अगहन
के महिना आगे हे अब गांव-गांव म लुवई मिंजई के बुता ह जोरदार चलत हे। मे ह
इतवार के माेर गांव गे रहे हंव। तब मोर बबा ह कथे जा न रे खेत डाहर ल देख
के आ जबे। त मोरो मन ह उही डाहर रम गे अउ गुने लागेंव अबड़ साल होगे हे खेत
ल देखे नइ हंव। फेर मोला लकर धकर संझा जुआर ले रइपुर लहुटना भी रहिस।
तब मोर मन ह मड़माड़े कहे ल लागिस खेत खार ल किंजर आ कही के। ताहन मे ह भात
बासी काही नइ खाएंव अउ रेंग देव खेत डाहर। खेत म सब लुवइया अउ भराही करइया
मन जोरयाय रहाय तब अइसन लागिस जइसे खेत म कोनो मड़ई मेला होवत हे। मेड़े
मेड़ जावत जावत मोला फोटू रमकेलिया दिख गे। जेमां फर अउ फूल ह मड़मारे झूले
रहाय। तब मोला नानपन के सुरता अागे कइसे मे ह जब गांव म रहांव त मोर
महतारी ह धान लुवइ मिंजइ के दिन म खेत ले फोटू रमकेलिया ल ला के अम्मट म
रांधय अउ अबड़ मिठाय। जे दिन ए साग ह चुरे रहाय ओ दिन मोर महतारी ल पुछंव
का साग रांधे हस दाई कही के तब गुरतुर ढंग ले कहाय का साग ए ढेलिया फोटू
रमकेलिया। तब मोरो मन ह गदगद हो जाय अउ मे ह घेरी बेरी साग चुरत कराही
ल देखंव। अउ वो दिन दू कांवरा उपराहा भात घलो खावंव। नानपन के ए सुरता ह
मोर अंतस ल हरिया दिस। अउ मोर मन म अभी ले फोटू रमकेलिया साग ह ममहावत हे।
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