देश
में लगातार मंदिर-मस्जिद की बहस चली आ रही है। इसके लिए कई लोंगों ने जान
भी दी है तो कई लोगाें ने जान भी ली है। देखा जाए तो सभी राजनीतिक पार्टी
हमेशा से ही मंदिर-मस्जिद और जाति-धर्म को लेकर जनता को तबाह करने में लगी
हुई है। आयोध्या में 1992 में दो हजार से अधिक लोगों को मारकर मस्जिद
को
ढहाना बहुत ही बर्बतापूर्ण कार्य था। यह कैसा धर्म है जो एक दूसरे के प्रति
नफरत का जहर फैलाता है। इस विष को पीने से डेढ़ लाख की हिंसक रैली
मरने-मारने को
उतारू हो जाती है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा आयोध्या के मस्जिद को किसी भी
प्रकार के नुकसान नहीं
पहुंचाने की
वचनबद्धता के बावजूद भी कट्टरपंथी ने विवेकशून्य होकर देश में दंगा कर
राष्ट्र
के टुकड़े-टुकड़े करने में जूट जाते हैं। क्या यही सहिष्णुता है ?
बीजेपी के नेता लालकृष्ण आडवानी धर्म रैली निकालकर जिस प्रकार लोगों को
भड़काने का काम किया यह बहुत ही निंदनीय है। किसी भी नेता को इस प्रकार के
मजहब और धर्म के नाम पर जनता को गलत राह पर ले जाना उचित नहीं है। भले ही
कोई भी धर्म बहुत सहिष्णुता, प्रेम और भाईचारा का दिखावा करे,
लेकिन धर्म के नाम पर हजारों-लाखों की हत्या करने में पीछे नहीं हटते।
आयोध्या
में लगातार मंदिर-मस्जिद का मसला गरमाता रहा है। वहीं जब देश में भगवा
सरकार आई तो फिर स्कूल, कालेज,हास्पिटल, रोजगार और अन्य मूलभूत सुविधाओं को छोड़कर जनता को धर्म
और मजहब के भयानक कुंआ में ढंकेल रही है। उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी
आदित्यनाथ बार-बार सीना ठोकर कह रहे हैं कि आयोध्या में राम मंदिर बनाने से
कोई भी ताकत नहीं रोक सकती। अगर योगी अपनी यही ताकत राज्य के विकास कार्यों
में लगाया होता तो आज यूपी की तस्वीर कुछ और होती। लोगों
को जीने की कला सीखाने वाले रवि शंकर ने आयोध्या में जाकर और सीएम योगी से
मिलकर मंदिर-मस्जिद मसला की आग में फिर घी डाल दिया है। अब इस रविशंकर को
कौन जीने की कला सीखाएं। चुनाव की तारीख घोषित होते
ही राजनेता और उनके चेले संत-बाबा ऐसे ही मुद्दों
में वोटरों को उलझा कर रख देते हैं। ऐसे मामलों में कोर्ट का समय और धन बर्बाद होता ही है। साथ ही जनता को विकास कार्यों
का भी लाभ नहीं मिल पाता। लगातार ऐसे मसले उठते रहे और इनसे आम जनता को
कुछ मिला नहीं सिवाय बर्बादी।
अब भगवा बीजेपी ही नहीं बल्कि कांग्रेस के
राहुल भी चुनाव देख मंदिर के शरण लेने लगे हैं। उन्हें वोटरों को रिझाने के लिए
मंदिर की घंटी बजाने की जरूरत पड़ रही है। इस प्रकार की छोटी सोच ने ही
हमेशा से राजनेताओं को जनता की
वास्तविक विकास एजेंडे से दूर रखता है। बीजेपी के नेता सुब्रमण्यम स्वामी
ने भी राम मंदिर को लेकर बहुत जाेर दे रहे हैं। बीजेपी के सांसद साक्षी
महाराज ने कहा कि 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी मंदिर निर्माण शुरू करने
के बाद ही उतरेगी। आज पूरी तरह देश को मजहब और धर्म के नाम पर बांटने और
विनाश करने की बड़ी भूमिका सभी राजनैतिक दल निभा रही है। अब सोचना जनता को
ही है कि इस प्रकार की ओछी राजनीतिक करने वालों को क्या सबक सिखाया जाए।
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