Monday, 11 June 2018

कहिनी : संग म जिये-मरे के किरिया

बिसनु ह 12वीं म फर्स्ट डिविजन ले पास होय हे। उकर घर म बड़ उछाह दिखत हबाय। ओकर दाई-ददा ह अपन एकलउता लइका ल जियादा नंबर म पास होय देखके आनी-बानी के सपना अंतस म संजोय ल लागथे। बिसनु के दाई ह कइथे देखबे हमर लइका ह कइसे बड़े जान सहाब बनही। हमर परवार के नाम रोसन करही। कुल म अंजोर करही। बिसनु ह कभू गांव ले बाहिर नइ निकले रहाय। अउ ओकर दाई-ददा ह घलो कभू अपन बेटा ल घर ले बाहिर नई भेजे हे। फेर अब ओ बेरा आगे हे। बिसनु ह गांव ल छोड़ के रइपुर म कालेज के पढ़ई ल करे बर मन बना ले हे। अउ ओकर बाप-महतारी मन घलो ओकर पढ़ई बर पइसा के बेवसथा म लगे हे। फेर का करबे जब दाई-ददा अउ लइका के अलग होय के बात ह आथे त करेजा ह धक-धक करे ल धर लेथे। अब बिसनु ह गांव ल छोड़ के सहर डाहर जाय बर अपन दाई-ददा ले आसीरबाद लेथे। ओकर दाई-ददा ह मोटर इसटेसन तक छोड़े बर आथे अउ करजा-बोड़ी करके लाय पइसा ल बिसनु ल दे के आसीरबाद देवत कइथे बने मन लगाके पढ़बे बेटा रइपुर म। ओतके बेरा म बस ह हारन बजावत आ जथे। तब बिसनु ह अपन सामान ल लेके बस म बइठथे।
बस म बइठे-बइठे बिसनु ल दाई-ददा, संगी-संगवारी अउ गांव के सुरता ह नदिया कस धार मन म बोहवत रइथे। ए सुरता के लहरा ह ओकर आखी म घलो छलके लागथे। तब बस ह रइपुर के घड़ी चौक म पहुंच जथे। जब कंडेक्टर ह रइपुर-रइपुर चिल्लाथे तब रखमखाके उठथे। बिसनु ह रइपुर के चका-चौंध ल बस म उतर के ससन भर निहारथे। गरीब मनखे ह पइसा के किमत ल समझ सकथे। बिसनु के दाई-ददा ह चेताय रहाय देखके खरचा करबे बेटा करजा लेके पढ़ावत हन कही के। ए बात ल बिसनु ह अपन मन म गठियाय रहाय। कभू पइसा खरचा करे के बेरा आवय त ओकर दाई-ददा के बात ह झटकुन सुरता आ जावय। अउ फोकट के खरचा करे ले बाचय। अब ओहा अपन कालेज के हास्टल पहुंच गे। हास्टल ह ओकर बर नवा जगह रहाय। कभू घर ले दुरिया नइ गे रहिस फेर का करबे पढ़ई करे बर छाती म पखरा रख के हास्टल म रहे बर तियार होगे। ओकर कालेज हास्टल ले एक किमी दूरिया रहाय। बिसनु करन सइकिल घलो नइ रहिस। तब ओ ह रोज रेंगत-रेंगत कालेज जावय-आवय। ओकर संगवारीमन आनी-बानी के फटफटी म कालेज आवय। बिसनु ह पढ़ई म अव्वल रहाय। तेकर सेती सब लइका अउ सर-मेडम मन बिसनु ल अबड़ भावय। बिसनु के कलासमेट सबिता ह ओकर ए मेहनत अउ लगन ल देखके मोहा गे रहाय। जब बिसनु ह कलास छुटे के बाद हास्टल डाहर जाय बर रेंगिस ओतके बेरा म सबिता ह घलो अपन फटफटी म हास्टल डाहर गिस। तब बिसनु ल रेंगत-रेंगत जावत देखथे। फेर सबिता ह ओला काहीं नइ कहे सकय काबर कालेज म आय दू-चार दिन तो होय रहाय। अउ बिसनु से ओकर अतेक जान-पहिचान भी नइ हे जउन ह ओला फटफटी म बइठे बर कही सके।
दूसरा दिन घलो सबिता ह बिसनु ल रेंगत जावत देखथे तब हिम्मत करके गाड़ी ल ओकर आघू म रोक देथे। अउ बिसनु ल कइथे - बिसनु चलना मे ह तोला हास्टल तक छोड़ देथंव। बिसनु कइथे - नहीं सबिता मैं ह रेंगत चले जाहू। वइसे मनखे ल थोक-बहुत चलना-फिरना भी चाही। एकर ले सरीर ह बने रइथे। कतको जिद करे के बाद भी बिसनु ह फटफटी म नइ चघय। तब हार मानके सबिता ह बाय बिसनु काहत निकल जथे। एक दिन के बाद फेर बिसनु अउ सबिता ह कालेज जावत-जावत रद्दा म मिल जथे। तब फेर सबिता ह ओला अपन फटफटी म बइठे के बिनती करथे। तब बिसनु ह सोचथे कि घेरी-बेरी एकर बिनती ल ठुकराहू त ए ह मोला घमंडी समझही। तेकर ले आज एकर फटफटी म बइठ जथंव। अतका कही के फटफटी म बइठ जथे। तब सबिता के मन ह गद हरियर हो जथे। अब बिसनु अउ सबिता ह बढ़िया संगवारी बन गे हे। दुनो झन एक साथ बइठके पढ़ई-लिखई करे ल धर लिस। इकर दोस्ती ह दिनोदिन गढ़ावत जावत हे। सबिता ह बिसनु ल कालेज लेगे बर रोज ओकर हास्टल के गेट म पहुंच जाय। रोज एक साथ एके गाड़ी म आना-जाना करत रहाय। ए सब ल देख के ओकर कलास के लइकामन आनी-बानी के गोठ गोठियाय। बिसनु अउ सबिता के पढ़ई के समय अब बितत जावत हे।
अब एमन ल एक संघरा पढ़त-लिखत अउ घूमत-फिरत दू साल बितगे। अब इकर मन म दोस्ती के अलावा मया के पिका घलो फूटे ल धर लिस। तब सबिता ह एक दिन बिसनु ल कइथे- हमर जिनगी ह एक संघरा म कतेक बने लागथे बिसनु। का हमन सबर दिन बर एक नइ हो सकन। तब बिसनु ल सबिता के दुसर जात होयके अउ गांव के जात समाज के सुरता आगे। कइसे गांव म जात समाज ह दूसर जाति के संग बिहाव करइयामन ल अउ ओकर परवार ल छोड़ देथे। जेकर ले ओमन नरक असन जिनगी जिये बर मजबूर हो जथे। फेर बिसनु ल ए जात-समाज के डर ले सबिता के मया के बंधना ह जियादा खिचत हे। सबिता ल घलो अपन दाई-ददा अउ जात समाज के डर लागे ल धर लिस। अब दिन अउ रात इही बात ह दुनो झन के अंतस म गरेरा कस चलत रहाय। न ठिक से सूत सकय, न मुंहू म कावरा ह लिलावय अउ न काही कर सकय। तब दुनो झन ह ए जात-समाज के नफरत के दीवाल ल मया के कुदारी म फोड़े के हिम्मत करिस। सबिता कइथे - बिसनु का ते ह अगले साल पढ़ई पूरा होही त मोला छोड़ के चल देबे का। मे ह तोर बिना नइ रहे सकव। भले मोर जात-समाज के अत्याचारी ल सही सकथव फेर तोर ले दुरिहा होके मया के पीरा म नइ जी सकव। बिसनु ह घलो कइथे - सबिता ए रद्दा ह बहुत कठीन हे। रद्दा म पहार-परबत, जंगल-झाड़ी हे। पूरा गांव के मनखे मन घलो हमन ल पापी समझही। सबिता- का कोनो मया करइयामन पापी हो जथे। पापी तो ओमन आय जउन ह जात-धरम के नाव लेके मया-पिरित के गला घोटत रइथे। इकर असन अधरमी कोन होही।
तब होली के छुट्टी म बिसनु ह अपन घर जाथे। अउ ए बात ल अपन-दाई ददा ल बताथे कि मे ह मोर पसंद के बिहाव करना चाहत हंव। अतका बात ल सुनके दाई-ददा ह सकपका जथे। कइथे बिसनु ओ नोनी ह कहा रइथे। बिसनु- मोरे कक्षा म पढ़थे ददा अउ हमन ह एक दूसर ले बढ़ मया करथन। कोन बिरादरी म आथे रे बिसनु ओ छोकरी ह। बिसनु- हमर जात के नोहे ददा फेर हमन एक दूसर के बिना जी नइ सकन। ददा ह कइथे कस रे बेटा तोला एकरे बर रइपुर भेजे रहेन रे। बने पढ़बे अउ दाई-ददा के नाव रोसन करबे। हमर कुल ल उबारबे कहीके भेजे रहेन। फेर तै तो कुलबोरूक निकलेस रे। हठ जा मोर करले। तोर बिहाव हमन हमर जात-सगा के टुरी संग करबो। ओ अनजतनिन टुरी संग नइ करन। हमर समाज ह का कही। चार झन देखही-सुनही ते ह का कही। देखले फलाना के लइका ह अनजतइया होगे कही के। कहइया-बोलइय ल तो छोड़ जात-समाज ह हमर हुक्कापानी बंद कर दिही। तब बिसनु कइथे- मे ह जेन ल जानथंव अउ मया करथंव ओकर संग बिहाव करहूं न कि कोनो अनजान संग। जउन ल नइ जानव ओकर संग घर-गिरहसथी बसाके मोर मया ल नइ भुला सकव अउ ओ अनजान संग मया नइ पनप सकय। ये जात-समाज ह मया के गला घोटे बर राक्छस असन हमेसा खड़े रइथे। लेकिन मे ह ए राक्छस से डरइया नो हंव। तब बिसनु के ददा ह खतरनाक गुस्सा जथे। मोर बात ल न सुनत हस न गुनत हस। निकल जा ए घर ले आज ले ते मोर बर मरगेस। तब बिसनु ह कुरिया म खुसर जथे। अउ बेग ल धरके कुरिया ले निकलथे। अपन ददा के पाव छुए बर निहरथे त ओकर ददा ह ओला लतिया के हठ जा इहा मोर कर ले तोर मुख नइ देखना चाहंव कइथे। ओकर दाई ह घर म रोवत बइठे रइथे। बिसनु ह दाई के पांव छू के घर ले बाहिर निकल जथे। 
ओ डाहर सबिता ह अपन-दाई ददा ल अपन मया के गोठ ल बताथे। तब ओकरो दाई-ददा ह आन जात के संग बिहाव के बात ल सुनके तनतना जथे। अउ सबिता ल कालेज नइ भेजके ओकर बिहाव करे बर छोकरा खोजे बर धर लेथे। जब बिसनु ह कालेज पहुंचथे। तब सबे संगी-संगवारी मन आय रइथे, फेर सबिता ह ओकर नजर म कोनो मेर नइ दिखय। दूसर दिन घलो कालेज म सबिता ह नइ दिखय। ओकर कोई अता-पता नइ रहिस। अइसने-अइसने चार दिन ह बितगे सबिता ह नइ अइस। तब बिसनु के मन म आनी-बानी के सवाल ह उठे ल धर लिस। कभू सोचय कि सबिता ह ओला धोखा देके भाग गे का। कभू सोचय नहीं सबिता ह मोला जी-जान ले चाहथे। ओ कभू अइसे नइ कर सकय। कहीं ओकर दाई-ददा ह तो ओला रोक के तो नइ रखे होही।
एक दिन सबिता के घर म ओकर दाई-ददा ह नइ रहिस त भाग के कालेज आगे अउ बिसनु से मिलके ओला जम्मो बात ल बतइस।  बिसनु ह घलो अपन बात ल बतइस। तब सबिता ह कइथे- चल बिसनु अब हमन ए नफरत के जात-समाज ल छोड़ के एक पिरित के खोंधरा बनाबो। चल आजे कोर्ट म जाके बिहाव करबो। बिसनु- नहीं सबिता हमन अइसन नइ कर सकन। एकर बर दाई-ददा, घर-परिवार, सगा-सोदर अउ जात-समाज ल छोड़े बर परही। का हमन अइसन कर पाबो। तब सबिता कइथे मैं ह मया ल पाय बर सबे से लड़े बर तियार हंव। अतका बात सुनके बिसनु ह सोचे ल लागथे देख तो सबिता ह कतेक हिम्मत वाली आय। अब महू ल हिम्मत दिखाय ल परही। तब बिसनु कइथे- ठिक हे सबिता कल कोर्ट जाके बिहाव करबो।
तब कोर्ट म जाके बिहाव कर लेथे। अउ रइपुर म किराया के मकान लेके रहे ल धर लेथे। ए खबर ह दुनों झन के गांव म आगी असन फइल जथे। अउ दूनो के गांव म जात-समाज के बइठक होथे। तब उकर जात-समाज ह दुनों परिवार के हुक्कापानी बंद कर देथे। ए बात ल लेके सबिता के ददा ह मार गुस्सा म अपन सगा अउ कुटुंब परिवार के पांच झन संग सबिता अउ बिसनु ल खोजत रइपुर आगे। तब पता चलिस कि दुनों झन टिकरापारा म रइथे। जब सबिता के ददा ह पांच झन लठैत ल धर के खोजत टिकरापारा म आथे। तब बिसनु ल ए बात के जानबा हो जथे। अउ सबिता ल बताथे। बिसनु अउ सबिता ह कपड़ा-लत्ता ल जोर-जंगार के फटफटी म भागे ल धर लिस। रइपुर ले जइसे निकलिस त नरवा के तीर म सबिता के ददा ह बिसनु अउ सबिता ल पहुंचागे। तब अपन लठैत मन ल कइथे। ए टुरा के बुता ल बना दव। मोर नोनी ल धर के भागत हे। अतका हिम्मत एकर मजा चखाव एला। ए बात ल सुन के लठैत मन बिसनु ल जोर से डंडा म फेक के मारथे। जेकर ले बिसनु अउ सबिता दुनाे झन फटफटी ले गिर जथे। तब बिसनु ल ओकर लठैत मन अइसे मरइय मारथे जइसे लकड़ी ल काटे बर टंगिया चलाय जाथे। ओ डाहर ले बिसनु के ददा अउ चार झन ओकर रिस्तेदार मन खोजत-खोजत ओतके बेरा आ जथे। जब बिसनु के ददा अउ आेकर रिस्तेदारमन देखथे कि बिसनु ल अबड़ मारथ हे कही के त बिसनु ल बचाय ल छोड़ के सबिता ल डंडा-डंडा मारे के चालू कर देथे। सबिता अउ बिसनु लहू-लुहान हो जथे। तभो ले दूनों परिवार ह एक दूसर के दुस्मन असन बिसनु अउ सबिता ल मारते रइथे। सबिता अउ बिसनु के लहू ह बोहवत-बोहवत एके जगह म जाके मिल जथे। तब अइसे लागथे कि दोनों मया करइया ह गला मिलत हे। अउ जनम-जनम संग म जीये-मरे के किरिया खावत हे। ए डाहर एक-दूसर जाति उपर नफरत करइया मन मया करइया मन ल दुनिया ले मिटाय के कोसिस करत हे। फेर एमन ल थोरको समझ नइ हे कि मया ल मिटाय नइ सकय। ए ह तो अइसे आय जउन मयारूमन मर के अपन मया ल अउ अमर कर देथे। डंडा अउ लात के मार म बिसनु अउ सबिता के परान ह छूट जथे। दुनों परेम के पुजारीमन अइसे मौन परे हे जइसे दुनो ह काहथ हे कि देख हमन संग म जिये-मरे के किरिया खाय रहे हन ओ ह आज पूरा होगे। बिसनु के ददा अउ सबिता के ददा अब डंडा ल फेक के सोचे बर धर लेथे कि हमन का कर डारेन अपने लइका ल हमीमन मार डारेन। हमन ल जात-समाज के अंधियार म इंसानियत अउ परेम के अंजोर ह घलो दिखाई नइ दिस। का लइकामन ले जियादा जाति ह बड़े होगे ? अब हमन ए जात-समाज ल का करबो ? अइसने सोचत-सोचत बिसनु अउ सबिता के ददा ह अपन-अपन घर डाहर चल देथे।

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