Sunday, 18 June 2023

मूल नक्षत्र ज्योतिषियों का धंधा


लोगों को ज्योतिष हमेशा ठगते आया है और लोग बिना सोचे समझे उसकी जाल में फंसकर मेहनत की कमाई को लुटाते आ रहे हैं। इसमें मूल नक्षत्र भी एक ठगने का षड्यंत्र है। बच्चा पैदा होते ही नक्षत्र देखने के लिए किसी ज्योतिष को बुला लाते है और उससे बच्चा किस नक्षत्र में हुआ है उसे देखने को कहते हैं।

क्या कहते हैं ज्योतिष

ज्योतिष के अनुसार नक्षत्र 27 होते हैं, जिसमें 6 मूल नक्षत्र है। नक्षत्र का स्वामी केतु को माना जाता है। आठ वर्ष के बाद मूल नक्षत्र का प्रभाव अपने आप खत्म हो जाता है ऐसा कहा जाता है। मूल नक्षत्र में बच्चा पैदा हुआ है तो उस शिशु को अपने पिता से दूर रखा जाता है, पिता की नजर, छाया शिशु पर नहीं पड़ना चाहिए। अगर पड़ गए तो पिता मर जाएगा या नवजात शिशु की सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। मूल नक्षत्र को 27 दिनों के अंदर में तोड़ना रहता है ऐसा ज्योतिष का कहना है।

ज्योतिष नक्षत्र के नाम पर लूटता है

मूल नक्षत्र तोड़ने के नाम पर ज्योतिष की बहुत से पैसे की कमाई हो जाती है। लोगों को नक्षत्र के नाम पर डराया जाता है जिससे उसका व्यापार चलता रहे। अगर मूल नक्षत्र का प्रभाव होता तो उस समय जन्में सभी बच्चें में इसका प्रभाव देखे जाते, लेकिन ऐसा नहीं होता है। एक हिन्दू के यहां जन्मा शिशु को मूल नक्षत्र का डर रहता है तो दूसरी ओर मुस्लिम या अन्य किसी धर्म में जन्में शिशु को मूल नक्षत्र से कोई लेना-देना नहीं होता है। अगर ग्रह का प्रभाव व्यक्ति पर पड़ता है तो हर धर्म में अलग-अलग प्रभाव कैसे हो सकता है? एक ही होना चाहिए। विज्ञान का नियम हर व्यक्ति के लिए एक ही होता है। किसी से भेदभाव नहीं करता है। हिन्दू है तो उसे कोरोना होगा या मुस्लिम है तो उसे कोरोना नहीं होगा। ऐसे तो नहीं होता है। कोई भी वायरस या रोग कोई भी धर्म और जाति को नहीं देखता है, तो ये नक्षत्र कैसे एक ही धर्म के लोगों के लिए है। 

स्वार्थ के लिए नक्षत्र का खेल

ज्योतिष अपना स्वार्थ के लिए नक्षत्र का खेल खेलता है। कोई भी ग्रह का अगर प्रभाव अच्छा या बुरा पड़ेगा तो सभी पर बराबर पड़ेगा। एक शिशु गरीब के यहां जन्म लिया और उसी समय अमीर के यहां भी शिशु का जन्म हुआ तो क्या दोनों में मूल नक्षत्र पड़ेगा? बिल्कुल नहीं, नक्षत्र का प्रभाव नहीं होता है। यहां पर आर्थिक स्थिति सबसे अधिक मायने रखती है। गरीब के घर में जन्में शिशु की सही देखभाल नहीं हो पाती है, जिससे उस शिशु का सही विकास नहीं हो पाता है। इस वजह से उसे स्वास्थ्य, शिक्षा और बेहतर रोजगार नहीं मिल पाते हैं। उसे हर समय जिंदगी तकलीफ देती है और पढ़ने के समय में रोजगर की तालाश में लगा रहता है। खाने के लिए संघर्ष करता रहता है। 

आर्थिक और सामाजिक स्थिति का प्रभाव

वहीं दूसरी तरफ अमीर के घर में जन्में शिशु का सही समय में सब सुख-सुविधा के कारण शिशु को कोई कष्ट नहीं होता है और वह शिशु को हर चीज, जो वह चाहता है पैसे की बल बूते मिल जाता है। स्वास्थ्य के साथ ही बेहतर शिक्षा मिलने के कारण उसे कोई तकलीफ नहीं होती है। ये सब कारण के पीछे कोई मूल नक्षत्र नहीं होता है, बल्कि परिवार की आर्थिक और सामाजिक स्थिति है. लेकिन लोगों की गरीबी और अज्ञानता का फायदा उठाकर ज्योतिष अपना धंधा चमकता रहता है और अपनी जेब भरता रहता है। कुछ बुरा हो जाने के भय से लोग ज्योतिष के जाल में फंस जाते हैं। हमें चाहिए कि बच्चे की परवरिश, खान-पान, साफ-सफाई और शिक्षा पर ध्यान दें और डर की दुकान चलाने वाले ज्योतिष्यों से दूर रहे तभी हमारी आने वाली पीढ़ी का बेहतर भविष्य होगा।

- मनोवैज्ञानिक टिकेश कुमार, अध्यक्ष, एंटी सुपरस्टीशन ऑर्गेनाइजेशन (एएसओ)

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