Sunday, 4 November 2018

समाज के अंतस के अवाज लोकगीत : लक्ष्मण मस्तुरिया

जनकवि अउ गीतकार लक्ष्मण मस्तुरिया उमरभर छत्तीसगढ़ी साहित्य के सेवा करिन। मस्तुरिया भले ए दुनिया ल छोड़ के चल दिस फेर ओकर गीत ह सबर दिन छत्तीसगढ़ के माटी म गुंजत रही। ओकर गीत के संदेस ह मनखे ल अन्याय के खिलाफ लड़े बर तकात देवत रही। गीतकार, लेखक, कवि, गायक, शिक्षक, पत्रकार लक्ष्मण मस्तुरिया के जनम 7 जून 1949 म ग्राम मस्तूरी, जिला बिलासपुर म हाेय रहिस। वोकर लइकापन ले पढ़ई-लिखई म बड़ रूचि रहाय। स्कूल म जब पढ़त रहाय तभे कबिता लिखे के शुरू कर दे रहिस। छत्तीसगढ़ी सांस्कृतिक जागरन मंच ‘चंदैनी गोंदा’ के अबड़कन गीत के लिखइया अउ ‘देवार डेरा’, ‘कारी’ लोकमंच बर गीत सिरजइया। रायपुर दूरदर्शन से प्रसारित धारावाहिक लोकसुर के निर्माता लक्ष्मण मस्तुरिया के बड़ सुरता आवत हे। दू साल पहली लक्ष्मण मस्तुरिया संग लोकगीत ल लेके मोर गोठ-बात होय रहिस। ओहर मोर जम्मो सवाल के जवाब बड़ सुघ्घर ढंग ले दे रहिस।        

सवाल- लोकगीत के सुरूआत कइसे होइस होही ?    
मस्तुरिया- लोकगीत ह बहुत जुन्ना आय। जब समाज बनिस तभे लोकगीत बनिस। समाज के सुख-दुख ह लोकगीत म सुने ल मिलथे। तुलसी के दोहा ले पहली लोकगीत रिहिस हे। ओ समय तुलसी दास ह “बन निकल चले दूनो भाई” गीत ल लोकगीत कहे हे। एकर बाद अइसने-अइसने तुलसी अउ कबीर के गीत अउ पद ल मनखेमन लोकगीत माने लागिस। फेर संस्कार के गीत जइसे बिहाव, सोहर गीत ल घलो लोकगीत मानिस। 

सवाल- त लोकगीत आपमन का ल मानथंव ?
मस्तुरिया- जउन ह जनसमूह के सरल गीत हे, उही लोकगीत आय। एमा भासा अउ बियाकरन के बंधना नइ रहाय। लोकभासा ले ही लोकगीत बने हे। जउन गीत ह मनखे मन ल भा जथे अउ ओकर बीच छा जथे उही ल लोकगीत कहे जाथे। जउन समय कोनो मनोरंजन के साधन नइ रिहिस, तब समुदाय म उच्छाह अउ खुसी बर गाना गाए जाए। अइसन गीत ह गांव-गांव म चले ल धर लय। वइसे कोनो गीत ल लोकगीत बने बर अबड़ बेरा लागथे।

सवाल- आप के गीत ल गांव के मनखेमन लोकगीत मानथे अउ उच्छाह के मउका म गाथे-गुनगुनाथे। का अपन गीत ल लोकगीत मानथंव ?
मस्तुरिया- मैं अपन गीत ल कइसे लोकगीत मानहू। अउ कहूं त ए अपने गुन गवइ असन होगे। लोकगीत तो लोगन मन तय करथे। मैं ह तो बस देवार डेरा के जउन गीत रहिस ओला सुधार के सरल अउ सुघ्घर बनाय हंव। अगर लोगन मन मोर गीत ल लोकगीत मानथे त लोकगीत आय। ए तो समाज के ऊपर निरभर करथे। जब गांव-गांव म कोनो गाना ल खास मउका म गाय जाथे अउ लोगन के जुबान म रइथे उही ह लोकगीत कहलाथे।

सवाल- देवार डेरा के गाना ल सुधारे बर काबर परिस ?
मस्तुरिया- पहली देवार डेरा के गाना म भासा ल समझे बर थोकन दिक्कत होवय। जइसे ‘दौना म गोंदा केजुआ मोर बारी म आबे काल रे’ एला सुधार के ‘चौरा म गोंदा रसिया मोर बारी म’ करेंव। इही परकार के ‘चंदर छबीला रे बघली ल’ सुधार के ‘मंगनी म रे मया नइ मिलय रे मंगनी म’ करे हंव। अइसन कइ ठोक गीत ल सुधारे के जरूरत परिस। एकर ले ए गीतमन सारथक होगे।

सवाल- गीत लिखइ अउ गवइ काम म कब ले भीड़े हव ?
मस्तुरिया- वइसे तो 1960 ले गीत अउ कबिता लिखे के सुरू कर दे रहेंव। एकर बाद 1971 म इही बुता म पूरा रम गेंव। ओ समय कृष्ण रंजन, पवन दीवान अउ मैं ह शिक्षक रहेन। फेर मैं गुरुजी के नौकरी ल छोड़के ‘चंदैनी गोंदा’ मंच ले जुड़ेंव। एकर बाद मैं ह देवार डेरा के गीत ल सुधारे के काम करेंव। एकर अलावा कारी लोकनाट्य म घलो बहुत अकन गीत के सिरजन करेंव। आे समय सबझन छत्तीसगढ़ी के सेवा निसुवारथ ढंग ले करय।

सवाल- अब तक आप कतेक अकन गीत लिखे अउ गाए हव ?
मस्तुरिया- वइसे तो मैं गाना बहुत कम गाए हंव। मोर संग चलव रे, बखरी के तुमा नार, मैं छत्तीसगढ़िया अंव, चल गा किसान असाढ़ आगे, मन काबर आज तोर उदास हे अउ कुछेक गाना गाए हंव। उही लगभग 300 ले जियादा गीत के रचना करे हंव। मोर गाना ल कइ ठोक छत्तीसगढ़ी फिलिम म साामिल घलो करे हे।

सवाल- पहली अउ अब के गाना म का बदलाव देखथव ?
मस्तुरिया- बदलाव होय हे। पहली के गीत म संदेस रहाय, लेकिन आजकल के गीत म संदेस तो छोड़ कुछ समझ घलो नइ आय। आजकल धंधा जियादा होगे हे। गीत के नाम म काही ल पोरसत हे। 
 

Thursday, 20 September 2018

कहिनी : नोनी के बिहाव

जब नोनी ह बड़े बाड़ जथे तब दाई-ददा ल ओकर बिहाव के संसो ह खाय ल धर लेथे। पटवारी मेहत्तर अउ ओकर बाई सतवंतिन ह घलो अपन नोनी सुरेखा बर बने असन  दुलहा खोजत हे। काबर सुरेखा के कालेज के पढ़ई पूरा होगे हे। दूर-दूर के आनी-बानी के सगामन आवत हे। जतका सगा आवत हे ओमन सुरेखा के सुघरई ल देख के मोहा जावत हे। फेर समस्या ए बात के हे कि कम पढ़े-लिखे छोकरा ल सुरेखा ह हिन देवत हे, काबर ओ ह बने असन पढ़े-लिखे अउ समझदार घरवाला चाहत हे। अउ जउन ह पढ़े-लिखे हे ओकर म सुरेखा ल समझदारी नइ दिखत हे, काबर पढ़े-लिखे छोकरा अउ ओकर दाई-ददा ह आते साथ पहली दहेज के बात करथे। दहेज म कार, पइसा, फटफटी अउ आनी-बानी के जिनीस के लिस्ट बन जथे। अतेक भारी-भरकम सामान के सूची ल पटवारी मेहत्तर ह कइसे पूरा कर सकही। ओकर खेत-खार बिलकुल नइ हे। जउन भी रहिस हे ओला दू झन नोनी मन के बिहाव म बेच डरे हे। अब सबले छोटे नोनी सुरेखा के बिहाव करके गंगा नाहय के सोचत हे। फेर का करबे दहेज के दानव ह रद्दा म खड़े हे। रोज दिन अइसने सगामन आवत-जावत हे। सगामन के चाहा-पानी अउ नास्ता म कतको पइसा ह सिरागे हे। अइसे-तइसे एक साल ह बितगे।
पटवारी मेहत्तर अउ ओकर घरवाली सतवंतिन ल नोनी के बिहाव के संसो ह बड़ सतावत हे। एक दिन पटवारी मेहत्तर ह कइथे- बिना बड़का दहेज के सुरेखा के बिहाव नइ होय तइसे लागथे।
सतवंतिन- कइसे नइ होही हमर नोनी सुरेखा म का कमी हे। बड़ सुघ्घर हे।  कालेज के पढ़ई करे हे। रांधे-गढ़े ल घलो बने आथे।
पटवारी मेहत्तर- कमी सुरेखा म नइ हे, कमी तो दहेज म हे। सगामन दहेज म कार मांगत हे। कार बिना कतको बने नोनी ह बेकार हे।
सतवंतिन- तब का करबो हमन। हमर मन कर जउन खेतखार रहिस ओ ह तो दू झन नोनी के बिहाव म सब झर गे। अब ए नोनी के बिहाव ह कइसे होही।
पटवारी मेहत्तर- तैं ह संसो झन कर ओ नाेनी के दाई। मैं ह मोर पीएफ के पइसा ल निकाल के अउ लोन म पइसा लेके दुलहा बर कार अउ जम्मो जिनिस ल ले लानहू। ए साल कइसनो करके सुरेखा के बिहाव होही।
सुरेखा ह अपन कुरिया म ए बात ल सुते-सुते सुनत रहाय। सुरेखा ह सोचथे ए कइसन समाज आय जिहां बेटी के बिहाव बिना दहेज के नइ हो सकय। कोनो दुलहा ल बने दुलहिन के जरूरत नइ हे, जरूरत हे त बने दहेज के। मनखे आज कतेक सुवारथी होगे हे। परेम के जगह म आजकल सबे ह पइसा के पुजारी होगे हे।
आज फेर सुरेखा ल देखे बर सिंचाई बिभाग के अधिकारी घनाराम अउ ओकर बेटा इंजीनियर बिकास ह पहुंचे हे। घनाराम ल ओकर लइका के पढ़ई अउ नउकरी ल लेके बड़ गरब हे। सुरेखा ह पानी धर के सगामन कर अइस अउ टप-टप पांव परिस। ताहन भितरी डाहर चल दिस।
पटवारी मेहत्तर- ए दे देख लव जी इही नोनी आय। घनाराम- वाह, बने तो हे जी। कतेक पढ़े हे ?
पटवारी मेहत्तर- हिंदी म एमए करे हे। ए बाबू ह का पढ़े हे अउ का करथे जी  ?
घनाराम मेछा ल अइठत मोर बेटा बिकास ह एमटेक करे हे अउ भिलाई म इंजीनियर हे।
पटवारी मेहत्तर- त का बिचार हे सगा हो।
घनाराम- बिचार तो बने हे। फेर..
पटवारी मेहत्तर- फेर का। बने फरिया के बताव सगा हो।
घनाराम- दहेज म का देहू जी।
पटवारी मेहत्तर- का दे सकबो हमर तो जियादा कुबत नइ हे फटफटी दे देबो।
घनाराम- आजकल फटफटी ह तो चना-मुररा होगे सगा। कार-वार देतेंव त रिस्ता ह आगे बढ़तिस।
मेहत्तर- ले न भइ का होही हमन हमर डाहर ले पूरा कोसिस करबो।
घनाराम- कोसिस-वोसिस का होथे जी। देना हे त देना हे कह, नही त नही।
मेहत्तर- देबो गा सगा हो काबर नइ देबो जब सबे झन के मन आगे हे, त दहेज म कार जरूर देबो।
घनाराम- ले समधी महाराज पंडित करा बिहाव के तिथि ल निकाल के हमन बतावत हन। आपमन बिहाव के तियारी करव।
मेहत्तर- ठीक हे समधी महराज बने जलदी तिथि ल बांध के बिहाव ल कर देबो।
सगामन अपन घर चल दिस। सुरेखा अउ बिहाव के तिथि घलो तय होगे। दूनों डाहर बिहाव के तियारी जोरसोर ले होवत हे। पटवारी मेहत्तर ह पइसा के बेवस्था करे बर रोज दउड़-धूप करत हे। काबर सगा मन दहेज म कार मांगे हे। पटवारी मेहत्तर ह सोचत हे कइसनों करके कार ले बर चार-पांच लाख के बंदोबस्त हो जतिस। बाकी छोटे-मोटे खरचा के बेवस्था ह बनत रही। अपन पीएफ के पइसा ल निकाले बर अउ बैंक ले लोन ले बर जम्मो फारम ल जमा कर देहे। एती दूनो घर के सादी के कारड ह सगा मन ल बटावत हे। अब देखते-देखत बिहाव ह चार दिन बाचे हे। फेर पटवारी मेहत्तर के बैंक लोन ह अभी ले पास नइ होय हे। एकर संसो म घेरी-बेरी मेहत्तर ह बैंक म जा-जा पूछथे। मोर लोन ह पास होगे का ? जब नइ होहे कइथे, तब अधिकारी मन ले हाथ जोड़के बिनती करथे लोन ल पास कर देतेव सर। मोर नोनी के बिहाव हे। कइसनोे करके लोन ल पास करके हमर लाज ल बचा लेतेव। बैंक अधिकारी कइथे- हमन ह तोर फारम ल भेज देहन। मेन आफिस ले जब पास होके आही तब हमन कुछ कर सकथन। बाकि हमर हाथ म नइ हे जी। अब बिहाव के दिन घलाे आगे फेर लोन के कोई अता-पता नइहे। 
अब सुरेखा के दाई-ददा के मन म संसो के मंड़माड़े करिया घटा ह छागे हे। सोचत हे कहूं कार नइहे कबो त बरात ह लहुट के नइ चल दिही। अब बरात ह घलो गांव म पहुंच गे। परघाय के तियारी घलो होय ल लागिस। जब बरतियामन सुरेखा के घर म अइस त ओकर मन के जोरदार सुवागत करे गिस। अउ जम्मो सगामन ल बने खवइस-पियइस। जब दुलही-दुलहा ह बिहाव के मंडप म बइठिस। तब बरतिया डाहर के दू-चार झन सियानमन बिकास के ददा घनाराम ल कइथे- कइसे गा सगा मन तो दहेज म कार देवइया रहिस का। दिखत नइहे। तब घनाराम ह सुरेखा के ददा ल पूछिस कइसे समधी महाराज कार देवइया रहे हव कहां हे। तब पटवारी मेहत्तर ह कइथे- लोन ह पास होय म देरी होगे समधी महाराज। लोन आजे पास होइस हे काली मैं ह दमाद बाबू ल कार दे दुहूं। अतका म रखमखाय घनराम खुरसी ले उठ गे कइसे गोठियाथंव जी। जब कार के बात होय रहिस हे त अभी होना चाही। नहीं त ए बिहाव ह नइ हो सकय। ए बात ल सुनके मेहत्तर ह हाथ-पांव जोड़े ल धर लिस। समधी महाराज आपमन हमर ऊपर भरोसा करो भइ हमन काली कार खरीद के आपके घर भेज देबो। ए सादी ल होवन दव। घनराम- नहीं ए बिहाव ह नइ हो सकय। घनाराम जम्मो बरतिया ल कइथे- चलो जी ए बिहाव नइ होवय, ए तो सरबा धोखा आय। घनाराम ह अपन बेटा बिकास ल मंडप ले उठा के सबो बरतियामन ल वापस लहुटे बर कहिस। 
बरतिया म एक झन सुरेखा के कालेज के संगवारी संतोस घलो आय रहाय। सुरेखा अउ संतोस ह संगवारी तो रहिस फेर एकर मन के अंतस म मया के फूल घलो उलहोवत रहिस। कालेज के पढ़ई पूरा होय के सेती एक-दूसर ल अपन दिल के गोठ ल नइ बता पइस। आज संतोस ह सोचथे कि सुरेखा के मंडप ले बरतियामन चल दिही त इकर बड़ बेज्जती होही अउ सुरेखा संग बिहाव कोन करही। अब संतोस ह गुने ल धर लेथे कालेज के समय म मैं ह अपन अंतस के बात ल सुरेखा ल नइ बता पायेंव आज मैं हिम्मत करके सबके सामने ए बात ल बताहू। संतोस सबके सामने खड़ा हाेके कइथे- सुरेखा संग बिहाव मैं ह करूहूं। तब जम्माे बरतिया अकचका के देखे ल धर लिस। अउ सुरेखा ह संतोस ल देखके बड़ खुस होगे काबर वहू ह संतोस ल पसंद करत रहिस। पटवारी मेहत्तर ह अपन नोनी ल  पूछथे का तोला दुलहा पसंद हे ? तब सुरेखा हा हव कइथे। अतका म ओकर दाई-ददा अउ संतोस खुस होगे। सात फेरा लगिस। संतोस अउ सुरेखा सबर दिन बर एक होगे। सुरेखा के दाई-ददा ह बेटी दमाद के बड़ खुसी-खुसी बिदा करिस।

- गौतम गणपत

भारत में पाखंडी बाबाओं की सूची लंबी क्यों ?


भारत देश में बाबाओं को गिनने चले तो पूरा दिन और पूरी रात बीत जाएगी फिर भी गिनना आसान नहीं, लेकिन सवाल यह है कि इस आधुनिक समय में भी इस प्रकार के ढोंगी और बलात्कारी धर्म गुरुओं की संख्या कैसी बढ़ रही है ? अंधभक्तों की संख्या कैसी बढ़ रही है ? लोग मेहनत पर कम और पूजा-पाठ पर ज्यादा विश्वास क्यों कर रहे हैं ? ढ़ोगी बाबा की बातों में आकर रुपए कैसे लुटा रहे हैं ? अपनी बेटी-बहू और बहन को हैवान बाबाओं के आश्रम में भेजकर बलात्कार का शिकार क्यों बना रहे है ? ये सभी बातें सोचने की है।
तर्कवादी विचारक पेरयार कहते हैं कि शास्त्र, पुराण और उनमें दर्ज देवी-देवताओं में मेरी कोई आस्था नहीं है, क्योंकि वो सारे के सारे दोषी हैं। मैं जनता से उन्हें जलाने तथा नष्ट करने की अपील करता हूं। इस बात पर गौर करें तो जितने भी सारे सवाल है उनका पूरा जवाब मिल जाता है। बाबा धर्म का अफिम खिलाकर भक्तों को यर्थाथ से दूर किसी काल्पनिक दुनिया में ले जाता है। इसके बाद फिर लूट-खसोट का खेल शुरू होता है। फिर अंधभक्त शिष्याें से पैसे, धन-संपत्ति और हवस की सारी भूख मिटा लेता है। धर्म के धंधे करने वाले लोग धर्म शास्त्र और देवी-देवताओं का खौफ ऐसा फैलाता है कि कम पढ़े-लिखे लोग आसानी से इनके जाल में फंस जाते हैं। काल्पनिक भगवान का भय से अनपढ़ के साथ-साथ महाविद्यालय और विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले लोग भी वैज्ञानिक विचार को नजरअंदाज कर काल्पनिक और बेतुकी बातों पर विश्वास करने लगते हैं। सिर्फ विश्वास नहीं करते बल्कि अंधविश्वास फैलाने में भी बड़ी भूमिका निभाते हैं।
दिल्ली के एक ज्योतिष स्वंभू अाशु महाराज अपने ही शिष्य महिला और उनकी नाबालिग बेटी को दिल्ली के आश्रम में रेप किया। इस प्रकार की खबर अब सामान्य हो गई है। लगातार बाबाओं की पोल खुल रही है। फिर भी उनके भक्तों और शिष्यों की कमी दिखाई न देना आश्चर्य लगता है। कार्ल मार्क्स ने सही कहा था कि धर्म अफिम के समान है। आज धर्म आैर धार्मिक कार्य के नाम पर लोग अपनी विवेक बुद्धि सब खो बैठते हैं। फिर पाखंडी धर्म गुरु अपने चेले को मंदारी का बंदर जैसा नचाता है। अंधविश्वास की शराब पीकर मदमस्त उनके चेले सुध-बुध खोकर खूब नाचते हैं। बलात्कार के आरोपी आशु महाराज का असली नाम आसिफ मोहम्मद है। यह बाबा पहले पंचर बनाने का काम करता था। पुलिस पूछताछ के दौरान उसने यह बताया कि मुस्लिम धर्मगुरु बनने पर उसे उतने पैसे नहीं मिल सकते थे जितने हिंदू धर्मगुरु बनने पर मिलते। आशु नाम रखते ही उसका ज्योतिष का धंधा चल निकला। इसी प्रकार अपने आपको बापू करने वाले मासूम बेटी से बलात्कार करने के जुर्म में जेल की हवा खा रहा है। बिलकुल सही पहचाना बात आसाराम की हो रही है। आसाराम ने धर्म की दुकान गुजरात के अहमदाबाद से कर पूरे देशभर में धंधा फैलाया। इनके इतने भक्त हो गए कि जब कोर्ट ने इसे उम्रकैद की सजा दी तो उनके अंधभक्तों की भीड़ भारी हंगामा और प्रदर्शन करने लगे। मार्डन और राकस्टार बाबा भी खूब चला भक्तों के बीच। जी हां राम रहीम। सिरसा के डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को पिछले साल रेप के मामले में दोषी पाया गया। ये बाबा खूद अपने भक्तों को लुभाने के लिए फिल्म बनाया और बतौर एक्टर काम भी किया। रामरहीम का काला चेहारा दिखाने में रामचंद्र छत्रपति की बड़ी भूमिका रही। जिनकी कीमत पत्रकार को जान से चुकानी पड़ी।
इस प्रकार रामपाल, दाती महाराज, राधे मां, सच्चिदानंद गिरी, ओम बाबा, निर्मल बाबा, भीमानंद महाराज, बृहस्पति गिरी, नारायण साईं और बाबाओं धर्म के धंधेबाजों की सूची लंबी होती जाएगी।

- गौतम गणपत

Tuesday, 4 September 2018

कहिनी : भूत के राहपट

बात एक गांव के आय। समारू के घर के पीछोद म लीम के नीचे सौचालय हे, फेर ओकर कपाट ह टूट गेहे। एकर सेती दिनमान ए सौचालय के उपयोग करत नइ बनय। तब ए घर के मन संझाकुन सौचालय म जाथे।  लगती सावन म टिपिर-टिपिर पानी गिरत रिहिस। तब समारू के गोसइन मनटोरा ह दिन बुड़े के बाद घर के पीछोद म बने सौचालय म जाथे। सौचालय म खुसरते साथ मनटोरा ल  हकन-हकन के दू राहपट पड़थे। जब एती-ओती ल देखथे त ओला कोनाे नइ दिखय। तब मनटोरा ह मंड़माड़े चिचयावत भागथे। अउ भूत-भूत कही के गोहार पारत घर भीतर चल देथे।
जब समारू ह संझा कुन किंजर के आथे, त मनटोरा ह ओला बताथे कि हमर बियारा के सौचालय म भूत रइथे। अतका बात ल सुनके समारू कइथे- कइसे गोठियाथस पगली। रोज-दिन ओ सौचालय म जावत हन फेर एको दिन अइसन बात नइ होहे। दिनमान मे ह उही मेर बइला बांधे बर गे हंव, तब तो भूत-परेत ह मोला नइ दिखीस। मनटोरा- नहीं मैं ह सिरतोन काहत हंव। मोला भूत ह जोरदार दू राहपट मारे हे, ऐ देख ले रोल उपट गे हे। समारू देखथे त सही म ओकर गाल म मारे के चिन्हा ह रहाय। तब ए बात ल सोच-सोच के रातभर दुनों परानी के नींद नइ परिस।
होवत बिहिनिया दूनो झन जाके सौचालय ल देखथे। त काही नइ रहाय। समारू अउ मनटोरा ल अब डर लागे ल धर लिस। काबर लगती सावन के महिना रहाय। ए दिन गांव म भूत-परेत, टोनही-टमानी, मरी-मसान, जादू-टोना, फूंक-झार अउ ठूआ-ठाेटका के बात ह सुने बर मिलथे। गांव वालामन कइथे कि ए दिन जम्मो सैतानी ताकत मन जाग जइथे। तेकर सेती गांव ल बइगामन ले बंधाय जाथे। कई झन बताय रहाय कि सावन के महिना म टोनही-भूत ह मनखे ल जियादा  सताथे। ए बात ल दुनो परानी दिनभर गुनत रहाय। रही-रही के सौचालय म जाके देखय भूत आगे का। मनटोरा कइथे- भूत ह दिनमान नइ आवय। अंधियार म आथे। जब सांझ हो जही तब जाके देखबे।
समारू ह डरराय ल धर लेथे। नहीं मैं नइ जावंव मोला अबड़ डर लागथे। मनटोरा कइथे कइसन डरपोकना आव। एक घांव जाके देखतेव जी का हरे ते। तब मनटोरा के घेरी-बेरी बरजे म समारू ह दिन बुड़े के बाद अंधियार होते साथ सौचालय के भीतरी म जइसे जाथे, वहू ल तीन राहपट पड़ जथे। कंझाय समारू ह ए दाई-नई बाचव ओ महूं ल भूत ह मार दिस। सिरतोन म इहां भूत रहिथे। जब दिनमान होइस त समारू अउ ओकर बाइ ह ए बात ल जम्मो पारा-परोस के मनखे मन कर गोठिया डरिस। ए गोठ ह पूरा गांवभर म फइल गे। समारू के बियारा म सौचालय कर नीम तरी भूत निकलथे। तब समारू ल कइ झन कइथे। बइगा-गुनिया ल दिखा लेतेस जी। समारू ह मनेमन सोचे ल धर लेथे। मनटोरा कइथे बइगा कर जाय ले पहली हमर गांव के मास्टरजी ल पूछ लेतेस।
गांव के मास्टरजी कर बड़ बहिनिया ले समारू ह गिस। समारू कइथे मास्टरजी हमर घर के पिछोद म नीम तरी सौचालय के भीतरी म अंधियार होथे त भूत निकलथे। मास्टर जी कइथे बिहिनिया-बिहिनिया ले अइसने मजाक करे बर आय हस जी समारू। तोला अउ काही नइ सुझीस। समारू- नहीं मास्टर जी मैं मजाक नइ करत हंव सिरतोन बात आय। भूत ह गोसइन मनटोरा अउ मोला राहपट-राहपट मारे हे। कोई लबारी बात नोहे। तभो ले मास्टर जी ह ओकर बात ल नइ पतियावत रहिस। काबर ओ ह पढ़े-लिखे मनखे आय। अइसन भूत-परेत अउ टोनही-टमानी म बिलकुल बिसवास नइ करय। समारू कइथे का गुनत हस मास्टरजी कोनो बइगा-बाबा बतातेस जउन ह ए भूत ल भगा सकय। मास्टरजी कइथे। मोला भइया तोर बात म काही बिसवास नइ हे। जबरन गांव-गोहार पारत हस। मैं ह खुद चल के देखहू। कतका बेर निकलथे भूत ह ओला बता। समारू- नहीं मास्टरजी हमन ल हकन-हकन के भूत ह मारे हे तैं झन जा तहूं ल मार दिही। अरे मैं तो देखे बिना नइ पतियावंव रे भाई। समारू ठीक हे मास्टरजी संझा जुआर आ जबे हमर घर।
मुंधियार होइस ताहन मास्टरजी ह पहुंचगे। मास्टरजी के संग सरपंच अउ गांव के मन घलो चार-पांच झन आगे। मास्टर जी कइथे तोर घर के भूत-परेत के बात ह हमर गांव अउ दूसर गांव म घलो फइल गे हे। लइकामन अब अंधियारकुन घर ले निकले बर डरराथे। अब ए बात ह तो आज पता चल जही का सिरतोन तोर घर के बारी के सौचालय म भूत हाबय कि नहीं। सिटिर- सिटिर पानी ह गिरत रहाय। मास्टरजी ह सौचालय म खुसरिस अतका म दू राहपट उहू ल परगे। मास्टरजी टार्च धरे रहाय। बंग ले बार दिस। देखथे त बेंदरा ह खुसरे रहाय। मास्टरजी सबो झन ल किहिस देखंव भइया तुहर भूत ल। ए बेंदरा ह बरसात के पानी ले बाचे बर इहां रोज खुसर जथे अउ होवत बहिनिया भाग जथे। जउन ल भूत के राहपट काहत रहेव, ओ ह बेंदरा के राहपट आय। जबरन भूत-परेत के गोहार पारत हव। इही ल कइथे भय नाम भूत। पहली कोनो चीज ल ठीक ढंग ले जांच परख लेना चाही। तेकर बाद कोनो बात ल पतियाना चाही। सरपंच अउ गांव के जम्मो मनखे कइथे सिरतोन म समारू अउ मनटोरा फोकट के गांव भर ल भूत के  डर देखावत रहिस। भूत-परेत, टोनही-टमानी अउ जादू-टोना बिलकुल नइ होवय। मनखे के भरम अउ अगियानता ले भूत के डर ह उपजथे।

गौतम गणपत

Sunday, 26 August 2018

मनखे ल बिलहोरत हे वाट्सएप-फेसबुक


दारू, बिड़ी-सिगरेट अउ तास-जुआ के नसा ह बिलकुल पुराना होगे हे। आजकल नवा नसा आय हे, फेसबुक अउ वाट्सएप्प के नसा। ए नसा ह दिनरात मनखे ल चघे रइथे।  एकर चपेट म लइका-सियान, टूरा-टूरी, नौकरीवाला अउ घर म फोकटछाप बइठे मनखे सब नसा म मताय बइइा-भुतहा असन घुमत रइथे। होवत बिहिनिया सुतउठ के कोनो काम बुता ह कहूं जाय, फेर फेसबुक अउ वाट्सएप ल देखे बर कोनो ह नइ भुलाय। ए सोसल मीडिया के चक्कर म आजकल के छोकरा-छोकरी मन ल रात के दू बजे घलो नींद नइ आवय। आजकल सबले बड़े बुता काय आय वाट्सएप के स्टेटस ल बदलना। जम्मो कामकाज ल छोड़ के मनखे ह वाट्सएप स्टेटस ल मन लगाके बदलथे।
कोनो वाट्सएप्प म मजाक वाला मैसेज भेजही त कठले-हांसे के सिंबल दू-चार ठोक चिपका देथे। हाथ के ठेंगा दिखाके लाइक कर देथे। एकर बाद भेजइया ह घलो हाथ जोड़े वाला ओ डाहर ले भेजके अंतस के आभार ल मंड़माड़े परगट करथे। जोक-जोक म आजकल के लइका मन जकजका गे हे। पूरा पढ़ई-लिखई के सतइयानास होवत हे। महतारी ह लइका ल खाय बर बलावत हे तब लइका काहत हे राहना ओ अभी फेसबुक म झक्कास फोटू अपलोड करे हंव। ओमा संगवारी मन के अब्बड़ कमेंट आए हे, ओकर जुआब देवत हंव। लइका ह फेसबुक के कंमेंट मन ल लाइक कर-कर के बारी-बारी सबो झन ल थैंक्स काहत हे। ए परकार ओकर दिन ह फेसबुक अउ वाट्सएप के कंमेंट, लाइक अउ सेयर म निकल जथे।
अब इसकूल के गुरुजीमन घलो फेसबुक-वाट्सएप के मायाजाल म फंसे हे। लइका ल पढ़ाय ल छोड़ के कुरसी म बइठे कठलत रहाय। तब लइकामन  पूछथे कइसे गुरुजी का होगे मनेमन अबड़ हांसत हस। तब गुरुजी कइथे- चुपो रे मोर माेबाइल म अइसे जोक्स आय हे, तेला पढ़के हांस-हांस के पेट फुलगे। अब गुरुजी ह लइकामन ल पढ़ाय बर छोड़ के वेरी नाइस, सुपर, झक्कास, बम हे, फाड़ू अउ धमाल कही के वाट्सएप म रिपलाइ देवत हे। अइसने-तइसने पढ़ाय के पूरा बेरा ह सिरागे। ठिन-ठिन-ठिन घंटी बाजगे, छूट्टी होगे। आजकल इसकूल के पढ़ई ह अइसने होवत हे।
आज जम्मो तिहार ह घलो फेसबुक-वाट्सएप म हो जावत हे कोनो ल काकरो पास जाय के जरूरत नइ हे। हरेली तिहार अइस त गेड़ी अउ बइला के फोटू ल वाट्सएप म भेज देवत हे, नहीं त फेसबुक म अपलोड कर देवत हे। राखी तिहार म बहिनी अपन मयारू भाई ल राखी ल वाट्सएप म भेज के आसीरबाद ले लेथे। तब भाई घलो कमती नइ हे वहूं ह इंटरनेट म गिफ्ट के फोटू निकाल के बहिनी ल भेज के मड़माड़े मया-दुलार परदसन करथे। झंडा तिहार आगे तब तो झन पूछ सबे झन के वाट्सएप-फेसबुक म झंडा-झंडा दिखते। फेसबुकिया संगवारी मन देसभक्ति देखाय के चक्कर म झंडा के बीचोबीच अपन फोटू ल लगाके अपलोड  करथे। एमन भुला जथे कि असोक चक्र के जगह काकरो फोटू लगाना या झंडा म कोनो किसम के कांट-छांट करना झंडा अउ देस के अपमान आय। देसभक्ति ह बने बात आय फेर भक्ति के चक्कर म काही उलटा-पुलटा नइ करना चाही। काही तिहार होय मनखे ह अपन घर भीतरी म खुसरे-खुसरे मना लेथे। जब होरी तिहार आथे तब गांव म न जियादा नगाड़ा बाजे अउ न रंग उड़े पूरा सुन्ना असन लागथे। काबर जम्मो संगवारी ह रंग-गुलाल ल फेसबुक-वाट्सएप म एक-दूसर ल भेजे म बियस्त रइथे। देवारी तिहार के दिन कोनो ह फटाका के एनिमेशन वाले फोटू ल घलो भेज देथे। जउन ह सहीच के फुटत तइसे दिखथे। सिरतोन म आज पूरा जमाना ह बदल गे हे। मनखे ह भीड़ म घलो अकेल्ला रइथे। संगवारीमन के बीच घलो डोंगरी म रहे असन रइथे। आजकल ए सोसल मीडिया ह मया-पिरित, संगी-संगवारी, दाई-ददा, घर-परिवार, पढ़ई-लिखई, खेलई-कुदई ले दूरिहा करत जावत हे।
सोसल मीडिया ल बने काम बर उपयोग करना चाही। अउ बेरा-बेरा म उपयोग करना चाही कोनो जिनिस के अति ह दुरगति आय। आजकल के मनखे मन उपयोग कम दुरुपयोग जियादा करत हे। सोसल मीडिया म मया-पिरित के जगह म एक जाति ह दूसर जाति ल अउ एक धरम ह दूसर धरम ल नीचे दिखाय के अउ नफरत फइलाय के काम म लगे हे। कतको जगह ए वाट्सएप-फेसबुक म अफवाह फइला के कोनो ल गाय कटइया, कोनो ल लइका धरइया अउ कोनो ल चोरहा कही के मार डरत हे। संगवारी मन ल सोचना चाही कोनो भी मैसेज ल बिना पढ़े, बिना सोचे-बिचारे अउ बिना जाने-सुने कभू भी फारवड नइ करना चाही।
वाट्सएप-फेसबुक के कारन दोस्ती-यारी अउ रिस्ता-नता ह घलो दूरिहावत हे। पहली जब एक संगवारी ह दूसर संगवारी घर बइठे बर जावय अउ अपन दुख-सुख ल एक-दूसर ले बिसरावय तब कतेक बने लायग। फेर आजकल सोसल मीडिया म जम्मो बात ल कही डरथे, लेकिन ए गोठ म मया गे सुगंध नइ आवय। वाट्सएप-फेसबुक के सेती लइकामन चिड़चिड़ापन के सिकार होवत हे। एकर ले ओकर दाई-ददा मन परेसान रइथे। लइकामन के बात-बात म गुस्सा करना अउ चिल्लई ह अब साहज होगे हे। घर के सियानमन ल घलो चाही की नान-नान लइकामन ल मोबाइल  झन देवय। जब जाने-सुने के लइक हो जही त ओकर जरूरत के हिसाब ले मोबाइल ल देना चाही। पढ़ईया लइकामन ल घलो चाही की मोबाइल अउ इंटरनेट के उपयोग बने कारज बर  करय। जइसे काेनो परकार के जानकारी लेना हे त इंटरनेट ह बड़ सुघ्घर काम आथे। फेर आजकल जानकारी या पढ़ई-लिखई बर कमती अउ फोकट टेमपास बर जियादा होवत हे। पढ़ईया लइकामन पढ़ई म जियादा अउ मोबाइल म कम धियान देवय तभे उकर जिनगी ह सवरही अउ ओमन आगे बढ़ी। पढ़ई के संगेसंग खेलई-कुदई घलो करना चाही। एकर ले सरीर ह बने रइथे। सोसल मीडिया के उपयोग करे, फेर बेरा-बेरा म। अउ बने काम-बुता बर।

- गौतम गणपत

Monday, 13 August 2018

रेडियो म बकबकावत हे

हमर मुखिया ह रेडियो म बकबकावत हे
मंडमाड़े अपन गुन गावत हे
रंग-रंग के गोठ म
लोगन ल भरमावत हे
एती गांव-सहर के मनखे
डेंगू-पीलिया म मरत जावत हे
जउन गांव म
न हास्पिटल के ठिकाना न डाक्टर के
उहां घलो बिकास के गंगा बोहावत हे

किसान मरत हे करजा म
फेर आय ल दुगुना बतावत हे
आनी-बानी के वादा करके
थूक-थूक म बरा चुरोवत हे
न धान के भाव बढ़िस
न किसान के इसथिति सुधरिस
तभो ले छत्तीसगढ़ ह
धान के कटोरा कहलावत हे

चुनाव के बेरा म
लेपटाप, टेबलेट, मोबाइल बटवावत हे
छेरी ल हरियर चारा के
लालच देखाके कटवावत हे
सरकारी इसकूल ल बंद करा के
जगह-जगह पराइवेट इसकूल खोलवावत हे
लइकामन निकलगे भोकवा
तभो ले हुसियार कहलावत हे
हमर मुखिया ह रेडियो म बकबकावत हे।

- गौतम गणपत

Friday, 10 August 2018

किसान के अंतस ल हरियाथे हरेली तिहार

जब किसान मन ह खेत के बियासी के काम-बुता ल पुरा कर लेथे। खेत-खार ह हरियर-हरियर लुगरा पहिन लेथे तब छत्तीसगढ़ के पहली तिहार हरेली ह किसानमन बर खुसी अउ उच्छाह लेके आथे। हरेली तिहार ल सावन महिना के अमावस्या के दिन मनाया जाथे। ए दिन किसानमन अपन नागर-बइला, हंसिया, कुदारी, गैती, रापा अउ किसानी के जम्मो जिनिस ल तरिया ले धोके लानथे अउ अंगना म एक जगह रखके पूजा करथे। सियानमन बर तो ए दिन ह खास तो आय संगे-संग लइकामन बर घलो ए दिन ह बहुत उच्छाह के आय। काबर ए दिन लइकामन ल घलो गेड़ी चढ़े बर मिलथे अउ गुड़हा चिला खाय बर घलो मिलथे। तेकरे सेती लइकामन घलो ए तिहार के सालभर अगोरा करत रइथे। ए दिन बिहिनिया ले गांवभर म चहल-पहल दिखथे। घर के महतारी ह ए दिन घर के साफ-सफाई म लग जथे। घर-द्वार ल लीप-बुहार के अंगना म चउक पूरथे। चउक पुरे ठउर म खेती-किसानी के सबो सामान ल रख के पूजा करे जाथे। हमर छत्तीसगढ़ म हमेसा ले जीव-जंतु, पेड़-पौधा, तरिया-नदिया के पूजा करे के रिवाज हे। इहा के मनखे ह परकिरिति के पुजारी आय। 
किसान के जिनगी म बइला के बड़ महत्ता हे एकरे सेती। एकरे सेती किसानमन बइला ल भगवान असन मानथे। हरेली के दिन घलो किसानमन अपन-अपन बइला ल तरिया म खलखल ले धोके अउ ओकर सींग म वारनिस रचा के पूजा करथे। बारिस के दिन म गाय-गरवा ल बीमारी ले बचाय खातिर हरेली के दिन बरगंडा, नमक अउ आटा ल मिलाके लोंदी बना के खवाय जाथे। ए पौसटिक लोंदी ह बइला-गाय ल बरसात के बीमारी ले लड़े के ताकत देथे। हरेली के दिन म गाय-गरूआ, नागर-बखर के संगे-संग खेत के फसल के घलो पूजा करे जाथे। हरेली के दिन गांव म खेल के घलो मजा ले जाथे। ए दिन गेड़ी उदड़, नारियर फेंक, कबड्डी अउ कई ठोक लोक खेल के आयोजन होथे। गेड़ी दउड़ लइका म लइका ह गेड़ी म चड़के मड़माड़े दउड़थे। तब गेड़ी म लगे नारियर के बूच ले रच-रच के आवाज आथे। जियादा आवाज के आनंद ले बर रस्सी म थोकन माटीतेल डाल दे जाथे। नारियर फेंक परतियोगिता म सियानमन अपन हाथ अजमाथे। बल भर जउन ह जियादा दूर नारियर ल फेंकथे उही ह विजेता बनथे। तब हारे खिलाड़ी ह जीते खिलाड़ी ल नारियर भेंट करके सुवागत करथे। ए दिन खिलाड़ी अउ दरसक ल मरमाड़े खुरहेरी खाय ल मिलथे। गांव म कई जगह कबड्डी के घलो खेल होथे। ए दिन मार माड़ी कोहनी के छोलवत ले कबड्डी खेले जाथे। ए दिन नोनीमन घलो खेले-कुदे म पीछू नइ रहाय। गांव के चउक म नोनीमन जोरिया के फुगड़ी खेलथे अउ फुगड़ी फू होरे फुगड़ी फू गाना ल बड़ मन लगा के गाथे। ए प्रकार के देखे जाय तो सबे झन बर हरेली के तिहार ह खुसी अउ उच्छाह लेके आथे। ओकरे सेती ए दिन ह लइका-सियान ल बड़ भाथे।

Monday, 30 July 2018

अंधबिसवास के कांवर म लदाय मनखे

जब सावन ह आथे त चारो मूड़ा म हरियर-हरियर दिखथे। ए ला देखके मन ह बड़ उच्छाह ले नाचे ल धर लेथे। फेर का करबे पोंगापंथीमन सावन के महीना ल भूत-परेत, जंतर-मंतर, पूजा-पाठ अउ ठूआ-ठोटका के बता के रंग म भंग कर देहे। बड़े दुख के बात तो ए हरे कि हमर मेहनत-मजदूरी करइया भाईमन अंधबिसवास के कांवर ल धर के रेंगत-रेंगत सिवलिंग म पानी चघाय बर जाथे। भले उकर खेत म पानी पले चाहे मत पले। उकर घर म लइकामन बर दाना-पानी रहाय चाहे मत रहाय। फेर बोलबम के नारा लगावत गांजा-भांग पियत सिव के लिंग के पूजा करे बर जाथे।
हर साल सुने ल मिलथे कि झारखंड के बैजनाथधाम अउ देवघर म भगदड़ म कावरियामन मरत हे। अइसन इकर भक्ति म का कमी आ जथे। भगवान के दरसन करे बर जाथे अउ भगवान ल पियारा हो जथे। ए भक्तमन ल ओकर दाई-ददा अउ ओकर बाई ह झन जा कही के बरजथे तभो ले नइ मानय। घर जइसे पवितर मंदिर अउ दाई-ददा जइसे देवी-देवता ल लतिया के पखरा ल अपन बाप-महतारी समझथे। भले ओकर घरवाली ह तरिया-बोरिंग ले पानी डोहर-डोहर के बीमार पर जही फेर ए कांवरियामन घर के पानी लाय बर नइ सकय। फेर कांवर म पानी धर के डीजे के कानफोड़ू धून म गांजा-भांग पिये अंड-बंड गारी बकत भगवान ल खुस करथे। ए कइसन भगवान आय जउन ह सावन के मरमाड़े बाड़ आवत पानी म घलो भक्तमन ले पानी के मांग करथे। कइ जगह तो कांवरियामन पानी के बाड़ म मर जथे त कई जगह गाज गिरे म सीधा ऊपर के टिकट मिल जथे। फेर महासक्तिसाली महादेव ह अपन भगत ल नइ बचा सकय।


पंजाब के एक मित्र के कहने पर हिंदी में अनुवाद- 
अंधविश्वास के कांवर में दबे लोग

जब सावन का महीना आता है तो प्रकृति पूरी तरह से हरियाली से लद जाती है। इस हरियाली को देखकर मन उत्साह से नाचने लगता है, लेकिन कुछ पोंगापंथियों ने इस महीना को भूत-प्रेत, जादू-मंत्र, पूजा-पाठ और टोने-टोटके का बता कर रंग में भंग कर दिया है। बड़ी दुख की बात तो यह है कि हमारे मेहनत करने वाले मजदूर भाई इस अंधविश्वास में फंसकर कांवर लेकर पैदल कई किलोमीटर चलकर मंदिर के शिवलिंग को पानी चढ़ाते हैं। वे इतने मानसिक रूप से कमजोर हो जाते हैं कि अपने घर-परिवार और खेत-खार भी भूल जाते हैं। उनके खेत में सिंचाई नहीं होती और उनके बच्चें भूख से बिलखते रोते रहते हैं, लेकिन बोलबम के नारे लगाते हुए गांजा, भांग और शराब पीकर शिवलिंग की पूजा करते हैं।

हर साल खबर आती है कि झारखंड के बैजनाथधाम, देवघर और अन्य जगहों पर भगदड़ में कांविरयों की मौत हो गई। ऐसी इनकी भक्ति में क्या कमी रह जाती है जो भगवान के दर्शन के लिए गए रहते हैं, लेकिन भगवान को ही प्यारा हो जाते हैं। इस कांवरियों को उनके घर वाले कांवर यात्रा न जाने के लिए बहुत मना करते है, फिर भी नहीं मानते। अपने मां-बाप और पत्नी की एक भी बात न सुनकर पत्थर के शिवलिंग को अपने मां-बाप समझते हैं। इतनी मेहनत करके महादेव पर जल चढ़ाने वाले लोग अपने घर के काम-काज इतने लगन से नहीं करते। उनकी पत्नी और मां घर-परिवार और मवेशियों के लिए तालाब और हैंडपंप से पानी भरती है, लेकिन वही कांवरिया अपने कांवर से इनकी मदद पानी लाने में नहीं करते। भले उनकी मां और पत्नी दिनरात काम के दबाव में बीमार पढ़ जाए, लेकिन इन्हें कोई मतलब नहीं। इन्हें तो सिर्फ शिव और उनके प्रसाद गांजा-भांग खूब पसंद है। कांवर में पानी लेकर डीजे की कानफोड़ू धुन में अश्लील गाली देते हुए भगवान को खुश करते हैं। यह कैसा भगवान है जो हर साल हर सावन भारी बारिश और बाढ़ के दिनों में स्नान करने की मांग करते है। कई जगह जल चढ़ाने जा रहे कांवरिया बाढ़ में और बिजली गिरने से मर जाते हैं। फिर भी महाशक्तिशाली महादेव अपने भक्तों को नहीं बचा पाते।

Wednesday, 18 July 2018

जनता की आवाज ही असली कविता

जिन्हें मैं हमेशा किताबों में पढ़ता हूं, उनसे साक्षात भेंट करने का मौका पुणे के पत्रकार भवन में एक कार्यक्रम के दौरान हुआ। वे हिंदी के मशहूर प्रगतिशील कवि राजेश जोशी है। नवनिर्माण सांस्कृतिक मंच की ओर से 'ए डिस्कशन आन मार्क्सिस्ट परसेप्शन आफ आर्ट एंड लिटरेचर' का आयोजन हुआ। कार्यक्रम में राजेश जी बतौर मुख्य वक्ता शामिल हुए। इस दौरान मुझे उन्हें पहली बार सुनने और उनसे बातचीत करने का अवसर मिला। उनकी 1987 में लिखी कविता 'जो सच-सच बोलेंगे मारे जाएंगे' आज की स्थिति को बयां करती है। वर्तमान में सही को सही और गलत को गलत कहना आसान नहीं है।
बातचीत के दौरान राजेश जी ने कहा कि आज राजनैतिक माहौल बहुत ही खतरनाक है। नेता अपने स्वार्थ के लिए देश का इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश कर रहे हैं। इस प्रकार उल्टे सीधे बयानबाजी करने वाले और देश को जाति-धर्म के नाम पर बांटने वाले नेताओं की आलोचना करने की बड़ी जिम्मेदारी साहित्यकार, पत्रकार और बुद्धिजीवी वर्ग की है। हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए भारी कीमत चुकानी होगी। समाज में जब कभी भी गलत दिखाई दे तो उसकी निंदा करने में बिलकुल भी नहीं घबराना चाहिए। कवि सिर्फ वो नहीं जो कविता लिखते हैं, कवि तो वह है जिनकी लेखनी में जनता की आवाज हो। समाज के अंदर ऐसी दृष्टि हो जो उचित-अनुचित को समझ सके। रचना के लिए दो घटक होते हैं- समय और समाज। इसे देखने के लिए व्यापक और निष्पक्ष निगाहें की जरूरत होती है।
आज पूरी तरह से भेड़ धसान का दौर चल रहा है। विज्ञान की पढ़ाई करने के बाद भी कई लोग विवेकशून्य होकर अंधविश्वास में फंसे हैं। ऐसे डाक्टर बहुत देखने को मिलते है, जो उंगलियों में अंगूठी पहनते हैं और झांड़-फूंक व जादू-टोने पर विश्वास करते हैं। ऐसे व्यक्ति की पूरी पढ़ाई व्यर्थ है। पढ़-लिखकर भी काल्पनिक और अर्नगल बातों पर विश्वास करते हैं। इस प्रकार के मूर्खों का मन को बदलना बहुत ही कठिन काम है। कवि और पत्रकार को चाहिए कि समाज में भ्रम और अंधविश्वास न फैलाकर अपनी पूरी ताकत वैज्ञानिक और प्रगतिशील विचार को जन-जन तक फैलाने में लगाए। चाहे समाज में विकृत्ति हो या सत्ता में खामियां। इसके खिलाफ बेझिझक और खुलकर लिखना होगा। साहित्य का काम गलत चीजों का हमेशा प्रतिरोध करना है। समाज में जब-जब विकट स्थिति आएगी, तब-तब साहित्य रास्ता दिखाने का काम करेगा।

Wednesday, 4 July 2018

अंधविश्वास की दलदल में भारतीय समाज

जब किसी का मनोबल कमजोर हो जाए और वैज्ञानिक सोच खत्म हो जाए तब वहां अंधविश्वास जन्म लेता है। दुनियाभर में एक से बढ़कर एक खोज हो रही है, लेकिन भारत देश में आज पूजा-पाठ, जादू-टोने, बैगा-गुनिया, ठुआ-टोटके और न जाने क्या-क्या चल रहे हैं। दिल्ली के बुराड़ी संतनगर में एक ही परिवार के 11 सदस्यों ने पूजा-पाठ करते हुए मोक्ष पाने के लिए फांसी लगा कर जान दे दी। घर में मिली चीजें बयां करती है कि यह भाटिया परिवार लगातार तंत्र-मंत्र के कार्य में लिप्त था। यह परिवार तांत्रिक विद्या पर विश्वास रखता था। ललित और उसकी पत्नी टीना ने परिवार के 9 सदस्यों के साथ मौत के मूंह में समा गए। घर की दीवार में पाइप लगाकर 11 छेद करना और सुरक्षा के लिए तीन कील गाढ़कर जदबंदी से अंधविश्वास की पुष्टि होती है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में 11 मौतों का कारण फांसी बताया जा रहा है।
इस प्रकार देशभर में अंधविश्वास बहुत ही खतरनाक रूप से अनपढ़ से लेकर पढ़े-लिखे लोगों को जकड़ा हुआ है। विवेक शून्य होकर जादू-टोने पर विश्वास करने वाले लोग कहीं पर जान दे रहे हैं तो कहीं पर जान ले रहे हैं। देश अंधविश्वास की भारी दलदल में फंसा हुआ है। कहीं पर बारिश के लिए मेढ़क-मेढ़की का विवाह किया जा रहा है। कहीं शांति के लिए जोर-जोर से घंटा और लाउडस्पीकर बजाया जा रहा है। बाजार में नींबू और मिर्च खाने के लिए कम और दुकान और घर में लटकाने के लिए ज्यादा उपयोग किया जा रहा है। सड़क पर नींबू-मिर्च से गाड़ी को बचाने के लिए गिर-मर रहे हैं। सड़क के किनारे कई जगहों पर मंदिर होने से लोग गाड़ी चलाते हुए प्रणाम करने के चक्कर में गिरकर हाथ-पैर तोड़ रहे हैं। कहीं टोनही-डायन के नाम पर महिलाओं की हत्या की जा रही हैं। कहीं बइगा-गुनिया के चक्कर में आकर पैसा लूटा रहे हैं। कई जगह तांत्रिक के कहने पर अपने ही बच्चे की बलि दी जा रही है। आजकल के बच्चे स्कूल में पास होने के लिए पढ़ने में कम और पूजा-पाठ में ज्यादा विश्वास करते हैं। वहीं पालक भी बच्चों को वैज्ञानिक और प्रगतिशील विचारों से दूर रखकर अंधविश्वास के जाल में फंसा रहे हैं। जब तक वास्तविक दुनिया में काल्पनिक चीजें खत्म नहीं होगी तब तक यह अंधविश्वास लोगों को अपना शिकार बनाता रहेगा।

Saturday, 23 June 2018

नानकीन कहिनी : पताल के भाव

साग-भाजी बेचइया गली-गली म चिल्लावत रहिस- ताजा-ताजा पताल, भाटा, गोभी, रमकेलिया, करेला, कुंदरू ले लव। ओतकी बेरा म गांव के गोटनिन ह अपन घर ले निकल के कइथे- पताल ल कइसे किलो लगाय हस गा।
सब्जी बेचइया ह बोलथे- 20 रुपया किलो ताय मालकिन।
गोटनिन- वाह रे सब जगह 10 रुपया म बेचावत हे अउ तैं ह मोला ठगत हस।
सब्जी बेचइया- नहीं मालकिन मैं का ठगहूं जतका म बेचत हंव ओकर ले जियादा पइसा एला उबजाय बर ट्रेक्टर, टूल्लूपंप, खातू-कचरा अउ बनिहार-भुतियार में लाग जथे मालकिन। फेर का करबे मजबूरी म बेचत हन। लेवइयामन ल का ठगबो अउ कतेक जियादा पइसा ले लेबो।
फेर दूसरा दिन साग-भाजी बेचइया ह अउ आथे। तब पताल ल 10 रुपया किलो बताथे। तभो ले गोटनिन कइथे- सबे जगह बाजार म पताल ह 5 रुपया म बेचावत हे तभो ले ते ह अबड़ भाव म बेचत हस गा।
सब्जी बेचइया- अतका सस्ता होय के बाद घलो मालकिन अबड़ लागत हे। मालिक ह ओतका लाखो रुपया कमावत हे तभो ले।
गउटनिन- लाखो कमाय ते करोड़ों कमाय तोला काय करे बर हे। पइसा रही त फोकट म कोनाे ल नइ दय।
सब्जी बेचइया- फोकट म कोन पइसा मागंत हे मालकिन साग-भाजी के बदला पइसा देवत हस। 
फेर एक दिन उही सब्जी बेचइया ह आथे- तब फेर पताल के कीमत ल गोटनिन ह पूछते। सब्जी बेचइया बताथे- का करबे मालकिन ए बखत पताल के पैदावार जियादा होगे हे अउ पानी-बादर म फसल ह खराब होवत हे, तेकर सेती सब किसानमन ह पताल ल सड़क म फेकत हे। मे ह 5 रुपया किलो म बेचत हंव।
गोटनिन- अरे सबे जगह पताल ल कोनो सुंघत नइ हे दू-तीन रुपया किलो म बेचावत हे। तभो ले तैं ह पांच रुपया म बेचत हस। कम लगाबे त लुहूं।
सब्जी बेचइया ह मूड़ धरके कइथे मालकिन फोकट म दे देथंव, एकर ले कम अउ का हो सकथे। तब गोटनिन के मुंहू ह बंद हो जथे।

Thursday, 21 June 2018

मोहनी दवई


लालाजी ह बिहिनिया-बिहनिया ले उठ के अखबार पढ़त रइथे। अइसने बेरा म ओला चमत्कारी बाबा के बिग्यापन दिख जथे। जेमा लिखाय रइथे घरवाली ल बस म करे के मोहनी दवई, कोनो टूरी संग मनपसंद बिहाव, डउकी-डउका म लड़ई झगरा के निदान, गोसइन ल कठपुतली असन नचाय के सरतीयन बसीकरन अउ सबे समस्या बर उदिम लिखाय रहाय। तब ए बिग्यापन ल देख के लालाजी ह खुस होगे। काबर ओकरो गोसइन ह रिसाके अपन मइके चल देहे। रात-दिन के लालाजी के लड़ई-झगरा अउ खटर-पटर ले तंगा के ओकर बाई ह अपन मइके म रइथे। ओकर गोसाइन ह लालाजी संग नई रहे के बिचार बना लेहे। अउ अपन एक साल के लइका ल धर के मइके म बइठ गे हे।
लालाजी ह बिग्यापन ल देखके बइगा बाबा कर जाथे। तब बइगा बाबा ह कइथे बेटा तोर समस्या के नास होही रे। पहली जतेक पूजा-पाठ के जिनिस लिखाय हे ओला ले आन अउ देख तोर बिपत ह कइसे उड़ा जही। तब बइगा बाबा ह ओला सामान के लंबा लिस्ट पकड़ा देथे। जेमा लिखाय रइथे। सात नरियर, नौ नींबू, सादा के सवा दो मीटर कपड़ा, करिया के सवा तीन मीटर कपड़ा, परेतिन दाई ल मनाय बर पांच ठोक लाल रंग के नवा-नवा लुगरा, परसाद बर सवा किलो घीव अउ बइगा बाबा के किरिपा बरसाय बर 1151 रुपया पइसा अतका सामान के नाम ल देख के लालाजी के पसीना छूटे ल धर लिस।
फेर का करबे लालाजी ल अपन बाई ल मनाय ले जियादा बइगा ल मनाय म बिसवास हे। वकिल के सलाह ले जियादा चमत्कारी बइगा के सलाह म भरोसा हे। लालाजी ह अपन बाई ल बस म करे बर काय नई करे हे। लगातार सात सनिच्चर के सनि भगवान ल खुस करे बर उपास, पांच मंगलवार के अपन बाई ल बस म करे बर निरजला बरत अउ दिन-रात पूजा-पाठ, अइगा-बइगा, माला-मुंदरी, मंतर-जंतर, ठुआ-ठोटका अउ का-का उदिम करत हे फेर अपन गोसइन ल मनाय बर एक बार भी ओकर घर नइ जावत हे अउ न तो ओकर दाई-ददा से बात करत हे। अब अइसन म ओकर रिसाय बाई ह कइसे मानही।
अब लालाजी बइगा बाबा के बताय जम्मो जिनिस ल धरके आगे। तब बइगा ह कइथे बइठ जा बाबू संसो झन कर अब तोर डउकी ह देखबे कइसे दउड़त आही। मोर मारे काही नइ बांचे। कतको बिपत ह मोला देखके भाग जथे। तब लालाजी ह अतेक-अतेक पइसा गन के बइगा के सामान लाय रहाय ओकर जीव खिसयागे कइथे- बइगा जी काही करबे धून तोर ताकत भर ल बतावत रहीबे। जब देखहू अउ जानहू तभे मानहू। बइगा बाबा- बालक तोला मोर ताकत अउ सिदधी म संदेह हे। ते देखत भर जा तोर बाई ल मे ह कइसे नाच नचावत काहत भारी मंतर पढ़-पढ़ के भभूत ल ओकर ऊपर फूंकत-थूकत जात हे। बइगा बाबा ह लालाजी ल भभूत दे के कइथे ले बाबू ए मोहनी दवई ल अपन संग म रखे रइबे। अतका काहत बइगा बाबा ह जम्मो सामान ल रखके कइथे अब जा बेटा देखबे एक हफ्ता म तोर बाई ह आ जही। तब लालाजी ह कइथे बइगा बाबा मोर सामान ? बेटा ए सामान ह पूजा के आय काली माई ल खुस करे बर चढ़ाय ल लागथे। जब खुस होही तब तोर गोसइन ह आ जही। अभी तोर ले देवी ह नाराज हे। तब लालाजी ह कलेचुप घर आ जथे।
लालाजी के घर आते साथ पोस्टमेन ह उकर घर पहुंच जथे अउ कोरट के पेसी के नोटिस लालाजी ल थम्हा देथे। तब लालाजी देखथे ओकर घरवाली ह ओकर खिलाफ केस कर देहे अउ ए महीना के 12 तारीख के पेसी हे। अतका म ओकर चेथी के दिमाग ह तरवा म आ जथे। पेसी अउ बइगा बाबा के बात ल लेके दिन अउ रात सोचत रइथे। तब अइसे-तइसे एक हफ्ता ह बित जथे फेर ओकर बाई ह नई आवय। अतका म लालाजी ह मार रखमखाय बइगा बाबा कर जाथे अउ कहिथे कस भारी चमत्कारी अउ ताकतवर बाबा तैं ह तो मोर बाई ल नचावत लाहूं कहे रहेस। अभी ले काही आरो नई हे। बइगा कइथे अरे बाबू कभी-कभार थोक-बहुत देरी हो जथे। तब लालाजी ह कोरट म पेसी के बात ल बताथे। बइगा कइथे कोई बात नहीं बच्चा सब ठीक हो जही। मोर पहिचान के एक ठोक नामी वकील हे। ओ ह तोर केस ल लड़ दिही अउ एती मंतर-जादू घलो चलत रही। फेर देख डबल पावर वकिल अउ बइगा के। अतका बात ल सुनके लालाजी ल बइगा बाबा के सबो गनित ह समझ आ जथे अउ तरवा ल धर के बइठ जथे।

Tuesday, 12 June 2018

बीजेपी का 'बेटी बचाओ' नारा की असलियत

जब से भाजपा सरकार आई है तब से बेटी बचाओं का नारा बहुत ही जाेरशोर से लगाया जा रहा है। मतलब यह है कि बीजेपी चेतावनी दे रही है कि कभी भी आपकी बेटी-बहू की इज्जत लूटी जा सकती है। इसलिए बीजेपी विधायक और बीजेपी के पूजनीय बाबाओं से बेटियों को बचाना होगा। कुछ दिन पहले उन्नाव, उत्तरप्रदेश के बीजेपी विधायक कुलदीप सेंगर ने नाबालिग लड़की के साथ रेप कर हत्या की। इसी दरमियान जम्मू कश्मीर के कठुआ में छोटी बच्ची के साथ 8 भगवाधारियों ने मंदिर में बलात्कार कर मौत के घाट उतार दिया। बलात्कारियों के बचाव के लिए बीजेपी और हिंदू संगठनों ने इस दौरान झंडा यात्रा भी निकाली, जो बहुत ही शर्म का विषय है।
अभी एक खबर समाचार की दुनिया में तैर रही है कि अपने आप को भगवान कहने वाले दिल्ली के शनिधाम के बाबा दाती महाराज और उनके चेलों ने एक 25 वर्षीय युवती के साथ डरा-धमकाकर बार-बार बलात्कार किया। एक बात और बता दिया जाए कि इस बलात्कारी बाबा से पिछले दिनों मोदी सरकार के चार साल पूरे होने पर बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव राम लाल ने मिलकर भाजपा का बुकलेट देकर आर्शीवाद लिया था। तब बलात्कारी महाराज ने कहा था कि मोदी जी ने बेटी बचाओ अभियान चलाकर अद्भूत कार्य किया है। इस प्रकार बेटी बचाओं अभियान का प्रसंशा करने वाले बाबा कैसे बेटियों की इज्जत लूटते हैं। दाती बाबा दुष्कर्म करके फरार हो गया है। फिर भी उनके भक्त उनकी पूजा करने के लिए उसे ढ़ूढ रहे हैं।
हमारे देश में अंधभक्तों की कमी नहीं है लगातार धर्मगुरु, बाबा, महाराज व भगवान और धर्म के नाम पर फैक्ट्री चलाने वालों की बाढ़ सी आ गई है। वहीं अंधभक्त भी इस बाढ़ में बह रहे हैं। कुछ समय पहले की घटनाओं पर नजर डाले तो लगातार बाबाओं की असलियत सामने आ जाएगी। खुद को इच्‍छाधारी संत कहने वाले स्‍वामी भीमानंद सेक्स रैकेट चलाता था। स्वामी प्रेमानंद 13 लड़कियों के साथ बलात्कार करने के दोषी पाया गया। स्वामी सदाचारी वेश्याघर खोलकर दुराचारी करने के आरोप में गिरफ्तार किया। स्वामी नित्यानंद ने नित्य बलात्कार करने के आरोप में पकड़ें गए। अपने आप को बापू करने वाले बूढ़ा आशाराम 16 साल की बच्ची को आर्शीवाद देने के बहाने छेड़छाड़ और यौन शोषण के आरोप में जेल में सड़ रहा है। मार्डन बाबा राम रहिम ने अपना डेरा में सैकड़ों महिला साध्वियाें के साथ दुष्कर्म करने के आरोप में जेल के अंदर फड़फड़ा रहा है। फलाहारी बाबा पर छत्तीसगढ़ की 21 वर्षीय युवती के साथ बलात्कार का आरोप लगा है। इस प्रकार अगर इन बाबा, स्वामी, साधु और धर्म गुरु की कहानी सुनाने बैठे तो इनकी लिस्ट बहुत ही लंबी है। धर्म और भगवान के नाम पर लोग इतने अंधे हो जाते है कि अंधभक्तों पूरी बुद्धि ही खत्म हो जाती है। इस प्रकार लगातार बाबाओं की पोल खुलने के बाद भी अंधभक्तों की भीड़ में कमी नहीं दिखाई देना एक बहुत बड़ा सवाल खड़ा करता है।

Monday, 11 June 2018

कहिनी : संग म जिये-मरे के किरिया

बिसनु ह 12वीं म फर्स्ट डिविजन ले पास होय हे। उकर घर म बड़ उछाह दिखत हबाय। ओकर दाई-ददा ह अपन एकलउता लइका ल जियादा नंबर म पास होय देखके आनी-बानी के सपना अंतस म संजोय ल लागथे। बिसनु के दाई ह कइथे देखबे हमर लइका ह कइसे बड़े जान सहाब बनही। हमर परवार के नाम रोसन करही। कुल म अंजोर करही। बिसनु ह कभू गांव ले बाहिर नइ निकले रहाय। अउ ओकर दाई-ददा ह घलो कभू अपन बेटा ल घर ले बाहिर नई भेजे हे। फेर अब ओ बेरा आगे हे। बिसनु ह गांव ल छोड़ के रइपुर म कालेज के पढ़ई ल करे बर मन बना ले हे। अउ ओकर बाप-महतारी मन घलो ओकर पढ़ई बर पइसा के बेवसथा म लगे हे। फेर का करबे जब दाई-ददा अउ लइका के अलग होय के बात ह आथे त करेजा ह धक-धक करे ल धर लेथे। अब बिसनु ह गांव ल छोड़ के सहर डाहर जाय बर अपन दाई-ददा ले आसीरबाद लेथे। ओकर दाई-ददा ह मोटर इसटेसन तक छोड़े बर आथे अउ करजा-बोड़ी करके लाय पइसा ल बिसनु ल दे के आसीरबाद देवत कइथे बने मन लगाके पढ़बे बेटा रइपुर म। ओतके बेरा म बस ह हारन बजावत आ जथे। तब बिसनु ह अपन सामान ल लेके बस म बइठथे।
बस म बइठे-बइठे बिसनु ल दाई-ददा, संगी-संगवारी अउ गांव के सुरता ह नदिया कस धार मन म बोहवत रइथे। ए सुरता के लहरा ह ओकर आखी म घलो छलके लागथे। तब बस ह रइपुर के घड़ी चौक म पहुंच जथे। जब कंडेक्टर ह रइपुर-रइपुर चिल्लाथे तब रखमखाके उठथे। बिसनु ह रइपुर के चका-चौंध ल बस म उतर के ससन भर निहारथे। गरीब मनखे ह पइसा के किमत ल समझ सकथे। बिसनु के दाई-ददा ह चेताय रहाय देखके खरचा करबे बेटा करजा लेके पढ़ावत हन कही के। ए बात ल बिसनु ह अपन मन म गठियाय रहाय। कभू पइसा खरचा करे के बेरा आवय त ओकर दाई-ददा के बात ह झटकुन सुरता आ जावय। अउ फोकट के खरचा करे ले बाचय। अब ओहा अपन कालेज के हास्टल पहुंच गे। हास्टल ह ओकर बर नवा जगह रहाय। कभू घर ले दुरिया नइ गे रहिस फेर का करबे पढ़ई करे बर छाती म पखरा रख के हास्टल म रहे बर तियार होगे। ओकर कालेज हास्टल ले एक किमी दूरिया रहाय। बिसनु करन सइकिल घलो नइ रहिस। तब ओ ह रोज रेंगत-रेंगत कालेज जावय-आवय। ओकर संगवारीमन आनी-बानी के फटफटी म कालेज आवय। बिसनु ह पढ़ई म अव्वल रहाय। तेकर सेती सब लइका अउ सर-मेडम मन बिसनु ल अबड़ भावय। बिसनु के कलासमेट सबिता ह ओकर ए मेहनत अउ लगन ल देखके मोहा गे रहाय। जब बिसनु ह कलास छुटे के बाद हास्टल डाहर जाय बर रेंगिस ओतके बेरा म सबिता ह घलो अपन फटफटी म हास्टल डाहर गिस। तब बिसनु ल रेंगत-रेंगत जावत देखथे। फेर सबिता ह ओला काहीं नइ कहे सकय काबर कालेज म आय दू-चार दिन तो होय रहाय। अउ बिसनु से ओकर अतेक जान-पहिचान भी नइ हे जउन ह ओला फटफटी म बइठे बर कही सके।
दूसरा दिन घलो सबिता ह बिसनु ल रेंगत जावत देखथे तब हिम्मत करके गाड़ी ल ओकर आघू म रोक देथे। अउ बिसनु ल कइथे - बिसनु चलना मे ह तोला हास्टल तक छोड़ देथंव। बिसनु कइथे - नहीं सबिता मैं ह रेंगत चले जाहू। वइसे मनखे ल थोक-बहुत चलना-फिरना भी चाही। एकर ले सरीर ह बने रइथे। कतको जिद करे के बाद भी बिसनु ह फटफटी म नइ चघय। तब हार मानके सबिता ह बाय बिसनु काहत निकल जथे। एक दिन के बाद फेर बिसनु अउ सबिता ह कालेज जावत-जावत रद्दा म मिल जथे। तब फेर सबिता ह ओला अपन फटफटी म बइठे के बिनती करथे। तब बिसनु ह सोचथे कि घेरी-बेरी एकर बिनती ल ठुकराहू त ए ह मोला घमंडी समझही। तेकर ले आज एकर फटफटी म बइठ जथंव। अतका कही के फटफटी म बइठ जथे। तब सबिता के मन ह गद हरियर हो जथे। अब बिसनु अउ सबिता ह बढ़िया संगवारी बन गे हे। दुनो झन एक साथ बइठके पढ़ई-लिखई करे ल धर लिस। इकर दोस्ती ह दिनोदिन गढ़ावत जावत हे। सबिता ह बिसनु ल कालेज लेगे बर रोज ओकर हास्टल के गेट म पहुंच जाय। रोज एक साथ एके गाड़ी म आना-जाना करत रहाय। ए सब ल देख के ओकर कलास के लइकामन आनी-बानी के गोठ गोठियाय। बिसनु अउ सबिता के पढ़ई के समय अब बितत जावत हे।
अब एमन ल एक संघरा पढ़त-लिखत अउ घूमत-फिरत दू साल बितगे। अब इकर मन म दोस्ती के अलावा मया के पिका घलो फूटे ल धर लिस। तब सबिता ह एक दिन बिसनु ल कइथे- हमर जिनगी ह एक संघरा म कतेक बने लागथे बिसनु। का हमन सबर दिन बर एक नइ हो सकन। तब बिसनु ल सबिता के दुसर जात होयके अउ गांव के जात समाज के सुरता आगे। कइसे गांव म जात समाज ह दूसर जाति के संग बिहाव करइयामन ल अउ ओकर परवार ल छोड़ देथे। जेकर ले ओमन नरक असन जिनगी जिये बर मजबूर हो जथे। फेर बिसनु ल ए जात-समाज के डर ले सबिता के मया के बंधना ह जियादा खिचत हे। सबिता ल घलो अपन दाई-ददा अउ जात समाज के डर लागे ल धर लिस। अब दिन अउ रात इही बात ह दुनो झन के अंतस म गरेरा कस चलत रहाय। न ठिक से सूत सकय, न मुंहू म कावरा ह लिलावय अउ न काही कर सकय। तब दुनो झन ह ए जात-समाज के नफरत के दीवाल ल मया के कुदारी म फोड़े के हिम्मत करिस। सबिता कइथे - बिसनु का ते ह अगले साल पढ़ई पूरा होही त मोला छोड़ के चल देबे का। मे ह तोर बिना नइ रहे सकव। भले मोर जात-समाज के अत्याचारी ल सही सकथव फेर तोर ले दुरिहा होके मया के पीरा म नइ जी सकव। बिसनु ह घलो कइथे - सबिता ए रद्दा ह बहुत कठीन हे। रद्दा म पहार-परबत, जंगल-झाड़ी हे। पूरा गांव के मनखे मन घलो हमन ल पापी समझही। सबिता- का कोनो मया करइयामन पापी हो जथे। पापी तो ओमन आय जउन ह जात-धरम के नाव लेके मया-पिरित के गला घोटत रइथे। इकर असन अधरमी कोन होही।
तब होली के छुट्टी म बिसनु ह अपन घर जाथे। अउ ए बात ल अपन-दाई ददा ल बताथे कि मे ह मोर पसंद के बिहाव करना चाहत हंव। अतका बात ल सुनके दाई-ददा ह सकपका जथे। कइथे बिसनु ओ नोनी ह कहा रइथे। बिसनु- मोरे कक्षा म पढ़थे ददा अउ हमन ह एक दूसर ले बढ़ मया करथन। कोन बिरादरी म आथे रे बिसनु ओ छोकरी ह। बिसनु- हमर जात के नोहे ददा फेर हमन एक दूसर के बिना जी नइ सकन। ददा ह कइथे कस रे बेटा तोला एकरे बर रइपुर भेजे रहेन रे। बने पढ़बे अउ दाई-ददा के नाव रोसन करबे। हमर कुल ल उबारबे कहीके भेजे रहेन। फेर तै तो कुलबोरूक निकलेस रे। हठ जा मोर करले। तोर बिहाव हमन हमर जात-सगा के टुरी संग करबो। ओ अनजतनिन टुरी संग नइ करन। हमर समाज ह का कही। चार झन देखही-सुनही ते ह का कही। देखले फलाना के लइका ह अनजतइया होगे कही के। कहइया-बोलइय ल तो छोड़ जात-समाज ह हमर हुक्कापानी बंद कर दिही। तब बिसनु कइथे- मे ह जेन ल जानथंव अउ मया करथंव ओकर संग बिहाव करहूं न कि कोनो अनजान संग। जउन ल नइ जानव ओकर संग घर-गिरहसथी बसाके मोर मया ल नइ भुला सकव अउ ओ अनजान संग मया नइ पनप सकय। ये जात-समाज ह मया के गला घोटे बर राक्छस असन हमेसा खड़े रइथे। लेकिन मे ह ए राक्छस से डरइया नो हंव। तब बिसनु के ददा ह खतरनाक गुस्सा जथे। मोर बात ल न सुनत हस न गुनत हस। निकल जा ए घर ले आज ले ते मोर बर मरगेस। तब बिसनु ह कुरिया म खुसर जथे। अउ बेग ल धरके कुरिया ले निकलथे। अपन ददा के पाव छुए बर निहरथे त ओकर ददा ह ओला लतिया के हठ जा इहा मोर कर ले तोर मुख नइ देखना चाहंव कइथे। ओकर दाई ह घर म रोवत बइठे रइथे। बिसनु ह दाई के पांव छू के घर ले बाहिर निकल जथे। 
ओ डाहर सबिता ह अपन-दाई ददा ल अपन मया के गोठ ल बताथे। तब ओकरो दाई-ददा ह आन जात के संग बिहाव के बात ल सुनके तनतना जथे। अउ सबिता ल कालेज नइ भेजके ओकर बिहाव करे बर छोकरा खोजे बर धर लेथे। जब बिसनु ह कालेज पहुंचथे। तब सबे संगी-संगवारी मन आय रइथे, फेर सबिता ह ओकर नजर म कोनो मेर नइ दिखय। दूसर दिन घलो कालेज म सबिता ह नइ दिखय। ओकर कोई अता-पता नइ रहिस। अइसने-अइसने चार दिन ह बितगे सबिता ह नइ अइस। तब बिसनु के मन म आनी-बानी के सवाल ह उठे ल धर लिस। कभू सोचय कि सबिता ह ओला धोखा देके भाग गे का। कभू सोचय नहीं सबिता ह मोला जी-जान ले चाहथे। ओ कभू अइसे नइ कर सकय। कहीं ओकर दाई-ददा ह तो ओला रोक के तो नइ रखे होही।
एक दिन सबिता के घर म ओकर दाई-ददा ह नइ रहिस त भाग के कालेज आगे अउ बिसनु से मिलके ओला जम्मो बात ल बतइस।  बिसनु ह घलो अपन बात ल बतइस। तब सबिता ह कइथे- चल बिसनु अब हमन ए नफरत के जात-समाज ल छोड़ के एक पिरित के खोंधरा बनाबो। चल आजे कोर्ट म जाके बिहाव करबो। बिसनु- नहीं सबिता हमन अइसन नइ कर सकन। एकर बर दाई-ददा, घर-परिवार, सगा-सोदर अउ जात-समाज ल छोड़े बर परही। का हमन अइसन कर पाबो। तब सबिता कइथे मैं ह मया ल पाय बर सबे से लड़े बर तियार हंव। अतका बात सुनके बिसनु ह सोचे ल लागथे देख तो सबिता ह कतेक हिम्मत वाली आय। अब महू ल हिम्मत दिखाय ल परही। तब बिसनु कइथे- ठिक हे सबिता कल कोर्ट जाके बिहाव करबो।
तब कोर्ट म जाके बिहाव कर लेथे। अउ रइपुर म किराया के मकान लेके रहे ल धर लेथे। ए खबर ह दुनों झन के गांव म आगी असन फइल जथे। अउ दूनो के गांव म जात-समाज के बइठक होथे। तब उकर जात-समाज ह दुनों परिवार के हुक्कापानी बंद कर देथे। ए बात ल लेके सबिता के ददा ह मार गुस्सा म अपन सगा अउ कुटुंब परिवार के पांच झन संग सबिता अउ बिसनु ल खोजत रइपुर आगे। तब पता चलिस कि दुनों झन टिकरापारा म रइथे। जब सबिता के ददा ह पांच झन लठैत ल धर के खोजत टिकरापारा म आथे। तब बिसनु ल ए बात के जानबा हो जथे। अउ सबिता ल बताथे। बिसनु अउ सबिता ह कपड़ा-लत्ता ल जोर-जंगार के फटफटी म भागे ल धर लिस। रइपुर ले जइसे निकलिस त नरवा के तीर म सबिता के ददा ह बिसनु अउ सबिता ल पहुंचागे। तब अपन लठैत मन ल कइथे। ए टुरा के बुता ल बना दव। मोर नोनी ल धर के भागत हे। अतका हिम्मत एकर मजा चखाव एला। ए बात ल सुन के लठैत मन बिसनु ल जोर से डंडा म फेक के मारथे। जेकर ले बिसनु अउ सबिता दुनाे झन फटफटी ले गिर जथे। तब बिसनु ल ओकर लठैत मन अइसे मरइय मारथे जइसे लकड़ी ल काटे बर टंगिया चलाय जाथे। ओ डाहर ले बिसनु के ददा अउ चार झन ओकर रिस्तेदार मन खोजत-खोजत ओतके बेरा आ जथे। जब बिसनु के ददा अउ आेकर रिस्तेदारमन देखथे कि बिसनु ल अबड़ मारथ हे कही के त बिसनु ल बचाय ल छोड़ के सबिता ल डंडा-डंडा मारे के चालू कर देथे। सबिता अउ बिसनु लहू-लुहान हो जथे। तभो ले दूनों परिवार ह एक दूसर के दुस्मन असन बिसनु अउ सबिता ल मारते रइथे। सबिता अउ बिसनु के लहू ह बोहवत-बोहवत एके जगह म जाके मिल जथे। तब अइसे लागथे कि दोनों मया करइया ह गला मिलत हे। अउ जनम-जनम संग म जीये-मरे के किरिया खावत हे। ए डाहर एक-दूसर जाति उपर नफरत करइया मन मया करइया मन ल दुनिया ले मिटाय के कोसिस करत हे। फेर एमन ल थोरको समझ नइ हे कि मया ल मिटाय नइ सकय। ए ह तो अइसे आय जउन मयारूमन मर के अपन मया ल अउ अमर कर देथे। डंडा अउ लात के मार म बिसनु अउ सबिता के परान ह छूट जथे। दुनों परेम के पुजारीमन अइसे मौन परे हे जइसे दुनो ह काहथ हे कि देख हमन संग म जिये-मरे के किरिया खाय रहे हन ओ ह आज पूरा होगे। बिसनु के ददा अउ सबिता के ददा अब डंडा ल फेक के सोचे बर धर लेथे कि हमन का कर डारेन अपने लइका ल हमीमन मार डारेन। हमन ल जात-समाज के अंधियार म इंसानियत अउ परेम के अंजोर ह घलो दिखाई नइ दिस। का लइकामन ले जियादा जाति ह बड़े होगे ? अब हमन ए जात-समाज ल का करबो ? अइसने सोचत-सोचत बिसनु अउ सबिता के ददा ह अपन-अपन घर डाहर चल देथे।

Monday, 4 June 2018

नान्हे कहिनी : कुलबोरू


मनटोरा अपन घरवाला भुलऊ ले कइथे - मे ह सुनत हंव कि बुधारू के टूरा ह अनजतनिन टूरी संग बिहाव करे हे। तेकर सेती ओमन ल जात समाज ले बाहिर कर दे हे कही के।
भुलऊ : हव, ते सिरतोन सुने हस। जात म कलंक लगाय के सेती एक लाख के दांड़ के समाज ह फेसला सुनइस। जब बुधारू ह दांड़ ल नइ पटइस त ओकरमन के हुक्कापानी बंद कर दे हे।
मनटोरा : बिचारा गरीब आदमी कहा ले अतेक-अतेक पइसा ल दे पाही। अउ का होगे दूसर जात के नोनी संग बिहाव करे हे त बने सुंदर अउ गुनवंतिन तो हे।
भुलऊ : काही रहाय जब ओमन ह पइसा दिही तभे ए कलंक ह मिटा के पबित्र होही।
मनटोरा : आजकल पूरा पइसा के खेल हे। पइसा दे ले ओकर कुल के दाग ह खलखल ले धोवा जथे। अउ दांड़ नइ दे पाय त सबर दिन गिनहा अउ असुद्ध रइथे।

Tuesday, 8 May 2018

दिल्ली के चार फर अउ नानपन के सुरता


गर्मी के दिन म हमर छत्तीसगढ़ के डोंगरी म चार (नान कुन फर) अबड़ देखे ल मिलथे। जइसे जाड़ के जाती अउ गर्मी के आती होथे अइसने बेरा म चार फर ह पेड़ म लट-लट ले फर जाथे। आज मे ह दिल्ली के कनॉट प्लेस म ये फर ल देखेंव त सुरता अइस ए तो हमर गांव म अबड़ होथे अउ नान कुन रहे हन त अबड़ खाय घलो हन। तब मे ह ए फर ल बेचइया डोकरी ल पुछेंव - ये क्या चीज है? त ओ ह कथे - ए फालसा फल है? तब मोला लागिस कि ये काही आने फर तो नोहे देखे म तो हमर गांव के जंगल के चार असन दिखत हे। तब मे ह वैरिफिकेशन करे बर दू ठन ल चीख के देखेंव भले 18 साल बाद खाय हंव फेर नान पन के स्वाद ल मनखे ह नई भुला सकय। तब मोला पक्का विश्वास होगे कि ए ह चार आय। तभो ले मेहा खोदिया के पुछेंव - ए फल कहाँ होता है ? तब डोकरी बतइस - ये जंगली फल है। मैं तो यही के बाजार से लेकर आती हूँ और यही बेचती हूँ अभी इसका 300 रुपए किलो है। मे ह 300 सौ रुपए ल सुन के1 सकपका गेंव। तब मे बड़का बाजार म जाके बेचईया मन ल पुछेंव। तब ओ मन बतइस कि - यह जंगली फल फालसा है मध्य भारत के वनों में यह बहुत ज्यादा मात्रा में पाए जाते हैं और वही से यहा आते हैं। यह औषधि फल है जो गर्मी के दिनों में ही पाए जाते है। यह फल पानी की कमी, गर्मी से बचाव और लूँ के लिए लाभदायक है। अतका जाने के बाद पूरा भरोसा होगे चार फर आय कहि के। फेर अतका म मोर नानपन के सुरता ह अन्तस म हिलोरे ल धर लिस। कइसे लइका रहे हंव त मोर डोकरी दाई के संग गांव के जंगल म महुआ बीने बर अउ तेंदू पत्ता तोड़े बर जावव त कइसे मोला मीठ मीठ चार खवाय। अभी ले मे गुनत हंव..।

Monday, 26 March 2018

कहिनी : मरिया भात

रोज दिन असन आज घलो सुकालू अउ लछनी दुनो परानी ह रोजी-मजदूरी करे बर नाहर के पुलिया बनत राहय उंहा चल दिस। सुकालू के घर के इसथिति अइसे हाबे कि दुनो परानी कमाथे तब घर के चुल्हा जलथे। लछनी के तबीयत अबड़ दिन के खराब रहाय। तभो ले भूख अउ दुख मिटाय बर रोज हकर-हकर कमाय। तभो ले पुलिया के ठेकादार ह सबे मजदूर संग जानवर असन बेवहार करय। लछनी ह काम करत-करत पानी पीये बर थोकन बइठ गे। ओतके बेरा म ठेकादार आगे अउ ओकर हाथ के गिलास ल झटक के धुतकारीस - तुमन बहुत कामचोर हव। इहा पानी पीये बर भर आथव। काम-बुता काही नई करना हे। फेर बपरी लछनी ह तो मजदूर अउ मजबूर आय करय ते करय का। कले चुप पियास म घलो गिलास ल छोड़ दिस। ओ दिन लछनी बुखार के मारे कापत रहाय। रेंगे बर घलो ओकर पांव नई उसलत रिहिस। तभो ले लइकामन के पेट खातिर पूरा ताकत भर अपन पांव ल आघू डाहर बढ़हइस। ले-दे के धमेला के गिट्टी ल उठइस अउ रेंगे ल धरिस। ओतके बेरा लछनी ह फिसल के नाहर ले गिर गे। अब अलहन ह ओकर जिनगी ल ले बर आघू म खड़े रहाय। सबो मजदूर ह देखो-देखो कहिके लछनी करा जोरयागे। तभे सुकालू ह घलो कोन काय होगे कही के भीड़ डहार दउड़िस त देखथे लछनी ह गिरे पड़े हे। सुकालू के आखी ह मूंदा गे। चारों डाहर अंधियारी छागे। सुकालू अउ मजदूर मन ह ठेकादार करन गिस अउ हाथ जोड़ के लछनी ल बचाय के गोहार लगइस। फेर ठेकादार ह न डाक्टर बलइस न एंबुलेंस अउ न कोनो बचाय के उदीम करिस। जियादा बेरा होय के सेती ओकर परान ह छूट गे।
जम्मो मजदूर अउ गांववालेमन मिलके लछनी के अंतिम संस्कार करिस। घर म सुकालू के दू झन लइका मन ह दाई के सुरता अउ भूख म कलहरत रहाय। सुकालू ह घलो अतेक बड़े पहार असन बिपत के मार म मूर्ति बने घर म बइठे रहाय। उही बेरा म ओकर जाति समाज के मुख्या उउ चार झन समाज के मनखे ह उकर घर पहुंचगे। जाति समाज के मुख्या जगमोहन ह सुकालू ल कथे- सुकालू तोर बाई बित गे अउ ते ह मरिया भात के तियारी नई करत हस जी। दस दिन ले नाहवन करे बर परही। अउ पूरा दिन नहवइयामन ल खवाय बर लागही। ओकर बाद दसवा दिन दसगातरा म समाज के जम्मो मनखे ल मरिया भात खवाय ल लागही। तब रोवत सुकालू ह कथे- ददा हो मे ह मोर अउ लइका मनके पेट ल नई भर सकत हंव। लछनी ह परलोक सिधार गे। अब मे ह इही सोचत बइठे हंव कि घर-बार कइसे चलही। तुहीमन बताव मोर ददा। मे का गांव भर के जाति समाज ल कइसे मरिया भात खवा सकहूं। न तो मोर कर खेत-खार हे न क काही जीनिस। जेन ल बेच के खवा सकंव। समाज के मुख्या जगमोहन ह कथे- सुकालू तोला तो मरिया भात खवाय ल परही, तभे लछनी के आतमा ल सांति मिलही। जाति समाज के चार झन आय रहाय उहू मन ह मुख्या के गोठ म हुकारू दे ल धर लिस। तब समाज के मुख्या जगमोहन ह कथे सुकालू तोला खवायच ल परही समाज के परंपरा, परथा अउ नियम ल नई तोड़ सकस। हमर पुरखा मन जे नियम बनाय हे, ओ मन सोच-समझ के बनाय हे। अब ते काही करस मरिया भात ल तो खवाय ल परही। अतना कही के समाज के मुख्या अउ चारो झन ओकर लंगुरेमन सुकालू के घर ले बाहिर निकलगे।
रातभर सुकालू ह मुख्या के बात ल सोचत रहिस कि ए कइसन जाति समाज आय। जे ह मरत आदमी ल मारे के काम करथे। अतेक परथा अउ परंपरा के संसो हे, त काबर एमन समाज के गरीबमन के मदद नई करय। तब फेर मने-मन कहे ल लागथे कि मोर बाई लछनी ह जब बीमार रहिस, त कोनो जाति समाज के मनखे ह घर म पूछे बर नइ अइस। आज मरे के बाद घर म आके बिपत के समय म मरिया भात खवाय ल कहात हे। वाह रे जाति समाज कहिके जब आंखी ल खोलथे। त बेरा ह ऊग जाय रहाय। सुकालू ह कइथे अरे आज के रात ह तो इही बात के संसो म पहागे। तब सोचिस गांव के सरपंच से मदद मांगे जाय।
होवत बिहिनिया सरपंच सुकनंदन के घर गिस। अउ आवाज लगइस दाऊजी हाबव का। तब अबड़ बेरा म सरपंच ह घर ले कोन अव रे बिहिनिया-बिहिनिया ले परेसान करथंव चिल्लावत बाहिर निकलिस। तब सुकालू ह सरपंच ल देखके ओकर पांव म गिर गे। अउ जम्मो बात ल बतइस। तब सरपंच सुकनंदन ह कथे- देख भाई तोर जाति समाज जानय अउ ते जान जी। हमला तुहर समाज के परंपरा अउ परथा म आड़ा नई बनना हे। अतना कही के कपाट ल देके सरपंच ह भीतरी म खुसरगे। तब सुकालू ह रोवत-रोवत गांव के सचिव, तहसीलदार, विधायक, मंतरी, मुखमंतरी अउ सरकारी दफ्तर म मुआवजा बर चक्कर लगइस। फेर न तो ओला मुआवजा मिलिस न कोनो मदद। ओकर हाथ ह जुच्छा के जुच्छा। ऐती लइकामन ह भूख म मरत रहाय। फेर कोनो ह सुकालू अउ ओकर परिवार के मदद नइ करिस। संझा जुआर जब सुकालू ह घर पहुंचिस त लइकामन ह काही खाय के लाय होही कही के झूमगे। फेर सुकालू ह रो परिस कि आज ओ ह अपन अउ अपन लइकामन के पेट नई भर सकत हे। तभो ले ओकर जाति समाज के मन परथा अउ परंपरा के नाम म मरिया भात खवाय बर परेसान करत हे। ये सोचत-सोचत सुकालू ह बइठे रहाय। ततके बेरा फेर समाज के मुख्या जगमोहन ह धमक गे। अउ कहिस सुकालू तैं ह अतेक दिन बिते के बाद भी मरिया भात नइ खवाय हस। दू दिन म मरिया भात खवा देबे। नहीं तो तोर हुक्का पानी बंद कर दे जाही। कही के ओकर घर ले निकल गे। 
सामाजिक बहिष्कार के बात ल सुनके सुकालू ह अचेत असन हो गे।  अब ओला लछनी के सुरता अउ समाज के परताड़ना ह जियाने ल धर लिस। अब सोचे ल लागिस अइसन समाज म जी के का करहूं कही के। होवत बिहिनिया डोर ल धर के नवा तरिया डाहर गिस। परसा के पेड़ म फांसी अरोवत रहिस। जब गला म डोर ल डारिस ओतके बेरा म गांव के गुरुजी ह नाहे बर तरिया जावत रहिस। ओ ह सुकालू ल देखके दउड़िस अउ डोर ल निकाल के सुकालू ल अलग करिस। तब सुकालू ह कथे- गुरुजी आज मोला झन रोक मे ह ए समाज म जी के का करहूं। जिंहा के सियान ह मदद के बदला मरे बर मजबूर करथे। सुकालू ह गुरुजी ल जम्मो बात ल बतइस। तब गुरुजी ह कथे हमन तो हाबन जी तोर संग। ते ह काबर संसो करत हस। मैं ह देख लूहूं। तोर समाज के मुख्या ल। तब गुरुजी ह सुकालू ल घर ले के गिस। अउ ओला उपाय बतइस। अउ ओ उपाय ल सुकालू ह मान गे। अउ ओकर उपाय ल सुनके मन ह थोकन हरिया गे।
फेर समाज वालेमन मरिया भात बर बइठक करवइस। बइठक म समाज के मुख्या अउ सदस्य मन कचा-कच सकलाय रहाय। गुरुजी ह घलो सुकालू के पक्छ म बात रखे बर आय रहाय। गुरुजी सरकारी स्कूल म लइका मन ल पढ़ाथे। ओकर सबे झन अबड़ मान सम्मान करथे। फेर गलत करइया जाति समाज के मनखे मन ओकर ले चिड़थे। समाज के मुख्या जगमोहन ह कहिस कइसे सुकालू आज-कल आज-कल करत-करत पंदरही ह बीत गे। अभी ले मरिया भात नई खवाय हस। तब सुकालू ह गुरुजी के बताय गुरु मंतर ल वइसने पढ़थे जइसने बताय रइथे। कहिथे- भइया हो मे ह मरिया भात खवाहूं फेर एक ठोक हमरो पुरखामन ह नियम अउ परथा बनाय हे। ओ ला मानहू त मे ह खवाय बर तियार हंव। अब आपमन बताव। तब समाज के मन मरिया भात खवाय के बात ल सुनके खुस होगे। अउ कहिस कइसन बात ए सुकालू भाई। काबर नइ मानबो जी, बता न। तब सुकालू ह कथे हमर पुरखा मन ह नियम बनाय हे कि दुख के बेरा म जतेक कुटुंब अउ समाज के लोगन मन मरिया भात खाय बर आथे त उकर सुवागत-सत्कार चार-चार कोर्रा (कोड़े) मार के करे जाथे। अतका बात ल सुनके समाज के मुख्या जगमोहन ह आगी असन बरगे। अउ कथे कइसे रे सुकालू तोर आज अतका हिम्मत होगे अंटसंट बात करत हस। ताहन पूरा समाज के सब झन सुकालू बर कांव-कांव करे ल धर लिस।
तब गुरुजी ह कथे- मुख्याजी सुकालू ह बने काहत हे। ओकर पुरखामन के नियम ल मे जानत हंव। उकर घर कोर्रावाला देवता हे। जब कोनो ह परलोक सिधार जाथे त मरिया भात खवइया मन ल कोर्रा मार के देवता ल खुश करे जाथे। अब तुमन ल मरिया भात खाना हे त कोर्रा घलो खाय ल परही। गुरुजी ह समाज अउ ओकर सियानमन ल धुतकारत कहिस- तुमन काकरो मदद नइ कर सकव अउ ओकर परान ल ले बर पीछू पड़े रइथव। आज मे ह एक मिनट भी देरी म तरिया पार म पहुंचतेंव, त ए सुकालू ह दुनिया ल छोड़ के चल दे रतिस। का कोनो समाज ल अधिकार हे कि कोनो मनखे ल फांसी के फंदा म झुलाय बर मजबूर करय। आज मे ह तुहर बर थाना म रिपोट करहूं त सीधा तुमन जेल जाहू। आज मे ह तुमन ल छोड़त हंव। दुबारा अइसन गलती करहू त अनजाम बहुत बुरा होही। अतका डांट ल सुनके समाज के सब मुख्या अउ सियान मन भरभरा के उठ गे। अउ अपन-अपन घर चल दिस।

Monday, 19 March 2018

साम्प्रदायिक दंगे और उनका इलाज : शहीद भगत सिंह

भारत वर्ष की दशा इस समय बड़ी दयनीय है। एक धर्म के अनुयायी दूसरे धर्म के अनुयायियों के जानी दुश्मन हैं। अब तो एक धर्म का होना ही दूसरे धर्म का कट्टर शत्रु होना है। यदि इस बात का अभी यकीन न हो तो लाहौर के ताजा दंगे ही देख लें। किस प्रकार मुसलमानों ने निर्दोष सिखों, हिन्दुओं को मारा है और किस प्रकार सिखों ने भी वश चलते कोई कसर नहीं छोड़ी है। यह मार-काट इसलिए नहीं की गयी कि फलाँ आदमी दोषी है, वरन इसलिए कि फलाँ आदमी हिन्दू है या सिख है या मुसलमान है। बस किसी व्यक्ति का सिख या हिन्दू होना मुसलमानों द्वारा मारे जाने के लिए काफी था और इसी तरह किसी व्यक्ति का मुसलमान होना ही उसकी जान लेने के लिए पर्याप्त तर्क था। जब स्थिति ऐसी हो तो हिन्दुस्तान का ईश्वर ही मालिक है।
ऐसी स्थिति में हिन्दुस्तान का भविष्य बहुत अन्धकारमय नजर आता है। इन ‘धर्मों’ ने हिन्दुस्तान का बेड़ा गर्क कर दिया है। और अभी पता नहीं कि यह धार्मिक दंगे भारतवर्ष का पीछा कब छोड़ेंगे। इन दंगों ने संसार की नजरों में भारत को बदनाम कर दिया है। और हमने देखा है कि इस अन्धविश्वास के बहाव में सभी बह जाते हैं। कोई बिरला ही हिन्दू, मुसलमान या सिख होता है, जो अपना दिमाग ठण्डा रखता है, बाकी सब के सब धर्म के यह नामलेवा अपने नामलेवा धर्म के रौब को कायम रखने के लिए डण्डे लाठियाँ, तलवारें-छुरें हाथ में पकड़ लेते हैं और आपस में सर-फोड़-फोड़कर मर जाते हैं। बाकी कुछ तो फाँसी चढ़ जाते हैं और कुछ जेलों में फेंक दिये जाते हैं। इतना रक्तपात होने पर इन ‘धर्मजनों’ पर अंग्रेजी सरकार का डण्डा बरसता है और फिर इनके दिमाग का कीड़ा ठिकाने आ जाता है।
यहाँ तक देखा गया है, इन दंगों के पीछे साम्प्रदायिक नेताओं और अखबारों का हाथ है। इस समय हिन्दुस्तान के नेताओं ने ऐसी लीद की है कि चुप ही भली। वही नेता जिन्होंने भारत को स्वतन्त्रा कराने का बीड़ा अपने सिरों पर उठाया हुआ था और जो ‘समान राष्ट्रीयता’ और ‘स्वराज्य-स्वराज्य’ के दमगजे मारते नहीं थकते थे, वही या तो अपने सिर छिपाये चुपचाप बैठे हैं या इसी धर्मान्धता के बहाव में बह चले हैं। सिर छिपाकर बैठने वालों की संख्या भी क्या कम है? लेकिन ऐसे नेता जो साम्प्रदायिक आन्दोलन में जा मिले हैं, जमीन खोदने से सैकड़ों निकल आते हैं। जो नेता हृदय से सबका भला चाहते हैं, ऐसे बहुत ही कम हैं। और साम्प्रदायिकता की ऐसी प्रबल बाढ़ आयी हुई है कि वे भी इसे रोक नहीं पा रहे। ऐसा लग रहा है कि भारत में नेतृत्व का दिवाला पिट गया है।
दूसरे सज्जन जो साम्प्रदायिक दंगों को भड़काने में विशेष हिस्सा लेते रहे हैं, अखबार वाले हैं। पत्रकारिता का व्यवसाय, किसी समय बहुत ऊँचा समझा जाता था। आज बहुत ही गन्दा हो गया है। यह लोग एक-दूसरे के विरुद्ध बड़े मोटे-मोटे शीर्षक देकर लोगों की भावनाएँ भड़काते हैं और परस्पर सिर फुटौव्वल करवाते हैं। एक-दो जगह ही नहीं, कितनी ही जगहों पर इसलिए दंगे हुए हैं कि स्थानीय अखबारों ने बड़े उत्तेजनापूर्ण लेख लिखे हैं। ऐसे लेखक बहुत कम है जिनका दिल व दिमाग ऐसे दिनों में भी शान्त रहा हो।
अखबारों का असली कर्त्तव्य शिक्षा देना, लोगों से संकीर्णता निकालना, साम्प्रदायिक भावनाएँ हटाना, परस्पर मेल-मिलाप बढ़ाना और भारत की साझी राष्ट्रीयता बनाना था लेकिन इन्होंने अपना मुख्य कर्त्तव्य अज्ञान फैलाना, संकीर्णता का प्रचार करना, साम्प्रदायिक बनाना, लड़ाई-झगड़े करवाना और भारत की साझी राष्ट्रीयता को नष्ट करना बना लिया है। यही कारण है कि भारतवर्ष की वर्तमान दशा पर विचार कर आंखों से रक्त के आँसू बहने लगते हैं और दिल में सवाल उठता है कि ‘भारत का बनेगा क्या?’
जो लोग असहयोग के दिनों के जोश व उभार को जानते हैं, उन्हें यह स्थिति देख रोना आता है। कहाँ थे वे दिन कि स्वतन्त्राता की झलक सामने दिखाई देती थी और कहाँ आज यह दिन कि स्वराज्य एक सपना मात्रा बन गया है। बस यही तीसरा लाभ है, जो इन दंगों से अत्याचारियों को मिला है। जिसके अस्तित्व को खतरा पैदा हो गया था, कि आज गयी, कल गयी वही नौकरशाही आज अपनी जड़ें इतनी मजबूत कर चुकी हैं कि उसे हिलाना कोई मामूली काम नहीं है।
यदि इन साम्प्रदायिक दंगों की जड़ खोजें तो हमें इसका कारण आर्थिक ही जान पड़ता है। असहयोग के दिनों में नेताओं व पत्राकारों ने ढेरों कुर्बानियाँ दीं। उनकी आर्थिक दशा बिगड़ गयी थी। असहयोग आन्दोलन के धीमा पड़ने पर नेताओं पर अविश्वास-सा हो गया जिससे आजकल के बहुत से साम्प्रदायिक नेताओं के धन्धे चौपट हो गये। विश्व में जो भी काम होता है, उसकी तह में पेट का सवाल जरूर होता है। कार्ल मार्क्स के तीन बड़े सिद्धान्तों में से यह एक मुख्य सिद्धान्त है। इसी सिद्धान्त के कारण ही तबलीग, तनकीम, शुद्धि आदि संगठन शुरू हुए और इसी कारण से आज हमारी ऐसी दुर्दशा हुई, जो अवर्णनीय है।
बस, सभी दंगों का इलाज यदि कोई हो सकता है तो वह भारत की आर्थिक दशा में सुधार से ही हो सकता है दरअसल भारत के आम लोगों की आर्थिक दशा इतनी खराब है कि एक व्यक्ति दूसरे को चवन्नी देकर किसी और को अपमानित करवा सकता है। भूख और दुख से आतुर होकर मनुष्य सभी सिद्धान्त ताक पर रख देता है। सच है, मरता क्या न करता। लेकिन वर्तमान स्थिति में आर्थिक सुधार होेना अत्यन्त कठिन है क्योंकि सरकार विदेशी है और लोगों की स्थिति को सुधरने नहीं देती। इसीलिए लोगों को हाथ धोकर इसके पीछे पड़ जाना चाहिये और जब तक सरकार बदल न जाये, चैन की सांस न लेना चाहिए।
लोगों को परस्पर लड़ने से रोकने के लिए वर्ग-चेतना की जरूरत है। गरीब, मेहनतकशों व किसानों को स्पष्ट समझा देना चाहिए कि तुम्हारे असली दुश्मन पूँजीपति हैं। इसलिए तुम्हें इनके हथकंडों से बचकर रहना चाहिए और इनके हत्थे चढ़ कुछ न करना चाहिए। संसार के सभी गरीबों के, चाहे वे किसी भी जाति, रंग, धर्म या राष्ट्र के हों, अधिकार एक ही हैं। तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम धर्म, रंग, नस्ल और राष्ट्रीयता व देश के भेदभाव मिटाकर एकजुट हो जाओ और सरकार की ताकत अपने हाथों मंे लेने का प्रयत्न करो। इन यत्नों से तुम्हारा नुकसान कुछ नहीं होगा, इससे किसी दिन तुम्हारी जंजीरें कट जायेंगी और तुम्हें आर्थिक स्वतन्त्राता मिलेगी।
जो लोग रूस का इतिहास जानते हैं, उन्हें मालूम है कि जार के समय वहाँ भी ऐसी ही स्थितियाँ थीं वहाँ भी कितने ही समुदाय थे जो परस्पर जूत-पतांग करते रहते थे। लेकिन जिस दिन से वहाँ श्रमिक-शासन हुआ है, वहाँ नक्शा ही बदल गया है। अब वहाँ कभी दंगे नहीं हुए। अब वहाँ सभी को ‘इन्सान’ समझा जाता है, ‘धर्मजन’ नहीं। जार के समय लोगों की आर्थिक दशा बहुत ही खराब थी। इसलिए सब दंगे-फसाद होते थे। लेकिन अब रूसियों की आर्थिक दशा सुधर गयी है और उनमें वर्ग-चेतना आ गयी है इसलिए अब वहाँ से कभी किसी दंगे की खबर नहीं आयी।
इन दंगों में वैसे तो बड़े निराशाजनक समाचार सुनने में आते हैं, लेकिन कलकत्ते के दंगों मंे एक बात बहुत खुशी की सुनने में आयी। वह यह कि वहाँ दंगों में ट्रेड यूनियन के मजदूरों ने हिस्सा नहीं लिया और न ही वे परस्पर गुत्थमगुत्था ही हुए, वरन् सभी हिन्दू-मुसलमान बड़े प्रेम से कारखानों आदि में उठते-बैठते और दंगे रोकने के भी यत्न करते रहे। यह इसलिए कि उनमें वर्ग-चेतना थी और वे अपने वर्गहित को अच्छी तरह पहचानते थे। वर्गचेतना का यही सुन्दर रास्ता है, जो साम्प्रदायिक दंगे रोक सकता है।
यह खुशी का समाचार हमारे कानों को मिला है कि भारत के नवयुवक अब वैसे धर्मों से जो परस्पर लड़ाना व घृणा करना सिखाते हैं, तंग आकर हाथ धो रहे हैं। उनमें इतना खुलापन आ गया है कि वे भारत के लोगों को धर्म की नजर से-हिन्दू, मुसलमान या सिख रूप में नहीं, वरन् सभी को पहले इन्सान समझते हैं, फिर भारतवासी। भारत के युवकों में इन विचारों के पैदा होने से पता चलता है कि भारत का भविष्य सुनहला है। भारतवासियों को इन दंगों आदि को देखकर घबराना नहीं चाहिए। उन्हें यत्न करना चाहिए कि ऐसा वातावरण ही न बने, और दंगे हों ही नहीं।
1914-15 के शहीदों ने धर्म को राजनीति से अलग कर दिया था। वे समझते थे कि धर्म व्यक्ति का व्यक्तिगत मामला है इसमें दूसरे का कोई दखल नहीं। न ही इसे राजनीति में घुसाना चाहिए क्योंकि यह सरबत को मिलकर एक जगह काम नहीं करने देता। इसलिए गदर पार्टी जैसे आन्दोलन एकजुट व एकजान रहे, जिसमें सिख बढ़-चढ़कर फाँसियों पर चढ़े और हिन्दू मुसलमान भी पीछे नहीं रहे।
इस समय कुछ भारतीय नेता भी मैदान में उतरे हैं जो धर्म को राजनीति से अलग करना चाहते हैं। झगड़ा मिटाने का यह भी एक सुन्दर इलाज है और हम इसका समर्थन करते हैं।
यदि धर्म को अलग कर दिया जाये तो राजनीति पर हम सभी इकट्ठे हो सकते है। धर्मों में हम चाहे अलग-अलग ही रहें।
हमारा ख्याल है कि भारत के सच्चे हमदर्द हमारे बताये इलाज पर जरूर विचार करेंगे और भारत का इस समय जो आत्मघात हो रहा है, उससे हमे बचा लेंगे।

Friday, 16 March 2018

ऐ भगतसिंह तू जिंदा है

ऐ भगतसिंह तू जिंदा है
ऐ भगतसिंह तू जिंदा है, हर एक लहू के कतरे में....
हर एक लहू के कतरे में, इंकलाब के नारे में .....
ऐ भगतसिंह तू जिंदा है, हर एक लहू के कतरे में....


तूने तभ भी बोला था यह आज़ादी नहीं यह धोखा है..
यह पूरी मुक्ति नहीं है यारों, यह गोरों के संग सौदा है ......
इस झूटे जश्न की रौनक में, फंसे हुए किसानो में, रोये हुए जवानों में,....
ऐ भगतसिंह तू जिंदा है...........
ऐ भगतसिंह तू जिंदा है, हर एक लहू के कतरे में....


इतिहास में भी हम भूखे थे और आज भी ठोकर खाते हैं...
जिस खादी पर रखा भरोसा वो आज भी धोखा देते है.......
कोई रामनाम बलहार पुमारे, आज भी जाने लेते है.....
अब याद है भगता तेरी आती, आग लगी है सीने में....
ऐ भगतसिंह तू जिंदा है, हर एक लहू के कतरे में....


अंधेरों का ये तख्त हमें ताकत से अब ठुकराना हैं...
हर सांस जहां लेगी उड़ान उस लाल सुबह को लाना है.....
शहीदों की राह पर मर मिटने की क्रांतिकारी उम्मीदों में...
ऐ भगतसिंह तू जिंदा है, हर एक लहू के कतरे में....
 
- जनगीत

Wednesday, 28 February 2018

ले मशाले चल पड़े है लोग मेरे गांव के...

झारखंड के खूंटी जिला के कई आदिवासी ग्रामाें में अब ग्रामीण अपनी जमीन को बचाने के लिए एकजुट हो गए है। वहां के जमीन को लूटने के लिए सरकार और पूंजीपति पूरी ताकत लगा दी है। वहीं दूसरी तरफ आदिवासी इस ताकत से टकराने के लिए तैयार है। आदिवासी नेता ग्रामीणों को जागरूक करने के लिए संविधान का मशाल हाथ में लेकर हक की लड़ाई के लिए आदिवासियों को संगठित करने में लगे हुए हैं। खूंटी के कई गांवाें में पत्थलगड़ी कर पत्थरों पर संविधान की पांचवी अनुसूची को लिखा जा रहा है। जिससे आदिवासी अपने अधिकार को जान सके और अपनी जल, जंगल और जमीन को बचा सकेे। खूंटी जिला के सिंजुड़ी, बहम्बा, कोचांग, साके, तुसूंगा और तोतकोरा गांव में 25 फरवरी को आदिवासी महासभा ने सम्मेलन कर गांव की जमीन को पूंजीपतियों से बचाने का आव्हान किया। वक्ताओं ने केन्द्र और राज्य सरकारों की सत्ता को चुनौती देते हुए पत्थलगड़ी की। उन्होंने ललकारते हुए कहा कि देश में केंद्र और राज्य सरकार की एक इंच भी जमीन नहीं है। आदिवासी क्षेत्र में संसद और विधानसभा का कोई भी कानून लागू नहीं होता है। हमारे गांव में हमारा राज है। सम्मेलन में हजारों की संख्या में लोग मौजूद थे। उन्होंने ग्रामसभा जिंदाबाद और आदिवासी एकता जिंदाबाद और बिरसा मुंडा जिंदाबाद के नारे लगाए। सम्मेलन में वक्ताओं ने कहा कि संविधान देश में ग्राम सभाओं को हुकूमत करने का अधिकार देता है।
पत्थलगड़ी के बाद कोचांग में एक महती सभा का आयोजन किया गया। इसमें झारखंड के जमशेदपुर, पश्चिमी सिंहभूम, सरायकेला-खरसवां, खूंटी, रांची जिलों समेत ओड़िसा और छत्तीसगढ़ से भी लोग पहुंचे। आदिवासी महासभा के यूसुफ पुर्ती ने कहा कि सरकार कह रही है कि पत्थलगड़ी गलत है लेकिन ऐसा नहीं है। दरअसल आदिवासी क्षेत्रों में वर्तमान सरकार संघ राज्य क्षेत्र के सामान्य कानून को लाकर अपना हित साध रही है। युसूफ पुर्ती उर्फ प्रोफेसर ने यहां तक कह डाला कि प्रिवी काऊंसिल, बिटेन और ब्रिटेन पार्लियामेंट की सहमति के बगैर देश के संविधान में किये गए संशोधन निरर्थक हैं। उन्होंने कहा कि अनुसूचित भारत के संविधान का अनुच्छेद 13 (2) कहता है कि भारत के संविधान में कोई संशोधन होता है या संसद में या विधि मंत्रालय में कोई नया कानून बनता हो या सीएनटी एक्ट में संशोधन होता हो, तो यह आदिवासियों की इजाजत के बगैर नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि संशोधन करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार को प्रिवी काउंसिल ब्रिटेन से अनुमति लेनी होगी। आज तक सीएनटी एक्ट में जो 46 संशोधन हुए हैं उनके लिए प्रिवी काउंसिल से अनुमति नहीं ली गई है। इसके कारण यह गलत है। अनुच्छेद 13 (2) और अनुच्छेद 368 भी यही कहता है।
युसूफ पुर्ती ने कहा कि ग्रामीणों को जागरूक करने और ग्रामसभा को सशक्त बनाने के लिए पत्थरगड़ी की जा रही है। सरकार को पता होना चाहिए कि यह देश आदिवासियों का है। संविधान में फेरबदल ग्राम सभा की अनुमति के बगैर नहीं होना चाहिए। आदिवासी इस देश के मालिक हैं। मालिक की अनुमति के बगैर बदलाव नहीं हो सकता। हमारी अलिखित व्यवस्था थी, जिसे 1950 में लिपिबद्ध किया गया। संविधान में इस पर टीका टिप्पणी करने का अधिकार भी नहीं है। सरकार कह रही है कि हम संविधान की गलत व्याख्या कर रहे हैं। सरकार को बताना चाहिए कि यह किस तरह गलत व्याख्या है। इसके लिए सरकार को सुप्रीम कोर्ट जाना चाहिए।
आदिवासी बहुल क्षेत्र खूंटी में सम्मेलन, महासभा, महारैली और पत्थलगड़ी जैसे कार्यक्रम कर आदिवासियों को एकजुट किया जा रहा है। ताकि केंद्र और राज्य सरकार पूंजिपतियों के साथ मिलकर जमीन से आदिवासियों को बेदखल न कर सकें। इस प्रकार सभी ग्राम पंचायत अपनी पूरी ताकत गांव और जमीन को बचाने में लगा दी है। हम इस आदिवासियाें की लड़ाई का समर्थन करते हैं। साथ ही उनके साहस को सलाम करते हैं। यह जागरूकता की मशाल अमर रहें।