लोकगीत के बारे में जानने के लिए छत्तीसगढ़ की स्वर कोकिला लोकगायिका पद्मश्री ममता चन्द्राकर से बातचीत की गई। वे छत्तीसगढ़ की पहली हस्ती हैं जिन्हें लोकगायन के क्षेत्र में पद्मश्री सम्मान मिला। वर्तमान में ममता चन्द्राकर आकाशवाणी रायपुर में निदेशक के पद पर पदस्थ हैं। वे चार दशक से ज्यादा समय से छत्तीसगढ़ी लोकगीत गा रही हैं। वे लोकगीत के लिए मशहूर हैं। जब भी सुआ, गौउरा-गउरी, बिहाव, करमा, और ददरिया कही बजता है तो उसमें ममता चन्द्राकर के गीत जरूर सुनाई पड़ते हैं। यहां प्रस्तुत है उनसे हुई बातचीत -
- लोकगीत आप किस गीत को मानते हैं ?
पारम्परिक गीत जो लिखित न हो, वहीँ लोकगीत है। ये गीत जन-जन में व्याप्त होते हैं और पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाले होते हैं। यह ज्यादातर मौखिक होते हैं, लिपिबद्ध नहीँ होते हालांकि अब लिपिबद्ध करने लगे हैं।
- लोकगीतों की उतपत्ति के विषय में अपने विचार बताइए ?
लोकगीत जनसमूह के अंतस की आवाज है। यह गीत जब लोक या समूह में व्याप्त हो जाए और परम्परागत चलते रहे। लोकगीत की उत्पत्ति जनसमूह में गुनगुनाया जाने वाले गीत ही लोकगीत का रूप धारण कर लेते हैं।
- लोकगीतों से सामाजिक जीवन कितना प्रभावित हुआ है ?
लोकगीत हमेशा से लोगों के जीवन में खुशियां और सकारात्मक विचार पहुंचाने में सक्षम रहे हैं। लोकगीत के माध्यम से लोग जागरूक भी हुए हैं। इस प्रकार आज भी इसे संचार के प्रभावी और सशक्त माध्यम मान सकते हैं।
- क्या लोकगीतों में बदलाव आते हैं ?
हां, बिलकुल, लोकगीत समूह के गीत होते हैं और यह पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाले गीत है। जब समूह की भाषा या बोली और जीवन शैली में परिवर्तन आते हैं, तो लोकगीत में बदलाव होना स्वभाविक है।
- लोकगीतों को बचाए रखने के लिए क्या करना चाहिए ?
लोकगीतों के संग्रहन करने की आवश्यकता है। लोकगीतों को स्कूली शिक्षा में शामिल किया जाना चाहिए। इस क्षेत्र में शोध कार्य से भी इसके बारे में समझा और जाना जा सकता है।
No comments:
Post a Comment