छत्तीसगढ़ की सर्वाधिक सुमधुर लोकप्रिय गायिका श्रीमती कविता वासनिक की सफलता के पीछे उनके पिता श्री रामदास रिहकने के साथ-साथ पूरे परिवार के हाथ है। स्व. रामचन्द्र देशमुख ने चंदैनी गोंदा के भव्य मंच ने उसे तराशा और संवारा है। श्रीमती वासनिक की सांस्कृतिक से ही उनकी गायन में सहजता सरजता और तन्मययता झलकती है। गहन संघर्ष के बीच वे इस मुकाम तक पहुंच पाई है। उनकी जन्म दुर्ग में 18 जुलाई 1962 को हुआ। वे बीएसी (बायो) तक पढ़ाई करके राजनांदगांव में एसबीआई बैंक में उप-प्रबंधक के पद पर पदस्थ है। पिता रामदास रिहकने ने उसे घुट्टी में संगीत पिलाया। वे बचपन से ही 10 बरस के उम्र में मंच में लोकगीत प्रस्तुत करती आ रही है। वे छत्तीसगढ़ की संस्कृति के लिए वरदान है। अब तक उन्होंने देश भर में लगभग चार हजार प्रस्तुतियां दे चुकी है।
प्रस्तुत है लोकगायिका कविता वासनिक से हुई बातचीत -
सवाल - आपकी झुकाव लोकगीत की ओर कैसे हुई ?
जवाब - मैं बचपन से ही 10 साल की उम्र से ही लोकगीत से जुड़ी हूं। उस समय आर्केस्टा का दौर था तभी स्व. रामचन्द्र देषमुख के द्वारा चंदैनी गोंदा का निर्माण हुआ। इसमें मुझे जुड़ने का अवसर मिला और लोकगीत-संगीत के प्रति रूचि बढ़ गई। पिता रामदास रिहकने भी लोकगीत से जुड़े होने के कारण ज्यादा ही संगीत का माहौल मिला।
सवाल - आप अपने गुरू या प्रेरक किसे मानते है ?
जवाब - सबसे पहले गुरू तो मेरे पिताजी श्री रामदास रिहकने रहे। इसके बाद स्व. रामचन्द्र देषमुख के साथ कार्य किया। पूरा परिवार मुझे इस कार्य के लिए सहयोग और प्रेरित करते रहे।
सवाल - आजकल लोकगीतों पर फिल्मी गाने हावी हो रहे है आपके क्या विचार है ?
जवाब - लोकगीत कभी खत्म नहीं हो सकते ए लकड़ी म सगोन अव धातु म सोन के समान हरे, जेला कभू घुना नई खाय। यह लोगों के जीवन के साथ चलते है। फिल्मी गाने लोकगीतों की जगह नहीं ले सकते हैं। भले लोकगीत फिल्मों में जगह पा सकते हैं।
सवाल - लोकगीत को लोगों तक पहुंचाने के लिए क्या करनी चाहिए ?
जवाब - लोकगीतों को फिल्मों में जगह मिले और लोककलाकरों के लिए मंच मिलने से लोगों को परंपरागत गीतों के प्रति जागरूक किया जा सकता है। सरकार और संस्कृति विभाग इसके लिए बहुत ही अच्छी पहल कर रही है। जिससे कलाकारों को समय-समय पर उत्सव और अन्य अवसरों में मंच मिलते रहते हैं। इस प्रयास को और ही व्यापक करके जारी रखा जाए।
सवाल - आप लोकगीत के कौन-कौन सी विधियां प्रस्तुत करती है ?
जवाब - छत्तीसगढ़ के परंपरागत गीत सुआ बिहाव जसगीत करमाददरिया और अन्य लोकगीत की प्रस्तुति देती हूं।
सवाल - आप करमा और ददरिया के बारे में बताएंगे ?
जवाब - करमा में रिदम और ताल मुख्य होते हैं। वहीं ददरिया में कृषक कार्य में मन लगाने के लिए गाते है। इसमें पहला लाइन का संबंध दूसरे लाइन से नहीं होता है। जैसे फुटहा रे मंदिर कलस नइ हे, आज-काल के अवइया दरस नइ हे। ददरिया प्रेम का गीत भी है।
सवाल - मंच के अलावा आप फिल्मों में भी गाई है ?
जवाब - हां फिल्मों में गाई हूं पर बहुत ही कम। जैसे महूं दिवाना तहू दिवानी, मितान 420, डार और कुछेक में । वैसे तो मैं ज्यादातर मंच को ही प्राथमिकता देती हूं।
सवाल - आपने बचपन से ही मंच में गाती आ रही है और फिल्मों में भी गाई है तो बताएंगे कि दोनो में क्या अंतर और चुनौतियां है ?
जवाब - फिल्म के लिए तो स्टुडियो में गाते है। इसमें सभी प्रकार की तैयारी पहले से होती है। जबकि मंच में सभी के सामने गाना होता है। इसमें बहुत ज्यादा अभ्यास की जरूरत होती है। इसमें दर्शकों का तुरंत प्रतिक्रिया भी मिलती है। आज कल के कलाकार बहुत ही कम समय में बिना मेहनत किए जल्द ही नाम कमाने की चाह रखते है लेकिन ऐसा नहीं है इसमें बहुत ही ज्यादा मेहनत करना होता है।
सवाल - गीत-संगीत के अलावा आपकी अन्य रूचियां ?
जवाब - समाज कार्य मंच के माध्यम से लोगों को जागरूक करने का कार्य करती हूं। जैसे कन्या भूर्ण हत्या, दहेज प्रथा,जाति प्रथा, स्वच्छता को लेकर कार्य कर रही हूं।
सवाल - चंदैनी गोंदा के बारे में बताइए ?
जवाब - चंदैनी गोंदा स्व रामन्द्र देशमुख के द्वारा निर्देशित सांस्कृतिक मंच है। यह एक सांस्कृतिक लड़ाई का कार्य किया है। इसमें हम लोगों ने सिपाही की भूमिका निभाए है। किसी भी राज्य का निर्माण में संस्कृति का योगदान बहुत ही महत्वपूर्ण है।
सवाल - इस पीढ़ी के कलाकारों को क्या संदेश देंगे ?
जवाब - लोकगीतों को बचा कर रखे और फुहंड़ता से बचे। इससे हमारी संस्कृति दुषित नहीं होगी।
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