प्राचीन काल के जीववादी विचारधारा में ग्रीक,चीन तथा मिस्र आदि देशों की कुछ जातियों का भी यही मानना था कि जब व्यक्ति के प्रति भगवान (गॉड) की कृपा दृष्टि समाप्त हो जाती है तो ईश्वर की ओर से अभिशाप या दंड के रूप में व्यक्ति के मन, बुद्धि भ्रष्ट हो जाता है और व्यक्ति किसी प्रेत या बुरी आत्मा के चंगुल में फंस जाता है।
इसलिए उसका उपचार का तरीका भी काफी अलग था। अपदूत-निसारन विधि से प्रार्थना करना, जादू-टोना, झाड़-फूंक, कोड़े मारना, लम्बे समय तक भूखे रखना तथा शराब के शोधक पिलाना आदि। उस समय के चिकित्सकों का मानना था कि इस प्रकार के उपचार से मानसिक रोग से ग्रसित व्यक्ति का शरीर इतना कष्टदायक हो जाएगा, जिससे शरीर में प्रवेश की हुई बुरी आत्मा अपने आप शरीर छोड़कर भाग जाएगी और तब व्यक्ति स्वस्थ हो जाएगा। इसी प्रकार दूसरी विधि ट्रीफाइनेशन है। इस विधि में नुकीले पत्थरों से मार-मार कर ऐसे व्यक्तियों की खोपड़ी में एक छेद कर देते थे। इस विधि से उपचार करने वालों का मानना था कि खोपड़ी में छेद करने से बुरी आत्मा शरीरी से बाहर निकल जाएगा और व्यक्ति ठीक हो जाएगा।
जीववादी चिंतन के बाद एक विवेकी तथा वैज्ञानिक विचारधारा मेडिकल विचारधारा का जन्म हुआ। जिसमें ग्रीक चिकित्सक हिपोक्रेट्स जिन्हें आधुनिक चिकित्साशास्त्र का जनक माना गया है, ने एक क्रांतिकारी विचार व्यक्त करते हुए कहा कि मानसिक रोग की उत्पत्ति कुछ स्वभाविक कारणों से होती है, न कि शरीर के भीतर बुरी आत्मा के प्रवेश कर जाने से या देवी-देवताओं के प्रकोप से।
आधुनिक मनोरोगविज्ञान का जनक फ्रेंच चिकित्सक फिलिप पिनेल ईश्वरपरक, आध्यात्मिक एवं अंधविश्वासी विचार जो मूलतः पादरियों एवं पुजारियों के अमानवीय दृष्टिकोनों को गलत बतलाते हुए इस बात पर सामूहिक रूप से बल डाला कि मानसिक रोग किसी दुष्ट आत्मा या दैविक प्रकोप के कारण नहीं होता है, बल्कि यह एक बीमारी है। जिसका उपचार अन्य शारीरिक बीमारियों के समान होना मानवीय ढंग से होना चाहिए।
इस प्रकार मानसिक रोग के संबंध में दुष्ट आत्मा-सम्बंधी विचार समाप्त हो गया और उसकी जगह पर इस रोग के सम्बंध में एक स्वस्थ, विवेकी एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण की शुरुआत हो गई।
टिकेश कुमार
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