घर
के माईलोगिन मन ह बताथे कि ए साग ल बनाय बर पहली जिमीकांदा ल बियारा ले खन
के ले आना चाही। तेकर बाद बने तरिया म खलखल ले धोके सुखो दे। सुखाय के बाद
बने गरम पानी म उसन के साग म रांधे के लइक चानी-चानी पउले बर लागथे। ताहन
चनाय जिमीकांदा ल पर्रा म रख के छानी उपर बढ़िया घाम म सुखाय जाथे। कड़कड़
ले सुखाय के बाद एेला साग रांधे जाथे। साग रांधे बर पहली तेल म मेथी-सरसो
के फोरन देके मही म बनाय ल पड़थे। ताहन मत पूछ रे भइया एकर सुवाद ल। रांधत
ले पारा-परोस के मन घलो जान जाथे कि आज इकर घर जिमी कांदा के साग चुरत हे
कही के। ताहन परोसी मन ह अपन-अपन घर ले कटोरी ल धर-धर के साग मांगे ल आ
जथे।
ए जिमी कांदा के साग के देवारी तिहार म बड़ महत्ता हे। ए
दिन तो मनखे ले पहली गाय-गरवा मन ल भात-साग खवाय जाथे। एकर बाद घर के सियान अउ लइका मन ह अमटाहा जिमीकांदा
अउ कुम्हड़ा (मखना) के मड़माड़े मजा लेथे। देवारी के दिन घरो-घर जिमीकांदा
अउ कुम्हड़ा के साग ह चुरे रहीथे। तेकर सेती ए दिन कोनो ल का साग ए कही के
पूछे के जरूरत नइ पड़े। वइसे तो हर दिन हमर छत्तीसगढ़ म कोनो मनखे ह मिलथे त
गोठ-बात के सुरूआत ह खलो का साग ए फलानिन कही के सुरू होथे। फेर ए दिन ए
प्रश्न के छुट्टी हो जथे। काबर सबे झन ह तो जानत हे जी इकर घर घलो
जिमीकांदा अउ मखना के अमटाहा साग बने हे कही के।
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