के भय दिखा के पइसा लूटत हे। अइसन अंधबिसवास फइलइया मन बर पोठलगहा कानूनी कारवाइ करना चाही। जेकर ले हमर समाज ल बचाय जा सके।
जानकार मन कथे कि लइकापन के सुने कहानी ह ओकर केवची मन म खतरनाक परभाव डालथे। जेकर ले ओ मनखे ह जीवन भर नइ उबर पाय। मनखेमन लइका के होथे साथ ओकर गला म ताबिज अउ हाथ म करिया धागा। यहां तक के ओकर गोड़ म घलो करिया धागा बांध देथे। ए अंधबिसवास के धागा ह ताहन उमर भर नइ छूटय। जब लइका ह अपन-दाई ददा ले पूछते कि ए धागा अउ ताबिज-कंडा ल काबर पहिनबो कहि के तब ओ लइका ल धूतकार के चुप करा दे जाथे। नहीं तो आनी-बानी के परेतिन अउ टोनही के कहानी सुनाके लइका के मनोबल ल गिराय जाथे। जउन ह ओ लइका के उमर भर पेरथे। जब ओ लइका ह जाने-सुने के लइक बड़े बाड़ जथे  तभो ले ओ ह वैज्ञानिक सोच ल नइ अपना सके। अउ अंधबिसवास के बेड़ी म बंधाय रइथे।

अब सोचे के बात तो ए हरे कि जउन लइका ह बिज्ञान अउ गनित के पढ़ाई करत हे, वहू ह मंतर-जंतर, भूत-परेत, टोनही-टमानी जइसे चीज म बिसवास करथे। अउ ताबीज-कंडा लटका के घुमथे। त ओ लइका बर मोला तरस आथे कि ओ का बिज्ञान ल जान पाही अउ का मिसाइल अउ बिज्ञान के छेत्र म खोज कर पाही। मरीज ल बचा पाही। अब देस-समाज ल बचाना हे त अपन लइका ल बैज्ञानिक बउ परगतिसील बिचार ल बतावन-सिखावन। मनगढ़त बात अउ अंधबिसवास के खुल के बिरोध करन। तभे हमर अवइया पीढ़ी ह बच पाही।


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