हमारी जिंदगी में
तालीम की अहमियत बहुत होती है। शिक्षा से ही हम उचित-अनुचित,
अच्छाई-बुराई, यर्थाथ-काल्पनिक
और सही-गलत के बीच भेद कर पाते हैं। देश में
स्कूल-कालेज की गुणवत्ता गिरती जा रही है।
अब
ज्यादा पैसा कमाने के लिए स्कूल
-कालेज ही सबसे बड़ा धंधा बन गया है। जिससे
जगह-जगह प्राइवेट स्कूल-कालेज छोटी सी जगह और दो-चार रूम में संचालित हो
रहे हैं। हमारे देश के संविधान में समानता और धर्मनिरपेक्षा की बात कही गई
है, लेकिन यह चीजें कही दिखाई नहीं देती। यहां समानता की बात करे तो गरीबों
के लिए सरकारी स्कूल और अमीरों के लिए महंगा प्राइवेट स्कूल खुले हुए
हैं।
जिससे देश में दो नागरिकता पैदा हो गई है।
अब पूंजीपति लोग ज्यादा से ज्यादा महंगे स्कूल में अपने बच्चों को एडमिशन
करा कर गर्व महसूस करते हैं, तो गरीब के बच्चे जर्जर और संसाधनहीन
स्कूल में दालभात खाने जाते हैं
। लोगों का बचपन स्कूल से ही शुरू होता है।
जिसे ज्ञान-विज्ञान की जगह के लिए जाना जाता है, लेकिन सरकारी स्कूल हो या
प्राइवेट सभी स्कूलाें में बच्चों को ज्ञान-विज्ञान से दूर पूजा-पाठ और
धार्मिक अनुष्ठान और काल्पनिक बातों में उलझा कर रखा जाता है। अब जिस स्कूल
में सरस्वती पूजा होती हो वहां के बच्चे क्या खाक चंद्र, मंगल और अंतरिक्ष
में जाएगा। उसे तो यहीं बताया जाता है कि
सब प्रभु की महिमा है पूरा अंतरि
क्ष भगवान संचालित कर रहा है।
राजधानी के स्कूलाें में अभी सह
स्त्रबाहु जयंती पर बच्चों को
महाआरती कर
उनकी काल्पनिक गाथा बताया जाएगा। मैंने देखा है स्कूल-कालेजों में कोई भी
कार्यक्रम होता है तो प्रारंभ सरस्वती पूजा के साथ होता है। क्या हमारा देश
में सिर्फ हिंदू ही पढ़ते हैं अन्य धर्म के नहीं। हमें शिक्षा, समाज,
राजनीति से धर्म, जाति, पंथ और संप्रदाय को दूर रखना चाहिए। ताकि समानता और
वैज्ञानिक सोच के साथ देश का विकास हो सके।
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