बच्चा पैदा नहीं हुआ रहता है और अंधविश्वास चालू हो जाता है। जब बच्चा गर्भ में रहता है तो उसकी मां को नजर न लगे इसके लिए तरह-तरह के टोटके किए जाते हैं। मां और बच्चा स्वस्थ रहे इसके लिए अच्छा खान-पान की जरूरत होती है। हरी-हरी सब्जी, फल और प्रोटीन युक्त खाने की जरूरत होती है, लेकिन यहां इस अवस्था में महिला खुद अंधविश्वास के चक्कर में पड़ी रहती है या घर के लोग अंधविश्वासी है तो उसके आदेश को ठुकरा नहीं सकती है, इसलिए टोटके करती है। समाज पुरुष प्रधान है, यह बात भी सत्य है, लेकिन इसमें अभी मैं नहीं जाऊंगा। महिला पुरुष के आदेश को मानती है, लेकिन ज्यादातर महिलाएं ही अंधविश्वास में पड़ती है, पति अंधविश्वासी नहीं है तब भी पत्नी पति को यह कह कर चुप करा देती है कि तुम कुछ नहीं जानते जी! इस प्रकार महिलाएं बाबाओं के चक्कर में फंस जाती हैं।
बच्चे पैदा होते ही कोई पोंगा पंडित को बुलाया है, फिर क्या! वही मूल-अमूल नक्षत्र और पंचाग जैसे काल्पनिक चीजों पर समय और धन की बर्बादी शुरू हो जाती है। इस नक्षत्र में हुआ तो मूल उस नक्षत्र में हुआ तो अमूल, अजीब-अजीब बातें करके पंडितजी पोंगा बजाना चालू कर देता है। जजमान को डराया जाता है, मूल को नहीं कटाएगा तो बच्चा ज्यादा दिन जिंदा नहीं रहेगा। अगर बच भी गया तो परिवार को चैन से रहने नहीं देगा, ऐसी बहुत सी बातें लगातार बताई जाती है। घर में संतान पैदा होने की खुशी को गम में बदल देता है। सभी लोग बच्चे को लेकर चिंतित हो उठता है और पंडित के पैरों पर गिरकर कहता है- पंडित जी आप किसी भी तरह से इस बालक के मूल को अमूल कर दीजिए।
फिर पंडित जी (मुस्कुराते हुए) ज्यादा कुछ नहीं करना है, (लंबी लिस्ट जजमान के हाथ में देते हुए) ये कुछ पूजा सामग्री लिख दिया हूं। जब इन चीजों की व्यवस्था हो जाए तो सूचित कर देना और चला जाता है।
शिशु की गर्दन पर ताबीज इस प्रकार बांधा जाता है कि उससे बड़े बच्चा अकेले में खेलते हुए उस ताबीज के धागे को पकड़कर खीच दे तो मृत्यु हो जाए। फिर मां-बाप रोते-चिल्लाते भाग्य को दोष देता रह जाएंगे, कुछ नहीं कर सकते। मस्तक में बड़ा सा काला टीका और आंख में काजल इस प्रकार लगाए जाते हैं कि आंख दिखाई ही न पड़े। अच्छा खासा दिखने वाला चेहरा को कौआ जैसे काला बना देता है और कहता है बच्चे को किसी की नजर न लगे। गजब है दोस्तों बच्चे की नजर बंद करके और चेहरा को काला करके कैसी हास्य वाली बातें कही जाती है। किसकी नजर की बात करते हैं? किसकी नजर से बच्चा को बचाया जाता है? घोर आश्चर्य! जिस-जिस की नजर पड़ती है सब अपने ही होते हैं। घर-परिवार, रिश्ते-नाते ही होते हैं तो किसकी नजर लग जाएगी। वैसे कोई बुरी नजर नहीं होती है। यह पूरी तरह से काल्पनिक है और इससे पाखंडियों का धंधा चलता है।
छोटे बच्चें में अधिक टोटके देखने को मिलता है इसके प्रमुख कारण है- बहुत बीमार पड़ना। बच्चे बहुत से बैक्टेरिया और वायरस से नहीं लड़ पते हैं और बार-बार बीमार पड़ जाते हैं। इससे बच्चे के अभिभावक को लगता है कि किसी डायन, बुरी आत्मा, का प्रकोप लग गया है, किसी की बुरी नजर लग गई है, इसलिए बार-बार शिशु को बीमार कर देता है और टोटका को जारी रखता है। इस कार्य में अनपढ़ लोग के साथ डिग्रीधारी लोग भी अछुते नहीं है। समाज में पढ़े-लिखे होने का सम्मान पाने के बावजूद भी ऐसे अंधविश्वास से आज तक ऊबर नहीं पाए हैं। समझदार लोग हर चीजों को समझने का पूर जोर कोशिश कर रहे हैं। कोई तंत्र-मंत्र, बुरी नजर, काला जादू, भूत-प्रेत, डायन कुछ नहीं होता है; ये सब मन का भ्रम है। कुछ भी कथित चमत्कार होता है, वह आपके लिए तब तक चमत्कार है जब तक आप उसके कार्य-कारण को नहीं जानते हैं, जब कार्य के पीछे होने वाला कारण को खोज लेते हैं तो वह चमत्कार नहीं रह जाता है। चमत्कार दिखा-दिखा के ओझा-तांत्रिक बाबा लोगों को डरा-डराकर ठगने का काम करते हैं। आप सतर्क रहिए और शुरक्षित रहिए।
-आपका
मनोवैज्ञानिक टिकेश कुमार, अध्यक्ष, एंटी सुपरस्टीशन ऑर्गेनाइजेशन (एएसओ)
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