आजकल ज्यादातर मनखे मन दू ठन मीडिया ल जानथे प्रिंट अव इलेक्ट्रॉनिक एकर बाद सोसल मीडिया ह तो अभी बेयाय हे। एकर ले पहली परम्परागत माध्यम ह कब जमाना के चलत आत हे। अउ एकर महत ह अभी के डिजिटल मीडिया के जुग म भी कमतियाय नईहे। परम्परागत माध्यम म लोकगीत, नाचा गम्मत, नुक्कड़ नाटक, कठपुतली नाच अउ मेला मड़ई ह आथे।
लोकगीत के ये माध्यम म बहुत महत हाबे। अउ कोन मनखे के अंतस ल लोकगीत ह नई हिलोरय। सब संगवारी अपन महतारी भाखा म लोकधुन अव गीत ल सुन के संगीत के दुनिया म खो जाथे। परम्परागत संचार माध्यम मन म लोकगीत ह परभावी अउ पोठ माध्यम आय। जब मनोरंजन के साधन नई राहय त ये माध्यम ह मनोरंजन के संगे संग जागरूकता अउ संचार के बड़े जान जरिया रिहिस। अभी भी आधुनिक जुग म कई किसम के प्रिंट अउ इलेक्ट्रॉनिक संचार साधन के होय के बाद भी परम्परागत साधन लोकगीत ह प्रभावी अउ उपयोगी हाबय। न ये माध्यम ह भविष्य म नदाय। छत्तीसगढ़ ल लोकगीत बर देश भर म जाने जाथे। इहा हर महीना कोनो न कोनो उत्सव अउ तिहार मनाय जाथे। जेमा लोकगीत के आनंद लेवत रथे। छत्तीसगढ़ के लोकगीत ह अन्तस ल छू लेथे। इहा के संस्कृति म लोकगीत के बड़ महत हाबे। तिहात अउ मेला मड़ई के संघरा भोजली, पंडवानी, जसगीत, बासगीत, गउरा-गउरी गीत, सुआ गीत, सोहर गीत, देवार गीत, करमा गीत, ददरिया गीत, पंथी गीत अउ राउत गीत ह पूरा वातावरन म ख़ुशी अउ उमंग के रंग भर देथे।
Tuesday, 7 February 2017
परम्परागत संचार माध्यम ह नई नदाय
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment