
बस म बइठे-बइठे बिसनु ल दाई-ददा, संगी-संगवारी अउ गांव के सुरता ह नदिया कस धार मन म बोहवत रइथे। ए सुरता के लह रा ह ओकर आखी म घलो छलके लागथे। तब बस ह रइपुर के घड़ी चौक म पहुंच जथे। जब कंडेक्टर ह रइपुर-रइपुर
चिल्लाथे तब रखमखाके उठथे। बिसनु ह रइपुर के चका-चौंध ल बस म उतर के ससन
भर निहारथे। गरीब मनखे ह पइसा के किमत ल समझ सकथे। बिसनु के दाई-ददा ह
चेताय रहाय देखके खरचा करबे बेटा करजा लेके पढ़ावत हन कही के। ए बात
ल बिसनु ह अपन मन म गठियाय रहाय। कभू पइसा
खरचा
करे के बेरा आवय त ओकर
दाई-ददा के बात ह झटकुन सुरता आ जावय। अउ फोकट के खरचा करे ले बाचय। अब ओहा
अपन कालेज के हास्टल पहुंच गे। हास्टल ह ओकर बर नवा जगह रहाय। कभू घर ले
दुरिया नइ गे रहिस फेर का करबे पढ़ई करे बर छाती म पखरा रख के हास्टल म रहे
बर तियार होगे। ओकर कालेज हास्टल ले एक किमी
दूरिया रहाय। बिसनु करन सइकिल घलो नइ रहिस। तब ओ ह रोज रेंगत-रेंगत कालेज
जावय-आवय। ओकर संगवारीमन आनी-बानी के फटफटी म कालेज आवय। बिसनु ह पढ़ई म अव्वल रहाय । तेकर सेती सब लइका अउ सर-मेडम
मन बिसनु ल अबड़ भावय।
बिसनु के कलासमेट सबिता ह ओकर ए मेहनत अउ लगन ल देखके मोहा गे रहाय। जब
बिसनु ह कलास छुटे के बाद हास्टल डाहर जाय बर रेंगिस ओतके
बेरा म सबिता ह घलो अपन फटफटी म हास्टल डाहर गिस। तब बिसनु ल रेंगत-रेंगत
जावत देखथे। फेर सबिता ह ओला काहीं नइ कहे सकय काबर कालेज म आय दू-चार दिन
तो होय रहाय। अउ बिसनु से ओकर अतेक जान-पहिचान भी नइ हे जउन ह ओला फटफटी म
बइठे बर कही सके।
दूसरा दिन घलो सबिता ह बिसनु ल रेंगत जावत देखथे तब
हिम्मत करके गाड़ी ल ओकर आघू म रोक देथे। अउ बिसनु ल कइथे - बिसनु चलना मे ह
तोला हास्टल तक छोड़ देथंव। बिसनु कइथे - नहीं सबिता मैं ह रेंगत चले
जाहू। वइसे मनखे ल थोक-बहुत चलना-फिरना भी चाही। एकर ले सरीर ह बने रइथे।
कतको जिद करे के बाद भी बिसनु ह फटफटी म नइ चघय। तब हार मानके सबिता ह बाय
बिसनु काहत निकल जथे। एक दिन के बाद फेर बिसनु अउ सबिता ह कालेज जावत-जावत
रद्दा म मिल जथे। तब फेर सबिता ह ओला अपन फटफटी म बइठे के बिनती करथे। तब
बिसनु ह सोचथे कि घेरी-बेरी एकर बिनती ल ठुकराहू त ए ह मोला घमंडी समझही।
तेकर ले आज एकर फटफटी म बइठ जथंव। अतका कही के फटफटी म बइठ जथे। तब सबिता के
मन ह
गद हरियर हो जथे। अब बिसनु अउ सबिता ह बढ़िया संगवारी बन गे हे। दुनो झन एक
साथ बइठके पढ़ई-लिखई करे ल धर लिस। इकर दोस्ती ह
दिनोदिन
गढ़ावत जावत हे। सबिता
ह बिसनु ल कालेज लेगे बर रोज ओकर हास्टल के गेट म पहुंच
जाय। रोज एक साथ
एके गाड़ी म आना-जाना करत रहाय। ए सब ल देख के
ओकर
कलास के लइकामन
आनी-बानी के गोठ गोठियाय। बिसनु अउ सबिता के पढ़ई के समय अब बितत जावत हे।
अब एमन ल एक संघरा पढ़त-लिखत अउ घूमत-फिरत दू साल बितगे। अब इकर मन म
दोस्ती के अलावा मया के पिका घलो फूटे ल धर लिस। तब सबिता ह एक दिन बिसनु
ल कइथे- हमर जिनगी ह एक संघरा म कतेक बने लागथे बिसनु। का हमन सबर दिन बर
एक नइ हो सकन। तब बिसनु ल सबिता के दुसर जात होयके अउ गांव के जात समाज के
सुरता आगे। कइसे गांव म जात समाज ह दूसर जाति के संग बिहाव करइयामन ल अउ
ओकर परवार ल छोड़ देथे।
जेकर ले
ओमन नरक असन जिनगी जिये बर मजबूर हो जथे। फेर
बिसनु ल ए जात-समाज के डर ले सबिता के मया के बंधना ह जियादा खिचत हे।
सबिता ल घलो अपन दाई-ददा अउ जात समाज के डर लागे ल धर लिस। अब
दिन अउ रात इही बात ह दुनो झन के अंतस म गरेरा कस चलत रहाय। न ठिक
से सूत सकय,
न मुंहू म कावरा ह लिलावय
अउ
न काही कर सकय। तब दुनो झन ह ए जात-समाज के नफरत के दीवाल ल मया
के कुदारी म फोड़े के हिम्मत करिस। सबिता कइथे - बिसनु का ते ह अगले साल
पढ़ई पूरा होही त मोला छोड़ के चल देबे का। मे ह तोर बिना नइ रहे सकव। भले
मोर जात-समाज के अत्याचारी ल सही सकथव फेर तोर ले दुरिहा होके मया के पीरा म
नइ जी सकव। बिसनु ह घलो कइथे - सबिता ए रद्दा ह बहुत कठीन हे। रद्दा म
पहार-परबत, जंगल-झाड़ी हे। पूरा गांव के मनखे मन घलो हमन ल पापी समझही।
सबिता- का कोनो मया करइयामन पापी हो जथे। पापी तो ओमन आय जउन ह जात-धरम
के नाव लेके मया-पिरित के गला घोटत रइथे। इकर असन अधरमी कोन होही।
तब होली
के छुट्टी म बिसनु ह अपन घर जाथे। अउ
ए बात ल अपन-दाई ददा ल
बताथे कि मे ह मोर पसंद के बिहा व करना चाहत हंव। अतका बात ल सु नके दाई-ददा ह सकपका जथे। कइथे बिसनु ओ नोनी ह कहा रइथे। बिसनु- मोरे कक्षा म पढ़थे ददा अउ हमन ह
एक दूसर ले बढ़ मया करथन। कोन बिरादरी म आथे रे बिसनु ओ छोकरी ह। बिसनु-
हमर जात के नोहे ददा फेर हमन एक दूसर के बिना जी नइ सकन।
ददा ह कइथे कस रे बेटा तोला एकरे बर रइपुर भेजे रहेन रे। बने पढ़ बे अउ दाई-ददा
के नाव रोसन करबे। हमर कुल ल उबारबे कही के भेजे
रहेन। फेर तै तो कुलबोरूक निकले स रे। हठ जा मोर करले। तोर बिहाव हमन हमर
जात-सगा के टुरी संग करबो। ओ अनजतनिन टुरी संग नइ करन। हमर समाज ह का कही।
चार झन देखही-सुनही ते ह का कही। देखले फलाना के लइका ह अनजतइया होगे कही
के। कहइया-बोलइय ल तो छोड़ जात-समाज ह हमर हुक्कापानी बंद कर दिही। तब बिसनु
कइथे- मे ह जेन ल जानथंव अउ मया करथंव ओकर संग बिहाव करहूं न कि कोनो अनजान
संग। जउन ल नइ
जानव
ओकर संग घर-गिरहसथी बसाके
मोर मया ल नइ भुला सकव अउ ओ अनजान संग मया नइ पनप सकय। ये जात-समाज ह मया
के गला घोटे बर
राक्छस
असन हमेसा खड़े रइथे। लेकिन मे
ह
ए
राक्छस
से डरइया नो हंव। तब बिसनु के ददा ह खतरनाक गुस्सा जथे। मोर बात ल न सुनत हस न गुनत हस। निकल
जा
ए घर ले आज ले ते मोर बर मरगेस। तब बिसनु ह कुरिया म खुसर
जथे। अउ बेग ल धरके कुरिया ले निकलथे। अपन ददा के पाव छुए बर निहरथे त ओकर
ददा ह ओला लतिया के हठ जा इहा मोर कर ले तोर मुख नइ देखना चाहंव कइथे। ओकर दाई ह घर म रोवत बइठे
रइथे। बिसनु ह दाई के पांव छू के घर ले बाहिर निकल जथे।
ओ
डाहर सबिता ह अपन-दाई ददा ल अपन मया के गोठ ल बताथे। तब ओकरो दाई-ददा ह आन
जात के संग बिहाव के बात ल सुनके तनतना जथे। अउ सबिता ल कालेज नइ भेजके ओकर
बिहाव करे बर छोकरा खोजे बर धर लेथे। जब बिसनु ह कालेज पहुंचथे। तब सबे
संगी-संगवारी मन आय रइथे, फेर सबिता ह ओकर नजर म कोनो मेर नइ दिखय। दूसर
दिन घलो कालेज म सबिता ह नइ दिखय।
ओकर
कोई अता-पता
नइ रहिस। अइसने-अइसने चार दिन ह बितगे सबिता ह नइ अइस। तब बिसनु के मन म
आनी-बानी के सवाल ह उठे ल धर लिस। कभू सोचय कि
सबिता ह ओला धोखा देके भाग गे का। कभू सोचय नहीं सबिता ह मोला जी-जान ले
चाहथे। ओ कभू अइसे नइ कर सकय। कहीं ओकर दाई-ददा ह तो ओला रोक के तो नइ रखे
होही। एक दिन सबिता के घर म ओकर दाई-ददा ह नइ रहिस त भाग के कालेज आगे अउ बिसनु से मिलके ओला जम्मो बात ल बतइस। बिसनु ह घलो अपन बात ल बतइस। तब सबिता ह कइथे- चल बिसनु अब हमन ए नफरत के जात-समाज ल छोड़ के एक पिरित के खोंधरा बनाबो। चल आजे कोर्ट म जाके बिहाव करबो। बिसनु- नहीं सबिता हमन अइसन नइ कर सकन। एकर बर दाई-ददा, घर-परिवार, सगा-सोदर अउ जात-समाज ल छोड़े बर परही। का हमन अइसन कर पाबो। तब सबिता कइथे मैं ह मया ल पाय बर सबे से लड़े बर तियार हंव। अतका बात सुनके बिसनु ह सोचे ल लागथे देख तो सबिता ह कतेक हिम्मत वाली आय। अब महू ल हिम्मत दिखाय ल परही। तब बिसनु कइथे- ठिक हे सबिता कल कोर्ट जाके बिहाव करबो।
तब कोर्ट म जाके बिहाव कर लेथे। अउ रइपुर म किराया के मकान लेके रहे ल धर लेथे। ए खबर ह दुनों झन के गांव म आगी असन फइल जथे। अउ दूनो के गांव म जात-समाज के बइठक होथे। तब उकर जात-समाज ह दुनों परिवार के हुक्कापानी बंद कर देथे। ए बात ल लेके सबिता के ददा ह मार गुस्सा म अपन सगा अउ कुटुंब परिवार के पांच झन संग सबिता अउ बिसनु ल खोजत रइपुर आगे। तब पता चलिस कि दुनों झन टिकरापारा म रइथे। जब सबिता के ददा ह पांच झन लठैत ल धर के खोजत टिकरापारा म आथे। तब बिसनु ल ए बात के जानबा हो जथे। अउ सबिता ल बताथे। बिसनु अउ सबिता ह कपड़ा-लत्ता ल जोर-जंगार के फटफटी म भागे ल धर लिस। रइपुर ले जइसे निकलिस त नरवा के तीर म सबिता के ददा ह बिसनु अउ सबिता ल पहुंचागे। तब अपन लठैत मन ल कइथे। ए टुरा के बुता ल बना दव। मोर नोनी ल धर के भागत हे। अतका हिम्मत एकर मजा चखाव एला। ए बात ल सुन के लठैत मन बिसनु ल जोर से डंडा म फेक के मारथे। जेकर ले बिसनु अउ सबिता दुनाे झन फटफटी ले गिर जथे। तब बिसनु ल ओकर लठैत मन अइसे मरइय मारथे जइसे लकड़ी ल काटे बर टंगिया चलाय जाथे। ओ डाहर ले बिसनु के ददा अउ चार झन ओकर रिस्तेदार मन खोजत-खोजत ओतके बेरा आ जथे। जब बिसनु के ददा अउ आेकर रिस्तेदारमन देखथे कि बिसनु ल अबड़ मारथ हे कही के त बिसनु ल बचाय ल छोड़ के सबिता ल डंडा-डंडा मारे के चालू कर देथे। सबिता अउ बिसनु लहू-लुहान हो जथे। तभो ले दूनों परिवार ह एक दूसर के दुस्मन असन बिसनु अउ सबिता ल मारते रइथे। सबिता अउ बिसनु के लहू ह बोहवत-बोहवत एके जगह म जाके मिल जथे। तब अइसे लागथे कि दोनों मया करइया ह गला मिलत हे। अउ जनम-जनम संग म जीये-मरे के किरिया खावत हे। ए डाहर एक-दूसर जाति उपर नफरत करइया मन मया करइया मन ल दुनिया ले मिटाय के कोसिस करत हे। फेर एमन ल थोरको समझ नइ हे कि मया ल मिटाय नइ सकय। ए ह तो अइसे आय जउन मयारूमन मर के अपन मया ल अउ अमर कर देथे। डंडा अउ लात के मार म बिसनु अउ सबिता के परान ह छूट जथे। दुनों परेम के पुजारीमन अइसे मौन परे हे जइसे दुनो ह काहथ हे कि देख हमन संग म जिये-मरे के किरिया खाय रहे हन ओ ह आज पूरा होगे। बिसनु के ददा अउ सबिता के ददा अब डंडा ल फेक के सोचे बर धर लेथे कि हमन का कर डारेन अपने लइका ल हमीमन मार डारेन। हमन ल जात-समाज के अंधियार म इंसानियत अउ परेम के अंजोर ह घलो दिखाई नइ दिस। का लइकामन ले जियादा जाति ह बड़े होगे ? अब हमन ए जात-समाज ल का करबो ? अइसने सोचत-सोचत बिसनु अउ सबिता के ददा ह अपन-अपन घर डाहर चल देथे।
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