आज देश में वैज्ञानिक दृष्टीकोण खत्म होने और अंधविश्वास बढ़ने की वजह हमारे देश के कथित वैज्ञानिकों की निम्न सोच है. जिनको विज्ञान भरोसे रहना चाहिए, वे आज पूरी तरह से भगवान भरोसे बैठे हैं. ऐसे में सामान्य लोगों में तार्किक और वैज्ञानिक विचार कौन फैलाएगा. ऐसे कथित वैज्ञानिकों के कारण ही आज लोग पृथ्वी को शेषनाग पर टिकी हुई समझते है और सूर्य को कोई वानर संतरा समझकर निगल गया मानते हैं. वहीं सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण को राहु-केतु द्वारा मुंह में दबाना समझते हैं.
चंद्रयान-3 मिशन के लिए देश के कथित वैज्ञानिकों को अपनी मेहनत पर भरोसा बिलकुल नहीं है, बल्कि उन्हें काल्पनिक ईश्वर पर आस है. लॉन्चिंग से पहले इसरो के वैज्ञानिक पूजा-पाठ करने में जुटे हैं. वैज्ञानिकों की एक टीम आंध्र प्रदेश के तिरूपति वेंकटचलपति मंदिर पूजा-अराधना के लिए पहुंची. अब इन कथित वैज्ञानिकों को जिस समय यान को लेकर तैयारी करनी चाहिए उस समय मंदिर पर माथा टेकने पहुंच गए है. आप ही बताइए परीक्षा के दौरान बच्चे तैयारी नहीं करेंगे और पूजा-पाठ करेंगे तो उनका क्या हाल होगा.
भारतीय संविधान में भी वैज्ञानिक दृष्टीकोण की बात कही गई है, लेकिन आज देश में पूरी तरह से इसके विपरित कार्य हो रहा है. संविधान के मौलिक कर्तव्यों (अनुच्छेद 51ए) के अंतर्गत स्पष्ट लिखा गया है कि प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह ''वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे.'' इसके बावजूद भी भारत देश के कथित वैज्ञानिक वैज्ञानिक दृष्टीकोण का कब्र खोदकर गाड़ने में लगे हुए हैं. यह समाज के लिए बहुत ही शर्मनाक और निंदनीय है.
जिनके कंधों पर वैज्ञानिक दृष्टीकोण की जिम्मेदारी है, जब वहीं वैज्ञानिक दृष्टीहिन हो जाए तो समाज और पिछड़ता जाएगा. लोगों में ज्ञान-विज्ञान का अभाव हो जाएगा. जिससे यहां की जनता पूरी तरह से अंधविश्वास के नशे में चुर हो जाएंगे. इससे देश की तरक्की पूरी तरह से बंद हो जाएगी और लोग भाग्यवादी बनकर चुपचाप बैठ जाएंगे. अगर समाज का विकास करना है तो सभी बुद्धिजीवी लोगों की जिम्मेदारी है कि अंधविश्वास से बचे और दूसरों को बचाए, तभी एक बेहतर समाज का निर्माण होगा.
- गनपत लाल, सांगठनिक सलाहकार, एंटी सुपरस्टीशन ऑर्गेनाइजेशन (एएसओ)
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