गणतन्त्र नही गुंडा राज आगे
चोरहा लबरा मन के भाग जागे
इहा तो रक्षक ह भक्षक बनत हे
काकर ऊपर भरोसा करबे
अधिकार के बात करबे त जेल जाबे।
इहा शिक्षा के ठिकाना न स्वास्थ के
बेरोजगारी लिलत हे नौजवान मन ल
मरे बिहान होवत हे किसान मन ल
जय जवान जय किसान ह
अब मर जवान मर किसान होगे।
भईगे नेता अफसर ह मजा लूटत हे
गरीब मजदूर किसान के दम घुटत हे
पहली लूटत रहिस परदेसी मन
अब हमरे नेता मन देस ल लुटत हे।
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