Monday, 13 February 2017

प्रेम से घृणा क्यों ?

भारत देश प्रेम से उथल-पुथल है। इतिहास की बात करे तो प्रेम कहानी, पौराणिक ग्रन्थ, मंदिरों की दीवारों में प्रेम की प्रतिमाएं और वर्तमान में फिल्म, गीत-संगीत, कविता, साहित्य पूरी तरह से इसी का गुणगान है। फिर हमारे समाज में इसको क्यों बुरी चीज  कहा जाता है और नफरत की नजर से देखा जाता है। प्रेमी-प्रेमिका को कोई अपराधी से कम नहीँ आका जाता है। इसलिए युवाओं को घर-परिवार से इसे छिपा-दबा कर रखना पड़ता है। ऐसा क्यों? जबकि प्रेम तो जीवन के लिए महत्वपूर्ण चीज है। इसके बिना जिंदगी निराश और शुष्क हो जायेगी। वही मुहब्बत में नफरत की आग लगाने वाले कई दलाल भी बैठे हैं। जो समाज के लिए बहुत घातक है। यह प्रेम, प्रेमी और प्रेमिका के कट्टर दुश्मन है और हमेशा घृणा के बीज बोते हैं।
इतने प्रेम के गाथा, फिल्म और गीत-संगीत है तो प्रेम की गंगा बहनी चाहिए। लेकिन नहीँ कभी लव जिहाद के नाम पे, कभी जाति और धर्म के नाम पे दंगा होता है। आज प्रेम के कट्टरपंथी इतना हो गए है कि वैलंटाइन डे का विरोध करने के लिए सोशल मिडिया पर शहीद भगत सिंह और उनके मित्र शहीद राजगुरु और शहीद सुखदेव को 14 फरवरी को फांसी दी गई थी करके पोस्ट कर रहे थे। जब लोगों ने इसका विरोध किया तो कह दिया कि इस दिन सजा सुनाई गई। जबकि वास्तविकता यह है कि 7 अक्तूबर, 1930 को फांसी की सजा सुनाई गई और 23 मार्च, 1931 को लाहौर जेल में तीनों को फांसी दे दी गई। असामाजिक तत्व सोशल मीडिया में इस तरह शहीदों के इतिहास से खेल रहे है। जो पूरी तरह से गलत और शहीदों के अपमान है। अब वैलेंटाइन डे में ये लोग डंडे लेकर प्रेमी जोड़े के ऊपर बरसायेंगे और कभी भी प्रेम न करने के लिए संकल्प करवाएंगे।
इस व्यवस्था के लिए पूरे समाज और परिवार जिम्मेदार है। जो हमेशा से लोगों को प्यार मोहब्बत बेकार की बाते कहा करते हैं। माँ-बाप को भी चाहिए कि वे युवाओं की भावनाओ को समझे और उसे जीने और जीवनसाथी चुनने के लिए पूरे अधिकार दे। लड़कों को तो कुछ छूट मिली हुई है, लेकिन लड़कियों को आज भी सभ्य समाज में भेड़-बकरी समझी जाती है। उसे कहाँ कैसे जीना है, कहा पढ़ना है, कौन से कपड़े पहनना है, कहा आना-जाना है, किससे शादी करनी है और क्या काम करना है सब माँ-बाप तय करते हैं। कभी अपनी बेटी की चाह को जानने की कोशिश नहीँ करते फिर बाद में पछताते हैं। आज ज्यादातर प्रेमी जोड़े जब समाज में विरोध होने लगते है तो आत्महत्या कर लेते है। बहुत जगह तो यह भी सुनने में आता है कि उनके ही घर के सदस्यों के द्वारा हत्या कर दी गई। ये कैसे समाज और परिवार है ?

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