जनता होवत हे दारू म बर्बाद।
दिनभर हटर-हटर मेहनत करथे
संझा होते साथ दारू भट्टी जाथे।
पिथे ताहन नसा के भूत चढ़ जाथे
घर के कपाट ल गारी देके खटखटाथे
डउकी निकलथे त बाजा कस बजाथे
फेर घर म कूद-कूद के लड़ई मचाथे।
कतेक मनखे के घर-द्वार छुटगे
कतेक घर दारू म जलगे
कतेक खेत दारू म बिकगे
कतेक मनखे अपराधी बनगे।
दारू के सेती घर बिगड़गे
दारू के सेती गांव बिगड़गे
दारू के सेती राज-देस सड़गे।
दारू ले नेता अउ चमचा बनगे
दारू ले राजनीति बिगड़गे
दारू म मतदाता बिकगे
फेर बिकगे पूरा देस
अब तो बंद कर देतेव ग सरकार
जनता होवत हे दारू म बर्बाद।
- टिकेश कुमार, रायपुर
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