इस देश में पाखंडियों की कमी नहीं है। इसलिए ग्रामीण-शहरी, अनपढ़-डिग्रीधारी और गरीब-अमीर सभी अंधविश्वासी हैं। ये लोग सुबह से लेकर शाम तक कुछ न कुछ पाखंड करते रहते हैं। सुबह नहाधोकर जोर-जोर से तंत्र-मंत्र, जाप- ध्यान, ऐसा करते हैं, जिससे पड़ोसी को पता चले कि फला व्यक्ति बहुत धार्मिक है, सुबह से उठ जाता है, एक दिन भी नहीं भूलता है और इससे भी सुकून नहीं मिलता तब पड़ोसी के घर की तरफ मुहं कर पोंगा (लाउडस्पीकर) लगा कर धार्मिक गाने बजाने लगते हैं। जिससे पूरा वातावरण से पाखंड की बू आने लगती है, इतनी गंदगी तो नाली से भी नहीं आती है। इस बदबू से ऐसे पाखंड का वायरस उतपन्न होता है, जिससे आस-पास के घर में रहने वाले कमजोर मन के लोगों को भी पकड़ लेता है। फिर यह वायरस दिनों दिन बढ़ता जाता है, व्यक्ति के लिए प्राणघातक होते जाता है और अंधविश्वास के चक्कर में बहुत से लोग जिंदगी से हाथ धो बैठते हैं। इस वायरस को रोकने के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण जैसी दवाई (सोच) की जरूरत है, हर मोहल्ले में ऐसी दवाई मिलनी ही चाहिए तभी हम इससे बच पाएंगे।
स्वार्थ की उपज है पाखंड
लोग पाखंड क्यों करते हैं? ये बहुत बड़ा सवाल है। व्यक्ति अज्ञानता के कारण इस वायरस का शिकार हो जाता है, ऐसे भी लोग रहते हैं जो अपने आप को बहुत बड़ा नेक आदमी और धार्मिक सिद्ध करने के लिए ये सब दिखावे करते हैं। लेकिन सभी लोग स्वार्थ के लिए पाखंड करते हैं, आर्थिक, शारीरिक और मानसिक लाभ की चाह में ऐसे करते हैं। इन लोगों को लगता है ऐसा करने से चमत्कारी शक्ति मिलेगी या मनोकामना पूरी हो जाएगी। मैं जो कुछ मागूंगा वह सब चीजें मिल जाएंगी। सब पाखंड स्वार्थ के लिए ही किए जाते हैं।
पाखंड फैलाने में पाखंडी धर्म गुरुओं का हाथ
सभी सम्प्रदाय में एक पाखंडी गुरु होता है, जिसमें अलग-अलग पाखंड होते हैं। किसी संप्रदाय में पाखंड के लिए सोमवार को शुभ मानता है तो कोई मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, रविवार ऐसे सातों दिनों में अलग-अलग दिन को मानते रहते हैं। ये सब पाखंडी गुरु की उंगली से चलता है, उसी के अनुसार शुभ-अशुभ का निर्णय होता है। जैसे गुरु कहे वैसा ही पाखंड करना रहता है, नहीं तो घर में अशुभ हो जाएगा यह कहा जाता है। गुरु इस पाखंड और लोगों की मूर्खता का भरपूर फायदा लेता है, मोटी रकम के साथ रहने खाने सब फ्री में मिल जाता है और ऐसे गुरुओं की लूट चलती रहती है। जब तक लोग अज्ञानता के अंधरे में रहेंगे तब तक पाखंडी बाबाओं का मौज ही मौज रहेगा। इसलिए हमेशा पाखंड से बचें और विवेक की बत्ती जलाएं ताकि आप किसी के हाथ की कठपुतली न बनें और बेहतर जीवन जी सकें।
- मनोवैज्ञानिक टिकेश कुमार, अध्यक्ष, एंटी सुपरस्टीशन ऑर्गेनाइजेशन
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