हिंदू धर्म में शादी के लिए भावी वर-वधु की कुंडली मिलाने की आज सामान्य परंपरा बन गई है। कुंडली में 36 गुण होते हैं, जिसमें 18 गुण 50 प्रतिशत गुण मिलना अनिवार्य होता है। अगर नहीं मिलता है, तो रिश्ते से मना कर देता है, चाहे कितना भी बढ़िया घर से रिश्ते हो। ज्यादातर लड़का-लड़की की शादी कुंडली के कारण ही रुक जाती है और वह व्यक्ति कुछ नहीं कर सकता है, अगर करना भी चाहे तो घर वाले उसे बिना कुंडली के शादी के लिए मना कर देते हैं। कुंडली से कोई फायदा नहीं, यह ज्योतिषयों का केवल धंधा है, कुंडली की जगह होने वाला जीवन साथी के परिवारिक पृष्ठभूमि को जाने। लड़का/लड़की में कोई अवगुण है क्या? उसके लिए आस-पास उसके दोस्तों से जानकारी प्राप्त करें। कोई अनुवांशिक बीमारी का शिकार तो नहीं है, उसे ब्लड टेस्ट से जानकर दोनों के टेस्ट को मिलान करें। यानी खुद के लिए और आने वाली पीढ़ी के लिए अनुवांशिक बीमारियों से बचें। बहुत सी जातियों में एक ही जाति में शादी करने के कारण अनुवांशिक बीमारियां जाने का नाम नहीं ले रहा है। जाति को लेकर जितना कट्टरता है, उतना ही उस जाति की अनुवांशिक बीमारियां फैल रही है।
कुंडली मिलाने के बाद घर में अशांति क्यों
ऐसा भी देखने को मिल जायेंगे की कुंडली में 36 गुण मतलब पूरा 100 प्रतिशत मिलने के बावजूद शादी के बाद कुछ ही दिनों में पति/पत्नी की मृत्यु हो जाती है। पति शराबी रहता है या शराबी हो जाता है और आए दिन परिवार में खटपट, मारपीट और लड़ाई होती रहती है। उस समय उस कुंडली मिलाने वाला ज्योतिष को कभी नहीं पूछते ऐसा क्यों हुआ? क्या कुंडली ठीक से नहीं मिलाया था या कुंडली देखते समय अंधे हो गया था? ऐसा प्रश्न कोई उस ज्योतिष से नहीं पूछता। और सब अपना भाग्य को दोष देकर सन्तुष्ट हो जाते हैं। अगर दाम्पत्य जीवन खुशमय बीत रहा हो तो उसके कारण कुंडली को मानता है।
सही गुण को छोड़कर कुंडली के काल्पनिक गुण के शिकार
सही अर्थ में देखा जाए तो कुंडली लोगों को भ्रमित करने का तरीका है, इसमें कुछ गुण नहीं होता है। कोई भी ज्योतिष किसी को बिना देखे परखे उसके गुन को कभी नहीं बता सकता कि उस व्यक्ति में कितना गुण-दोष है। अगर कुंडली से गुण दिखता तो वह पहले खुद का और अपना परिवार का गुण देखता, तो औरों के गुण-दोष देखने से अच्छा होता। कोई भी व्यक्ति के गुण देखने के लिए उसके परिवारिक पृष्ठभूमि, आस-पास का वातावरण और दोस्त कैसे है, उसे जानना होगा। उसके व्यवहार का अध्ययन करना होगा। कैसे व्यवहार करता है, झगड़ालु तो नहीं है, नशे तो नहीं करता होगा, चरित्र तो ठीक है आदि गुण-अवगुण को देखना होगा। ये सारी बाते देखने के बाद भी कुंडली के गुण देखना नहीं भूलते, जिससे बढ़िया रिश्ता से कुंडली में दोष देख कर उस रिश्ता को मना कर देते हैं और कुंडली के काल्पनिक बातों के शिकार हो जाता है। कुछ लोग तो कुंडली को भगवान का लिखा हुआ मानकर कुंडली गुण मिलने के बाद सीधे शादी कर लेता है। रिश्ता कैसा है, उसका व्यवहार क्या है, जानने की कोशिश नहीं करता है, फिर बाद में रोना रोता है, भाग्य को कोषते रहता है।
- मनोवैज्ञानिक टिकेश कुमार, अध्यक्ष, एंटी सुपरस्टीशन ऑर्गेनाइजेशन (एएसओ)
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