Wednesday, 23 August 2023

वैज्ञानिक चांद पर


वैज्ञानिक चांद पर पहुंचे
चाहे पहुंचे मंगल पर
राहु-केतु और शनि का डर
लोगों को नहीं छोड़ेगा
शुभ-अशुभ का भय नहीं छोड़ेगा
अंधविश्वास लोगों को नहीं छोड़ेगा
पाखंड करना लोग नहीं छोड़ेंगे

जाति का भेदभाव नहीं छूटेगा
धर्म के नाम पर लड़ना नहीं छोड़ेंगे
अज्ञानी लोग यही कहेंगे
सूर्य को हनुमान ने निगल लिया था
तो चंद्र में पहुंचना कौन सी बड़ी बात है
धर्म ने पहले से ही खोज कर ली थी

जब धर्म ने सब कुछ खोज ली
तो इतनी खर्च करके
चांद में जाने की क्या जरूरत
एक मंत्र मारो और चांद पर जाओ

विज्ञान कितना भी तरक्की करे
जब तक अंधविश्वास है
आम जनता की तरक्की नहीं होगी
खोजते रह जाएंगे पाखंड में ज्ञान
और पाखंड करते-करते
पृथ्वी भी खत्म न हो जाए
फिर कहां का चांद
और कहां की धरती
सब खत्म हो जाएंगे एक साथ

इसलिए महामानव बुद्ध कह गए
पाखंड छोड़ो, अंधविश्वास मिटाओ
धरती को एक नई दुनिया बनाओ
इंसान-इंसान की खून से न खेले
ऐसा एक संसार बनाओ

- मनोवैज्ञानिक टिकेश कुमार
अध्यक्ष, एंटी सुपरस्टीशन ऑर्गेनाइजेशन (एएसओ)

Monday, 21 August 2023

सांप कभी दूध नहीं पीता और न ही कोई नागमणि होती है


आज समाज में सांप के दूध पीने की बात होती है और लोग अफवाह के चलते सांप को दूध पिलाने के लिए शिवलिंग और नागराज सांप की मूर्ति में दूध को चढ़ाने के लिए लंबी लाइन लगाकर एक-एक करके सभी कटोरी-गिलास, लोटे भर दूध को उलचकर आ जाते हैं।

नागराज (King Cobra) जिसे लोग नागदेव या शेषनाग भी कहते हैं

नागराज को लोग देव के रूप में पूजते हैं। नागराज को पूजने के लिए हर साल नांगपंचमी के रूप मनाया जाता है। विशेषज्ञ की माने तो नागराज दुनिया में सबसे लंबा और जहरीला सांप है। यह 18 फिट तक बढ़ता है। भारत में यह सांप दक्षिण राज्यों तथा आसम, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा में मिलता है। काले, हरे और भूरे रंग में आता है। इस सांप के शरीर पर उलटे(V) के लकीरों के सफेद पीले रंग के चौड़े पट्टे होते हैं। बढ़ती उम्र के हिसाब से पट्टे धुंधले हो जाते हैं। इसका फन शरीर के अनुपात से बहुत छोटा होता है। यह अपना शरीर जमीन से 3 फीट तक ऊपर उठाता है। 

सांप कभी दूध नहीं पीता है

सांप के दूध पीने की बात सरासर गलत है, क्योंकि सांप जब पृथ्वी पर था तो उस वक्त कोई स्तनधारी प्राणी जो दूध देता हो, नहीं था। इसीलिए उसका मुख्य खाद्य अनेक प्रकार के कीड़े, चूहे हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से सांप के होंठ नहीं होती और न ही उसकी शरीर की बनावट दूध हजम करने लायक बनी है। वह पूरी तरह से मांसाहारी है, अगर दूध पिला दिया जाए तो सांप मर जाता है।

हजारों लीटर दूध बर्बाद होता है

नांगपंचमी में नागसांप को दूध पिलाने के नाम पर हजारों लीटर दूध नाली में बह जाता है। लोग सुबह से शिवलिंग और नागदेव पर इतना दूध उधेड़ता है, जैसे वह दूध नहीं पानी हो। एक तरफ लोगों के पीनी के लिए दूध नहीं है तो दूसरी तरफ अंधविश्वास के चलते दूध को मंदिर की मूर्तियों में डालकर पूरा दूध गन्दी नाली में बह जाता है। किसी को कुछ नहीं मिलता। क्या इसीलिए गाय दूध दी थी? कि नाली में बहाकर वेस्ट कर दे।

नाग के पास कोई नागमणि नहीं होती है

सांप के पास किसी भी प्रकार की मणि नहीं होती यह सब फिल्म, कहानियां, टीवी चैनल और बड़े बुजुर्गों से सुनी कथाओं से उपजी हैं। कोई भी व्यक्ति आज तक नागमणि नहीं देखा है, सब कही-सुनी बातों पर विश्वास कर लेता है। और उसी अफवाह को समाज में लगातार पीढ़ी-दर-पीढ़ी पिलाते रहता है।

इच्छाधारी नाग नहीं होता है

इच्छाधारी नाग-नागिन अपनी इच्छा से कोई भी रूप धारण कर लेता है, ऐसा फिल्मों में दिखाया जाता है, वह सब एक मनगढ़ंत कहानी है। कोई इच्छाधारी नाग-नागिन नहीं होता है। यह भी कहा जाता है कि इच्छाधारी नाग या नागिन को मार दिया जाता है तो दूसरा इच्छाधारी नाग सांप को मरे हुए नाग की आंखों में मारे हुए व्यक्ति दिखाई देता है और बदला लेता है। यह भी सरासर अंधविश्वास है। आज तक कोई इच्छाधारी नाग-नागिन  नहीं देखे है, सब अफवाहों और टीवी के काल्पनिक धारावाहिक के कारण लोग उसे सही मानने लगते हैं।

लेखक - मनोवैज्ञानिक टिकेश कुमार, अध्यक्ष, एंटी सुपरस्टीशन ऑर्गेनाइजेश (एएसओ)
संदर्भ - 'सर्पविज्ञान' किताब - गजेन्द्र सुरकार

Thursday, 10 August 2023

वास्तु शास्त्र सबसे बड़ा अंधविश्वास


वास्तु शास्त्र एक अंधविश्वास फैलाने वाले शास्त्र के अलावा कुछ भी नहीं है। अभी अधिकतर वेब खबरों और टेलीविजन में सुबह से शाम तक लगभग तीन से चार ऐसी खबरें रहती हैं जिसमें वास्तु शास्त्र के होते हैं, उसमें वास्तु नियम के बारे में बताया रहता है। किस दिशा में बेडरूम हो, कौन सा दिन शुभ होता है, घड़ी किस दिशा में लगाए और कौन सी घड़ी लगाए, रंग क्या होगा। कौन सा पौधा घर और अपने आस-पास नहीं लगाना चाहिए। घर की द्वार किस दिशा में रहना चाहिए? सीढ़ी किस दिशा में बनानी चाहिए, किचन की दिशा, खिड़की की दिशा, सोने की दिशा कैसी होनी चाहिए। ऐसी बहुत से वास्तु नियम दिए रहते हैं एक नियम पर एक खबर रोज देखने को मिलती है।

वास्तु शास्त्र क्या है?

वास्तु शास्त्र हमेशा विवादों में रहा है। वास्तु शास्त्र बिना सिर पैर के एक अवैज्ञानिक शास्त्र है। लेकिन कुछ स्वार्थी लोग इसे शास्त्र कहकर लोगों को डराने का काम करते हैं। उनका मानना है कि वास्तु शास्त्र घर में रहने वालों के स्वास्थ्य और खुशी को बनाए रखने का शास्त्र है। इसमें भी वास्तुशास्त्री का एक मत नहीं है, अलग-अलग वास्तु शास्त्र की किताब में अलग-अलग बातें लिखी है, इससे यह सिद्ध होता है कि वास्तु शास्त्र पूरी तरह से अवैज्ञानिक है।

हर वास्तु नियम अंधविश्वास से परिपूर्ण

जैसे घर में टूटी हुई घड़ी नहीं रखना चाहिए, टूटा व क्रैक आईना घर में नहीं रखना। मेरे घर में एक बड़ा सा आईना है, जिसमें क्रैक है, उसे मैं बचपन से देखता आ रहा हूं, उसी से अपनी शक्ल हमेशा देखता आ रहा हूं और मेरे घर के सभी लोग उसी आईने से बाल बनाते हैं। आज तक कुछ नहीं हुआ। हां बाकी फ्रेश आईने की तलना में इस पर कुछ धुंधला दिखता है, इसका कारण आईने का पुराना होना और फटे हुए क्रैक पर फॅवीकोल लगा है, इसलिए एकदम चमक नहीं दिखता। पुरानी घड़ी भी घर में सालों से लगा है, उसका भी आईने जैसा हाल है, उसका भी शीशा टूटा हुआ है। शीशा टूटे होने के बाद भी बहुत दिनों तक घड़ी चलती रही.. एक दिन बंद हो गया और उसमें मेरी छोटी सी तस्वीर लगी है, इसलिए मैं उसे वही पर रखना उचित समझा। और एक नई घड़ी लेकर दूसरी दीवार पर लगा दी।

वास्तु में दिनों के लेकर शुभ-अशुभ

वास्तु में दिनों को लेकर बहुत शुभ-अशुभ का खेल खेला जाता है। गुरुवार के दिन पोछा नहीं लगाना चाहिए। अगर ऐसा कोई करता है तो बृहस्पति ग्रह का प्रभाव पड़ता है और मनुष्य में नकारात्मक ऊर्जा उतपन्न होता है। गुरुवार के किसी को पैसा नहीं देना चाहिए, मंगलवार को बाल नहीं कटाना चाहिए। गुरुवार और मंगलवार को वास्तु में शुभ दिन माना जाता है। बहुत से घर और कार्यालय जो बहुत तरक्की कर रहे हैं गुरुवार की सुबह से ही सफाई, पोछा कर अपने कार्य में लग जाते हैं। गुरुवार के बहुत से पैसों के लेनदेन होते हैं, बड़ा-बड़ा व्यापार चलता है। मंगलवार के शुभ होता तो हर परीक्षा मंगलवार को होनी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं होता है। शनिवार है सोचकर परीक्षार्थी परीक्षा नहीं देगा तो कैसे पास होगा? कभी ऐसा सुना है मंगलवार को परीक्षा हुई थी, इसलिए अच्छे अंक मिला या बिना पढ़े पास हो गया।

वास्तुशास्त्र में न पड़े

व्यक्ति को अपनी सहूलियत के अनुसार कार्य करना चाहिए, यह भी ध्यान रखना चाहिए कि खुद और आस-पास के लोगों को दिक्कत न हो। घर बनाते समय बहुत से लोग वास्तु के अनुसार दिशा देखकर बनाते हैं, जिससे बहुत से असुविधा का सामना करना पड़ता है। इसीलिए अपने सुविधा के अनुसार घर, सीढ़ी, बेडरुम, किचन, दरवाजा और अपनी जरूरत की सामग्री को बजट और सुविधा के अनुसार लगाएं। अगर वास्तु दिशा के अनुसार घर बना लिए और उस घर में पर्याप्त मात्रा में हवा-धूप नहीं मिल रही और नाली का पानी निकल नहीं पा रहा तो उस घर में व्यक्ति बीमार पड़ेगा ही। इसी कारण अपनी सुविधा को ध्यान में रखते हुए घर, भवन, दुकान का निमार्ण करें। वास्तु शास्त्र में न पड़े।

- मनोवैज्ञानिक टिकेश कुमार, अध्यक्ष, एंटी सुपरस्टीशन ऑर्गेनाजेशन (एएसओ)

Saturday, 5 August 2023

चमत्कार के फेर में लुटा रहे लोग


भारतीय समाज झाड़-फूंक, तंत्र-मंत्र और जादू-टोने के जाल में पूरी तरह से फंसा हुआ है। लोग तांत्रिक के जाल में आसानी से फंसकर अपनी मेहनत से कमाए हुए धन को तांत्रिक (बैगा) और धार्मिक लुटेरे को आसानी से लुटा देते हैं। हर व्यक्ति को चमत्कार चाहिए। जिसका फायदा ओझा-तांत्रिक को मिलता है इसीलिए तांत्रिक चमत्कार दिखाकर लोगों को ठगता है। उस चमत्कार में लोगों को अद्भुत दैवीय शक्ति दिखती है, कुछ लोग तो पाखंडी तांत्रिक को ही भगवान मानने लगते हैं और उसकी जय-जयकार करने लगते हैं। अंधविश्वासी लोग अपने पाखंडी गुरु के विरुद्ध एक शब्द भी नहीं सुनना चाहते। चाहे वह बात कितनी भी सत्य की कसौटी पर खरी उतरे, उस बात को आसानी से टाल देता है और उल्टा कहेंगे कि हमारे धर्म के बारे में कुछ न कहिए।

धर्म के नाम पर लूटना आसान

आज धर्म के नाम पर लूटना इतना सरल है जितना कागज को जलाना। जितने भी तांत्रिक है अपने आप को अल्लाह, भगवान और गॉड के दूत या खुद को भगवान समझता है, इसेके नाम से चमत्कार करता है और आम लोगों को लूटता है। लूट रहा है ये बात जानते हुए भी लोग उसका खुलकर विरोध नहीं कर सकते, क्योंकि धर्म का मामला है, आस्था और श्रद्धा को ठेस नहीं पहुंचना चाहिए सोचकर मुहं बंद कर लेते हैं और धार्मिक अंधविश्वास तेजी से आगे बढ़ता है।

जितने भी धर्म के लोग आज दिख रहे हैं सब इंसानियत के खून करने से नहीं हिचकिचाते हैं, जब भी जरूरत पड़े धर्म की रक्षा के लिए मनुष्य का कत्ल करते आ रहे हैं। यहां पर मुझे महापंडित राहुल सांस्कृत्यायन के कहे शब्द याद आते हैं- "मजहब तो है सिखाता आपस में बैर रखना। भाई को सिखाता भाई का खून पीना।" हिंदुस्तानियों की एकता मजहबों के मेल पर नहीं होगी, बल्कि मजहबों की चिता पर। कौए को धोकर हंस नहीं बनाया जा सकता। मजहबों की बीमारी स्वाभाविक है। उसका, मौत को छोड़कर इलाज नहीं।

क्या मनुष्य से बड़ा धर्म है? धर्म को मनुष्य ने बनाया है या मनुष्य को धर्म ने बनाया? सोचने वाली बात तब होती है जब कट्टरपंथी धर्म रक्षा के नाम पर मनुष्य के कत्ल कर अपने आप को धर्म रक्षक समझता है। धर्म रक्षक नहीं भक्षक है।

चमत्कार में न पड़े

कोई दैवीय शक्ति से चमत्कार नहीं होता है इसके पीछे वैज्ञानिक विधि रहता है या हाथ की सफाई। ऐसे कथित चमत्कारों और पाखंडियों की पोल खोलने का काम हमारा संगठन लगातार कर रहा है। संगठन के कार्यकर्ता लगातार लोगों के बीच जाकर जन-जागरूकता अभियान चला रहे हैं। हमारे साथी कार्यक्रम के दौरान सभी कथित चमत्कार करके दिखाते हैं और यह कैसे होता है उसे भी बताते हैं। जिससे आम जनता पाखंडियों की लूट से बच सकें।

- मनोवैज्ञानिक टिकेश कुमार, अध्यक्ष, एंटी सुपरस्टीशन ऑर्गेनाजेशन (एएसओ)

Wednesday, 2 August 2023

संतान की चाह में अंधविश्वास ने ले ली जान


आज आधुनिक युग में भी लोग अंधविश्वास से जकड़े हुए हैं। इसका ताजा उदाहारण छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के उरला थानांतर्गत ग्राम बरबसपुर से मिला है। ऐसी आए दिन खबरें मिलती है कि फलाना तांत्रिक बाबा ने इलाज के नाम से लूटा या पूजा-पाठ कराने के लिए लाखों रुपए लूट लिए, तो कहीं सर्प कांटने पर इलाज करते-करते रोगी की जान चली जाती है।

संतान की चाह में बैगा (तांत्रिक) के पास गए थे नवदंपति

कोरबा के उरगा थाना अंतर्गत ग्राम बरबसपुर के रामाधार पटेल (28 वर्ष) और सुशीला पटेल (27 वर्ष) शादी के एक साल बाद भी संतान नहीं होने से हताश थे। इसका इलाज भी कराया, लेकिन सफल नहीं हुई तो पति-पत्नी को लगने लगा कि कोई काला जादू-टोना किया है, इसलिए बच्चा नहीं हो रहा है। इसका तोड़ के लिए दोनों तांत्रिक रामलाल यादव के पास चले गए। तांत्रिक झाड़-फूंक करने के बाद पति-पत्नी को पूड़िए में दवा दी जिसे खाने के लिए कहा। पुड़िया खोलकर देखा तो उसमें पान के साथ कुछ जड़ी-बूटी थी, उसे खाते ही दोनों पति-पत्नी की तबीयत बिगड़ने लगी तो अस्पताल ले गया, जिससे पत्नी की मृत्यु हो गई और पति के हालत बिगड़ी हुई है।

जादू-टोने पर आज भी विश्वास

आज भी लोग जादू-टोना, तंत्र-मंत्र में विश्वास कर के अपने रिश्तेदार, भाई-बंधु और आस-पास के लोगों को डायन के नाम से बदनाम करते हैं। जिससे आधुनिक समाज को कलंकित होना पड़ता है। आए दिन जादू-टोना, सैतान और डायन के नाम पर महिलाओं की हत्या की जाती है। सामान्य बीमारी होने पर भी तांत्रिक के पास इलाज कराने जाते हैं, मानसिक बीमारी होने पर तो बहुत बड़ा शैतान या डायन के हाथ समझकर झाड़-फंक और बड़ी से बड़ी पूजा करते हैं। जिससे धन खर्च तो होता ही है, उसके साथ शारिरिक और मानसिक रूप से मरीज को कष्ट झेलना पड़ता है, यहां तक भी मरीज की जान भी चली जाती है।

संतान के लिए दूसरे के बच्चे की बलि

महिला-पुरुष दोनों के संगम से मनुष्य जीवन मिलता है। हर दंपति चाहता है कि उनके गोद में भी बच्चा खेले। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि अंधविश्वास में पड़कर झाड़-फूंक, तंत्र-मंत्र कराकर अपनी जान तो गंवाता ही है, साथ ही आस-पास के लोगों को भी तकलीफ देता है। कई बार तो संतान प्राप्ति के लिए तांत्रिक के कहने से दूसरे के बच्चे को बलि देकर उस निर्दोष मासूम की जान ले ली जाती है। संतान नहीं होने की वजह स्त्री या पुरुष में कोई कमी होती है, इसको दूर करने के लिए विशेषज्ञ डॉक्टरों के पास जाकर इलाज कराना चाहिए।

समाज को अंधविश्वास से मुक्त होना चाहिए

हमारे समाज में बहुत ही अंधविश्वास है। इस अंधविश्वास से निकलने के लिए लोगों को जागरूक होने की जरूरत है, उसके साथ अपने आस-पास के लोगों को भी जागरूक करने की जरूरत है। व्यक्ति में वैज्ञानिक दृष्टिकोण होना चाहिए, बिना तर्क के हवा हवाई बातों में नहीं आना चाहिए। किसी ने कह दिया और उसे मान लेने से भी अंधविश्वास को पनाह मिलता है। अपनी बुद्धि से सोच-समझकर कार्य करना चाहिए। अगर झाड़-फूंक, पूजा-पाठ और तंत्र-मंत्र से किसी के संतान पैदा होता तो बैगा (तांत्रिक) के लिए अलग से पढ़ाई होती, डिग्रियां मिलती और तांत्रिक भी डॉक्टर के स्थान पाता। लेकिन ऐसा नहीं है। कोई जादू-टोना, टोनही (डायन), शैतान, प्रेतात्मा नहीं होते हैं, आज तक किसी ने नहीं देखा है। देखने का दावा करता है वे सब भ्रम के कारण उसे ऐसा लगता है।

- मनोवैज्ञानिक टिकेश कुमार, अध्यक्ष, एंटी सुपरस्टीशन ऑर्गेनाजेशन (एएसओ)

वैज्ञानिक के नाम पर कलंक

 
आज देश में वैज्ञानिक दृष्टीकोण खत्म होने और अंधविश्वास बढ़ने की वजह हमारे देश के कथित वैज्ञानिकों की निम्न सोच है. जिनको विज्ञान भरोसे रहना चाहिए, वे आज पूरी तरह से भगवान भरोसे बैठे हैं. ऐसे में सामान्य लोगों में तार्किक और वैज्ञानिक विचार कौन फैलाएगा. ऐसे कथित वैज्ञानिकों के कारण ही आज लोग पृथ्वी को शेषनाग पर टिकी हुई समझते है और सूर्य को कोई वानर संतरा समझकर निगल गया मानते हैं. वहीं सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण को राहु-केतु द्वारा मुंह में दबाना समझते हैं.

चंद्रयान-3 मिशन के लिए देश के कथित वैज्ञानिकों को अपनी मेहनत पर भरोसा बिलकुल नहीं है, बल्कि उन्हें काल्पनिक ईश्वर पर आस है. लॉन्चिंग से पहले इसरो के वैज्ञानिक पूजा-पाठ करने में जुटे हैं. वैज्ञानिकों की एक टीम आंध्र प्रदेश के तिरूपति वेंकटचलपति मंदिर पूजा-अराधना के लिए पहुंची. अब इन कथित वैज्ञानिकों को जिस समय यान को लेकर तैयारी करनी चाहिए उस समय मंदिर पर माथा टेकने पहुंच गए है. आप ही बताइए परीक्षा के दौरान बच्चे तैयारी नहीं करेंगे और पूजा-पाठ करेंगे तो उनका क्या हाल होगा.

भारतीय संविधान में भी वैज्ञानिक दृष्टीकोण की बात कही गई है, लेकिन आज देश में पूरी तरह से इसके विपरित कार्य हो रहा है. संविधान के मौलिक कर्तव्यों (अनुच्छेद 51ए) के अंतर्गत स्पष्ट लिखा गया है कि प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह ''वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे.'' इसके बावजूद भी भारत देश के कथित वैज्ञानिक वैज्ञानिक दृष्टीकोण का कब्र खोदकर गाड़ने में लगे हुए हैं. यह समाज के लिए बहुत ही शर्मनाक और निंदनीय है.

जिनके कंधों पर वैज्ञानिक दृष्टीकोण की जिम्मेदारी है, जब वहीं वैज्ञानिक दृष्टीहिन हो जाए तो समाज और पिछड़ता जाएगा. लोगों में ज्ञान-विज्ञान का अभाव हो जाएगा. जिससे यहां की जनता पूरी तरह से अंधविश्वास के नशे में चुर हो जाएंगे. इससे देश की तरक्की पूरी तरह से बंद हो जाएगी और लोग भाग्यवादी बनकर चुपचाप बैठ जाएंगे. अगर समाज का विकास करना है तो सभी बुद्धिजीवी लोगों की जिम्मेदारी है कि अंधविश्वास से बचे और दूसरों को बचाए, तभी एक बेहतर समाज का निर्माण होगा.

- गनपत लाल, सांगठनिक सलाहकार, एंटी सुपरस्टीशन ऑर्गेनाइजेशन (एएसओ)

सार्वजनिक जगहों पर अंधविश्वास का नंगा नाच


आज समाज में अंधविश्वास विकराल रूप ले चुका है। ग्रामीण हो या शहरी कोई भी अंधविश्वास से अछूते नहीं है। गली-मोहल्ले, हाट-बाजार, बस, रेल, स्कूल-कॉलेज, टेलीविजन, न्यूज पेपर सभी जगहों पर अंधविश्वास अपना चरण पसार चुका है। लोग अज्ञानतावश अंधविश्वास के जाल में फंस चुके हैं। अज्ञानता से निकलने के लिए अच्छे स्कूल-कॉलेज के साथ अच्छी शिक्षा देने वाले शिक्षक चाहिए। लेकिन यहां तो शिक्षा को बाजार भाव बना कर उसे बोली लगाई जाती है, हर चौक-चौराहे पर ठेले के रूप में स्कूल मिल जाएंगे। जिसमें शिक्षा नाम भर रह जाता है, शिक्षक खुद अंधविश्वासी रहते हैं, खुद पाखंड में पड़े रहे वे दूसरों को क्या ज्ञान देंगे। ऐसे भी आज की शिक्षा प्रणाली में काल्पनिक ग्रन्थों को शामिल करके तर्कशील साहित्य से दूर किया जा रहा है। जिससे आम जनता शिक्षा से दूर रह कर अज्ञानी बने रहें और पाखंडियों की लूट चलती रहे।

रेल में तांत्रिक का पोस्टर

मुझे एक दोस्त ने रेल के अंदर (बैठने के स्थान पर) लगा पोस्टर की फोटो भेजा। जिसमें तांत्रिक रजा बंगाली का काला-जादू, टोना-टोटके, तंत्र-मंत्र के प्रचार और बड़ी से बड़ी समस्याओं के समाधान के लिए सम्पर्क करने के लिए नम्बर भी दिया गया था। जब उस नम्बर से सम्पर्क किया तो फोन उठाने वाले ने अपना परिचय राजस्थान के रहने वाला रजा बंगाली के रूप में दिया। उसने क्या समस्या है पूछा। जब उससे पोस्टर सार्वजनिक जगह पर लगने की बात कही तो, उसने सरकार से मान्यता प्राप्त है कहकर फोन रख दिया।

तांत्रिक की लूट खुलेआम जारी

आज वैज्ञानिक युग में भी अंधविश्वास के नाम पर लूट का बाजार जोरों से खुलेआम क्यों चल रहा है? इसके लिए जिम्मेदार कौन है? सरकार इस ओर ध्यान क्यों नहीं दे रही है? इस पोस्टर को रेलवे विभाग नजरअंदाज क्यों कर रहा है, ऐसे बहुत से सवाल है, जिसका एक ही उत्तर है ज्यादातर लोग अंधविश्वास से जकड़े हुए हैं। देखकर भी अनदेखा कर देता है, इसका फायदा ओझा-तांत्रिक को जाता है। खुलेआम कहीं भी अपना प्रचार सामग्री लगा देता है। इस पोस्टर के जरिए भोली-भाली जनता इसके जाल में आसानी से फंस जाती है और लाखों रुपए लुटा जाती है।

अखबार और टेलीविजन में तांत्रिक का प्रचार

अखबार के पन्नों पर बड़े-बड़ें अक्षरों में तांत्रिक का विज्ञापन आजकल सामान्य हो गया है। चाहे उस अखबार में समाचार रहे या न रहे, लेकिन पाखंडियों के प्रचार का साधन जरूर रहेगा। ऐसा ही टीवी को चालू करते ही ज्योतिष तांत्रिक देखने को मिलता है। जिसमें राशि फल के साथ किसका शुभ, किसका अशुभ होने वाला है, कंडा-ताबीज, किस रंग के कपड़े पहने, ऐसी मूर्खता भरी बातें करने वाले तांत्रिक को दिखाया जाता है।

लोगों को जागरूक होने की जरूरत

तांत्रिक-बाबाओं से बचने के लिए लोगों को खुद समझदार बनने की जरूरत है। ज्योतिष तांत्रिक के किसी भी विज्ञापन के नम्बर पर सम्पर्क न करें। कोई भी तांत्रिक का फोन, एसएमएस आपको आए तो उससे बात न करें। अपनी कोई भी समस्या उससे साझा न करें। अंधविश्वास से सम्बंधित एसएमएस आपको आता है तो उसे नजरअंदाज करे। अंधविश्वास फैलाने वाले व्हाट्सएप ग्रुप से बचे। ज्योतिष के टीवी कार्यक्रम से खुद दूर रहें (अंधविश्वास फैलाने वाला कार्यक्रम न देखे) और अपने बच्चाें को भी अंधविश्वास से सम्बंधित कार्यक्रम से दूर रखें। 

- मनोवैज्ञानिक टिकेश कुमार, अध्यक्ष, एंटी सुपरस्टीशन ऑर्गेनाइजेश (एएसओ)