Sunday, 26 December 2021

अंधविश्वास उन्मूलन कार्यक्रम और प्रशिक्षण शिविर 4 जनवरी से

रायपुर। लोगों में जागरूकता लाने और तर्कशील विचारों को बढ़ावा देने के लिए एंटी सुपरस्टीशन ऑर्गेनाइजेशन (एएसओ) की ओर से दो दिवसीय अंधविश्वास उन्मूलन कार्यक्रम और प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया जा रहा है। यह कार्यक्रम 04 जनवरी से 05 जनवरी तक किया जाएगा। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता मुंबई से महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति (एमएएनएस) की राज्य प्रधान सचिव सुशिला मुंडे और लेखक प्रो. मच्छिंद्रनाथ मुंडे हैं।

अंधविश्वास उन्मूलन कार्यक्रम और प्रशिक्षण शिविर नवा रायपुर के पास ग्राम बिरबिरा मे होगा। यह कार्यक्रम रोजाना सुबह 9 बजे से शुरू होगा और देर शाम तक चलेगा। एएसओ के अध्यक्ष टिकेश कुमार ने बताया कि समाज में वैज्ञानिक और प्रगतिशील सोच को बढ़ावा देने के लिए दो दिवसीय अंधविश्वास उन्मूलन कार्यक्रम और प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया जा रहा है। पहला सत्र 4 जनवरी को विशेषज्ञों द्वारा मन और मन की बीमारियों के बारे में जानकारी दी जाएगी। साथ ही चमत्कार और बाबागिरी का पर्दाफाश किया जाएगा। इस दौरान दर्शकों के सवालों के जवाब भी दिए जाएंगे।

कुमार ने बताया कि दूसरे सत्र 5 जनवरी को अंधविश्वास और पाखंड के बारे में विस्तार से चर्चा की जाएगी। राशिफल, ज्योतिष, वास्तुशास्त्र और अन्य विषयों पर भी मंथन होगा। इसके बाद अंधविश्वास उन्मूलन की भूमिका, संगठन क्यों और कैसे? विषय पर विचार-विमर्श होगा। फिर कार्यक्रम संपन्न होगा। उन्होंने युवाओं को इस कार्यक्रम में शामिल होने की अपील की है।

Wednesday, 15 December 2021

टिकेश कुमार बने एएसओ के अध्यक्ष, गौरव, जितेंद्र और राजू को भी मिली बड़ी जिम्मेदारी

रायपुर। अंधविश्वास, रूढ़िवाद व तमाम कुरीतियों के खिलाफ आवाज बुलंद करने और बेहतर समाज बनाने के लिए टिकेश कुमार ने एंटी सुपरस्टीशन ऑर्गेनाइजेशन (एएसओ) की स्थापना की। बैठक में सभी की सर्वसम्मति से उन्हें अध्यक्ष निर्वाचित किया गया। गौरव प्रसाद को उपाध्यक्ष बनाया गया। वहीं जितेंद्र को सचिव की जिम्मेदारी दी गई। राजू कुमार को कोषाध्यक्ष बनाया गया। साथ ही वाकेश कुमार को मीडिया सलाहकार और गनपत लाल को सांगठनिक सलाहकार चुने गए।

एएसओ के अध्यक्ष टिकेश कुमार ने कहा कि आज 21वीं सदी में भी समाज में अंधविश्वास, रूढ़िवाद और कई कुरीतियां व्याप्त हैं। ये चीजें आर्थिक, सामाजिक और बौद्धिक विकास में पूरी तरह से बाधा बनीं हुई हैं। आज अंधविश्वास का संक्रमण भयानक रूप ले चुका है। लोग अज्ञानतावश अवैज्ञानिक सोच की ओर बढ़ रहे हैं। तमाम अंधविश्वास को खत्म करने के लिए हमें एकजुट होकर संघर्ष करना होगा, ताकि एक बेहतर समाज का निर्माण कर सके। सभी को खुले दिमाग से सोचने और तर्कसंगत जीवन जीने की जरूरत है, ताकि समाज को रूढ़िवाद और अंधविश्वास के बंधनों से मुक्त किया जा सके।

एएसओ के उपाध्यक्ष गौरव प्रसाद ने कहा कि भारत देश में तर्कवादी समाज सुधारकों की एक लंबी विरासत है, जिन्होंने हमेशा अंधविश्वास के खिलाफ जोरदार आवाज उठाई है। हमारे यहां महामानव गौतम बुद्ध से लेकर शहीद भगत सिंह तक के तार्किक विचारों का अथाह भंडार है। 15वीं सदी में संत कबीर ने भी धार्मिक पाखंड और रूढ़ीवाद के खिलाफ बिगुल फूंका था। छत्तीसगढ़ में गुरू घासीदास ने जाति-धर्म और मूर्ति-पूजा का जबरदस्त खंडन किया। उन्होंने मनुवादियों की चूले हिला दी थी।

एएसओ के कोषाध्यक्ष राजू कुमार ने कहा कि महाराष्ट्र में तर्कवादी लेखक डॉ. नरेंद्र दाभोलकर ने पोंगापंथियों के खिलाफ जबर्दस्त मोर्चा खोला था। दाभोलकर ने सन 1989 में महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति की स्थापना की थी। वे अंधविश्वास उन्मूलन के लिए गठित संगठन के संस्थापक एवं अध्यक्ष थे। पुणे में धर्म के ठेकेदारों ने डॉ. दाभोलकर की 20 अगस्त 2013 को हत्या कर दी गई। अब आज इन सभी समाज सुधारकों के तार्किक विचारों को जनता तक पहुंचाने की जरूरत है।

एएसओ के सचिव जितेंद्र ने कहा कि बेहतर समाज के लिए हमें तमाम महापुरुषों की राह पर चलना होगा। पथभ्रष्ट और शोषण करने वाले हानिकारक अंधविश्वासों और कर्मकांडों का खुलकर विरोध करें। वैज्ञानिक दृष्टिकोण, यथार्थवाद, मानवतावाद और तार्किक सोच को विकसित और प्रचारित करना होगा। आइए प्रगतिशील विचारधाराओं को जन-जन तक पहुंचाकर बेहतर समाज बनाने में अपना बड़ा योगदान दें।

Sunday, 21 November 2021

नींबू-मिर्च लटकाना अंधविश्वास का प्रतीक

एक नींबू के साथ ऊपर और नीचे पांच या सात मिर्च धागे से बंधे बहुत से घर, दुकान व दफ्तर का चौखट पर लटके आपको देखने को मिल ही जाएगा।

नींबू-मिर्च लटकाने वालों का मानना होता है कि नींबू-मिर्च बुरी आत्मा व किसी की बुरी नजर से बचाते हैं। अब आप थोड़ा से तर्क लगाइए क्या कोई बुरी आत्मा या बुरी नजर  है? कोई बुरी आत्मा नहीं होता। बुरी आत्मा होता तो आज तक किसी वैज्ञानिक ने उस आत्मा को खोज निकाल चुके होते।

न कोई बुरी नजर होती है। किसी की भी नजर बुरी नहीं होती हैं। अगर किसी व्यक्ति की नियत चोरी या डाका करना है, तो उसे नींबू-मिर्च से बंधे ठुवे रोक नहीं पाएगा और न ही रोका हैं। आए दिन सुने मकान में चोरी या दुकान से नगदी चोरी के मामले उसी घर और दुकान से सुनने में मिलती है।

इस अंधविश्वास के कारण नींबू-मिर्च की कीमत बढ़ गई हैं। हर रोज नींबू-मिर्च खरीदकर पुराना की जगह पर नया लटकाना। रोज सुबह-सुबह रोड, गली और रास्ते पर सुखा नींबू-मिर्च फेंके देखने को मिल ही जाएंगे। अंधविश्वासी राहगीर इससे बचने के चक्कर में आए दिन दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं। इस महंगाई से लोग खाने के लिए नींबू-मिर्च नहीं खरीद पा रहे, लेकिन अंधविश्वास के लिए अपनी जेब  ढ़ीली कर रहे हैं। साथ ही अंधविश्वासी होने का परिचय दे रहे हैं। 
नींबू लटकाने की शुरुआत एक अंधविश्वासी से हुई थी। अक्सर बिना विवेक के लोग भेड़ धसान चलते हैं। एक कुछ करें तो बिना सोचे-समझे उसके पीछे चलते हैं। 

एक बार एक व्यक्ति बहुत बीमार पड़ता था। तब वह आयुर्वेदिक डॉक्टर के पास गए। तब चिकित्सक ने उसे रोज नींबू-मिर्च खाने की सलाह दी। वह व्यक्ति रोज नींबू-मिर्च खरीदकर खाता और जो बच जाता उसे घर के चौखट पर लटका देता। नींबू से विटामिन सी और मिर्च से विटामिन ए मिलने लगा और वह स्वस्थ हो गया। यह देखकर उसके पड़ोसी भी इसकी नकल करने लगा। वह भी रोज नींबू-मिर्च खरीदकर चौखट से लटकाता। इस प्रकार यह अंधविश्वास का दौर शुरू हुआ। इसलिए किसी भी चीज को अपनी बुद्धि की कसौटी में कसिए फिर वह काम करिए।

- टिकेश कुमार

Wednesday, 3 November 2021

हम पटाखे जरूर फोड़ेंगे

कोई कुछ भी कर ले 
हम पटाखे जरूर फोड़ेंगे
कौन होता है हमें रोकने वाला
कौन होता है हमें टोकने वाला 
हमको क्या करना है कोई मरे चाहे जिए 
हम पटाखे जरूर फोड़ेंगे

हमको महंगाई से क्या लेना-देना
हमारे पास जितने पैसे है 
सब पैसे से खरीदकर फोड़ेंगे
कौन रोकेगा, हम अपने पैसे जलाए या फेंके 
भले हमारे पास खाने के लिए पैसे न हो
हम कंगाल होते तक पटाखे फोड़ेंगे
हम पटाखे जरूर फोड़ेंगे

हमको क्या करना है पर्यावरण से 
हमको क्या करना है वायु प्रदूषण से 
हमको क्या करना है जनता से 
हम घरभर के मिलकर पटाखे फोड़ेंगे 
चाहे हमारे बच्चे की आंख जल जाए 
चाहे हमारे बच्चे के कान जल जाए
चाहे किसी के घर में आग लग जाए 
चाहे कोई तड़प-तड़प कर मर जाए 
हम पटाखे जरूर फोड़ेंगे 
कोई हमें मना किया तो उनका सिर फोड़ेंगे
लेकिन एक नहीं पटाखे हजार फोड़ेंगे
हम पटाखे जरूर फोड़ेंगे 

कौन है सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट
जो प्रदूषण होने की बात कहकर 
पटाखे पर रोक लगाती है
हम किसी कानून को नहीं मानेंगे 
हम किसी नैतिकता को नहीं जानेंगे 
हमको क्या करना है किसी के कान फटे
हमको क्या करना है किसी को सांस लेने में तकलीफ हो 
हमको क्या करना है किसी के दम घुटे
हमको क्या करना है किसी के फेफड़े खराब हो
हमको किसी की तकलीफ में 
बिलकुल तकलीफ नहीं होती 
हम पटाखे जरूर फोड़ेंगे

हम सार्वजनिक जगहों पर निकलकर पटाखे फोड़ेंगे 
चौक-चौराहों और सड़कों पर पटाखे फोड़ेंगे
कोई आने-जाने वाले गाड़ी सवार गिरे या मरे हमको क्या करना 
हमको तो पटाखे की कानफोड़ू आवाज में खूब मजा आता है
हमको तो कोई गिरता और मरता है तो बहुत आनंद आता है
हम फोड़ेंगे पटाखे, मरते दम तक फोड़ेंगे
हम पटाखे जरूर फोड़ेंगे

- गनपत लाल

Monday, 1 November 2021

फोकट के जान हथेली म काबर

हर साल अखबार अउ टीवी म देखे-सुने बर मिलथे कि 'पटाखे के कारखाने में आग लगने से मजदूरों की मौत, पटाखे की चिंगारी से घरों में लगी आग, पटाखे ने दो बच्चों की ली जान' अउ काय-काय खबर पढ़े बर मिलथे। एकर बाद भी मनखेमन न तो जागरूक होय अउ न ही अपन लइकामन ल ये घातक-मारक फटाका ले दूर रखे। भले ही लइका फटाका फोड़त-फोड़त हाथ-पांव अउ कान-नाक ल जला डरे। फटाका के नुकसान हजार हे, लेकिन फायदा कुछ नइ हे। एकर बाद भी लोगन के मोह नइ छूटत हे। वातावरण ह घलो बरबाद होवत हे। मनखे ह ठीक से सांस घलो नइ ले पावत हे। अब लोगन ल खुद अउ पर्यावरण के खातिर जागरूक होय ल परही। तभे बात ह बनही।

महंगाई बाढ़त हे अउ मनखे के पास खाय बर पइसा नइ हे। फटाका फोड़े ले अच्छा हे कोनो गरीब मनखे ल पेटभर खाना खवा देवन। एकर ले मनखे के पेट घलो भर जाही अउ मन ल घलो संतुष्टि मिलही। ज्यादातर देखे जाथे तिहार म कई मनखे ह दारू पीके अबड़ गारी गलौज करथे। घर अउ गांव के माहौल ल खराब करथे। अइसन बिलकुल नइ करना चाही। दरुआमन ल घलो समझना चाही कि घर में खाय बर दाना नइ हे अउ पूरा पइसा ल फिजूल खरचा करत हे। अइसन नइ करके घर के साफ-सफाई, लइकामन के कपड़ा-लत्ता अउ जरुरी जिनिस बर पइसा ल लगाना चाही। अपन परिवार के साथ बने एक जगह बइठ के तिहार मानना चाही अउ सुख-दुख के गोठ ल गोठियाना चाही। एकर ले परिवार के सदस्य के साथ मया बाढ़थे।

देवारी तिहार म तास-जुआ घलो गांव-गांव म होथे। लइका अउ सियान सबो झन रुपया के बाजी लगाथे। ये ह घलो बेकार आदत आय। तिहार म पइसा ल जुआ म नइ उड़ा के जतन के रखना चाही, ताकि समय म काम आवय। सियानमन ल चाही कि वोमन ये बेकार काम ले दुरिया राहय संगे-संग अपन लोग-लइका ल घलो ये गिनहा काम ले दूर रखय। लइका मन ह कोनो चीज ल अपन ले बड़े मनखे ले देख के सीखथे। एकरे सेती छोटे लइकामन ल बने-बने बात बताना चाही अउ खुद बने कारज करना चाही। तभे घर अउ समाज के भलई होही।

एक ठोक बात अउ हर तिहार म देखे ल मिलथे कि मनखे पोंगा (लाउडस्पीकर) बजा-बजा के दिन अउ रात पूरा मोहल्ला के लोगन के कान ल फाड़ डरथे। आजकल डीजे आ गे हे। डीजे म सड़क ल जाम करके भारी भीड़ ह नाचत रहिथे। एकर ले घलो दुर्घटना होय के डर रथे। हर साल मूर्ति विसर्जन के समय गाड़ी ह रउंदत निकल जथे अउ फोकट म मनखे के जान ह चले जाथे। त कहूं उन्मादी भीड़ ह मनखे ल पीट-पीट के मार डारथे।

कभू डीजे के धुन म सड़क म नाचत भीड़ के सेती एम्बुलेंस के गाड़ी ह नइ जा पाय अउ मरीज ह रद्दा म ही दम तोड़ देथे। मूर्ति विसर्जन करत-करत कई झन ह डूब के मर जथे। अइसन घटना हर साल देखे-सुने ल मिलथे फेर हमन कभू नइ चेतन। हर बखत मूर्ति विसर्जन कर-करके पूरा तरिया-नदिया ल पाट डारेन। पानी घलो दूषित होगे। मनखे अउ जीव-जंतु बर अब पीए के पानी के अबड़ समस्या होवत हे।अब हमन ल चाही कि हमर समय, ताकत, दिमाग अउ धन ल घर अउ समाज के विकास के काम म लगावन। अउ कोई भी उछाह ल सादगी पूर्वक मनावन ताकि रंग म भंग मत होय। सब तिहार ल बिना सोरगुल अउ शांतिपूर्वक मनावन अउ पर्यावरण के संगवारी बनन।

- गनपत लाल

Thursday, 14 October 2021

क्या होगा देश का ?

अपने माँ-बाप कोई न पूजे,
पूजे मिट्टी की माता।
घर में मारा-मारी तेल का
मंदिर में तेल के जोत जलाए। 
क्या होगा देश का ?

भूख मरे या कर्ज़ में दबे,
माता की मूर्ति बैठाए।
नौ दिनों तक माता पूजे,
दसवें दिन पत्नी गाली खाए।
क्या होगा देश का ?

मिट्टी की माता पूजने से,
क्या गरीबी दूर होती है देश की,
तो देश में इतने गरीब कहा से आए।
क्या होगा देश का ?

टिकेश कुमार (रचना 2018)

Thursday, 7 October 2021

'राम वन गमन पथ' बीजेपी की राह पर कांग्रेस


छत्तीसगढ़
 में आखिर राम गमन पथ क्यों? केंद्र में बैठी बीजेपी हो या राज्य में हिलती-डुलती कांग्रेस दोनों का पथ राम के नाम पर जनता की कमाई के पैसे को पानी की तरह बहाना हैं. सरकार अखबारों के पन्नो पर बड़े-बड़े अक्षरों में विज्ञापन देकर जनता के पैसे को पूरी तरह से बर्बाद कर रही है.

आदिवासी और छत्तीसगढ़ के हितैषी होने का ढोंग करने वाले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल यहां की आदिवासी संस्कृति को हमेशा रौंदने का काम किया है. कांग्रेस की सरकार रामायण कार्यक्रम, कौशिल्या मंदिर और राम गमन पथ के लिए सैकड़ो करोड़ रुपए बर्बाद कर रही है. राम के प्रति इतनी भक्ति है तो भक्त होने का ढोंग करने वाले अपने घर के पैसे से अपनी जमीन पर मंदिर क्यों नहीं बनाते. जनता के पैसे और सरकारी जमीन पर धार्मिक कर्म क्यों?

भूपेश बघेल अपने को किसानों के हितैषी होने का ढिंढोरा पिटते हैं, लेकिन यहां के किसानों और आदिवासियों को उनका सही हक दिलाने की जगह आरएसएस के एजेंडे को लागू करने में लगे हुए हैं. छत्तीसगढ़ के बस्तर में आदिवासियों की गुड़ी को तोड़कर राम वन गमन पथ बनाया जा रहा है. सरकार आदिवासियों की संस्कृति और पहचान पर बुलडोजर चलाने का काम कर रही है.

छत्तीसगढ़ में जाति और धर्म के नाम पर कभी लड़ाई नहीं हो रही थी, लेकिन अब यहां लगातार अल्पसंख्यकों पर हमले हो रहे हैं. पिछले महीने छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के पुरानी बस्ती थाने के अंदर दक्षिणपंथी हिंदू भीड़ ने एक पादरी की जूते-चप्पल से पिटाई कर दी. लेकिन पुलिस मूकदर्शक बने देखती रही. कवर्धा में मुस्लिम समुदायों पर रोज हमले हो रहे हैं. सोशल मीडिया पर कई वीडियो वायरल हो रहे हैं, लेकिन सरकार इसे रोकने पर पूरी तरह से नाकाम हो गई है. अब यह नफरत की आग प्रदेशभर में फैले इससे पहले सरकार को कोई ठोस कदम उठाना होगा.

वहीं दूसरी तरफ बीजेपी के नेता छत्तीसगढ़ को धर्म के नाम पर बांटने और माहौल खराब कर अपनी राजनितिक रोटी सेंकने में लगी हुई है. भाजपा की सरकार हमेशा किसानों और मजदूरों की उपेक्षा करती आ रही है. अपनी ओझी मानसिकता की वजह से यहां की भोली-भाली जनता को जाति-धर्म के मुद्दे में उलझाकर मूलभूत समस्या से दूर रख रही है. अब यहां के लोगों को समझना है कि हमें मोहब्बत की राह पर चलना है या नफरत के पथ पर.

- टिकेश कुमार

Sunday, 12 September 2021

इससे बड़ी उल्टी कल्पना और असंगत बातें कुछ नहीं

कुछ समय पहले प्रधानमंत्री ने अपने एक संबोधन में गणेश के गजमुख और शरीर की कथा को अंग प्रत्यारोपण का प्राचीन उदाहरण बताया था। क्या वास्तव में ऐसा हो सकता है ? यह सोचने की बात है। आज के अाधुनिक और वैज्ञानिक युग में हम काल्पनिक और असंगत बातों पर विश्वास कर सकते हैं ? चलिए आज विचार करते है गणेश कौन है ? क्या गणेश शिवजी और पार्वती का पुत्र है ? बिलकुल नहीं क्योंकि कहा जाता है कि पार्वती ने अपनी रक्षा के लिए शरीर की मैल से गणेश की रचना की। यह बात तो बड़ी हास्यास्पद है। क्या कोई बच्चा का जन्म बिना गर्भधारण के हो सकता है ? अज्ञान भरी प्रकृति विरूद्ध बातों का इतना अधिक प्रचार लगातार किया गया कि लोगों की सोचने की शक्ति ही समाप्त हो गई। जब पार्वती ने गणेश की रचना की उस समय उनका मुख सामान्य था। माता पार्वती स्नानागार में नहा रही थी तब गणेश को बाहर पहरेदारी का आदेश दिया। पार्वती ने कहा कि जब तक वह स्नान कर रही हैं तब तक के लिए घर में प्रवेश न करने दे। तभी द्वार पर भगवान शंकर आए और बोले यह मेरा घर है मुझे प्रवेश करने दो। गणेश के रोकने पर शिवजी ने क्रोध में अपने लड़के का सिर काट दिया।
जब पार्वती रोई तो उन्होंने एक हाथी के बच्चे का सिर काटकर उसे बच्चे के कंधों पर रखकर जोड़ दिया और वह बच्चा जिंदा हो कर गणेश कहलाए। उल्टी कल्पना की हद होती है। इस बात को जानने वाला व्यक्ति जब तक एकदम विवेक बुद्धि से शून्य न हो तब तक इस प्रकार की असंगत बात स्वीकार ही नहीं कर सकता। किसी भी काल में हाथी और मनुष्य के शरीर में अंतर कदाचित वैसा ही रहा है जैसा की आज है। अब किसी के मस्तिष्क में कैसे घुस सकती है कि जब बालक के दोनों कंधे हाथी के सिर के अंदर आसानी से चले जाते हैं तब हाथी का सिर उस बालक के कंधों के ऊपर कैसे टिका रह गया ? क्या बालक हाथी के अंदर नहीं समा जाता ? तो बालक के सिर के स्थान पर हाथी का सिर चिपका कैसे और जब चिपका ही नहीं तो जुड़ा कैसे ? दूसरा सवाल है कि हाथी की खाल व मांस का मेल आदमी के मांस व खाल का नहीं होता, हाथी से मनुष्य के किसी अंग का जोड़ना असंभव है। ऐसी प्रकृति विरूद्ध बात संभव करने की क्षमता किसी में नहीं। इतना ही नहीं विशालकाय गणेश जी की सवारी चूहा को बताया जाता है। जरा सोचिए इतना भारी-भरकम शरीर वाला आदमी चूहा पर बैठेंगे तो क्या होगा ? गणेश और उनका जन्म ही पूरी तरह से काल्पनिक है। क्या कोई शरीर के पसीने या मैल से बच्चा पैदा हो सकता है ? वह बच्चा पैदा होते ही इतना बड़ा हो जाता है कि पहरेदारी करने लगे ? क्या कोई इंसान के चार हाथ हो सकता है ? किसी आदमी का सिर काटकर हाथी का सिर जोड़ पाना संभव है ? अगर जुड़ भी गया तो जैसा गणेश जी की मूर्ति या फोटाे में जो रूप दिखाया जाता है वैसा बिलकुल नहीं होगा। हाथी का सिर बड़ा रहेगा और पूरा रंग काला रहेगा। मनुष्य के कटे सिर पर जब हाथी को जोड़ा जाएगा तो उनकी आंखे और मुख आसमान को देखते हुए रहेगा न की सामने।
खैर यह काल्पनिक बातों को छोड़िए आज गणेश जी के नाम पर जो पर्यावरण के साथ खिलवाड़ हो रहा है वह कितना जायज है ? हर साल करोड़ों की तदाद में जगह-जगह बड़ी-बड़ी मूर्तियां स्थापित की जाती है। ये मूर्ति प्लास्टर आफ पेरिस और खतरनाक रंगों से बनी होती है, जिसे तालाब, नदी, नाले और अन्य जल स्त्रोतों में विसर्जन करते हैं। क्या इससे हम नदी, तालाब, नाले का पानी को प्रदूषित नहीं कर रहे है ? जगह-जगह मूर्ति स्थापना के नाम पर सड़क को घेरकर आने-जाने वालों को परेशान नहीं कर रहे है ? भारी आवाज में लाउंड स्पीकर बजाकर क्या स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे और हास्पिटल में जिंदगी और मौत के बीच लड़ रहे मरीजों को परेशान नहीं कर रहे हैं ? क्या इस मूर्ति से किसी व्यक्ति या जीव को कोई लाभ है ?

- गनपत लाल

Tuesday, 24 August 2021

हिंदू कौन है ?

धर्म की राजनीति करने वालों ने,
देश के भोले-भाले लोगों के मन में,
धर्म के नाम पर नफरत करना सिखाया 
समाज में धर्म के जहर फैलाया
लोगों को धर्म के जहर का घूंट पिलाया
हिंदू-मुस्लिम के नाम से लड़ाया
 
पांच प्रतिशत मनुवादी हिंदू,
ओबीसी, एसटी, एससी को हिंदू बताया
वोटबैंक के लिए लोगों को हिंदू बताया
कौन कहता है ओबीसी हिंदू है?
कौन कहता है एसटी हिंदू है?
कौन कहता है एससी हिंदू है?

इतिहास गवाह है
हमें जबर्दस्ती हिंदू बताया गया है 
हमें हिंदू धर्म देकर नीची जाति बताई गई
चार वर्ण में हमें शूद्र नीच बताया गया हैं
और हम पर हिंदू के नाम पर शोषण किया
आर्य (ब्राम्हण) ने हमें भाई बताकर ठगा हैं

आर्य कौन है?
आर्य भी विदेशी हैं, ईरानी हैं,
आर्य सबसे पहले भारत में 
मूलनिवासी को खदेड़ कर बसा
जिसे अब ब्राम्हण कहते हैं

हमारे हाथ में मनुस्मृति देकर
हमें भगवान की पूजा करने को कहा
और हम पूजा-पाठ में मस्त थे
ये लोग हमारी जमीन छीन ली
क्या अब भी हम हिंदू हैं?

- टिकेश कुमार

जनता होवत हे दारू म बर्बाद

दारू ल बंद कर देतेव ग सरकार
जनता होवत हे दारू म बर्बाद।
दिनभर हटर-हटर मेहनत करथे
संझा होते साथ दारू भट्टी जाथे।

पिथे ताहन नसा के भूत चढ़ जाथे
घर के कपाट ल गारी देके खटखटाथे
डउकी निकलथे त बाजा कस बजाथे
फेर घर म कूद-कूद के लड़ई मचाथे।

कतेक मनखे के घर-द्वार छुटगे
कतेक घर दारू म जलगे
कतेक खेत दारू म बिकगे
कतेक मनखे अपराधी बनगे।

दारू के सेती घर बिगड़गे
दारू के सेती गांव बिगड़गे
दारू के सेती राज-देस सड़गे।

दारू ले नेता अउ चमचा बनगे
दारू ले राजनीति बिगड़गे
दारू म मतदाता बिकगे
फेर बिकगे पूरा देस
अब तो बंद कर देतेव ग सरकार
जनता होवत हे दारू म बर्बाद।

- टिकेश कुमार, रायपुर

नई सुबह पुकार रही

सत्ता के लिए
जनता को धर्म के नाम पर लड़ाकर
खुद कुर्सी पर बैठ गया
सत्ता की कुर्सी ऐसी है कि 
बैठते ही चुम्बक की तरह चिपक जाते हैं

चुनाव आते ही
नेताओं पर धर्म का रंग चढ़ जाते हैं
राम के नाम पर
मंदिर के निर्माण पर
जात-धर्म के नाम पर
वोट मांगने लगते हैं

स्वास्थ्य,शिक्षा, सुरक्षा व रोजगार
जैसी मूलभूत आवश्यकता को
तिलांजलि देकर
हिन्दू के नाम पर
चुनाव जीतकर
पूंजीपतियों की सेवा में लग जाते हैं

जनता से अपील हैं
कब तक धर्म की काली रात में
रहोगें
कब तक धर्म की गहरी नींद में
सोएंगे
उठो मेरे योद्धाओं
नई सुबह हमें पुकार रही हैं
उठो मेरे वीरों
नई सुबह की रोशनी जगा रही हैं।

-टिकेश कुमार

नास्तिक

मनुष्य जन्म से नास्तिक होता हैं।
पैदा होने के बाद 
उसके वातावरण जैसा होता हैं, 
वैसे ही बन जाते हैं।

जो व्यक्ति विज्ञान को मानते हैं,
उसके बच्चे नास्तिक बन जाते हैं।

जिस परिवार में अंधविश्वास 
और धार्मिक पाखंड है,
उस परिवार के बच्चे 
आस्तिक बन जाते हैं।

कुछ बच्चे ऐसे भी होते हैं,
जो आस्तिक वातावरण में 
पैदा होने के बाद भी 
नास्तिक बन जाते हैं।
इसका कारण है, 
ये वातावरण से संघर्ष करते हैं,
वैज्ञानिक तर्क से अध्ययन करते हैं 
और विवेक से सोचते हैं।

-टिकेश कुमार

लड़ाई में साथ दें

फूल- जल, जंगल और जमीन
पौधे - मूलनिवासी, आदिवासी और जनता
कांटे - नक्सली (माओवादी)
फूल को तोड़ने वाली- सरकार
पौधों और कांटों को नष्ट करके 
फूलों पर कब्जा करने वाला - पूंजीपति।

सरकार फूलों को तोड़कर 
पूंजीपतियों को देना चाहती है
पौधे फूलों को छोड़ना नहीं चाहते,
इसलिए सरकार से लड़ने के लिए तैयार हैं।

कांटे फूल की हिफाजत करते हैं,
कभी-कभी पौधों को भी चुभ जाते हैं
आज फूल और पौधे बचे हैं 
उसका मुख्य कारण कांटे हैं।

पूंजीपति चाहते हैं, 
फूल उसके पास हो
जिससे फूलों का मीठा रस 
पीकर पले-बढ़े
पूंजीपति के इशारे पर 
सरकार बार-बार फूलों के लिए
पौधों पर हमला करती हैं
लेकिन कांटे बीच में आकर 
रास्ता रोक देते हैं।

एक ओर सरकार 
पौधों की रक्षा करने का ढोंग करती है,
दूसरी ओर सैनिक कैंप लगाकर 
पौधों के ऊपर अत्याचार करती है।

कांटों को खत्म करने के नाम पर
सरकार अरबों रुपए खर्च करती हैं
कांटे को खत्म करते-करते 
कहीं पौधों को ही 
जड़ से खत्म न कर बैठे।

हम सब को चाहिए कि फूलों को
पूंजीपति के हाथों में जाने से रोके
फूलों की हिफाजत करें, 
पौधों की इस लड़ाई में साथ दें।

- टिकेश कुमार

भारत के प्रमुख नास्तिक

भारत के प्रमुख नास्तिक

1. महात्मा गौतम बुद्ध

2. तीर्थकर महावीर

3. अजित केशकम्बल

4. धर्मकीर्ति

5. एच.एल.बी. डेरोजियो

6. ज्योतिबा फुले

7. राधामोहन गोकुलजी

8. स्वामी अछूतानंद 

9. पेरियार ई.वी. रामासामी

10. प्रेमचंद

11. लाला हरदयाल

12. मानवेन्द्र नाथ रॉय

13. स्वामी सहजानंद सरस्वती

14. जवाहर लाल नेहरू 

15. भीमराव आंबेडकर

16. जे. बी. एस. हाल्डेन

17. राहुल सांकृत्यायन

18. गुरबक्श सिंह 'प्रीत लड़ी

19. अब्राहम टी. कोवूर

20. के. शिवराम कारंत

21. गोपारातू रामचंद्र गोरा

22. शहीद भगत सिंह

23. दामोदर धर्मानंद कोशाम्बी 

24. मख्दूम मोहियुद्दीन

25. ई.एम.एस. नंबूदिरीपाद

26. विट्ठल महादेव तारकुंडे

27. महाकवि श्री श्री

28. डॉ. राममनोहर लोहिया

29. एस चन्द्रशेखर 

30. नागार्जुन

31. केदारनाथ अग्रवाल

32. फैज अहमद फैज

33. ललई सिंह यादव 

34. रामविलास शर्मा

35. सरस्वती गोरा

36. हंसराज रहबर

37. बलराज साहनी

38. अली सरदार जाफरी

39. ज्योति बसु

40. लक्ष्मी स्वामिनाथन सहगल

41. बाबा आम्टे

42. खुशवंत सिंह

43. हरकिशन सिंह सुरजीत

44. गजानन माधव मुक्तिबोध

45. शिवदान सिंह चौहान

46. देवीप्रसाद चटोपाध्याय

47. ए.बी. शाह

48. शिबनरायन रे

49. साहिर लुधियानवी

50. भारतरत्न सत्यजित रॉय

51. मधु लिमये

52. रांगेय राघव

53. रामस्वरूप वर्मा

54. डॉ. दत्तात्रेय धोंडोपंत 

55. अबू अब्राहम 

56. आर. पी. सराफ

57. महाश्वेता देवी

58. डॉ. मस्तराम कपूर

59. राही मासूम रजा

60. डॉ. श्रीराम लागू

61. विजय तेंदूकर

62. डॉ. पुष्प मित्र भार्गव

63. सच्चिदानंद सिन्हा

64. किशन पटनायक

65. बासव प्रेमानंद 

66. गीतेश शर्मा

67. अमर्त्य सेन

68. डॉ. के. वीरामणि 

69. मनिशंकर अय्यर

70. स्वामिनाथन अय्यर

71. शंकर गुहा नियोगी 

72. हमीद दलवाई

73. जावेद अख्तर

74. डॉ. नरेंद्र दाभोलकर

75. माणिक सरकार

76. विनायक सेन

77. कमल हासन

78 अरुंधती रॉय 

79. रामगोपाल वर्मा

80. तसलीमा नसरीन

Tuesday, 22 June 2021

आरंग क्षेत्र से एम्स को पहला देहदान

रायपुर। आरंग के ग्राम बिरबिरा निवासी मेहत्तरू साहू (94) का निधन रविवार 3 नवम्बर 2019 को सुबह 8 बजे हो गया। उन्होंने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स को देहदान की घोषणा इसी साल 27 फरवरी 2019 को कर चुके थे। उनकी इच्छानुसार उनके बेटे मोतीलाल साहू ने 3 नवंबर को देहदान कराया। एम्स में आरंग क्षेत्र का यह पहला देहदान है। ग्रामीणों के बीच मेहत्तरू साहू ने रूढ़ीवादी सोच को ठुकराते हुए एक बेहतर कार्य किया। परिजनों की सहमति पर उनका पार्थिव शरीर लेकर एम्स के शरीर रचना विभाग के कर्मचारी राम भुवन पटेल रविवार सुबह रायपुर एम्स पहुंचे। मरने के बाद भी मेहत्तरू साहू का पार्थिव शरीर चिकित्सिा विज्ञान के क्षेत्र में देश के लिए काम आएंगे। मेहत्तरू साहू की बहुत इच्छा थी कि देहांत के बाद उनका शरीर चिकित्सालय में दिया जाए। वे फुलसिंग साहू के भाई, मोती लाल के पिताजी, अनुसुइया के ससुर और कैलाश कुमार, पत्रकार गनपत, टिकेश्वर के दादाजी थे। 

Monday, 10 May 2021

कोरोना ले जियादा लाकडाउन म जावत हे मनखे के जान

जबले कोरोना आए हे, तब ले मनखे के जीना हराम होगे हे. सुख चैन ह छीन गे हे. बिहिनिया अखबार ल खोलबे त कोरोना, मोबइल म कोनो ल फोन करबे त कहिथे कोरोना, टीवी ल चालू करबे त कोरोना, रेडियो ल सुनबे त कोरोना, सोसल मिडिया म कोरोना, बस कोरोना-कोरोना छाए हे. भइगे जउन मेर देखबे-सुनबे कोरोना के गोठ चलत हे. लइका से लेके सियान तक सब कोरोना के मारे परसान हे. कोरोना ले जियादा लाकडाउन ह जिवलेवा होगे हे. कोरोना के समय साल भर म तालाबंदी के चक्कर म करोड़ों मनखे के रोजगार छीन गे.

देस के ज्यादातर राज म तालाबंदी कर देहे. लॉकडाउन के दौरान लाखों मनखे ल अपन नौकरी ले हाथ धोय बर पड़ीस. ये साल अप्रैल म 70 लाख ले जियादा लोगन के नौकरी ह छूट गे. ये मै नइ काहत हंव रिसर्च फर्म सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी ह काहत हे.  एकर सेती देस म बेरोजगारी दर बढ़ के 7.97 फीसदी होगे हे. पहली मार्च म 6.5 फीसदी रहिस. अइसने पूरा कोरोना काल के बात करबे त करोड़ों मनखे के नौकरी ह छूट गे. कतको ह ये दुख ल नइ सह सकिस त आत्महत्या करके मरगे. कतको के भूख म जीव जावत हे. कतको मनखे के इलाज के अभाव म जीव छूटत हे. देस भर म हाहाकार माचे हे. 

कोरोना ले बाचे बर सरकार अस्पताल अउ स्वास्थ सुविधा ल बढ़ाय बर छोड़ के लॉकडाउन ल लगातार बढ़ावत हे. अउ काहत हे कि घर ले कोनो बहिर मत निकलव. घर म राहव स्वस्थ अउ सुरक्षित राहव. अरे भईया ये सरकार ल कोन समझाय मनखे घर म रही त खाही का ला. बिना खाय कुपोसन अउ भूख म लोगन ह मरत हे. नवा-नवा बीमारी ह मनखे ल पकड़त हे. फेर का करबे कोरोना के चक्कर म ओपीडी ल बंद कर दे हे. कोरोना के सेती दूसर बीमारी के इलाज नइ होवत हे. तालाबंदी के सेती बस अउ दूसर यातायात के साधन ल बंद कर दे हे. मनखे बीमार पड़त हे त ओकर प्राण घर म छुट जावत हे अस्पताल नइ आ पावत हे. 

सबले ज्यादा रोज के दिहाड़ी करइया गरीब मनखे ह परेसान हे. रोजी-रोटी बिना बिचारामन तरसत हे. घर म खाय बर नइ हे. अपन अउ अपन लइका के पेट ल भर नइ पावत हे. मजदूरी करइयामन रोज पूछथे कब लाकडाउन खुलही त कब काम म जातेन. रो-रो के दिन ल काटत हे. सोच-सोच के बिचारामन ल नींद नइ आवत हे. इकर कोनो देखइया नइ हे. कोनो एकर दरद ल समझइया नइ हे. केंद्र अउ राज सरकार ह लाकडाउन-लाकडाउन खेलत हे. आम जनता के जीव ह रोज जावत हे. काही बीमारी होवत हे त पहली कोरोना के जांच कराय ल काहत हे, तब तक मनखे के जीव ह छूट जावत हे. 

देस भर म अफरा-तफरी मचे हे. मरीज बर अस्पताल नइ हे. अस्पतला हे त खटिया नइ हे. खटिया हे त डॉक्टर नइ हे. डॉक्टर हे त ऑक्सीजन नई हे. दवई अउ इंजेक्शन नइ हे. अउ कतेक ल लमाबे. मरीज के जान ह अस्पताल के अव्यवस्था के सेती जावत हे. कोरोना के आड़ म गोली-दवई के कालाबाजारी होवत हे. सासन-प्रसाशन अस्पताल के अव्यवस्था ल सुधारे बर अउ कालाबाजारी ल रोके म लाचार साबित होवत हे. ठीक से अस्पताल अउ स्वास्थ बेवस्था नइ कर पावत हे. जनता के जीव ह बदइन्तजामी म जावत हे. मनखे के लास ल जलाय बर लकड़ी नइ हे. दफनाय बर जमीन नइ हे.

चारो मुड़ा रोहा-राही मचे हे. फेर सरकार ल कोनो संसो नइ हे. इहा के नेतामन ल कइ राज के चुनाव के रैली-सभा ले फुरसत नइ मिलिस. अब चुनाव होइस त समीक्षा म जुटे हे. हारेन त काबर हारेन. फेर अपन जनता के बिलकुल ख्याल नइ हे. चुनाव ले खाली होईस त अब लाकडाउन-लाकडाउन चिल्लावत हे. ये तो अइसे होगे जइसे बिलइ ह सौ मुसवा ल खाके हज जाथे. लाखो के भीड़ म सामिल होके आज जनता ल काहत हे घर म राहव अउ सोसल डिस्टेंसिंग के पालन करव. वाह रे सरकार तोर पार ल कोई नइ पाय. बली के बकरी गरीब मनखे ह बनथे. बाकी तो नेतामन आनी-बानी के गोठियावत हे अउ बकबकावत हे.

गनपत लाल साहू, रायपुर

Sunday, 7 March 2021

तिहार के नांव म झन होय जल-जंगल के नास

होरी तिहार ल परेम, भाईचारा अउ मेलजोल के तिहार कहे जाथे। फेर का करबे अब तिहार के रंग-रूप ह बिगड़त जावत हे। मनखे ह ए तिहार ल दारू, गांजा अउ भांग के बना लेहे। त दूसर डाहर हर साल तिहार के नाम म कतको पेड़मन के बलि चड़हत जावत हे अउ पीये बर पानी नइ हे फेर रंग घोर के रिकोवत हन। एक डाहर परियावरन ल बचाय बर लकड़ी के चूल्हा नइ जलाय बर काहत हे त दूसर डाहर मनखे ह आसथा के नांव म भारी संख्या म पेड़ ल काट के जंगल के नास करत हे। एक डाहर पानी बचाय के आंदोलन चलत हे त दूसर डाहर तिहार के नांव म करोड़ो लीटर पानी ल फोकट म उलचत हे। ए ह गुने के गोठ आय। 
का कोनो माइलोगिन ल जला के जसन मनाना उचित हे। हमर देस के संसकिरिति के रग-रग म मया-दुलार समाय हे। फेर अइसन काकरो मउत म उच्छाह मनाना कतेक जायज हे। भारी संख्या म लकड़ी ल नइ जला के अपन आस-पास पड़े कचरा ल सकेल के जलाना चाही। ए दिन कसम खाना चाही कि सबो बुराई ल तियाग के भाईचारा, सदभावना अउ परेम ल अपनाबो। 
देस भर म परंपरा के नांव म परियावरन के साथ खेलवाड़ होवत हे। अपन आप ल जागरूक कहइया मनखे ह घलो ए दिन होलिका दहन बर जंगल अउ दूसर जगह ले लकड़ी सकेल के जलाथे। आज धीरे-धीरे जंगल के नास होवत हे। एकर ले कई परकार के जीव-जंतु नंदावत घलो हे। पेड़-पौधा के हरियाली के नामो-निसान मेटावत हे। फेर हमन काबर परियावरन अउ खुद के नुकसान करे म अड़े हाबन। गांव हो या सहर सबो जगह होली के दहन करके खुसी मनाथन। एकर बर कई पेड़मन के बलि देवा जथे। लकड़ी के जले ले हवा ह दूसित हो जाथे। एकर ले मनखे ल सांस ले म बड़ दिक्कत जाथे अउ फेफड़ा ले संबंधित कई बीमारी घलो हो जाथे। उहीं जले राख अउ लकड़ी ह तरिया-नदिया के पानी ल खराब कर देथे। 
एक बात अउ समझ नइ आय कि हमन 8 मार्च के बड़ जोरसोर ले महिला दिवस मनाथन अउ माइलोगिनमन के सम्मान करथन। ओकर बाद मार्च में ही एक महिला होलिका ल जला के खुसी मनाथन। ये कइसन समाज आय। ऐकर ले हमर अवइया पीढ़ी ल महिला के परति नफरत करे के सीख देवत हन। हमन ल ए जुन्ना रूढ़ी-परंपरा ल छोड़ के परियावरन अउ समाज ल बचाय के कसम खाना चाही। अब होलिका दहन बंद करके होलिका चमन के नांव ले जगह-जगह पेड़ लगावन अउ महिलामन के परति परेम के संदेस देवत हरियाली फैलावन। अइसन होतीस त कतेक सुघ्घर लागतीस। 

गनपत लाल, रायपुर

Sunday, 7 February 2021

अपन हक बर लड़इया किसानमन ल जोहार

जबले केंद्र सरकार ह तीन ठोक कृषि कानून ला हे तब ले देस भर म ए कानून के खिलाफ आंदोलन चलत हे। किसान मन के आंदोलन ह अब जन आंदोलन बन गे हे। अब ए आंदोलन सिरिफ किसान के नोहे बल्कि मजदूर, नौजवान, विद्यार्थी अउ सब झन ए आंदोलन के समर्थन म बड़चड़ के हिस्सा लेवत हे। फेर ये आंदोलन ल बदनाम करे बर सरकार अउ गोदी मीडिया ह अपन पूरा ताकत ल लगा देहे। कतको बदनाम करे के उदिम करत हे, फेर सफल नइ हो पावत हे। किसानमन करिया कानून ल वापस कराय बर अउ देस भर म समर्थन मूल्य लागू करे के मांग ल लेके भारी जाड़ म दिल्ली के सीमा म डटे हाबय। आंदोलन म दू सौ ले ज्यादा किसान मन सहीद घलो होगे फेर सरकार के आंखी नइ खुलत हे। न तो सरकार ल किसान के पीरा ह समझ आवत हे। आंखी कान ल बंद करके घमंड म चूर सरकार अब ये कानून ल लागू करे म अड़े हे। भले कतको किसान मर जाए। भले देस बरबाद हो जाए। 
अब हमन बात करबो ये कानून काय आय जेकर देस भर म भारी विरोध होवत हे। पहला कानून 'कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य विधेयक 2020' आय। ए कानून म सरकार ह काहत हे कि किसान ह अपन उपज के मंडी ले बाहिर बजार म बेच सकथे। अब सवाल ये हे कि का खुला बजार म किसान मन ल ओकर उपज के सही दाम मिल पाही। अभी भी तो सरकार ह पूरा धान ल नइ खरीद सकत हे अउ किसान मन ह कोचिया के हाथ म बेचत हे। का सही दाम कोचिया ह किसान ल देवत हे। अब सरकार ह मंडी ल बंद करके दलाल मन ल छूट दे बर जावत हे। अउ ये कानून बने के बाद किसान के उपज के समर्थन मूल्य के घलो गारेंटी नइ हे। बिहार के सरकार ह 2006 म मंडी ल बंद कर दे रहिस फेर उहां के किसान ल अभी तक कोई फायदा नइ होहे। दूसरा कानून आय 'कृषि सशक्तिकरण व संरक्षण और कृषि सेवा विधेयक' ये कानून ह करार अउ ठेकेदारी खेती पद्धति ल वैधता देथे। किसान के जमीन ल बड़े बड़े कंपनीमन किराया से लिही अउ चिटफंड कंपनी असन भाग जाही अउ किसानमन ल अदालत म फरियाद करे के भी हक नइ राहय। ये किसान ल ओकरे जमीन म मजदूर बनाय के उदीम आय। एकर ले सोसन ह अउ बड़ही। तीसरा कानून 'आवश्यक वस्तु संशोधन विधेयक 2020' ये कानून म किसान के साथ साथ आम उपभोक्ता के जेब घलो कटही। पहली 'आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955' जमाखोरी अउ काला बाजारी ल रोके बर बनाय रहिस। पहली जमाखोरी ल अपराध कहे जाय अब ये नवा कानून के बने ले येला महापुन्य कहे जाही। जेकर ले महंगाई ह हकन के बड़ही अउ देस के जनता ल चार आंसू रोवाही। 
अतका खतरनाक कानून होय के बाद भी सरकार ह कइसनो करके किसान आंदोलन ल खतम करे के कोसिस करत हे। पहली कहिस कि ये आंदोलन पंजाब बस में होवत हे, जिहां कांग्रेस के सरकार हे। फेर हरियाणा के किसान मन घलो अपन खेत ल बचाय बर भारी संख्या में आंदोलन म सामिल होगे तब कहिस कि ये किसान नोहे खालिस्तानी आय। तेकर बाद पूरा देस भर म किसान आंदोलन ह जोर पकड़ लिस, तब कहिस कि ये विपक्ष के चाल आय। फेर कहिस कि किसानमन ल सरकार के खिलाफ भड़कावत भरमित करत। अरे कइसे गोठियाथे सत्ता ओकर अउ गोदी मीडिया ओकर तब किसान कइसे भरमित हो जाही। गोदी मीडिया तो चीख चीख के किसानमन ल आतंकवादी बतावत हे। का देस भर के किसान, मजदूर, विद्यार्थी, नौजवान अउ सबो जांगरतोड़ कमइया ह आतंकवादी, खालिस्तानी अउ देसद्रोही आय। बड़ सरम के बात आय। अइसन कहइया सरकार अउ मीडिया ल धिक्कार हे। ये तो अइसे होगे जेकरे ल खाना ओकरे संग बकबकना। अन्नदाता जउन ह सबके पेट ल भरथे आज उही ल नेतामन बदनाम करत हाबय।
कतको तोड़े के कोसिस करिस फेर सफल नइ होइस, तब 26 जनवरी के दिन दिल्ली के ट्रेक्टर रैली म दिप सिद्दू जइसे बेजेपी के चमचा ह ए आंदोलन म घूस के उपदरव करिस। ताहन ले टीवी वाला मन बिना देखे सोचे समझे कोलिहा असन नरियाय ल धर लिस। अउ किसान मन ल देस के गद्दार कहे ल लागिस। एकर बाद सरकार ल आंदोलन के जगह ल खाली करे के बहाना मिल गे। अउ जबरदस्ती किसान मन ल खदेड़े बर धर लिस। एकर ले किसान नेता राकेस टिकैत रो डारिस। ओकर आंसू ल देखके जगह जगह किसानमन के महापंचायत होय ल धर लिस अउ ये आंदोलन ह जोरदार रफ्तार पकड़ लिस। सरकार ह अब सकबका गेहे। किसान आंदोलन के दमन करे बर बिजली, पानी अउ इंटनेट ल बंद कर दे हे। सरकार ल लागथे कि जरूरत के सबो सुविधा ल बंद करे ले किसानमन अपन घर लहुट जाही। अब ये आंदोलन ह रुकने वाला नइ हे। चाहे सरकार ह सड़क ल खनवाय, कटीली तार, खीला लगवाय, आंसू गैस, पानी के बौछार, लाठी अउ गोली चलवाय कतको जुलुम करय फेर अब किसान ह अपन हक ल लेके रही अउ खाली हाथ घर नइ लहुटने वाला हे। 

गनपत लाल, रायपुर