जब मैं लगभग 6-7 साल का छोटा सा बच्चा था। उस समय गांव में बिजली की कमी के कारण पूरा अंधेरा रहता था। गलियों पर लाईट नहीं थीं। गांव के कई घरों में बिजली नहीं थी और थी भी तो एक बल्ब, जो घर के अंदर में जलता था। घर का द्वार में कोई लाईट नहीं थी, इसलिए गली में चलने वाले लोगों को अंधेरा का सामना करना पड़ता था।
एक दिन की बात है, शाम के समय हम कुछ दोस्तों के साथ तालाब के पास घूमने के लिए निकले थे और तालाब के पार पर बैठकर हम सब आपस में बाते कर रहे थे। हमें समय का पता ही नहीं चला। रात होने लगी, तभी अचानक हमारी दृष्टि पीपल पेड़ के नीचे बुंग-बुंग (झिलमिलाती) रोशनी पर पड़ी। हम लोग धड़ से उठ खड़े हुए, उसमें से किसी एक दोस्त ने कहा टोनही (डायन) है भागों, किसी ने कहा भूत तो किसी ने प्रेतात्मा और हम सब कुछ सोचना-समझना छोड़कर भागने लगें। भागते-भागते गांव की एक दुकान में गए, वहां कुछ बुजुर्ग के साथ मेरे दादा जी भी बैठें थे। हम सब को हांफते देखकर मेरे दादा ने पूछा क्या बात है बेटा? हम सब एक आवाज में तालाब पार के पीपल के नीचे भूत कहने लगें और पूरी बात बताई।
तब दादा ने हमें बताया कि कोई भूत-प्रेत, टोनही (डायन) या प्रेतात्मा नहीं हैं और न ही होता है। वहां तालाब के पास पीपल पेड़ के नीचे दीया (दीपक) जल रहा था। उस तालाब के पास मृत व्यक्ति के परिवार वाले पीपल पर मटकी बांधकर उसके नीचे शाम को दीये जलाते हैं। जब तुम लोग वहां बैठकर आपस में बात कर रहे होंगे उसी बीच कोई जाकर दीया जलाया होगा और धीरे-धीरे हवा चलने के कारण दीया टिमटिमा रहा था।
हम सब बच्चों ने दीया को भूत-प्रेत, टोनही या प्रेतात्मा समझ गए। जिसे भूत भ्रम (illusions) कहते हैं।
टिकेश कुमार
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