देश में लिखित संविधान होने के बाद भी सभी जातियों ने अपने-अपने ढंग से अलग से
संविधान बना कर देश के कानून की धज्जियां उड़ा रहे हैं। जाति समाज अपनी ही
जाति के लोगों को प्रताड़ित कर मरने के लिए मजबूर कर रहे हैं। अंतरजातिय
विवाह, प्रेम
विवाह, मृत्यु भोज, मुंडन और न जाने क्या-क्या पैसे वसूली करने का हथियार भी बना लिया है।
पिछले दिनों 9 नंवबर को धरसींवा के खैरखुट की एक महिला बिसाहिन साहू को
सामाजिक बहिष्कार से त्रस्त होकर आत्मदाह करने को मजबूर होना पड़ा । महिला
के बेटे दशरथ साहू ने अंतरजातिय विवाह किया है। जिसको लेकर साहू समाज ने
50,000 रुपए दंड दिया। जिसे नहीं पटा पाने पर इस परिवार को समाज से बहिष्कार
कर दिया गया।
बहिष्कार के बाद भी लगातार परिवार के मुख्या
महिला बिसाहिन
को लगातार बैठक बुला-बुला कर प्रताड़ित करने लगा। जिससे महिला ने तंग आकर
आत्महत्या करने के लिए मिट्टीतेल छिड़क कर आग लगा ली। जो पूरी तहर से 90
प्रतिशत जल गई है। अभी वे अंबेडकर हास्पिटल में भर्ती है, लेकिन अब तक समाज
के प्रमुख ने इन्हें देखने भी नहीं आए। यह कैसा संवेदनहीन समाज है। जो
हमेशा अपनी ही जाति के भाई-बहन को परेशान करते रहते है। ऐसे मौत के
जिम्मेदार जाति समाज और पदाधिकारियों पर कड़ी से कड़ी कानूनी कार्रवाई होनी
चाहिए। इस प्रकार छत्तीसगढ़ और अन्य राज्यों में से हर दिन अखबारों और
टेलीविजन के माध्यम से कई घटनाएं सामने आती है। अंतरजातिय प्रेम विवाह करने
पर कई जगह लड़की या लड़का की हत्या कर दी जाती है। तो कहीं हत्यारे जाति
समाज के भय से प्रेमी जोड़े आत्महत्या कर लेती है। वही कई जागरूक पालक इस
स्थिति में खुलकर जाति समाज के विरोध में सामने आते हैं तो कई रूढ़ीवादी
में जकड़े अज्ञानी पालक अपने ही बच्चे के हत्यारे बन जाते हैं या खुद
आत्महत्या कर लेते हैं। जिसको पुलिस, सरकार, न्याय व्यवस्था, मीडिया और लोग
तमाशबीन की भांति देखते रहते हैं।
इस मामले में महाराष्ट्र राज्य आगे है यहां सबसे पहले अंधविश्वास
निर्मूलन कानून बना और सामाजिक बहिष्कार प्रतिषेध अधिनियम लागू हो गया है।
यह कानून महाराष्ट्र की जनता में व्याप्त जागरूकता को दिखाता है। वहीं
छत्तीसगढ़ में इस कानून पर चर्चा चलते ही समाज के आड़ में भारी-भरकम पैसा
कमाने वाले जाति समाज विरोध में पूरी ताकत छोक दिया है। जो यहां की
अज्ञानता को दिखाता है। आज के आधुनिक युग में भी यह जातिप्रथा का दंश खत्म
नहीं हो रहा है, बल्कि यह और भी भयावह होते जा रहे हैं। सोचने की बात तो यह
है कि युवा वर्ग भी इस पुरानी रूढ़ी की चादर ओढ़े दुबक कर सो रहे हैं। जिस
दिन यह ताकतवर युवक-युवतियां खुलकर समाज को चुनौति देंगे उसी दिन देश को
बांटने वाले जाति समाज का नाश होना तय है।
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