आप लोगों ने सुना होगा कि डायन अंधेरी रात में बुंग-बुंग जलती हुई निकलती है। कुछ इसी प्रकार की बातें गांव के एक 60 साल के बुजुर्ग से सुनने को मिली। बुजुर्ग ने बताया कि जब मैं 15 साल का था तब मैं पास के गांव में मड़ई (मेला) के कार्यक्रम से नाचा (सांस्कृतिक कार्यक्रम) देखकर वापस घर आ रहा था, उस समय रात के लगभग दो बजे होंगे। मैं पैदल अपने धुन से चल रहा था तभी अचानक पीछे से सन की आवाज आई। मैं पीछे मुड़कर देखा तो कुछ बुंग-बुंग (कम-ज्यादा) जलती रोशनी दिखाई दी। मैं आगे बढ़ता गया और वह भी मेरे पीछे-पीछे आ रही थी। मैं अपना गति तेज किया तब भी मेरे पीछे-पीछे आ रही थी। वह जमीन से एक या डेढ़ फिट ऊपर थी और यह रोशनी बुंग-बुंग जलते हुए मेरा पीछा कर रही थी। वह पक्का डायन (टोनही) ही थी।
यहां 60 साल के बुजुर्ग जब 15 साल का था, मतलब 1976 की बात है। उस समय उस गांवों में बिजली नहीं थी। लोग रात के अंधरे से निपटने के लिए दीया (दीपक) या कंडील (लालटेन) का सहारा लेते थे। रात में कहीं जाना हो तो कंडील लेकर निकलते थे क्योंकि रास्ते में बिजली नहीं थी। गांव में सड़क नहीं थी इसीलिए यात्री कंडील लेकर यात्रा करते थे।
जब यह लड़का (अब बुजुर्ग) मड़ई देखकर आ रहा था उस समय उसके पीछे भी कोई व्यक्ति कंडील लेकर आ रहा था। व्यक्ति कंडील को हाथ में पकड़कर चल रहे थे तब कंडील जमीन से एक या डेढ़ फीट ऊपर था और व्यक्ति के चलने के साथ हवा उस कंडील में पड़ती थी इस कारण से कंडील बुंग-बुंग (कम-ज्यादा) जल रही थी।
लड़का जो अभी बुजुर्ग है उसने उस समय कंडील को डायन (टोनही) समझ गया, जिसे मनोविज्ञान में भ्रम (illusion) कहते हैं। कई बार अंधरे में राह चलते कोई रस्सी दिख जाए तो भी उसे सांप समझ बैठते हैं। इसलिए कोई भी चीजों को बिना जाने-समझे नहीं मानना चाहिए।
टिकेश कुमार, मनोवैज्ञानिक
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