पुरानी खोखली सड़ी हुई
परंपराओ और अंधविश्वास की बेड़ियां तोड़कर
नए रूप में तुम जीना सीखो
इस दुनिया में अब एक नई शुरूआत लिखो।
इसके लिए क्यो हम लड़ते और मरते रहे
एक दूसरे का कत्ल करते रहे।
बंद करो तुम अब लड़ना
अब सभी से प्यार करो
समानता हो जहां वो नया समाज तैयार करो।
पूजते रहते तुम पत्थर को
जिसमें कोई जान नहीं
खुद को जो बचा न सके
वो हमारा भगवान नहीं।
मत ठोको सिर को पत्थर पर
क्यों भटकते तुम काबा काशी के दर पर।
जहां पैसे बने है पुजारी का भोग
भगवान के नाम पर लूटे जाते है लोग
भीड़ जो करती है हम क्यों करे
भीड़ के पीछे हम क्यों मरे
हमें निकलना होगा इस आज से
जिसमें ऊच-नीच हो ऐसे समाज से
सोचो कि एक विशाल सुंदरतम दुनिया हो
जहां जाति-पाति नहीं मेहनत और ज्ञान की पहचान हो
नए रूप में तुम जीना सिखो
अब एक नई शुरूआत लिखो।
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