Tuesday, 14 November 2017

लक्ष्मी पूजा से धन मिलता है तो देश गरीब क्यों?


हमारा भारत देश में ज्यादातर समय पूजा-पाठ में व्यतित होता है। कहा जाता है कि लक्ष्मी की पूजा करने से धन-संपत्ति की बारिश होती है। इसलिए दीपावली त्योहार में अमीर-गरीब, छोटे-बड़े, शहरी-ग्रामीण और सभी वर्ग के लोग तल्लीन होकर मां लक्ष्मी की आराधना करते हैं, लेकिन अभी तक भारत देश को गरीबी, भुखमरी, कुपोषण, बेरोजगारी और अन्य समस्याओं से मुक्ति नहीं पाई। बल्कि यहां की जनता गुलाम मानसिकता के शिकार हो गई। अब सोचने की बात यह है कि समाज अपनी अगली पीढ़ी को किस ओर ढंकेल रहा है। लोगों को मेहनत में कम और पूजा-पाठ में ज्यादा विश्वास होने लगा है, जिससे आत्मविश्वास कमजाेर पड़ता जा रहा है। अब आधुनिक युग में शिक्षित लोग भी विज्ञान पर कम और चमात्कार पर ज्यादा विश्वास करने लगा है। अगर पूजा-पाठ से मनोकामना पूरी होती तो यहां कोई इंसान असंतुष्ट नहीं होते। इतनी बड़ी आबादी सुबह से शाम और देर रात तक लाउंड स्पीकर बजा-बजा कर भगवान को याद करते हैं, लेकिन उनकी समस्याएं जस के तस बनी रहती है। हमें भेड़ धसान चाल चलने से पहले साेचना होगा कि हम और हमारा समाज कहा जा रहे हैं ? क्या लक्ष्मी पूजा करने से रुपयों की बारिश होती है ? क्या दुर्गा पूजा करने से शक्ति मिलती है? क्या सरस्वती पूजा रकने से ज्ञान मिलता है ? तो भारत देश को विश्व में सबसे धनवान, सर्वशक्तिमान और बहुत ही ज्ञानवान होना चाहिए। इस वक्त मुझे भगत सिंह की कही गई बात याद आती है, 'अपने बच्चों को यह कहना कि तुम छनभंगुर और कमजोर हो, जो भी कर्ता-धर्ता ईश्वर है, इससे बच्चों की आत्मशक्ति खत्म हो जाती है।' यह बात सत प्रतिशत सहीं है। बच्चे अपने आप को तुच्छ और हीन समझने लगता है। इस प्रकार की सोच घरवालों द्वारा बचपन में ही बच्चों के मन में ठूस-ठूस कर भरी जाती है। ताकी जिंदगी भर इस मानसिक बीमारी से जुझते रहे। पालकों को चाहिए कि अपने बच्चाें को वैज्ञानिक और प्रगतिशील सोच की शिक्षा और विचार दें। जिससे वे अपनी शक्ति और मेहनत पर विश्वास करें। बच्चों को खुद पर विश्वास नहीं होने के कारण परीक्षा में पास होने के लिए पढ़ाई छाेड़ सरस्वती पूजा और नारियल फोड़ना शुरू कर देते हैं। विद्यार्थी पढ़ने में कम और पूजा-पाठ में ज्यादा यकीन करने लगते हैं। जिससे वह कई बार फेल भी हो जाते हैं। इस पर भी खुद को दोषी न मानकर भगवान और भाग्य को दोष देता है। इसमें बच्चों की भी गलती नहीं है, गलती तो हमारी है हमने तो इस प्रकार की सोच की बीज बच्चों के मन में उनकी शुरूआती जिंदगी में बोए हैं। वैज्ञानिक और आधुनिक समाज को यह कितना शोभा देता है?

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