सरकार
किसी भी पार्टी की हो हमेशा से भोले-भाले किसानों को वोट बैंक ही समझती
है। अब भाजपा सरकार को देख लिजिए इतने साल से किसानों की चिंता नहीं सता
रही थी, अचानक चुनाव सामने देख किसानों की फिकर होने लगी। अब इसे किसानों
की चिंता कहे या चुनाव की। प्रति क्वींटल धान पर 300 रुपए बाेनस देकर ऐसा
अहसान जता रहा है जैसे अब किसानों की जिंदगी ही बदल गई। देश और प्रदेश में
इतनी बड़ी संख्या में किसानों की आत्महत्या पहली बार हुई है। सरकार को खुशी
ऊंट के मुंह में जीरा 300 रुपए बोनस देने में हो रही है, लेकिन किसानों की
आत्महत्या की घटनाओं को लेकर उतनी दुखी नहीं। रमन सरकार जितने खर्च
किसानों को बोनस देने में कर रही है, उससे कहीं ज्यादा खर्च बोनस तिहार
उत्साह मनाने के लिए पंडाल, भीड़ जुटाने, विज्ञापन, और अन्य जनसंपर्क की
व्यवस्था में कर रही है। सरकार अब चुनाव को देखते हुए किसानों, मजदूरों,
गरीबों, युवाओं, विद्यार्थियों, शिक्षकों, कर्मचारियों और अन्य वर्गों के
लोगों को प्रलोभन और जुमले की जाल में फांसने में लग गई है। भाजपा सरकार
पिछले दो चुनावों की चुनावी घोषणाएं पूरी तरह से भूल गई है। किसान पूछ रहे
हैं कि धान के समर्थन मूल्य 2100 रुपए कब होगा, पिछले सालों के बोनस कब
मिलेगा और ऐसी स्थिति कब आएगी जब किसान पूरी तरह से कर्ज से मुक्त हो और
कृषि ऋण लेने की जरूरत न पड़े। सरकार द्वारा पूराने वादे भुलाकर जनता को नए
सपने दिखाना कितना जायज है ?
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