बसंत ल रितुमन के राजा कहे जाथे। जइसे माघ महीना ह लगथे ताहन परकरिति ह अपन सुघ्घर रंग अउ उमंग ल लेके आ जथे। गांव के खेत म सरसो के फूल घलो मात जथे। त परसा पेड़ म लटलटाय फूल ह अपन डाहर मनखे मन ल आकरसीत करथे। गेंहू के बाली खिले ल धर लेथे अउ आमा मउरे बर। येला देख के मनखे तो का तितली अउ भौरा ह घलो ख़ुशी के मारे मंडरात रथे। इहि समय ले नगाड़ा के धुन अउ फ़ाग गीत ह गांव-गांव म सुनाय के चालू हो जथे। फागुन तिहार के तियारी ल मत पूछ। लइका ले लेके सियान तक उल्लास अउ ख़ुशी के रंग म रंग जाथे।
जाड़ के दिन ह बसन्त के छाव पड़ते साथ भागे ल धर लेथे। ये मउसम ह बड़ सुहावन लागथे। किसान मन घलो खेत में रटठाय पिउरा-पिउरा सरसो के फूल ल देख के गदगद हो जाथे।
Tuesday, 7 February 2017
रंग अउ उमंग ले सराबोर बसंत रितु
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