Monday, 20 November 2017

बियारा-बारी के जिमीकांदा

जब जिमीकांदा साग के नाम ल कोनो सुनथे त ओकर मुंहू ले लार टपकना सवभाविक बात आय। ए जिमीकांदा ह उपर ले माटी असन दिखथे अउ चाने म थोकन ललमुहा होथे। ए ह गांव-गांव म पाए जाथे। कोनो ह अपन बारी, म त कोनाे ह बियारा म अउ जेकर घर जगा नई हे ओमन ह अंगना म जिमीकांदा ल लगाथे। वइसे तो जिमीकांदा ल छत्तीसगढ़ी साग के राजा कहे जाथे। एला अम्मट म रांध ले, चाहे मसलहा म अबड़ मिठाथे। गांव के सियान मन ह जिमीकांदा साग ल बड़ गुनकारी मानथे। गांव के डोकरी-डोकरा मन ह बताथे कि जिमीकांदा साग खाय ले केंसर असन बड़का बीमारी ले घलो बचे जा सकत हे। फेर एक ठन गोठ घलो सुने ल मिलथे ए साग ल खाज-खजरी वाले मनखे ल नइ खाना चाही। बाकि सबे मनखे ह जिमीकांदा साग के सुआद ल चाट-चाट के ले सकत हे।
घर के माईलोगिन मन ह बताथे कि ए साग ल बनाय बर पहली जिमीकांदा ल बियारा ले खन के ले आना चाही। तेकर बाद बने तरिया म खलखल ले धोके सुखो दे। सुखाय के बाद बने गरम पानी म उसन के साग म रांधे के लइक चानी-चानी पउले बर लागथे। ताहन चनाय जिमीकांदा ल पर्रा म रख के छानी उपर बढ़िया घाम म सुखाय जाथे। कड़कड़ ले सुखाय के बाद एेला साग रांधे जाथे। साग रांधे बर पहली तेल म मेथी-सरसो के फोरन देके मही म बनाय ल पड़थे। ताहन मत पूछ रे भइया एकर सुवाद ल। रांधत ले पारा-परोस के मन घलो जान जाथे कि आज इकर घर जिमी कांदा के साग चुरत हे कही के। ताहन परोसी मन ह अपन-अपन घर ले कटोरी ल धर-धर के साग मांगे ल आ जथे।
ए जिमी कांदा के साग के देवारी तिहार म बड़ महत्ता हे। ए दिन तो मनखे ले पहली गाय-गरवा मन ल भात-साग खवाय जाथे। एकर बाद घर के सियान अउ लइका मन ह अमटाहा जिमीकांदा अउ कुम्हड़ा (मखना) के मड़माड़े मजा लेथे। देवारी के दिन घरो-घर जिमीकांदा अउ कुम्हड़ा के साग ह चुरे रहीथे। तेकर सेती ए दिन कोनो ल का साग ए कही के पूछे के जरूरत नइ पड़े। वइसे तो हर दिन हमर छत्तीसगढ़ म कोनो मनखे ह मिलथे त गोठ-बात के सुरूआत ह खलो का साग ए फलानिन कही के सुरू होथे। फेर ए दिन ए प्रश्न के छुट्टी हो जथे। काबर सबे झन ह तो जानत हे जी इकर घर घलो जिमीकांदा अउ मखना के अमटाहा साग बने हे कही के।

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