Tuesday, 7 February 2017

सुख मां-बाप के चरन म

सुख पाय बर कहां भटकत हस संगी,
सबे सुख मां बाप के चरन म समाय हे।
कतको कमाले, कतको घर बनाले,
कतको पूजा अउ तिरथ करले,
भगवान तो उही आय
तोर सुख बर कतको दुख ल उठाय हे।

मां-बाप नई रतिस त दुनिया म नई रतेस,
आज कोन ल मां-बाप कतेस,
मां तो ममता के सागर आय,
जेमा सबे मया-दुलार समया हे,
धूप म रहिके भूख ल सहिके
तोर भूख ल मिटाय हे।

काय नई देखे हे तोर बर सपना,
जेन ल मागथस ओला लाके देथे,
जिनगी भर के सुख देवईया ल झन भुलाबे,
जे ह कतको घाम-प्यास म
पसीना बहाके पढाय हे।

मां-बाप के साथ रहई ह तो सरग आय,
जिहां मया-दूलार म हृदय भर जाय।
कछू बात के संसो नई रहाय,
जिंहा खुशी से रोटी खाय,
जे ह सही रद्दा ल बताय हे।

जउन ह मां-बाप के कहे ल नई मानय,
हर रद्दा म दुख ल पाय हे।
जे ह अपन मां-बाप ल गारी देथे,
जगा-जगा म मार-गारी खाय हे।
कभू ऐकर आत्मा ल झन दुखाबे,
जे ह तोर रद्दा ल सुघ्घर बनाय हे।

सब ल भूलाबे त भूला जबे,
मां-बाप ल झन भूलाबे।
तभे संगी मन भर के सुख ल पाबे,
बढ़िया कमाबे अउ बढ़िया खाबे।
जिनगी ल बिता दे ऐकर चरण म,
जे ह तोर जिनगी ल सुघ्घर बनाय हे।

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